गिरधारी लाल जोशी
बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर छठी बार शपथ लेने के तेरह दिन बाद 9 अगस्त को नीतीश कुमार पहली बार खुले मंच से पटना में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। संबोधन के दौरान उन्होंने ऐसा खुलासा किया जिसे आम तौर पर मुख्यमंत्री या सत्ताधारी दल की ओर से नहीं किया जाता। मुख्यमंत्री ने बताया कि भागलपुर जिले में सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये का गबन हुआ। मुख्यमंत्री द्वारा अपने ही सरकार के दौरान हुए गबन की बात सामने लाने के बाद आनन-फानन में जांच टीम गठित कर दी गई। हंगामा बढ़ने पर मामले की जांच देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई को सौंप दी गई। सीबीआई ने इस मामले में दस अलग-अलग एफआईआर दर्ज की है। इनमें भागलपुर जिला प्रशासन, बैंकों और सृजन के निदेशक मंडल को नामजद अभियुक्त बनाया गया है। साथ ही बैंक आॅफ बड़ौदा के डायरेक्टर और पूर्व डायरेक्टर के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई है।
सृजन महाघोटाले को भले ही मुख्यमंत्री ने खुद उजागर किया हो मगर विरोधियों ने यह सवाल पूछकर नीतीश की मुश्किलें बढ़ा दी है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की बात करने वाले और भ्रष्टाचार के मामले पर महागठबंधन तोड़ने वाले सुशासन बाबू के कार्यकाल में गबन कैसे हो गया? राजद प्रमुख लालू यादव ने नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा कि अब उनकी नैतिकता कहां चली गई है? वहीं बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश और सुशील मोदी के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि उनके पद पर रहते हुए निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती। इसके जवाब में नीतीश ने कहा कि जिन्हें भी सीबीआई की जांच पर संदेह है वे कोर्ट जा सकते हैं। कोर्ट यदि जांच की मॉनिटरिंग करती है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। जांच में यह बात सामने आने लगी है कि यह एक हजार करोड़ रुपये से भी अधिक का महाघोटाला है जिसकी रकम और भी बढ़ सकती है। अब घोटाले का दायर भागलपुर से निकल कर पड़ोसी जिले बांका तक पहुंच गया है।
तेजस्वी यादव इस महाघोटाले को 2000 करोड़ रुपये का बताते हुए कहते हैं, ‘इस घोटाले की शुरुआत 2007-08 में नीतीश सरकार के कार्यकाल में ही हुई और उन्होंने ही इसे उजगाार किया। इसका मतलब है कि उन्हें इस घोटाले की जानकारी पहले से ही थी।’ हालांकि तेजस्वी इस घोटाले के लिए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को खासतौर पर जिम्मेवार ठहराते हैं जिनके वित्त मंत्री रहते इसकी शुरुआत हुई। 2008 में ही सरकारी आॅडिटर ने यह गड़बड़ी पकड़ ली थी। तब बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार थी और वित्त मंत्रालय सुशील मोदी के पास था। आॅडिटर ने आपत्ति जताई थी कि सरकार का पैसा को-आॅपरेटिव बैंक में कैसे जमा हो रहा है। आॅडिटर ने अपनी आपत्ति नीतीश सरकार को बता दी थी।
2008 में ही यहां पदस्थापित जिलाधीश विपिन कुमार ने सरकारी धन के सृजन के खातों में हस्तान्तरण को देखकर हैरत जताई थी और फौरन इस काम को रोकने की हिदायत दी थी। उन्होंने सभी प्रखंड के अधिकारियों को लिखा था कि पैसा सृजन के खाते में जमा नहीं करें। मगर उनके तबादले के बाद यह खेल फिर से शुरू हो गया, बल्कि यूं कहें कि तेजी पकड़ी। विपिन कुमार फिलहाल दिल्ली में बिहार भवन के आयुक्त हैं। उनके जाने के बाद जिले में आए कई जिलाधिकारियों ने सृजन के खाते में पैसा ट्रांसफर होने दिया। घोटाले की मास्टरमाइंड मनोरमा देवी, उनके बेटे अमित कुमार और बहू प्रिया कुमार के साथ संबंध से भाजपा के नेताओं में खलबली है। सृजन घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाले भागलपुर के समाजसेवी लालू शर्मा का कहना है, ‘अगर इस घोटाले की जांच सीबीआई ने बगैर किसी दबाव में किया तो बिहार की बड़ी राजनीतिक हस्तियों के साथ दर्जन भर से अधिक आईएएस जेल में होंगे।’
