उमेश चतुर्वेदी
हैदराबाद, चेन्नई और बंगलुरु भले ही अलग-अलग शहर हों, लेकिन उत्तर भारत की नजर में सबका तकरीबन एक ही अस्तित्व है। लेकिन अब लगता है कि एक-दूसरे से पौने छह सौ किलोमीटर की दूरी वाले शहरों हैदराबाद और बंगलुरु में एक समानता होने जा रही है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी से जुड़ी यहां की एक अदालत ने ऐसा फैसला दिया है, जिससे कांग्रेस की हिंदू आतंकवाद की अवधारणा ही खारिज हो गई है। चूंकि बंगलुरु के विधानसभा सौध के कब्जे की राजनीतिक लड़ाई जारी है, लिहाजा भारतीय जनता पार्टी ने इस फैसले को लपक लिया और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से माफी की मांग कर दी। कांग्रेस पर भारतीय जनता पार्टी को हमले का मौका दिया है हैदराबाद की मक्का-मस्जिद पर 11 साल पहले हुए धमाके में आरोपी रहे स्वामी असीमानंद समेत पांच आरोपियों की रिहाई के फैसले ने। यही वह मामला था, जिसे लेकर कांग्रेस राज के गृहमंत्रियों और उसके एक महासचिव दिग्विजय सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के नाभिनाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हिंदू आतंकी संगठन साबित करने की मुहिम शुरू कर दी थी।
भारतीय लोकतंत्र के प्रमुख अंग राजनीति ने हाल के दिनों में जिस बेतुकी और स्तरहीन बयानबाजी की आदत अख्तियार की है, वह उसके लिए ही नासूर बनती जा रही है। कोढ़ में खाज यह कि बयानों का जब आधार साबित नहीं होता तो माफी मांगना तो दूर, राजनीति ऐसे बयानों से ही इनकार कर देती है। हैदराबाद की मक्का मस्जिद विस्फोट और उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही परोक्ष रूप से जिस हिंदू या भगवा आतंकवाद की शब्दावली के जरिए सवाल खड़े किए गए वह भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में विभिन्न स्तरों पर रिकॉर्ड में हैं। मक्का-मस्जिद धमाके के आरोप से स्वामी असीमानंद की रिहाई हो या फिर मालेगांव विस्फोट के आरोप से कर्नल पुरोहित का बचना हो, भगवा आतंकवाद की संगीन शब्दावली का ही नकार है। तमाम मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी से माफी की मांग करने वाली कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी से भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उसके ही तर्क के आधार पर माफी की मांग कर रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश कांग्रेस ऐसा करने की बजाय अतीत के अपने बयानों पर लीपापोती ही करती नजर आ रही है।
भाषा वैज्ञानिक जानकारी के मुताबिक शब्दों को गढ़ने और प्रचलित करने का काम आम लोग, साहित्य और पत्रकारिता ही करती रही है। संस्कृतियां गढ़े हुए नए शब्दों को अर्थ देती रही हैं। इन अर्थों में देखें तो भगवा आतंकवाद शब्द का पहली बार इस्तेमाल साल 2002 में द हिंदू समूह की पत्रिका फ्रंटलाइन ने किया था। गुजरात दंगों को लेकर तब फ्रंटलाइन संवाददाता प्रवीण स्वामी की लिखी रिपोर्ट को पत्रिका ने 16 से 29 मार्च 2002 को सैफरन टेरर शीर्षक से छापा था। इसके पहले बाबरी मस्जिद के खिलाफ चले आंदोलन में शामिल होने वाले लोगों के लिए ब्रिटिश प्रसारण संस्था बीबीसी हिंदू चरमपंथी शब्द का इस्तेमाल करती रही है। अगर शिवसेना की बात मानें तो पहली बार भगवा या हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार ने साल 2008 में किया था। शरद पवार भी मानते हैं कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए विस्फोट को लेकर उन्होंने इस शब्द का इस्तेमाल किया था। यह बात और है कि तब इंडियन मुजाहिद्दीन का भी नाम आया था। संभवत: उस दौर में चूंकि मध्य पूर्व में जारी आतंकवाद को लेकर पश्चिमी मीडिया ने इस्लामिक आतंकवाद शब्द दिया था, माना जाता है कि उसी तर्ज पर नकलची भारतीय मीडिया ने भी इस शब्द को हाथों हाथ लपक लिया।
