यशोदा श्रीवास्तव।
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से पूर्वांचल के लोगों में ढेर सारी उम्मीदें हिलोरें लेने लगी हैं। लंबे समय बाद उन्हें ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जिसमें वीरबहादुर के सपनों को साकार करने की संभावना दिख रही है। गोरखपुर पूर्वांचल की राजनीति का केंद्रबिंदु हमेशा से रहा है। पूर्वांचल राज्य की मांग जब जब उठी है तब तब संभावित राजधानी के रूप में गोरखपुर की चर्चा खूब हुई। भाजपा के सत्ता में आने के बाद पूर्वांचल के रूप में अलग राज्य की संभावना पर फिर चर्चा शुरू हो गई है। खास तौर से योगी के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद यह चर्चा जोर पकड़ रही है, क्योंकि वे स्वयं अलग पूर्वांचल राज्य के हिमायती रहे हैं। भाजपा का भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन है। इसके मुखिया ओम प्रकाश राजभर पूर्वांचल राज्य की मांग को लेकर अलख जगाए हुए थे। वे योगी सरकार में कैविनेट मंत्री हैं।
बहरहाल, पूर्वांचल राज्य की बात हम नहीं करते लेकिन पूर्वांचल के विकास की कल्पना तो कर सकते हैं। योगी पर इतना भरोसा करना पूर्वांचलवासियों का अधिकार है। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने उत्तर प्रदेश के विभाजन की बात तब कही थी जब इस प्रदेश की आबादी 6 करोड़ ही थी। आज आबादी 22 करोड़ है तो कम से कम इसे तीन प्रदेशों में बंटना चाहिए। उत्तर प्रदेश के बंटवारे की आवाज पहले भी कई बार उठी है। कल्पनाथ राय ने तो इसे लेकर कई बार बड़ा आंदोलन तक किया था। उन्होंने पूर्वांचल के कई जिलों में पदयात्राएं भी की थी। सपा से नाराज चल रहे अमर सिंह ने भी लोकमंच का बैनर लेकर पूरा पूर्वांचल मथ डाला था। इस अभियान का मकशद भी पूर्वांवल राज्य ही रहा है।
पूर्वांचल कार्ड को बसपा प्रमुख मायावती ने भी खेला था। 2012 के विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 11 सितंबर 2011 को विधानसभा से एक प्रस्ताव पारित कर दिल्ली तक पहुंचा दिया था। पूर्वांचल राज्य की मांग नई नहीं है। बहुत पहले सिद्धार्थनगर जिले के निवासी शिक्षाविद पं राम शंकर मिश्र ने बुद्ध से जुड़े पूर्वांचल के 24 जिलों को मिलाकर शाक्य प्रदेश की मांग बुलंद की थी। उसके बाद ही पूर्वांचल राज्य की मांग अलग अलग संगठनों के माध्यम से उठनी शुरू हुई थी लेकिन इसे वैसी धार नहीं मिली जैसी उत्तराखंड अथवा तेलंगाना के लिए मिली थी। हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि 1991 में केंद्र सरकार के अलग से पूर्वांचल विकास निधि की शुरुआत करने के पीछे पूर्वांचल राज्य का बढ़ता दबाव ही था। प्रदेश की आबादी जब 18 करोड़ थी तब लंबे संघर्ष के बाद 2000 में उत्तराखंड के रूप में 27वें राज्य का गठन हुआ। अब सूबे की आबादी करीब 22 करोड़ है। ऐसे में कम से कम पूर्वांचल राज्य के रूप में एक और प्रदेश का गठन वक्त की जरूरत है। विकास की दृष्टि से इस राज्य का विकास राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है। आजादी के समय राष्ट्रीय आय में उत्तर प्रदेश का योगदान कुल आय का पांचवां भाग था जो घटते घटते उसका आधा हो गया। उत्तर प्रदेश के प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय में अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है।
उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय 9,639 रुपये प्रति माह है। अनेक आर्थिक मानदंडों पर राष्ट्रीय औसत से यह राज्य बहुत पीछे है। प्रदेश में 29 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। बुनियादी सुविधाएं भी उतनी नहीं हैं जितनी अन्य राज्यों में हैं। केवल बिजली की बात करें तो अन्य प्रदेश जहां शतप्रतिशत विद्युतीकरण की ओर अग्रसर हैं वहीं इस प्रदेश में अभी भी 20 प्रतिशत गांव बिजली को तरस रहे हैं जिसका बड़ा भाग पूर्वांचल में है। शिक्षा के क्षेत्र में भी उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय औसत से 4.32 प्रतिशत पीछे है। हम अगर पूर्वांचल की बात करें तो असम, गुजरात, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, केरल सहित कई प्रदेश ऐसे हैं जिनकी आबादी पूर्वांचल से कम है। इस अविकसित क्षेत्र की आबादी करीब सवा नौ करोड़ है। यहां प्रति वर्ग किलोमीटर 7.55 व्यक्ति है। औद्योगिकीकरण के अभाव में यहां की 75 प्रतिशत आबादी खेतिहर मजदूर के रूप में जीवन यापन करने को मजबूर है। सिंचाई सुविधा का बुरा हाल होने से खेती की भी दशा बहुत अच्छी नहीं रहती। कुल क्षेत्रफल की 55.65 प्रतिशत भूमि ही सिंचित क्षेत्रफल के दायरे में आती है। पूर्वांचल की भूमि का एक बड़ा भाग ऊसर होने के कारण भी कृषि उत्पादन पर असर पड़ता है। उद्योगों की बात करें तो पूर्वांचल में 41 चीनी मिलें जरूर हैं लेकिन इनमें से कुछ को छोड़ कर सब की सब खस्ताहाल हैं। वीरबहादुर के बाद गोरखपुर से जुडेÞ योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बने हैं। ऐसे में उम्मीद है कि योगी अलग पूर्वांचल की बात न भी करें तो वह यहां की गरीबी और पिछडेÞपन को दूर करने के लिए नए सिरे से प्रयास जरूर करेंगे।