विजय माथुर
जयपुर के हार्डवेयर कारोबारी चेतन का कत्ल कर दिया गया या उसने खुद मौत को गले लगा लिया? यह पहेली, घटना को एक पखवाड़ा बीत जाने के बावजूद आज भी उलझी हुई है। अलबत्ता जिस निर्ममता से फंदे से बिंधा उसका शव नाहरगढ़ दुर्ग की प्राचीर से झूलता पाया गया, उससे पद्मावती विवाद का कुहासा और घना हो गया है। घटना एन उस वक्त हुई जब यह सूबाई राजधानी पद्मावती मुद्दे पर बुरी तरह उबल रही थी। घटना को लेकर कुलांच भरती त्रासद कहानियों ने शहर को सन्न तब कर दिया जब इस मौत को पद्मावती प्रसंग के तांत्रिक पात्र चेतन से जोड़ा गया। इस बेपर की अटकलों को हवा मौका-ए-वारदात पर बरामद किए गए पत्थरों ने दी जिनकी पुश्त पर लिखा था ‘हम किले पर सिर्फ पुतले नहीं टांगते, लुटेरे नहीं अल्लाह के बंदे हैं, एक-एक दस पर भारी है… चेतन तांत्रिक मारा गया, ये तो सिर्फ एक झांकी है, लेकिन शुरुआत अभी बाकी है! अनेक निर्मम हत्याएं झेल चुके इस शहर ने शायद ही कभी बेसुकूनी की करवट इस कदर झेली होगी, लेकिन इस इकलौती वारदात से अगर वक्ती तौर पर शहर की चहल-पहल गायब हुई, घरों में सन्नाटा पसरा और लोग बदहवास हुए तो इसकी बड़ी वजह थी, तांत्रिकों का उत्पात और हवा में तलवारें लहराते हुए खौफजदा करने वाला उनका अट्टहास! लोगों ने यह डरावना नजारा खबरिया चैनल पर किया! साफ था कि तथाकथित तांत्रिकों उर्फ भोपों को चेतन की घटना ने ‘मौत का नाच’ दिखाने का अलभ्य मौका दे दिया था।
टीवी स्क्रीन पर जो फुटेज देखे गए, उसका मुजाहिरा करें तो, नशे की तरंग और उन्माद में डूबे उन्मत्त भोपे पूरे दबदबे से लोगों को डरा रहे थे और सूबे पर अंधविश्वास की काली चादर फैलाने में जुटे थे। अब तक राजस्थान के आदिवासी इलाकों में अंधविश्वास की परत मोटी करने वाले इन भोपों को ‘चेतन मृत्यु’ प्रकरण ने शहरी इलाकों में घुसपैठ करने का अवसर दे दिया है। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके जैसलमेर के अलावा बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, राजसमंद और चित्तौड़गढ़ पूरी तरह इन ओझाओं की गिरफ्त में हैं। चित्तौड़ का रानी पद्मिनी से जुड़ाव होना, भोपों को अपनी मनमानी का अचूक अवसर दे गया। इन इलाकों में दलित, विधवा अथवा गरीब महिलाओं को ‘डायन’ घोषित कर उन पर अमानवीय अत्याचार का कारोबार भोपे धड़ल्ले से चला रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीचंद पंत तो यहां तक कहते हैं कि, ‘सरकार के विश्वास के तमाम दावे इस काली सचाई के आगे धुंधले हो जाते हैं।’ मरुप्रदेश के चर्चित मांगणियार लोक कलाकार आमद खां की निर्मम हत्या सबसे ताजा और परम्परावादी लोगों के मुंह पर कालिख पोतने वाली घटना है। पिछली 2 अक्टूबर को आमद खां को पोकरण के दांतल गांव में स्थित मंदिर में देवी मां के गुणगान के लिए बुलाया गया था, लेकिन भोपों के फरमाइशी भजन नहीं गा पाने के कारण उन्हें मारकर दफना दिया गया। इस मामले में कार्रवाई के लिए आमद खां परिवार को भोपों की दबंगई से भिड़ने में कितनी मशक्कत करनी पड़ी, कहने की जरूरत नहीं है। प्रेत बाधा मुक्ति का पाखंड रचने का यह कारोबार अतीत के वर्कों में जल्लादी जुल्म की याद ताजा करता है। कुछ अर्सा पहले डेढ़ दर्जन से ज्यादा महिला संगठनों और मानवाधिकार संगठनों ने तत्कालीन डीजीपी अजीत सिंह से मुलाकात कर भोपों और जिम्मेदार पुलिस कर्मियों पर तुरंत कार्रवाई करने की मांग की थी, लेकिन जिस तरह भोपों ने पद्मावती प्रसंग से जुडेÞ चेतन की मौत के मुद्दे पर अपना वीभत्स चेहरा दिखाया, लगता है भोपों की दबंगई के आगे पुलिस का जलाल फीका पड़ गया? पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव का कहना है, ‘मैंने भोपों की गिरफ्तारी का 6 सूत्री ज्ञापन दिया था? तो क्या ज्ञापन कचरे के ढेर में चला गया? भोपों के दुस्साहस पर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर खंडपीठ के न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने भी पुलिस और प्रशासन को फटकार लगाई थी कि कानून होने के बावजूद इनका दुस्साहस क्यों? लेकिन भोपों ने तो अपने उन्मादी चेहरे का मुजाहिरा कर सरकार को ठेंगा दिखा ही दिया। इन मामलों में राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा सिर्फ सवाल करके रह गर्इं कि कानून बनने के बाद भी डायन प्रताड़ना के मामले क्यों नहीं रुक रहे? बेहतर होता वे सवाल पर अमल ना होने के वजूहात को भी टटोलतीं?