चूंकि अब असीमानंद रिहा हो गए हैं, कर्नल पुरोहित पिछले ही साल रिहा हो गए थे, इसलिए अब भारतीय जनता पार्टी मांग कर रही है कि कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी को इसके लिए माफी मांगनी चाहिए। चूंकि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, लिहाजा अमित शाह की इस मांग को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। वैसे भी राजनीति में ऐसे मौकों को भुनाने की परंपरा रही है। अमित शाह को पता है कि इस मसले पर राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस फंसेंगे। इसलिए वे अपनी मांग पर डटे हुए हैं। दिसंबर 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उदार हिंदुत्व की राह पकड़ी और इसके जरिए राज्य में भारतीय जनता पार्टी को मात देने की कोशिश की। अतीत में कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदुत्व के समर्थन से बचती रही है। लेकिन अब कांग्रेस बदल रही है। यही वजह है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी अतीत के कदमों के जरिए कांग्रेस को आईना दिखा रही है।
लेकिन अब कांग्रेस के नेता यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उन्होंने अतीत में ऐसा कोई बयान भी दिया है। हिंदू आतंकवाद शब्द के जरिए भारतीय जनता पार्टी को मात देने और खूंखार आतंकवादी ओसामा को ओसामा जी कहकर मुस्लिम वोटरों की लुभाने की कांग्रेसी कोशिशें परवान नहीं चढ़ पार्इं। लिहाजा कांग्रेस और उसके नेताओं को अपना उद्धार अब हिंदुत्व की लाइन में ही नजर आ रहा है। शायद यही वजह है कि ओसामा को आदर बख्शने और आतंकवाद का विशेषण लगाकर हिंदुत्व को बदनाम करने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान खुद हाथ में भगवा ध्वज थामे रहे। और तो और जैसे ही 17 अप्रैल को अमित शाह ने उनकी पार्टी से हिंदू आतंकवाद के लिए माफी की मांग की, उन्होंने यह कहने में देर नहीं लगाई कि उन्होंने कभी हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल भी किया है।
हकीकत तो यह है कि इस शब्दावली को मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम और सुशील कुमार शिंदे ने भी बढ़ावा दिया। राज्यसभा की 27 अगस्त 2010 की कार्यवाही गवाह है। उस दिन भारतीय जनता पार्टी ने तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम के हिदू आतंकवाद वाले बयान को लेकर सदन की कार्यवाही चलने नहीं दी थी। इसके कुछ ही दिन पहले गृह मंत्री पी चिदंबरम ने ‘भगवा आंतकवाद’ के उदय का ऐलान किया था। उनके इस बयान के खिलाफ राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना ने ना सिर्फ आपत्ति जताई, बल्कि जोरदार हंगामा भी किया। एक दिन पहले देशभर के पुलिस महानिदेशकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा था कि हाल में ‘सैफरन टेररिज्म’ यानी ‘भगवा आतंक’ का बम धमाकों से संबंध का पता चला है। इसके खिलाफ राज्यसभा में विपक्ष के तत्कालीन नेता अरुण जेटली ने कहा था कि गृह मंत्री को ऐसे बयान देने से बचना चाहिए क्योंकि ‘देश में भगवा आतंकवाद जैसी कोई चीज नहीं है।’ भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना ने एक दिन पहले इसके खिलाफ लोकसभा में भी विरोध जताया था। दिलचस्प यह है कि इन दिनों नरेंद्र मोदी की सरकार में बतौर मंत्री शामिल रामविलास पासवान का हिंदू आतंकवाद को लेकर उन दिनों दूसरा रुख था। राज्यसभा में उन्होंने पी चिदंबरम का बचाव करते हुए कहा था कि चिदंबरम ने यह बयान एक जिÞम्मेदार मंत्री की हैसियत से दिया है और ‘भगवा आतंकवाद’ से मजबूती से लड़ा जाना चाहिए।
