इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आकाश से लेकर अंतरिक्ष तक कुल नौ समझौते हुए। नेतन्याहू का भारत आगमन ऐसे वक्त हुआ जब दोनों देश अपने कूटनीतिक संबंधों की रजत जयंती मना रहे हैं। भारत और इजराइल के रिश्तों की प्रगाढ़ता किसी से छिपी नहीं है। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी और नेतन्याहू इन कूटनीतिक रिश्तों को नई ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते हैं। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह से नेतन्याहू की यात्रा और दोनों देशों के रिश्तों पर बात की अभिषेक रंजन सिंह ने।
पंद्रह साल बाद किसी इजराइली प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा की। बेंजामिन नेतन्याहू की इस यात्रा के क्या मायने हैं?
पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजराइल की यात्रा पर गए थे। इजराइली प्रधानमंत्री ने वहां उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था और दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते हुए थे। छह महीने बाद प्रधानमंत्री नेतन्याहू भारत आए और यहां उनका उसी प्रकार स्वागत हुआ और दोनों देशों के बीच नौ महत्वपूर्ण समझौते हुए। उनकी इस यात्रा की अहमियत इसलिए भी अधिक है क्योंकि भारत और इजराइल अपने कूटनीतिक रिश्तों की पच्चीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं। भारत और इजराइल के बीच रायनयिक संबंधों की शुरुआत वर्ष 1992 में पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्वकाल में हुई थी। इतने वर्षों तक इस रिश्ते को अंधेरे में रखने की कोशिश पूर्व की सरकारों में हुआ। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति के संचालन का तरीका अनोखा है। अपनी विदेश यात्राओं में वे भारतीय समुदाय के लोगों से मिलते हैं और उनसे संवाद करते हैं। पिछले दो दशकों में यानी साल 2005 से भारत और अमेरिका के संबंध काफी मजबूत हुए हैं। अमेरिका के साथ जिन देशों के अच्छे रिश्ते हैं उनसे भारत के संबंध भी मजबूत हो रहे हैं। अमेरिका और इजराइल के बेहतर संबंधों का असर भारत और इजराइल पर भी सकारात्मक पड़ा है। एक बात और है कि भाजपा की विदेश नीति दूसरी पार्टियों से अलग है। साल 2003 में इजराइली प्रधानमंत्री एरियल शेरॉन भारत भारत आए। उस वक्त यहां एनडीए की सरकार थी और वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे। उस समय खुलकर भारत और इजराइल के संबंधों को सेलिब्रेट किया गया। जो रिश्ता सिर्फ रक्षा और सुरक्षा की सहभागिता तक सीमित था उसे बढ़ाकर सामाजिक, राजनीतिक और निवेश में विस्तार दिया गया। यूपीए सरकार के दौरान इजराइल के साथ हमारे संबंध दोबारा ठंडे बस्ते में कैद हो गए। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के संबंधों में फिर गर्माहट आ गई। प्रधानमंत्री नेतन्याहू की यात्रा भारतीय हितों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के बीच जो समझौते हुए हैं वे काफी फायदेमंद हैं।
भारत और इजराइल के बीच जो समझौते हुए हैं उसकी खास बातें क्या हैं और यह हमारे लिए कितना उपयोगी है?
