अनूप भटनागर
पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने दो टूक शब्दों में नेताओंं और राजनीतिक दलों को संदेश दे दिया कि सरकारी खर्च पर चुनाव प्रचार की इजाजत नहीं दी जाएगी। बेहतर हो अगर हमारी सरकार और निर्वाचन आयोग भी इस तरह का कोई निर्णय लेने का साहस दिखाए। केंद्र और राज्य सरकारें इस तरह का निर्णय करके सरकारी खजाने के अरबों रुपये की धनराशि की बचत करके राष्ट्र के विकास कार्यों में उसका इस्तेमाल करके एक शानदार नजीर पेश कर सकती हैं।
देश की आम जनता को समुचित सुरक्षा मिले या न मिले, पर्याप्त सुरक्षाकर्मियों के अभाव में जघन्य अपराध वारदात बढ़ने के बावजूद पंचायत के मुखिया और छुटभैये नेताओंं से लेकर बड़े बड़े नेता सरकारी खर्च पर सुरक्षा प्राप्त करना और लोगों के बीच में जाना आज भी अपनी शान समझ रहे हैं। इसकी वजह, स्वंय को जनता के बीच विशिष्ट और अति विशिष्ट व्यक्ति होने के अहसास का कराना भी है।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पंचायत के सरपंच और मुखिया से लेकर रसूख वाले नेताओं को मिली इस सुरक्षा का खर्च उनसे ही वसूल किया जाये क्योंकि आम नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने की बजाये इन कुछ सौ व्यक्तियों की सुरक्षा में बड़ी संख्या में प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मी तैनात करना सरासर देश के संसाधनों के साथ ही जनता के धन का दुरुपयोग है।
सुरक्षा मानकों और खतरे के आकलन के आधार पर लोगों को सुरक्षा प्रदान करना समझ में आता है लेकिन इसकी भी कोई सीमा होनी चाहिए। हमारे यहां जेड प्लस, जेड, वाई प्लस और वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता जब किसी समारोह या जनसभा में अपनी गाड़ियों और सुरक्षा के तामझाम के साथ पहुंचते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो ब्रिटिश राज के कोई लाट साहब अपनी रियाया को उपकृत करने आये हैं। नेताओंं को मिली इस तरह की सुरक्षा आम जनता के मन में भय पैदा करती है।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उच्चतम न्यायालय की 2013 की तल्ख टिप्पणियों और दिसंबर, 2013 के फैसले तथा हाल ही में पाकिस्तान उच्चतम न्यायालय के आदेश का लाभ उठाकर केंद्र और राज्य सरकारें इन नेताओं को अपनी सुरक्षा का खर्च खुद वहन करने का निर्देश दें। निश्चित मानिये यदि सरकार ऐसा कदम उठाती है तो सिर्फ रौब दिखाने की खातिर जुगाड़ लगाकर सुरक्षा प्राप्त करने वाले अधिकांश लोग इसे वापस कर देंगे और इसके बावजूद अपरिहार्य कारणों से सुरक्षा की जरूरत महसूस करने वाले व्यक्तियों को अगर सुरक्षा प्रदान की जाती है तो उससे सरकार को राजस्व भी मिलेगा।
यह सही है कि संवैधानिक पदों और कार्यपालिका और न्यायपालिका में संवेदनशील जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे व्यक्तियों और न्यायपालिका के सदस्यों को पुख्ता सुरक्षा मिलनी चाहिए। वैसे भी नागरिकों को सुरक्षा उपलब्ध कराना शासन का कर्तव्य है। लेकिन जुगाड़ के इस दौर में यह कहना मुश्किल है कि किस नेता को कितना खतरा है। अगर ‘जेड प्लस और जेड’ श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेताओंं की फेहरिस्त पर नजर डालें तो पता चलेगा कि इनमें से कई को इस श्रेणी की सुरक्षा की आवश्यकता शायद नहीं हो। इसका नतीजा यह है कि केंद्र सरकार ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों को नेताओंं की सुरक्षा में न सिर्फ बेहद कुशल कमांडो और सुरक्षाकर्मी तैनात करने पड़ते हैं बल्कि उनके उपर सालाना अरबों रुपये भी खर्च करने पड़ते हैं।
यह सही है कि आतंकवाद और दूसरे कारणों से नेताओंं, पुलिस अधिकारियों और वरिष्ठ अधिकारियों के जीवन को खतरे का आकलन करके उन्हें खतरे के अनुपात में ही सुरक्षा प्रदान की जाती है जो उचित भी है। लेकिन हास्यास्पद स्थिति उस समय हो जाती है जब आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति राजनीति में अपनी पैठ बनाने के बाद अपने विरोधियों से अपनी जान बचाने के लिये सरकारी खर्च पर सुरक्षा हासिल कर लेते हैं। ऐसी अनेक घटनाएं हमारे लोकतांत्रिक जीवन में हो रही हैं। और न्यायालय के संज्ञान में आने तथा उसकी फटकार के बाद ऐसे व्यक्तियों की सुरक्षा वापस ली गयी है।