असीमानंद की रिहाई के बाद भारतीय जनता पार्टी ने जब कांग्रेस पर दबाव बढ़ाना शुरू किया तो पार्टी की ओर से बचाव में उसके प्रवक्ता पीएल पूनिया सबसे पहले आए और उन्होंने 17 अप्रैल 2018 को कहा कि ‘भगवा आतंकवाद’ कुछ नहीं होता। सत्ता से बाहर रहने का दबाव है या फिर कर्नाटक में खेल खराब होने की आशंका, जो कांग्रेस हालिया अतीत में हिंदू और भगवा आतंकवाद के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती थी, उसी कांग्रेस को 17 अप्रैल 2018 को कहना पड़ा कि पार्टी का पुरजोर विश्वास है कि आतंकवाद को किसी धर्म या समुदाय से नहीं जोड़ा जा सकता। पूनिया ने यह भी साफ किया कि राहुल गांधी या कांग्रेस ने कभी ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। पी एल पुनिया को कहना पड़ा कि आतंकवाद आपराधिक मानसिकता है और इसे किसी धर्म या समुदाय से नहीं जोड़ा जा सकता।
लेकिन कांग्रेस को याद कर लेना चाहिए कि फरवरी 2013 में भी भगवा आतंकवाद का इस्तेमाल तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने किया था। दिलचस्प यह है कि हिंदू आतंकवाद की इस सैद्धांतिकी को तत्कालीन गृह सचिव आर के सिंह भी प्रचारित करते रहे। यह बात और कि अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया और मौजूदा सरकार में वे राज्य मंत्री हैं। अब कांग्रेस को यह कौन समझाए कि अगर उसके नेता सुशील कुमार शिंदे ने भगवा आतंकवाद के नाम पर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कठघरे में खड़ा नहीं किया होता तो साल 2013 में संसद के बजट सत्र पर संकट क्यों छा जाता। तब भारतीय जनता पार्टी ने संसदीय कार्यवाही के बहिष्कार की चेतावनी दी थी। इसके बाद 20 फरवरी 2013 को सुशील कुमार शिंदे ‘हिंदू आतंकवाद’ से जुड़े अपने बयान पर अफसोस जताने के लिए मजबूर हो गए थे। तब शिंदे ने कहा था, ‘आतंकवाद को किसी भी धर्म से जोड़ने की मेरी कोई मंशा नहीं थी, और जयपुर में पिछले महीने मैंने कुछ संगठनों के संबंध चरमपंथी संगठनों से होने की जो बात कही थी, असल में उसका कोई आधार नहीं है और मेरे इस बयान से एक गलतफहमी पैदा हुई।’ इससे पहले भारतीय जनता पार्टी ने इस बयान के खिलाफ दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया था। गौरतलब है कि यह बयान सुशील कुमार शिंदे ने जयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में दिया था। तब संसद का बजट सत्र 22 फरवरी 2013 को शुरू होना था। भारतीय जनता पार्टी के तेवरों को देखते हुए लग रहा था कि संसद से बजट पास करा पाना भी आसान नहीं होगा। लिहाजा सुशील शिंदे के तेवर नरम पड़े थे और उन्होंने 21 फरवरी 2013 को बजट सत्र की पूर्व संध्या पर बयान जारी किया और हिंदू आतंकवाद को लेकर दिए अपने बयान पर माफी मांगी। तब उन्होंने कहा था कि उनकी टिप्पणियों को गलत समझा गया। शिंदे ने यह भी कहा था कि पिछले माह जयपुर में दिए गए मेरे बयान ने गलतफहमियां पैदा कर दीं। इसे ऐसा समझा गया कि मैं आतंकवाद को किसी विशेष धर्म से जोड़ रहा हूं और कुछ राजनीतिक संगठनों पर आतंकी शिविरों के आयोजन में शामिल होने का आरोप लगा रहा हूं।
तब शिंदे ने कहा था, ‘मेरी आतंक को किसी धर्म से जोड़ने की कोई मंशा नहीं थी। जयपुर में मेरे संक्षिप्त भाषण में आतंक को संगठनों से जोड़ने का कोई आधार नहीं था। चूंकि मेरे बयान को लेकर विवाद पैदा हुआ, इसलिए मैं यह स्पष्टीकरण जारी कर रहा हूं और उन लोगों से खेद जाहिर करता हूं, जिन्होंने मेरे बयान से आहत महसूस किया।’
हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल करके कांग्रेस ने सोचा था कि वह मुस्लिम वोटरों का थोक में समर्थन हासिल करके सत्ता पर काबिज हो जाएगी। लेकिन उसकी यह कोशिश नाकाम रही। इसलिए जब भी हिंदू आतंकवाद को लेकर उस पर सवाल उठते हैं, वह तिलमिला जाती है। ऐसी तिलमिलाहट 2 अगस्त 2015 को भी दिखी थी, जब गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरदासपुर एयरबेस पर आतंकी हमले पर संसद में चर्चा के दौरान कहा था कि अपने शासनकाल में कांग्रेस ने ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का ईजाद करके आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर किया। तब गुस्साई कांग्रेस ने कहा था कि भाजपा ‘सांप्रदायिक ध्रुवीकरण’ के लिए यह मुद्दा उठा रही है। कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे ने यूपीए शासनकाल के दौरान संसद में ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द के इस्तेमाल से इनकार किया।
तब पी चिदंबरम और गुलाम नबी आजाद ने भी भारतीय जनता पार्टी पर सवालों और आरोपों की बौछार की थी। चिदंबरम ने कहा था कि यूपीए शासनकाल में गृह मंत्री के रूप में शिंदे ने एकदम अलग परिप्रेक्ष्य में ‘हिंदू आतंकवाद’ पर सवाल उठाया था। चिंदंबरम ने कहा था कि शिंदे ने तब जिस बात का जिक्र किया था, वह दक्षिणपंथी उग्रवादी समूहों से जुड़ी थी और उनमें से कुछ पर मालेगांव, मक्का मस्जिद में विस्फोट सहित कुछ अन्य मामलों में आरोपित हैं। जिनमें से कई की नजदीकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है। तब चिदंबरम ने कहा था कि इनके कुछ सदस्य तो संघ के सदस्य भी थे। जबकि गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि राजनाथ हिंदू आतंकवाद की बात कर ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं और सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान बंटाने की कोशिश कर रहे हैं।
बेशक चिदंबरम या शिंदे ने हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल संसद में नहीं किया था, लेकिन उनके मौजूदा अध्यक्ष और तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत तक से बातचीत में हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किया था। तब केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक खबर के हवाले से कहा था कि 2010 में राहुल ने तत्कालीन अमेरिकी राजदूत के साथ बातचीत के दौरान कहा था कि भारत के मुस्लिम समुदाय में कुछ तत्वों की ओर से लश्कर ए तैयबा को कुछ समर्थन मिलने के साक्ष्य हैं लेकिन कट्टरपंथी हिंदू समूहों का पनपना कहीं ज्यादा बड़ा खतरा हो सकता है जो मुसलिम समुदाय के साथ धार्मिक तनाव और राजनीतिक टकराव पैदा करते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि विकीलीक्स की ओर से जारी दस्तावेजों में इसकी चर्चा है।
जाहिर है कि असीमानंद की रिहाई के बाद हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल करने के लिए जहां कांग्रेस बचाव का रास्ता अख्तियार कर रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक चुनावों को लेकर हमलावर मुद्रा में है। हिंदू आतंकवाद के इस्तेमाल का नुकसान कांग्रेस झेल चुकी है, शायद यही वजह है कि बार-बार वह इस शब्दावली के इस्तेमाल से ही इनकार कर रही है। हैदराबाद की घटना इस नई सियासी जंग का जरिया बनी है। देखना यह होगा कि बंगलुरु की विधानसौध पर कब्जे में यह किस पार्टी के लिए मुफीद और सहयोगी साबित हो पाती है।