वीरेंद्र नाथ भट्ट
कांग्रेस की 1989 में उत्तर प्रदेश से विदाई के बाद से गाजियाबाद विकास प्राधिकरण, न्यू ओखला इंडस्ट्रियल अथॉरिटी (नोएडा) और मायावती के राज में गठित यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण प्रदेश के सत्ताधारी नेताओं की दुधारू गाय रहे हैं। सपा और बसपा की सरकारों में तो विधायकों को नोएडा और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा बेहद कम दरों पर भूखंड दिए जाते थे और ज्यादातर नेता मोटा मुनाफा लेकर वे प्लाट प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर को बेच देते थे। मुलायम सिंह, मायावती और अखिलेश यादव की सरकारों के समय मुख्यमंत्री के लखनऊ स्थित कार्यालय की हरी झंडी के बिना किसी प्लाट की बिक्री नहीं होती थी। 2007-12 के बीच मायावती के शासनकाल में तो घोटालों की भरमार थी। मायावती ने यादव सिंह को नोएडा का चीफ इंजीनियर बनाया तो अखिलेश यादव ने उन्हें ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण का भी कार्यभार सौंप दिया। अखिलेश यादव सरकार ने तो यादव सिंह को सीबीआई जांच से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ी लेकिन रोक नहीं पाए और आज वह जेल में हैं।
महालेखा परीक्षक यानी कैग पांच सालों से उत्तर प्रदेश सरकार से इन प्राधिकारों का आॅडिट करने की अनुमति मांग रहा था। राज्यपाल राम नाईक ने भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखा लेकिन सरकार ने मना कर दिया। योगी सरकार ने कैग को सभी प्राधिकारों का आॅडिट करने की अनुमति दे दी है जिससे सपा और बसपा को आने वाले दिनों में मुश्किल हो सकती है।
अब बिल्डर्स की मनमानी पर नकेल लग रही है। बेलगाम बिल्डरों ने हजारों लोगों से फ्लैट देने का वादा कर हजारों करोड़ रुपया वसूला। लोग दस साल से इंतजार कर रहे हैं लेकिन फ्लैट नहीं मिला। योगी के मुख्यमंत्री बनने से अब लोगों को न्याय की आस बंधी है। नाराज निवेशकों के हंगामा करने के बाद नोएडा अथॉरिटी की तरफ से बैठक बुलाई जा रही है। जेपी ग्रुप की मनमानी से परेशान होकर गोवा से आए मुकेश गुप्ता ने बताया कि उन्होंने 2010 में एक करोड़ रुपये लगाए थे लेकिन अब तक काम बिलकुल भी नहीं हुआ है। मुकेश गुप्ता के मुताबिक बिल्डर्स से बात करने पर उन्हें भगा दिया गया। एसके सूरी को अब सीएम योगी ही से उम्मीद है। सूरी ने अपनी जिÞंदगी की कमाई और रिटायरमेंट फंड जेपी बिल्डर्स के तहत मकान बनाने में लगा दिया लेकिन अब तक काम क्या हुआ उन्हें भी नहीं पता। उनके बेटे की शुरू की दस साल की कमाई भी लग गई, लेकिन अभी तक सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा है। सांसद महेश गिरी से लेकर प्रधानमंत्री तक से गुहार लगा चुके एसके सूरी को अब सीएम योगी ही से उम्मीद है। सौरव बहल 80 लाख रुपये जमा कर चुके हैं। उन्होंने 2010 में पैसे लगाए। हर बार समय मांगा जाता है पर उनका आशियाना अब तक बनकर तैयार नहीं हुआ। बिल्डर की बैरिकेडिंग की वजह से वे अपने फ्लैट तक भी नहीं जा पाते ताकि काम की प्रगति देख सकें। वहां काम होने का कोई आसार भी नहीं दिख रहा है। 80 लाख रुपये जमा कर चुके सौरव थक गए हैं। वह कहते हैं, ‘अब तो तस्वीर पर माला पड़ेगी तभी मकान बनेगा। हर बार अलग अलग समय पर बुलाते हैं लेकिन काम नहीं हुआ। बिल्डर्स की मार से परेशान पवन कहते हैं कि अब तो कानूनी कार्रवाई ही करनी पड़ेगी। पवन का कहना है, ‘पूरे पैसे देने के बाद भी बिल्डर्स मकान बनाने को लेकर सुध नहीं ले रहे हैं।’
नोएडा में हंगामे के बाद योगी ने आला अफसरों को तलब किया तो हड़कंप मचा। अब अफसरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है कि बिल्डर्स और रियल एस्टेट कंपनियों पर लगाम लगाने के पूरे अधिकार होने के बाद भी निवेशकों की शिकायत पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई।