मलिक असगर हाशमी
हरियाणा में इन दिनों ‘बिन आधार कार्ड सब सून’ जैसी स्थति हो गई है। प्रदेश सरकार धीरे-धीरे तमाम सरकारी सेवाओं को आधार से जोड़ती जा रही है। यहां तक कि सरकारी अस्पताल में नसबंदी कराने वालों को एक हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि भी तभी मिलेगी जब वह आधार कार्ड की मूल कॉपी उपलब्ध करा देगा। जिला अस्पतालों और कई बैंकों में स्थायी तौर पर आधार कार्ड बनाने के केंद्र खोल दिए गए हैं। इनकी मदद से प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में नवजात शिशुओं के आधार कार्ड बनाए जा रहे हैं। बिना आधार कार्ड सूबे में गैस, मोबाइल कनेक्शन और बैंक मेंं नया खाता खोलना कब का बंद हो चुका है। अब तो सरकारी टेंडरों, प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री, कोटे के राशन के लिए भी इसे अनिवार्य कर दिया गया है। हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम के महाप्रबंधक शत्रुजीत कपूर कहते हैं कि फिलहाल प्रदेश भर के बिजली के नए-पुुराने मीटर को आधार कार्ड से जोड़ने की तैयारी चल रही है।
हरियाणा देश का पहला राज्य है जिसने इस वर्ष से शिक्षकों की भर्ती के लिए होने वाली परीक्षा के लिए आधार कार्ड अनिवार्य किया है। बिना आधार नंबर के परीक्षा के आवेदन स्वीकार नहीं किए जाएंगे। इसके अलावा आधार कार्ड के माध्यम से आॅनलाइन हॉस्पिटल मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम के तहत सरकारी अस्पतालों में गंभीर रोगों या किसी तरह का आॅपरेशन कराने वालों का पूरा रिकार्ड रखा जा रहा है। फरीदाबाद के सिविल सर्जन गुलशन अरोड़ा के मुताबिक, इसका उद्देश्य यह है कि यदि रोगी सूबे के किसी अन्य अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे तो उसका रिकॉर्ड अस्पताल प्रशासन को आसानी से उपलब्ध हो जाए। सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में भी आधार कार्ड जरूरी कर दिया गया है। प्राइवेट स्कूलों में दाखिले के समय मां-बाप और दाखिला लेने वाले बच्चे के आधार कार्ड की कॉपी भी दाखिला फार्म के साथ ली जा रही है। हालांकि सरकार का कहना है कि स्कूलों में केवल सरकारी सुविधाएं लेने वाले बच्चों को ही आधार नंबर देना होगा। मगर यहां तमाम तरह के स्कूलों के बच्चों के आधार नंबर लिए जा रहे हैं।
इस वर्ष से हरियाणा की बोर्ड परीक्षाओं में भी आधार नंबर जरूरी कर दिया गया है। इस नई व्यवस्था से बोर्ड की दसवीं और बारहवीं की परीक्षा के विद्यार्थियों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी। आधार नंबर न देने वाले करीब छह लाख परीक्षार्थियों के एडमिट कार्ड ही जारी नहीं किए गए थे। इसे लेकर जब बच्चों ने जगह-जगह बवाल काटा तब आनन-फानन में स्कूलों में कैंप लगाकर उनके आधार कार्ड बनाए गए।
तमाम तरह की सरकारी सेवाओं को आधार कार्ड से लिंक करने की सनक से सरकार को आलोचनाएं भी झेलनी पड़ रही हैं। इससे सामान्य जन-जीवन प्रभावित हो रहा है। प्रदेश सरकार के आधार कार्ड को लेकर बनाए गए कडेÞ नियमों के कारण कारगिल युद्ध के एक शहीद की विधवा को अपनी जान गंवानी पड़ी। 9 जून, 1999 को कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों का मुकाबला करते शहीद हुए जाट रेजिमेंट के हवलदार लक्ष्मण दास की 55 वर्षीया विधवा शकुंतला देवी की पिछले वर्ष 30 दिसंबर को सोनीपत के ट्यूलिप अस्पताल में समय पर इलाज न मिलने से इसलिए मृत्यु हो गई कि रोगी के परिजन मरीज का मूल आधार कार्ड साथ लेकर नहीं आए थे। शहीद के बेटे पवन कुमार बाल्यान ने बताया, ‘मेरी मां कैंसर से पीड़ित थीं। उन्हें हृदय रोग भी था। उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। इसलिए पूर्व सैनिकों के ईसीएचएस की सूची में शामिल निजी अस्पताल में इलाज के लिए मां को लेकर गया था। मगर इलाज शुरू करने से पहले अस्पताल प्रशासन आधार कार्ड मांगने पर अड़ गया। इस पर वहां मौजूद अस्पताल के स्टाफ से मेरी झड़प भी हुई।’ इस मामले में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने जांच के आदेश दे रखे हैं।
