यहां रिसते पानी की मोहताज है जिंदगी

संध्या द्विवेदी 

बुंदेलखंड के महोबा जिले के खन्ना कस्बे की ये तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं। रिसते हुए पानी से गुजर करने को मजबूर सैकड़ों लोगों के किस्से बयां करती हैं। इस कस्बे में आठ साल पहले ब्याह कर आई सुखिया जब यह कहती हैं कि मेरे बाद मेरे गांव से एक भी लड़की यहां दुल्हन बनकर नहीं आई। मेरी ही किस्मत फूटी थी जो मैं यहां ब्याही गई। आधी से ज्यादा जिंदगी तो पानी खरोंचने में चली जाती है यहां।

खन्ना कस्बे की महिला चंद्रावल नदी के किनारे गुफानुमा गडढे से रिसते पानी को निकालती हुई
खन्ना कस्बे की महिला चंद्रावल नदी के किनारे गुफानुमा गडढे से रिसते पानी को निकालती हुई

इस गांव की बेटी कुसमा का रिस्ता पक्का हो गया है। वह शादी से ज्यादा खुश इस बात से है कि उसका ब्याह जिस गांव में हो रहा है वहां हैंडपंप है। वह खुश होकर बताती है कि हमारी ससुराल के घर के सामने ही एक हैंडपंप लगा है। रोज पानी आता है, वहां। न वह अपने होने वाले पति के बारे में कुछ बताती है और न हीं अपने ससुरालियों के बारे में बस वह इस शादी से उत्साहित है क्योंकि वहां पानी है।  महोबा जिले के खन्ना कस्बे की यह पूरी कहानी इसलिए बतानी जरूरी थी कि जो लोग लातूर के पानी संकट से द्रवित हैं उन्हें ऐसी जगहों की भी खोज खबर लेनी चाहिए।

लातूर में पीने के पानी को तरस रहे लोगों की खबर सबसे बड़ी बन गई है। यह और बड़ी खबर तब बन गई जब केंद्र सरकार ने लातूर के लिए पांच लाख लीटर पानी को ट्रेन के जरिए भेजा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी दिल्ली से पानी बचा बचाकर लातूर भेजने का फैसला करते हुए प्रधानमंत्री को खत लिख भेजा। लेकिन क्या लातूर ही एक ऐसा जिला है जहां लोग पानी को तरस रहे हैं? महोबा  के खन्ना कस्बे में तो पानी की कमी अब खबर ही नहीं बनती।

 

यहां महिलाओं का आधा दिन पानी इकट्ठा करने में ही जाया होता है
यहां महिलाओं का आधा दिन पानी इकट्ठा करने में ही जाया होता है

लोगों ने भी धरना प्रदर्शन करना छोड़ दिया है। लोग आदी हो गए हैं रिसते हुए पानी को पीने के। चंद्रावल नदी बरसात के मौसम में कुछ भर जाती है, बाकी सारे मास यहां सूखा ही रहता है। लोगों ने एक तरीका खोजा है। खन्ना कस्बे की एक बड़ी आबादी नदी के किनारे गड्ढे बनाती है। यह गड्ढे गुफानुमा होते हैं जिनके भीरत पानी रिसता है। यह पानी कलशे या घड़े से भरा नहीं जा सकता है। इसलिए कटोरियों से पानी भरकर या यों कहें कि रिसते पीने को खरोचकर अपना गुजारा करते हैं।

इन पर न केंद्र की नजर पड़ी और न हीं अरविंद केजरीवाल की आंखे इन्हें देखकर पानी पानी हो गईं। लातूर के सूखे से मैं भी व्यथित हूं लेकिन सूखे पर हो रही राजनीति के खिलाफ हूं। बुंदेलखंड को सूखे से ज्यादा उस पर हुई राजनीति ने बर्बाद किया है।

 

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