मनोरमा देवी थी मास्टरमाइंड
इस घोटाले के पीछे दरअसल एक एनजीओ की कहानी है जिसकी संस्थापक मनोरमा देवी अब इस दुनियां में नहीं रही। मनोरमा देवी ने वर्ष 1993-94 में एकीकृत बिहार में सृजन संस्था जिसका पूरा नाम सृजन महिला विकास समिति है को निबंधित करवाया। इसे वर्ष 1996 में सहकारिता विभाग में को-आॅपरेटिव सोसायटी के तौर को मान्यता मिली जिसमें महिलाओं के पैसे जमा किए जाते थे और उन्हें ब्याज भी दिया जाता। संस्था महिलाओं को कर्ज भी मुहैया कराती थी। कम दिनों में इस संस्था की ख्याति गरीब, पिछड़ी और दलित महिलाओं के जीवन स्तर उठाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के रूप में हो गई। एक सिलाई मशीन से कपड़ा सिलने से शुरुआत करने वाली संस्था की सचिव मनोरमा देवी इन महिलाओं के बीच मसीहा के तौर पर उभरी। मनोरमा ने महिलाओं के बीच अपनी बढ़ती लोप्रियता को स्वयं सहायता समूह बना कर और लोकप्रिय किया। धीरे-धीरे संस्था की आमदनी काफी होने लगी और मनोरमा का कद बड़ा होने लगा। मनोरमा के काम से प्रभावित होकर भागलपुर के जिलाधिकरी ने जिला मुख्यालय में एक बडा भूखंड इस संस्था को मात्र 200 रुपये महीने पर 35 साल के लिए दे दिया। सृजन सरकार से पैसे भी उधार लेती थी जिसे कारोबार में लगाया जाता था। कारोबार का मुनाफा सृजन के पास रह जाता था और मूल रकम वापस सरकारी खजाने में जमा करा दिया जाता था।
कैसे शुरू हुआ घोटाला
सृजन ने महिलाओं को काराबारी बनाने के लिए 2007-08 से सरकारी खजाने से पैसे लेने की शुरुआत की। कुछ ही दिनों में मनोरमा ने प्रशासन के बड़े अफसरों और बैंक अधिकारियों को कीमती तोहफे देकर अपने भरोसे में लेना शुरू कर दिया। यहीं से उसने घोटाले का खेल शुरू किया। मनोरमा के चहेते अफसरों ने सरकारी खजने से मनमाना रकम ले जाने दिया जिसका इस्तेमाल मनोरमा ने व्यापारियों, अधिकारियों के रिश्तेदारों और नेताओं को कर्ज देने में किया। इस कर्ज पर वह मोटा ब्याज वसूलती थी। यानी सरकारी धन का इस्तेमाल सृजन की कमाई के लिए किया जाने लगा। यही नहीं, मूल राशि में से कुछ पैसा दिखावे के लिए ही सही वापस सरकारी खजाने में जमा करा दिया जाता था। बाकी रकम अधिकारियों, व्यापारियों, नेताओं और मनोरमा के बीच आपस में बांट लिया जाता।
इसी वर्ष फरवरी में मनोरमा की मृत्यु हुई तो संस्था की कमान उसके बेटे अमित कुमार की
पत्नी प्रिया कुमार ने संभाल ली जबकि अमित पर्दे के पीछे से कारोबार चला रहा था। दोनों ने मनोरमा देवी की तर्ज पर ही सृजन के कारोबार को बढ़ाना शुरू किया। प्रिया ने संस्था को मनोरमा की कमी खलने नहीं दी। पति-पत्नी की इस जोड़ी ने भी घोटाले को बख्ूाबी अंजाम दिया और नेताओं व अधिकारियों को बड़े पैमाने पर रेवड़ियां बांटी। मगर लूट के इस खेल में मनोरमा का बनाया वह सिद्धांत टूट गया जिसमें लूट और बंटवारे के बाद सरकारी खजाने में थोड़ी राशि लौटा दी जाती थी। सूत्र बताते हैं कि मनोरमा देवी के रहते सरकारी खजाने में लूट के बाद कुछ हिस्सा वापस लौट भी जाता था जिससे यह विश्वास कायम था कि संस्था सरकार से पैसा लेकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम करने के बाद वापस उस पैसे को लौटा देती है। राजनीतिक जानकार देवांशु शेखर मिश्रा के मुताबिक, ‘जब सरकार को यह भान हो गया कि अब इस घोटाले को ज्यादा दिनों तक चलाया या दबाया नहीं जा सकता तो अपने स्तर पर ही इसका खुलासा कर अपनी फजीहत कम करने की कोशिश की है।’