कुछ इसी तरह के हालात से इस वर्ष 10 फरवरी को गुरुग्राम की शीतला कॉलोनी में रहने वाले मध्य प्रदेश के बबलू और उसकी पत्नी मुन्नी को गुजरना पड़ा। गर्भवती मुन्नी की डिलीवरी कराने जब बबलू जिला अस्पताल पहुंचा तो अल्ट्रासाउंड कराने से पहले उससे उसका मूल आधार कार्ड दिखाने को कहा गया। बबलू का कहना है कि उसके पास उस वक्त पत्नी का आधार कार्ड और वोटर आई कार्ड था। इसके बावजूद अस्पताल की एक महिला डॉक्टर और नर्स ने मूल आधार कार्ड दिखाए बिना भर्ती करने से मना कर दिया। इस कारण उसकी पत्नी को अस्पताल परिसर में साइकिल स्टैंड पर कुछ महिलाओं की मदद से बिना किसी चिकित्सा सुविधा के बच्चे को जन्म देने को मजबूर होना पड़ा। इस मामले को लेकर जब सामाजिक संगठनों ने हंगामा मचाया तो स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने तत्काल प्रभाव से आरोपी डॉक्टर और नर्स को निलंबित कर दिया। इसके बाद सूबे के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक ने तमाम मेडिकल आॅफिसर और सविल सर्जन को आदेश जारी किया कि अस्पताल में आने वाले मरीजों को पहले आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी फिर औपचारिकता की कार्रवाई पूरी की जाएगी। फरीदाबाद के मवई रोड स्थित श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए आने वाले शवों के आधार कार्ड मांगने को लेकर भी स्थानीय नगर निगम प्रशासन और प्रदेश सरकार की किरकिरी हो चुकी है। इसके बाद इस श्मशान घाट से इस आशय के साइन बोर्ड निगम प्रशासन ने हटवा दिए। इस पर फरीदाबाद वेलफेयर एसोसिएशन के प्रधान आरपी बत्रा सफाई देते हुए कहते हैं, ‘श्मशानों मेंं कई बार किसी के नाम पर शव का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है और जांच में वह कोई और निकलता है।’ प्रदेश सरकार के आधार कार्ड पर ज्यादा जोर देने के चलते ही लगभग पूरा हरियाणा आधार कार्ड युक्त हो चुका है। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीआई) के अनुसार, दिल्ली के बाद हरियाणा आधार कार्ड बनाने के मामले में देश में दूसरे नंबर पर है। यूआईडीआई के एक आंकड़े के मुताबिक, सूबे में लक्ष्य से 104 फीसदी आधार कार्ड बनाए जा चुके हैं। शून्य से पांच वर्ष आयु वर्ग की सूची में हरियाणा 68.8 फीसदी के साथ देशभर में अव्वल है। इस वक्त सूबे के सभी शहरों, खंड और उप मंडलों में 661 सेंटरों पर आधार कार्ड बनाए जा रहे हैं। यह अलग बात है कि तकनीकी तौर से अनजान आधार कार्ड सेंटर चलाने वालों के कारण आम लोगों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। पिछले वर्ष अगस्त में हरियाणा के 18,846 लोग पेंशन स्कीम का लाभ इसलिए नहीं ले पाए कि जांच में उनके आधार कार्ड में ढेरों खामियां पाई गर्इं। सोनीपत के उपायुक्त रहे आईएएस अधिकारी अनशुज सिंह बताते हैं कि उनके कार्यकाल में जिले के पेंशनरों के आधार कार्ड की सत्यता की परख कराने पर 5,935 में से 4,324 में छोटी-बड़ी त्रुटियां पाई गर्इं जिसके कारण सरकारी स्कीम से लिंक करने में दिक्कत आई।