5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू हुआ था। जो दो दिन चला। जिसमें सेना , जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के बीच मुठभेड़ हुई । स्वर्ण मंदिर के सामने अकाल तख्त में छिपे बैठे भिंडरावाले और उसकी छोटी-सी टुकड़ी को काबू करने के लिए सेना ने ये अभियान चलाया था।
सेना का मिशन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के चंगुल से छुड़ाना था। सेना को जानकारी थी कि स्वर्ण मंदिर के पास की 17 बिल्डिंगों में आतंकवादियों का कब्जा है। इसलिए सबसे पहले सेना ने स्वर्ण मंदिर के पास होटल टैंपल व्यूह और ब्रह्म बूटा अखाड़ा में धावा बोला जहां छिपे आतंकवादियों ने बिना ज्यादा विरोध किए समर्पण कर दिया।
शुरुआती सफलता के बाद सेना ऑपरेशन ब्लू स्टार के अंतिम चरण पर थी। कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल के एस बरार ने अपने कमांडोज़ को उत्तरी दिशा से मंदिर के भीतर घुसने के आदेश दिए गए थे। चारों तरफ से कमांडोज़ पर फायरिंग शुरू हो गई। मिनटों में 20 से ज्यादा जवान शहीद हो गए। जवानों पर अत्याधुनिक हथियारों और हैंड ग्रेनेड से हमला किया गया था। यह नतीजा था बरार को मिली इंटेलिजेंस की गलत सूचना का।
बरार को साफ निर्देश थे कि स्वर्ण मंदिर की तरफ गोली नहीं चलानी है। नतीजा ये हुआ कि सेना की मंदिर के भीतर घुसने की तमाम कोशिशें बेकार गईं और कैज्युल्टी बढ़ने लगीं थी।
आतंकवादियों की तैयारी जबर्दस्त थी और वो किसी भी हालत में आत्मसमर्पण ना करने के मूड में थे। इस बीच मेजर जनरल के एस बरार के एक कमांडिंग अफसर ने बरार से टैंक की मांग की। सुबह होने से पहले ऑपरेशन खत्म करना था क्योंकि सुबह होने का मतलब था और जानें गंवाना।बरार को सरकार से टैंक इस्तेमाल करने की इजाज़त मिली।
मेहता के दमदमी टकसाल में सात साल के एक लड़के ने सिख धर्म की पढ़ाई शुरू की थी। उसका नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले। कुछ ही सालों में भिंडरावाले की धर्म के प्रति कट्टर आस्था ने उसे टकसाल के गुरुओं का प्रिय बना दिया। जब टकसाल के गुरु की मौत हुई तो उन्होंने अपने बेटे की जगह भिंडरावाले को टकसाल का प्रमुख बना दिया। आज भी टकसाल में भिंडरावाले को शहीद का दर्जा दिया जाता है।
5 बजकर 21 मिनट पर सेना ने टैंक से पहला वार किया। आतंकवादियों ने अंदर से एंटी टैंक मोर्टार दागे। अब सेना ने कवर फायरिंग के साथ टैंकों से हमला शुरू किया। चारों तरफ लाशें बिछ गईं।
लेकिन अब भी भिंडरावाले का डेरा अकाल तख्त सेना के कब्जे से दूर था और सेना को जानमाल का नुकसान बढ़ता जा रहा था। इसी बीच अकाल तख्त में जोरदार धमाका हुआ। सिखों की आस्था का केंद्र अकाल तख्त तहस नहस हो गया।
अचानक बड़ी संख्या में आतंकवादी अकाल तख्त से बाहर निकले और गेट की तरफ भागने लगे लेकिन सेना ने उन्हें मार गिराया। उसी वक्त करीब 200 लोगों ने सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। अकाल तख्त के अंदर 40 समर्थकों की लाश के बीच भिंडरावाले, उसके मुख्य सहयोगी मेजर जनरल शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह की लाश पड़ी थी।
6 जून 1984 की शाम तक स्वर्ण मंदिर के अंदर छिपे आतंकवादियों को मार गिराया गया । इस ऑपरेशन में कई आम लोगों की भी जान गई। खुद सेना ने बाद में माना कि 35 औरतें और 5 बच्चे इस ऑपरेशन में मारे गए। हालांकि गैर सरकारी आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं। ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुल 492 जानें गईं। इस ऑपरेशन में सेना के 4 अफसरों समेत 83 जवान शहीद हुए। वहीं जवानों समेत 334 लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
पूर्व सेना अधिकारियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की जमकर आलोचना की। उनके मुताबिक ये ऑपरेशन गलत योजना का नमूना था।