बड़े-बड़े अधिकारियों व नेताओं पर शक
घोटाले के आरोपियों के साथ सृजन के हर कार्यक्रम में शिरकत करने वाले बड़े राजनीतिक हस्तियों की तस्वीर कुछ कहानी बयां कर रही है। इन तस्वीरों की वजह से ही केंद्रीय राज्य मंत्री गिरीराज सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और भागलपुर के पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन, दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे समेत करीब आधा दर्जन भाजपा नेता शक के दायरे में हैं। विरोधी इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर जारी कर भाजपा से सवाल दाग रहे हैं। सृजन के कार्यालय में लगी दर्जनों तस्वीरें भी बताती हैं कि राजनेताओं के साथ रसूखदारों के साथ भी घोटाले के आरापियों के बेहतर रिश्ते रहे हैं। इन रिश्तों की वजह से ही सृजन के प्यादों की हैसियत रंक से राजा की हुई। इनमें अफसरों की पत्नियां भी शामिल हैं। मिसाल के तौर पर कल्याण अधिकारी की पत्नी इंदु गुप्ता, जिनको गहनों से लदे रहने का शौक था। गहनों से लदे रहने का इंदु का शौक सृजन से ही पूरा होता था। नाजिर महेश मंडल का करोड़ो का महलनुमा एयर कंडीशन मकान कुछ ही वर्षों में घोटाले के पैसे से तैयार हुआ। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का भागलपुर में बन रहे मॉल में भी सृजन का पैसा लगा होने की बात कही जा रही है।
भाजपा प्रदेश किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष विपिन शर्मा के तार सृजन घपले से जुड़ने की वजह से उन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। भाजपा सांसद के मॉल में शर्मा की चार दुकानें होने की बात भी सामने आई है। सूत्र बताते हैं कि सृजन घोटाला विपिन शर्मा के पैसा न लौटाने की जिद के कारण ही सामने आ पाया। मनोरमा देवी ने विपिन शर्मा को भी पैसा दिया था मगर उसकी मौत के बाद विपिन ने पैसा देने से इनकार कर दिया, जिससे उसका और मनोरमा देवी के बेटे अमित में काफी तनाव हो गया। जब अमित ने पैसा जमा करने में अपनी लाचारी दिखाई तब बैंको के पास चेक को बाउंस करने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया।
जदयू युवा मोर्चा के भागलपुर जिला अध्यक्ष शिव मंडल को भी निलंबित करने की तैयारी हो चुकी है। शिव मंडल नाजिर महेश मंडल का बेटा है। शिव मंडल का आयकर रिटर्न तो शून्य है मगर हैसियत करोड़ों रुपये की है। आर्थिक अपराध शाखा की टीम उसकी जायदाद का आकलन करने में जुटी है। जल्द ही संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई की जाएगी। सृजन की सचिव प्रिया कुमार और उसके पति अमित कुमार, डिप्टी कलेक्टर रैंक के पूर्व भू-अर्जन अधिकारी राजीव रंजन, गिरफ्तार कल्याण अधिकारी अरुण कुमार की पत्नी इंदु गुप्ता अब तक गिरफ्त से बाहर हैं। पर सवाल है कि संतरी से लेकर मंत्री तक जिसने भी सृजन की मलाई खाई है उनसे कौन पूछताछ करेगा? जानकार बताते हैं कि ऐसे एक दर्जन रसूखदार हैं जिनका नाम सृजन के रजिस्टर में दर्ज है और एक दर्जन से ज्यादा आईएएस अधिकारी भी हैं जिनकी कभी भागलपुर में तैनाती थी और अब वे सूबे में उच्च पदों पर आसीन हैं।