भारत की तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ाना इजराइल के लिए भी अच्छी बात है। अमेरिका के बाद भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश की तरफ से इजराइल को अहमियत मिलने से उसकी वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ेगी। भारत के साथ जो नौ महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं उनसे दोनों देशों को फायदा मिलेगा। इजराइल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह निर्यात पर निर्भर है। भारत उसके लिए एक बड़ा बाजार है। भारत में करीब 30 करोड़ लोग मिडिल क्लास के हैं और उनकी खरीद क्षमता अधिक है। इजराइल की रिसर्च एवं टेक्नॉलजी दुनिया भर में मशहूर है। प्रधानमंत्री मोदी की कई महत्वपूर्ण योजनाएं मसलन, स्वच्छ भारत और स्किल डेवलपमेंट आदि प्रोग्राम में इजराइली तकनीक काफी मददगार साबित होगी। देश में तीस अत्याधुनिक कृषि विकास एवं तकनीक केंद्र बन रहे हैं जिनमें इजराइली तकनीक से काफी फायदा होगा। साइबर सुरक्षा में भी दोनों देशों के बीच करार हुआ है। इजराइल इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरा है। साल 2016 में विश्व में निजी तौर पर साइबर सुरक्षा के लिए निवेश की गई कुल राशि में 20 फीसद हिस्सा अकेले इजराइल का है। ऐसे में इस करार से भारत की साइबर सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। फिल्म प्रोडक्शन एंड डॉक्यूमेंट्री को लेकर भी दोनों देशों के बीच अहम समझौता हुआ है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू भारतीय फिल्मकारों को इजराइल में शूटिंग करने का प्रस्ताव भी दे चुके हैं। इजराइल में रहने वाले यहूदियों में भारतीय मूल के लोगों की संख्या अधिक है। खास बात यह है कि इनमें बहुत सारे लोग मराठी बोलते हैं। इजराइल में मराठी भाषा में कई पत्रिकाएं भी प्रकाशित होती हैं। वहां कई ऐसे लोकेशन हैं जहां फिल्मों की अच्छी शूटिंग हो सकती है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू की पत्नी सारा स्वयं वॉलीवुड फिल्मों से प्रभावित हैं। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैसों के मामले में भारत दूसरे देशों पर निर्भर है। इजराइल के पास पेट्रोलियम और गैस के भंडारों को खोजने और निकालने की उन्नत तकनीक है। पेट्रोलियम और गैस क्षेत्र में हुआ यह समझौता देशहित में है। इसके अलावा कृषि, चिकित्सा, निवेश और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच अहम समझौते हुए हैं।
संयुक्तराष्ट्र में इजराइल पर अमेरिकी प्रस्ताव के खिलाफ भारत ने वोट दिया था। बावजूद इसके दोनों देशों की दोस्ती पर इसका असर न पड़ने की वजह?
इजराइल एक ऐसा देश है जिसे इस तरह की निगेटिव वोटिंग की आदत है। इस प्रस्ताव के खिलाफ भारत समेत 128 देशों ने मतदान किया जबकि नौ देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया। बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा शुरू होने से पहले इजराइल ने स्पष्ट कर दिया था कि यरुशलम पर भारत के निगेटिव वोटिंग से दोनों देशों के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह भारत की अपनी विदेश नीति का हिस्सा है और इसमें इजराइल का कोई आग्रह या दवाब नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी पिछले साल जुलाई में जब इजराइल गए थे उससे तीन महीने पहले मई में फिलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत आए थे। यहां उन्हें विशिष्ट राजकीय सम्मान मिला था। यह सही है कि इजराइल के लिए सबसे बड़ा सरदर्द फिलीस्तीन है। भारत का नजरिया इस मामले में अलग है। भारत सालों से फिलीस्तीन का सहयोगी रहा है। महात्मा गांधी ने 1938 में हरिजन पत्रिका में लिखे आलेख में कहा था कि फिलीस्तीनी अरबी हैं, वही उनकी जमीन है और उनका देश बनना चाहिए। इससे भारत और फिलीस्तीन के आपसी संबंधों की मजबूती समझी जा सकती है। इजराइल अपने जन्म से लेकर आज तक संघर्ष कर रहा है। इसलिए इजराइल भी वैश्विक कूटनीति और उनकी मजबूरियों को समझता है।
भारत-इजराइल के बीच किस तरह के सामरिक एवं रक्षा सौदे हुए?