देश के प्रसिद्ध उद्योगपति मुकेश अंबानी को ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करने संबंधी एक समाचार प्रकाशित होने पर मई 2013 में उच्चतम न्यायालय ने तमाम नेताओंं को ‘जेड प्लस’ से लेकर ‘वाई’ और इससे नीचे की श्रेणी की सुरक्षा पर होने वाले खर्च पर चिंता व्यक्त की थी।
शीर्ष अदालत में तत्कालीन न्यायाधीश जी एस सिंघवी ने इस खबर पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि धनवान तो निजी सुरक्षाकर्मियों का खर्च वहन कर सकते हैं लेकिन आम आदमी अभी असुरक्षित महसूस करता है। न्यायालय ने राजधानी में उस समय एक पांच वर्षीय बच्ची से बलात्कार की घटना का इस संदर्भ में प्रमुखता से जिक्र किया था।
यह तो स्पष्ट नहीं है कि इस संबंध में न्यायालय की सख्त टिप्पणियों के बावजूद ऐसे नेताओंं की सुरक्षा पर हो रहे खर्च को उनसे ही वसूलने के बारे में केंद्र और राज्य सरकारों ने कोई नीतिगत निर्णय लिया है या नहीं। परंतु इतना स्पष्ट है कि इन नेताओंं और दूसरे व्यक्तियों की सुरक्षा में तैनात प्रशिक्षित कमांडो के प्रशिक्षण और इसके बाद उनके वेतन भत्तों के रूप में सरकार एक बड़ी रकम खर्च करती है।
इसके अलावा सुरक्षा की दृष्टि से बुलेट प्रूफ गाड़ियां और दूसरे वाहन तथा सुरक्षा उपकरणों की खरीद और उनके रखरखाव पर भी सरकार को बहुत अधिक धन खर्च होता है। यदि इन तथ्यों को देखते हुए सुरक्षा का खर्च इन नेताओंं को स्वयं वहन करने या सुरक्षा सेवा का भुगतान करने के बारे में उचित दिशा निर्देश बनाये जाएं तो निश्चित ही इससे देश का भला होगा।
उधर पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने तो इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए नेताओंं को सलाह दी है कि वे अपने खर्च पर अपनी सुरक्षा का बंदोबस्त करें। न्यायालय ने तो यह भी कह दिया कि वह सरकार के खर्च पर चुनाव प्रचार की अनुमति किसी को नहीं देगा।
यही नहीं, पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने ऐसे नेताओंं की सुरक्षा के लिये उपलब्ध कराई गयी मंहगी लग्जरी कारें भी वापस लेने का आदेश दिया है। इससे पहले न्यायालय को बताया गया था कि पात्रता नहीं होने के बावजूद मंत्रियों और दूसरे लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे 105 सुरक्षा वाहन वापस ले लिये गये हैं। इसी तरह बलूचिस्तान में ऐसे 56 में से 49 वाहन वापस लिये जा चुके हैं और बलूचिसतान के सात मंत्रियों को ये वाहन तुरंत लौटाने अथवा जुर्माना भरने के लिये तैयार रहने का आदेश दिया।
पाकिस्तान उच्चतम न्यायालय के इस निर्देश ने पाकिस्तानी नेताओंं की नींद उड़ा दी है क्योंकि चुनाव के दौरान अब उन्हें अपनी सुरक्षा का खर्च खुद ही वहन करना पड़ेगा। न्यायालय ने इन नेताओंं की सुरक्षा पर खर्च हो रही रकम का विकास के कार्यों पर इस्तेमाल करने की बात करके जनता की वाहवाही भी हासिल की है।
पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने यह फरमान हाल ही में जारी किया है लेकिन भारत में काफी पहले ही आम आदमी को समुचित सुरक्षा प्रदान करने की बजाये नेताओंं और दूसरे लोगों की सुरक्षा में बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात करने पर सुप्रीम कोर्ट ने अप्रसन्नता जाहिर की थी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस समय केंद्र सरकार 299 व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान कर रही है। इनके अलावा, राज्य सरकारों ने भी तमाम नेताओं और दूसरे लोगों को अलग अलग वजह से सुरक्षा प्रदान कर रखी है। इन 299 व्यक्तियों में से 26 व्यक्तियों को ‘जेड प्लस श्रेणी’, 59 व्यक्तियों को ‘जेड श्रेणी’ तथा 145 व्यक्तियों को ‘वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली है जबकि एक व्यक्ति को ‘वाई श्रेणी’ की सुरक्षा और 68 व्यक्तियों के पास ‘एक्स श्रेणी’ की सुरक्षा है।
एक और दिलचस्प तथ्य है कि आतंकवादी हिंसा से प्रभावित जम्मू कश्मीर में हुर्रियत के चौदह नेताओंं पर दस साल में सुरक्षा और उन्हें लाने ले जाने वाले वाहनों के र्इंधन पर करीब 11 करोड़ रुपये खर्च किये गये। इसके बावजूद, हुर्रियत के नेता अक्सर ही केंद्र सरकार के खिलाफ विष वमन करते रहते हैं।