इस घोटाले की जांच में शामिल अधिकारियों का कहना है कि भागलपुर में पदस्थापित कुछ जिलाधिकारी जिनमें गोरेलाल यादव, केपी रमैया, टीके घोष, नर्मदेश्वर लाल और वीरेंद्र यादव शामिल हैं, उनकी सृजन और उसकी संस्थापक मनोरमा देवी पर विशेष कृपा रही। इसके अलावा प्रदेश सरकार के कुछ तत्कालीन मंत्रियों जिनमें मौजूदा केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और राजद के अलोक मेहता शामिल हैं, उनकी भी विशेष कृपा रही। इन दोनों के मंत्री रहते सृजन के खिलाफ कभी कोई जांच का आदेश नहीं हुआ। गिरिराज सिंह तो मनोरमा देवी के निजी कार्यक्रम में भी शामिल होने के लिए भागलपुर विशेष रूप से आते रहते थे। राजद अध्यक्ष लालू यादव का आरोप है कि नीतीश कुमार और सुशील मोदी के रहते निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती, इसलिए उन्हें पद से इस्तीफा देना चाहिए। लेकिन नीतीश ने इसका जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने ही इस पूरे मामले को उजागर किया है और विशेष जांच दल बनाया है।
चारा घोटाले की तर्ज पर सृजन घोटाला
सृजन घोटाले का तरीका वही है जो चारा घोटाला में अपनाया गया था। वर्ष, तारीख, स्थान, रकम और घोटालेबाजों के नाम भर में तब्दीली कर देने पर दोनों घोटाले एक जैसे ही दिखते हैं। चारा घोटाले में ट्रेजरी आॅफिस से चारा के नाम पर नकली बिल के जरिये घोटाला किया गया था। एफआईआर के मुताबिक सृजन घोटाले में भी इसी तरह सार्वजनिक धन को निजी अकाउंट में ट्रांसफर करने का मामला सामने आया है। इसका खुलासा तब हुआ जब पैसे ट्रांसफर करने की एक के बाद एक तीन घटनाएं सामने आई। एफआईआर के मुताबिक इन तीनों ही केस में चोरी के अनोखे तरीके का इस्तेमाल किया गया था। वर्ष 2007-08 में सृजन को-आॅपरेटिव बैंक खुल जाने के बाद से घोटाले का खेल शुरू हुआ। भागलपुर ट्रेजरी के पैसे को सृजन को-आॅपरेटिव बैंक के खाते में ट्रांसफर करने और फिर वहां से सरकारी पैसे को बाजार में लगाया जाने लगा। एफआईआर के अनुसार, सृजन में स्वयं सहायता समूह के नाम पर कई फर्जी ग्रुप बनाये गए, उनके खाते भी खोले गए और इन खातों के जरिये नेताओं और नौकरशाहों का कालाधन सफेद किया जाने लगा। सरकारी विभाग के बैंकर्स चेक या सामान्य चेक के पीछे सृजन समिति की मुहर लगाते हुए मनोरमा देवी हस्ताक्षर कर देती थी और उस चेक का भुगतान सृजन के उसी बैंक में खुले खाते में हो जाता था। जब भी कभी संबंधित विभाग को अपने खाते की विवरणी चाहिए होती थी तो फर्जी प्रिंटर से प्रिंट कर विवरणी दे दी जाती थी। इस तरह विभागीय आॅडिट में भी अवैध निकासी पकड़ में नहीं आ पाती थी।
एफआईआर के मुताबिक, दो राष्ट्रीयकृत बैंक और सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड की मिलीभगत से 295 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा हो चुका है। इनमें से 270 करोड़ रुपये के करीब जिला भू-अर्जन विभाग, 15 करोड़ रुपये जिला कोषागार और 10 करोड़ 26 लाख रुपये के करीब मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के हैं। इस रकम को संबंधित खातों में जमा न कर सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के बैंक खाते में जमा कर दी गई जहां से रकम गायब है। हैरत की बात है कि यह खेल 2009 के पहले से चल रहा है। इस बीच जिले में दस डीएम आए और 2015 में सरकारी आॅडिट भी हुआ। बाबजूद इसके फर्जीवाड़े का जिक्र तक आॅडिट रिपोर्ट में नहीं है। जबकि 10 करोड़ 26 लाख रुपये की निकासी तो 27 सितंबर से 30 सितंबर 2014 के बीच हुई है। दो बैंकों बैंक आॅफ बड़ौदा और इंडियन बैंक में में ही सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड का खाता है और इसी में सरकारी खाते भी हैं। मुख्यमंत्री नगर विकास योजना का खाता ओरियंटल बैंक आॅफ कॉमर्स में है जहां से समाशोधन के जरिये इंडियन बैंक ने 10 करोड़ 26 लाख रुपये मंगाए थे। बैंकों की दलील है कि चेक और रकम हस्तांतरण के लिए पत्र के बगैर दूसरे के खाते में रकम कैसे जमा कर सकते