राजस्थान में ‘महिला सुरक्षा’ का दावा करने वाली महिला मुख्यमंत्री से बनी उम्मीदों का यह जबरदस्त एंटीक्लाइमेक्स है कि भयावह मुद्राओं में तंत्र-मंत्र के भदेस रंगों में लिपे-पुते उन्मत्त भोपे प्रदेश के आदिवासी जिलों में अब तक 105 महिलाओं को ‘डायन’ का बाना पहनाकर अभिशप्त कर चुके हैं, जबकि आठ महिलाओं की पीट-पीट कर हत्या कर चुके हैं तथा दो दर्जन महिलाओं को गांव बदर कर चुके हैं। स्वस्थ महिलाओं को ‘डायन’ बनाने के ये आंकड़े पिछले चार सालों के हैं, लेकिन क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बमुश्किल चार तक भी नहीं पहुंचते? कुछ अर्सा पहले तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह ने भोपों पर सख्ती का दावा किया था, लेकिन अभी हाल ही में पद्मावती प्रकरण से अनायास ही जुड़े कथित तांत्रिक चेतन के आत्मघात की घटना पर उन्मत्त भोपों ने भयाक्रांत करने वाली जबरदस्त उछलकूद मचाकर इसके धुर्रे उड़ा दिए। एक खबरिया चैनल ने ‘एक्सक्लूसिव’ का तमगा चस्पा कर उस सीनेरियो की जमकर नुमाइश की जिसमें भीलवाड़ा जिले के गांव निंबाहेड़ा जाटान की महिला भोपा झूमरी जीभ लपलपाते हुए तलवार चमकाती नजर आ रही थी। सिगरेट के कश लगाने वाली झूमरी अपने आपको नौ देवियों का अवतार बताती है। अखबारी पड़ताल का हवाला दें तो, ‘कांता भोपी का बाकायदा दरबार लगता है और डायन निकालने की कवायद में उसका निरंतर भाला घुमाना भयाक्रांत करता है। एक प्रादेशिक दैनिक ने कुछ अर्सा पहले इन भोपा तांत्रिकों का चौंकाने वाला खुलासा किया था। इसमें कांता नामक महिला भोपा ने अपने आपको देवी का अवतार घोषित कर रखा था। बिसलेरी का पानी पीने वाली आजाद नगर की कांता सूनी गोद भरने की तथाकथित लोकप्रियता को लेकर महिलाओं में चर्चित है।
तंत्र-मंत्र की ओट में इन भोपाओं की व्यभिचारी मानसिकता को समझें तो चित्तौड़ जिले के पुठोली गांव का बाबा सिराजुदीन महिलाओं के शरीर से डायन निकालने के लिए उनके प्राइवेट पाटर््स को टटोलता है। घिनौने करतब करते हुए भोपे पूरी तरह नशे में धुत्त रहते हैं। भीलवाड़ा जिले के भुणास गांव के भोपे देवकिशन की दरिन्दगी तो दर्शकों के शरीर में झुरझुरी पैदा कर देती है। यह तांत्रिक महिलाओं पर पूरी तरह निर्ममता के साथ कोड़े बरसाता है। भीलवाड़ा के सांगानेर गांव के भोपे कन्हैयालाल का दावा है कि वो डायनों को पेड़ पर टांग देता है। इसी जिले के आसींद गांव के निकट स्थित बांक्याणी मंदिर में महिलाओं को कथित प्रेत बाधा से मुक्त करने के नाम पर इतनी नारकीय यातनाएं दी जाती हैं कि देखने वालों को दहशत होती है। सूत्र कहते हैं कि अभी हाल ही में इस ठोर का ठिकाना बदल दिया गया है। स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों इन आदिवासी इलाकों में अंधविश्वास का अंधेरा इतना घना हो गया है कि डायन से निजात के लिए आने वाली महिलाओं की कतार नहीं थमती… और ना ही उनके परिजन उन्हें दहशत के तंदूर में धकेलने से बाज आते हैं? एक प्रादेशिक समाचार पत्र द्वारा की गई पड़ताल में कहा गया कि इन ठौर-ठिकानों पर आने वाली महिलाओं का रुदन चौंकाने वाला होता है और इसके साथ ही बजने लगते हैं ढोल-मजीरे। ऐसा क्यों होता है? पूछने पर महिलाओं का कहना था,‘हमारे अंदर ‘बाबजी’ आ गए थे।’ आखिर कौन होते हैं, ‘बाबजी’? इसका उत्तर नदारद था।
