मलिक असगर हाशमी
कैंसर ‘बिगड़ैल दामाद’ बनकर हरियाणावासियों को बुरी तरह तबाह करने वाला है। अध्ययनों और कैंसर रोगियों के आंकड़ों की समीक्षा में यह खुलासा हुआ है। एक बार जिसे यह रोग हो जाए उसकी जान बचती भगी है तो बहुत मुश्किल से …ऊपर से अत्यंत महंगे इलाज में परिवार लाखों के कर्ज में डूब जाता है। खास बात यह कि प्रदेश के एक भी सरकारी अस्पताल में कैंसर के इलाज की सुविधा नहीं है। यहां तक कि अधिकांश सरकारी अस्पतालों में इसका कोई विशेषज्ञ डॉक्टर तक नहीं है। ऐसे में समय पर इलाज के अभाव में रोगी की मौत हो जाती है।
इंडियन काउंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, अगले तीन वर्षांे में देश में कैंसर के 17.3 लाख नए रोगी सामने आने वाले हैं, जिनमें 39 फीसदी अर्थात 6.5 लाख केवल हरियाणा के होंगे। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भी 15,664 अस्पतालों में आने वाले कैंसर रोगियों पर अध्ययन किया था। इसके नतीजे भी आईसीएमआर जैसे ही रहे। 39.6 फीसदी कैंसर रोगी हरियाणा, 27.3 फीसदी दिल्ली और 12.7 फीसदी रोगी उत्तर प्रदेश के मिले। आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले समय में ब्रेस्ट कैंसर से महिलाओं की सर्वाधिक मौतें होने वाली हैं। देश में प्रत्येक वर्ष करीब डेढ़ लाख ब्रेस्ट कैंसर के नए रोगी आ रहे हैं। हर आठ में एक महिला में इसके लक्षण पाए जाते हैं। आईसीएमआर की रिपोर्ट कहती है कि 2020 तक हरियाणा में ब्रेस्ट कैंसर के दो से ढाई लाख नए मामले आने वाले हैं। महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शिलवा कहती हैं, ‘ब्रेस्ट के आकार में आने वाले बदलाव, चमड़े की रंगत और ब्रेस्ट के निप्पल में दर्द रहने से महिलाएं अपने भीतर किसी खतरनाक रोग के पलने का एहसास कर सकती हैं। मगर लोक-लाज के चलते समय रहते वे इसकी जानकारी न परिवार को देती हैं और न ही पति को। जिसके कारण महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर तेजी से फैल रहा है।’ कैंसर सर्जन डॉक्टर विनय सैम्यूल गैकवार कहते हैं, ‘महिलाओं में हाई कोलेस्ट्रॉल, देरी से शादी और नियमित गर्भनिरोधक गोलियां लेने से होने वाले साइड इफेक्ट भी ब्रेस्ट कैंसर के बड़े कारणों में हैं।’
दिल्ली, यूपी और हरियाणा में हुक्का प्रदेश की संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। विशेषकर ग्रामीण इलाके में यदि किसी का स्वागत हुक्के से न की जाए तो वह असभ्य समझा जाता है। पंचायतें तो बिना हुक्के की सजती नहीं। अब यही बात भारी पड़ने लगी है। युवाओं में शराब और सिगरेट का बढ़ता चलन भी उन्हें कैंसर की ओर धकेल रहा है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (एनसीआरपी) की रिपोर्ट के मुताबिक- तंबाकू के सेवन से 23.4 फीसदी लोग कैंसर की चपेट में आ जाते हैं। पुरुषों में लंग्स कैंसर के 31.2 फीसदी, पेशाब की थैली के कैंसर के 16.5 फीसदी और मुंह के कैंसर के 16.5 फीसदी रोगी हैं। कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर राकेश चोपड़ा कहते हैं, ‘कैंसर से दूर रहने के लिए पुरुषों को शराब, धूम्रपान से दूर रहना होगा। इसी तरह प्रत्येक महिला के लिए 40 वर्ष की उम्र के बाद नियमित बॉडी का मेमोग्राफी टेस्ट और ब्रेस्ट की जांच अवश्यक है।’ फरीदाबाद के राजकीय बादशाह खान अस्पताल के डॉक्टर दिनेश रंगा कहते हैं, ‘अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं और थोड़ी जागरूकता आने से भी बड़ी संख्या में कैंसर रोगी सामने आ रहे हैं।
ना डोली उठ रही, न सेहरा सज रहा
हरियाणा के दो बड़े गांव पूरी तरह कैंसर की चपेट में आ गए हैं। ये गांव हैं नूंह जिले का साकरस एवं गुरुग्राम-फरीदबाद बार्डर पर बसा बंधवाड़ी। दोनों ही गांवों में दो वर्षों में चालीस से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
बंधवाड़ी में एक बुजुर्ग महिला की पिछले दिनों ब्रेस्ट कैंसर से मौत हो गई। साकरस के तीन लोगों का इलाज अभी राजस्थान के अलवर और जयपुर के अस्पतालों में चल रहा है। जबकि बंधवाड़ी के सात लोग फरीदाबाद और गुरुग्राम के निजी अस्पतालों में कैंसर का इलाज करा रहे हैं। साकरस में एक ही परिवार के तीन लोगों की इस रोग से मौत हो चुकी है और चौथे का इलाज चल रहा है। पिछले दो वर्षांे में गांव के डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मृत्यु कैंसर से हुई है।
ग्रामीणों की समझ है कि गांव में लगे टेलीफोन टावरों के कारण लोग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। जबकि बंधवाड़ी के ग्रामीण गांव से सटे कूड़ा डंपिंग स्टेशन को कैंसर के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। बंधवाड़ी गांव के बाहर गुरुग्राम और फरीदाबाद के लिए करीब डेढ़ दशक पहले कूड़ा निस्तारण केंद्र स्थापित किया गया था। पिछले चार वर्षांे से यहां कूड़े के निस्तारण का काम बंद है। इसके चलते गुरुग्राम-फरीदाबाद एक्सप्रेसवे पर कूड़े का पहाड़ खड़ा हो गया है। ग्रामीण कहते हैं, ‘इसके कारण गांव में कैंसर रोग पैर पसार रहा है।’ इलाके के नगर पार्षद मुकेश दायमा का कहना है, ‘बरसात के दिनों में बारिश का पानी कूड़े के पहाड़ से उतर कर जमीन में चला जाता है, जो बाद में हैंडपंपों एवं समरसेबल पंपों के जरिए घरों में पहुंच रहा है। यह रोग का बड़ा कारण है। गांव से कूड़े का डंपिंग यार्ड हटाने को लेकर ग्रामीण कई बार आंदोलन कर चुके हैं, पर न तो निस्तारण केंद्र स्थानांतरित हुआ, और न ही रिसाइकलिंग मशीन ही ठीक कराई गई।’ पार्षद कहते हैं, ‘ अब गांव में लोग लड़कियां ब्याहने से कतराने लगे हैं। दोनों गांवों की कई लड़कियां शादी की उम्र होते हुए भी अब तक इसलिए कुंवारी हैं कि कोई यहां शादी नहीं करना चाहता।’