हैं। बाकायदा बैंकों के पास पत्र है। इस घपले में जिच यही है। डीएम कहते हैं पत्र जाली है। चेक पर दस्तखत फर्जी है। यह माजरा तो दस्तखत की फोरेंसिक जांच से ही सुलझेगा। हालांकि बैंक मैनेजर का कहना है कि चेक जरूर उनके नाम से था मगर चेक के पीछे रकम सृजन के खाते में हस्तान्तरित करने के बारे में डीएम के दस्तखत के साथ लिखा हुआ था। भागलपुर के मौजूदा डीएम आदेश तितमारे ने बताया कि उनके फर्जी दस्तखत से चेक जारी किया गया और दूसरे के खाते में जमा किया गया। एसएसपी मनोज कुमार ने सिटी डीएसपी शाहवार अख्तर के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया है जिसने सबौर ब्लॉक स्थित सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के दफ्तर पर छापामार कर तीन कम्प्यूटर, कैशबुक, कैशमेमो और हिसाब किताब से जुड़े जरूरी कागजात जब्त किया है। साथ ही सृजन के इंडियन बैंक स्थित चार खातों को सील कर दिया गया है।
घोटाले को दबाने का भी हुआ खेल
राजनेताओं और बड़े अधिकारियों की संलिप्ता की वजह से इस घोटाले को वर्षों तक दबाया गया। सरकार अगर समय पर सचेत हो जाती तो यह घोटाला इतना बड़ा नहीं होता और उसी समय इसका पर्दाफाश हो जाता। वर्ष 2011 में सृजन के लेनदेन का गहन सर्वे तत्कालीन आयकर आयुक्त प्रशांत भूषण की निगरानी में हुआ था। इसके साथ ही इससे जुड़ी कई व्यापारिक प्रतिष्ठानों, बिल्डरों और रंक से राजा बने लोगों का भी सर्वे आयकर टीम ने किया था। 25 लाख रुपये अग्रिम टैक्स के रूप में आयकर महकमे ने जमा कराए थे। मगर संगठित गिरोह को यह रास नहीं आया। अव्वल तो यह कि आयकर महकमे में ही चोरी हो गई। फिर दिल्ली में बैठे इनके आकाओं से दबाव दिलवाकर उनका तबादला करा दिया गया। उनके तबादले के बाद स्क्रूटनी में सब को क्लीन चिट दे दी गई।
यही नहीं 25 जुलाई, 2013 को भारतीय रिजर्व बैंक ने बिहार सरकार से कहा था कि इस को-आॅपरेटिव बैंक की गतिविधियों की जांच करें। रिजर्व बैंक का आदेश है कि अगर 30 करोड़ रुपये से अधिक की गड़बड़ी होगी तो जांच सीबीआई करेगी। 2013 में भागलपुर के तत्कालीन डीएम प्रेम सिंह मीणा ने रिजर्व बैंक के दिशा निर्देश पर सृजन के क्रियाकलापों की जांच के लिए को-आॅपरेटिव के दो अफसरों को लगाया था। सृजन का करोड़ों की जमा और करोड़ों का कर्ज देने की शैली उनके गले नहीं उतर रही थी क्योंकिइसके लिए रिजर्व बैंक से कोई बैंकिंग लाइसेंस भी नहीं मिला था। मगर उनके तबादले के बाद मामला रफादफा हो गया, उनकी जांच रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी गई और सृजन का खेल रसूखदारों के इशारे पर खुलकर जारी रहा।
सृजन के दुर्जनों की लंबी फेहरिस्त
सृजन के तार झारखंड के रांची से भी जुड़े हैं। सृजन की संस्थापक मनोरमा देवी और उसकी बहू प्रिया कुमार का मायका रांची में ही है। प्रिया के पिता झारखंड के बड़े कांग्रेसी नेता हैं जो केंद्र में मंत्री भी रहे हैं। वे भी सृजन के जलसे में शिरकत करते रहे हैं। मनोरमा देवी के पति अवधेश कुमार रांची में ही वैज्ञानिक की नौकरी करते थे। वे भागलपुर के गोसाईगांव के थे। उनके निधन के बाद मनोरमा अपने बच्चों के साथ 1992-93 में भागलपुर आ गई और भागलपुर से सटे सबौर में एक किराए के मकान में रहने लगी। इसी दौरान मनोरमा ने भागलपुर की एक फर्म से दो सिलाई मशीन किस्तों पर लिया। इस फर्म के सेल्समेन एनवी राजू थे। बताते हैं कि सृजन की कृपा से एनवी राजू की भी हैसियत आज करोड़ों की है। टीवी और फ्रीज के उनके कई शोरूम हैं। इसी तरह विपिन शर्मा का नाम सृजन के दुर्जनों की सूची में मिला है। उसकी कहानी भी रंक से राजा बनने की है। सृजन से फायदा लेने वालों की लंबी फेहरिस्त है।