इस यात्रा में अलग से विशेष रक्षा सौदों की बात नहीं हुई है। पिछले साल जुलाई में जब प्रधानमंत्री मोदी इजराइल दौरे पर गए थे उस समय स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल खरीदने की बात हुई थी। भारत ने पांच करोड़ डॉलर (319 करोड़ रुपये) के रक्षा उपकरण खरीदने का सौदा किया था। प्रधानमंत्री नेतन्याहू की इस यात्रा में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल राफेल खरीदने पर सहमति बनी है। भारत इजराइल से 7.2 करोड़ डॉलर (459 करोड़ रुपये) के 131 राफेल मिसाइल खरीदेगा। वैसे भी इजराइल हमेशा भारत को आड़े वक्त हथियार मुहैया कराता रहा है। 1971 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के दौरान अमेरिका ने जब हमें हथियार देने में असमर्थता जाहिर की थी तब इजराइल और दक्षिण अफ्रीका ने हमें हथियार उपलब्ध कराए थे। कारगिल की लड़ाई में भी इजराइल ने हथियारों की बड़ी खेप से हमारी मदद की थी। आज भी रोजमर्रा और युद्ध के मद्देनजर इजराइल हमें हथियारों की आपूर्ति करता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) के एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत इजराइल के हथियारों का दुनिया में सबसे बड़ा खरीददार है। दुनिया भर में इजराइल के कुल निर्यात का 40 फीसद हथियार भारत खरीद रहा है। औसतन एक अरब डॉलर मूल्य का हथियार भारत सालाना अकेले इजरायल से खरीद रहा है। इन आंकड़ों से भारत और इजराइल के बीच सामरिक-रक्षा सौदों की बात बखूबी समझी जा सकती है।
भारत-इजरायल के बीच हुए कूटनीतिक, सामरिक और आर्थिक समझौते पाकिस्तान और चीन को कितना परेशान कर सकते हैं?
मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान और चीन पर इन समझौतों से कोई असर पड़ेगा। भारत और इजराइल के बीच क्या समझौते होते हैं इससे चीन और पाकिस्तान को विशेष फर्क नहीं पड़ता। हां, रक्षा सौदों पर पाकिस्तान की नजर जरूर लगी रहती है। पाकिस्तान भी समझ चुका है कि इजराइल भारत का एक भरोसेमंद साथी है। वैसे इजराइल और भारत के बीच रिसर्च एंड डेवलपमेंट और तकनीक के आदान-प्रदान होने से चीन की चिंताएं बढ़ना लाजिमी है। सामरिक समझौते पाकिस्तान के लिए चिंता की वजह हैं वहीं आर्थिक समझौतों की वजह से चीन का परेशान होना स्वाभाविक है।
दोनों देशों में आतंकवाद से निपटने की किस तरह की रणनीति बनी?
इसमें कोई शक नहीं कि भारत और इजराइल कई दशकों से आतंकवाद झेल रहे हैं। जिस तरह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारत के लिए परेशानी है उसी तरह फिलीस्तीन इजराइल के वजूद को मानने को तैयार नहीं है। इजराइल और अमेरिका दोनों दोस्त हैं। ईरान आतंकवादी संगठन हमास को समर्थन करता है। इजराइल और पाकिस्तान का आपस में कोई सीधा संबंध नहीं है। ईरान भारत का रणनीतिक सहयोगी है जबकि ईरान और इजराइल के संबंधों में छत्तीस का आंकड़ा है। अरब देशों के साथ भी इजराइल के संबंध ऐसे ही हैं। जबकि भारत का इन देशों के साथ अच्छा संबंध है। यह बात सही है कि इजराइल और भारत जब भी एक साथ बैठते हैं तो आतंकवाद की समस्याओं और इससे निपटने के उपायों पर चर्चा होती है। लेकिन आतंकवाद के मुद्दे पर सभी देशों की सोच और तालमेल एक जैसे हों यह जरूरी नहीं है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपनी भारत यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर गंभीर दिखे। आतंकवाद से निपटने के लिए उन्होंने कहा कि हादसे रोकने के लिए इंटेलिजेंस को बेहतर बनाया जाए। आतंकवाद के खिलाफ भारत और इजराइल के बीच जो एक अहम समझौता हुआ है वह साइबर सुरक्षा और इंटेलिजेंस शेयरिंग को लेकर है।