गुलाम चिश्ती ।
आखिरकार मणिपुर विधानसभा में एन बीरेन सिंह सरकार ने बीते 20 मार्च को विश्वास मत हासिल कर लिया। 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा नीत गठबंधन सरकार के पक्ष में 32 और विपक्ष में 27 वोट पड़े। केवल कांग्रेस सदस्यों ने सरकार के खिलाफ वोट किया, जबकि भाजपा, नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), लोकजन शक्ति पार्टी, तृणमूल और निर्दलीय विधायकों ने सरकार के पक्ष में वोट किया। इससे पूर्व भाजपा के युमनाम खेमचंद को मणिपुर विधानसभा का नया अध्यक्ष चुना गया। खेमचंद पहली बार सिंगजामेई विधानसभा सीट से विधायक चुने गए हैं। राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने 21 मार्च को सदन को संबोधित किया। भाजपा को 60 सदस्यीय विधानसभा में 21 सीटें मिली थीं और उसने नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के चार-चार विधायकों के समर्थन और अन्य दलों और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से बहुमत के जादुई आंकड़े को हासिल किया था। इबोबी सिंह के नेतृत्व वाली पूर्व कांग्रेस सरकार 60 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस बहुमत साबित करने में विफल रही और इबोबी सिंह की सरकार का 15 वर्षों का कार्यकाल समाप्त हो गया। इस प्रकार राज्य में पहली बार भाजपा सरकार का गठन हुआ।
मणिपुर भाजपा के प्रभारी प्रह्लाद सिंह पटेल का कहना है कि राज्य में अब भाजपा स्थिर सरकार देगी। नई सरकार के प्रयास से पिछले चार महीने से जारी आर्थिक नाकेबंदी समाप्त कर दी गई है। परिणामत: राज्यवासियों ने राहत की सांस ली है। लोगों तक जरूरत की चीजें पहुंचने लगी हैं। राज्य में भाजपा गठबंधन की सरकार बनाने में किसी भी तरह की अनियमिता नहीं बरती गई। साथ ही राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला की ओर से भी नियम के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया। सिंह का कहना है कि राज्य में कांग्रेस बड़ी पार्टी होने के बावजूद उसने नई सरकार बनाने की कोशिश नहीं की। राज्यपाल जब पूरी तरह आश्वस्त हो गर्इं कि कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने को इच्छुक नहीं है तब भाजपा को अन्य पार्टियों के सहयोग से सरकार बनाने का मौका दिया गया। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के महासचिव व प्रदेश कांग्रेस के केंद्रीय प्रभारी डॉ. सीपी जोशी के साथ इंफाल में असम के पूर्व मंत्री रकिबुल हुसैन, कांग्रेस विधायक रेकिबुद्दीन अहमद और कांग्रेस नेता दुलु अहमद मौजूद थे। कहा जा रहा है कि रकिबुल हुसैन ने अपने दो सहयोगियों के साथ एनपीएफ और एनपीपी से सहयोग मांगा, परंतु प्रयास सार्थक न होने के कारण इन पार्टियों ने कांग्रेस को सहयोग देने से इंकार कर दिया। दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा कि असम से जो तीन नेता इबोबी सरकार के गठन में सहयोग करने के लिए गए थे, उनमें से ही कोई हर प्रयास की खबर नार्थईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजक डॉ. हिमंत विश्वशर्मा को दे रहा था। परिणामत: भाजपा संख्या कम होने के बावजूद विधायकों की पर्याप्त संख्या जुटाने में कामयाब रही। ऐसे में इस पूरी प्रक्रिया में असम से इंफाल गए कांग्रेस नेताओं की विश्वसनीयता पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। उधर, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के सचिव राणा गोस्वामी का कहना है कि जब एआईसीसी ने रकिबुल हुसैन को वार्ता के लिए अधिकृत नहीं किया था तो वे कांग्रेस की ओर से मुख्य वार्ताकार कैसे बन गए। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस के लिए जो वार्ताकार थे, उनकी नीयत में खोट थी, जिसका फायदा नेडा संयोजक ने उठाया। उधर नई सरकार अपने प्रथम दिन से राज्यवासियों पर असर छोड़ती दिखी।
सरकार ने बहुमत साबित करने से पूर्व मध्य रात्रि से चार महीने से ज्यादा दिनों से जारी आर्थिक नाकेबंदी को समाप्त कराने में सफल रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि यदि राज्य में भाजपा सरकार बनी तो आर्थिक नाकेबंदी को समाप्त कर दिया जाएगा। ऐसे में नाकेबंदी समाप्त होने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर बड़ी संख्या में जरूरी वस्तुओं से लदे वाहनों को इंफाल की ओर रवाना किया गया। इस बीच राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने सरकार की ओर से नाकेबंदी को हटाने के प्रयास की सराहना की है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा कि उन्होंने शपथ लेने के 24 घंटे के अंदर आर्थिक नाकेबंदी हटाने संबंधी अपने वादे को पूरा किया है। इस संबंध में सेनापती जिले में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। मणिपुर पुलिस ने यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) के अध्यक्ष गैदोन कमाई और सूचना सचिव स्टीफन लेमकांग को भी बिना शर्त रिहा कर दिया। कमाई के खिलाफ सभी आरोपों को वापस ले लिया गया। इन लोगों को राज्य में पिछले 25 नवंबर को आर्थिक नाकेबंदी लागू होने के बाद गिरफ्तार किया गया था।
फिलहाल राज्य में नई सरकार के प्रयास की सभी सराहना कर रहे हैं, परंतु राज्य के वयोवृद्धों को भाजपा और एनपीएफ की संगत बिल्कुल पसंद नहीं आ रही है। इंफाल के कांग्रेस समर्थक डी सिंह का कहना है कि नगा समझौते पर राज्यवासी अभी सशंकित हैं। उनका मानना है कि जब एनपीएफ सरकार की हिस्सेदार है तो वह आने वाले दिनों में वृहत्तर नगालिम की मांग को पूरा करने के लिए सरकार पर जरूर दबाव डालेगी। ऐसे में भाजपा को राज्य में सत्ता चलाने में परेशानी होगी। कारण यह कि भाजपा राज्य में एनपीएफ के बिना सरकार नहीं चला सकती। ऐसे में उसकी बातें मानना मणिपुर की भाजपा सरकार की मजबूरी होगी। साथ ही चुनाव के मौके पर कांग्रेस ने नगा समझौते का मुद्दा जोर-शोर के साथ उठाया था। ऐसे में यदि एनपीएफ वृहत्तर नगालैंड की मांग पूरी करने पर जोर देता है तो केंद्र सरकार और राज्य सरकार को यह साबित करने में कठिनाई होगी कि केंद्र सरकार ने नगा समझौते में मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता पर किसी भी तरह का समझौता नहीं किया है। ऐसे में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को सभी को साथ लेकर चलना आसान नहीं होगा। यह अलग बात है कि प्रदेश भाजपा के प्रभारी प्रह्लाद सिंह पटेल दावा कर रहे हैं कि भाजपा सरकार के आने के बाद राज्य में आया राम-गया राम की राजनीति समाप्त हो जाएगी। राज्यवासी भी चाहते हैं कि ऐसा ही हो, परंतु एनएससीएन (आईएम), नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और संयुक्त नगा कौंसिल (यूएनसी) अपने एजेंडे को पूरा किए बिना राज्य सरकार को आसानी से चलने देगी, ऐसा नहीं लगता है।