चाहे भोपा हो या भोपी? शराब के नशे में धुत्त ये डरावने चेहरे डायन निकालने के नाम पर पूरी तरह हैवानियत पर उतारू रहते हैं। भोपों के ठौर-ठिकानों को ‘अंधविश्वास की अदालतों’ का नाम दिया जाए तो गलत नहीं होगा। अंधविश्वास की परत-दर-परत जमाए इन आदिवासी इलाकों में यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि आखिर महिलाएं ही डायन क्यों बनती हैं? और ऐसी कौन सी महिलाएं होती हैं जो सामान्य जीवनयापन करते एकाएक ‘डायन’ करार दे दी जाती हैं? सूत्र कहते हैं कि, ‘डायन प्रताड़ना के अधिकांश मामलों में संपत्ति और जमीन हड़पने के लिए उनके नाते-रिश्तेदार ही ऐसी साजिश रचते हैं। कई मामलों में लोगों ने अदावत और रंजिश के चलते महिलाओं को डायन का फतवा दे दिया। अलबत्ता यह एक कड़वी सचाई है कि डायन बनने का नजला अधिकांश रूप से उन्हीं पर गिरता है, जो गरीब, निराश्रित या दलित वर्ग से होती हैं। सूत्र कहते हैं कि डायन के नाम पर स्त्रियों को नंगा कर गांव में घुमाना, हाथों में गर्म अंगार भर देने जैसी भयावह यातनाओं का तो कोई अंत नहीं है। भीलवाड़ा के भोली गांव की राम कन्या को इसलिए डायन करार दे दिया गया क्योंकि गांव के एक दबंग की बेटी बीमार पड़ गई। आखिरकार रामकन्या को दबंगों की कैद से मुक्ति भी मिली तो 20 दिन बाद। भोपों की दरिन्दगी का ऐसा दुस्साहस तो तब है, जब राजस्थान में डायन प्रताणना निवारण अधिनियम लागू है। सामाजिक कार्यकर्ता तारा अहलूवालिया कहती हैं, ‘इस कानून के तहत महिला को डायन कहना गैर जमानती अपराध माना गया है। लेकिन ज्यादातर मामलों में आरोपी 6-7 दिन बाद ही छूट कर वापस आ जाते हैं।
बेइंतहा दर्द की ऐसी ढेरों अंतहीन कथाएं हैं, जिनमें भोपों का कहर टूटा और सामान्य जीवन यापन कर रही औरतों को यातनाएं भुगतने को छोड़ दिया। राजसमंद जिले के रणका गांव की नोजीबाई के झुलसे हुए हाथ आज भी उसके दर्द की दास्तान के गवाह हैं। भीलवाड़ा जिले के बलवास गांव की नंदूदेवी का परिवार बीते चार साल से बनवास भुगत रहा है। भीलवाड़ा के ऊदलपुरा गांव की गीता बलाई की जिंदगी उसके अपने परिजनों ने ही छीन ली। डायन होने का आरोप लगाकर उसे गांव के एक सूखे कुएं में लटका दिया। पुलिस सुबूत जुटाने के अंधकूप में ही भटकती रह गई।
दर्द की दहलाने वाली तस्वीरें नुमायां होने के बाद राजस्थान हाईकोर्ट और महिला आयोग ने संज्ञान भी लिया। कोर्ट और आयोग ने पुलिस और प्रशासन को आड़े हाथों लेते हुए भोपों के खिलाफ अब तक की गई कार्रवाई की रपट भी तलब की है, लेकिन अब तक तो इस मामले में कोई तरक्की होती नहीं लग रही है? वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीचंद पंत कहते हैं ‘इन घटनाओं से अगर हमारी नसें नहीं चटखीं और दिल बेचैन नहीं हुआ तो मानवीय रिश्तों की बंदिशें कैसे बच पाएंगी? जिस समाज और सियासत को आगे आकर इस तिलस्म को तोड़ना था, वो तो निष्क्रिय बनकर इस पाखंड को पनाह दे रहा है?