ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो
चावल में देश भर में अपनी पहचान रखने वाले तरावड़ी में इन दिनों राइस मिल की मशीनरी कबाड़ के भाव बिक रही है। वजह यह है कि यहां एक-एक कर राइस मिल बंद हो रही हैं। अभी तक 50 मिल पूरी तरह से बंद हो गई हैं जबकि 120 मिल बंदी की कगार पर हैं। एक -एक मिल संचालकों पर 50 से लेकर 200 करोड़ रुपये तक का कर्ज है। यह हालत अकेले तरावड़ी की ही नहीं है। हरियाणा और पंजाब में दोनों जगह हालात एक जैसे ही हैं। हरियाणा में 1,280 राइस मिल सरकारी धान की कुटाई का काम करती हैं। लगभग सभी भारी घाटे में हैं। इसी तरह के हालात पंजाब में भी हैं। एक समय था जब तरावड़ी का चावल देश में अपनी खास पहचान रखता था। तभी से इस क्षेत्र को राइस बाउल के नाम से जाना जाता है लेकिन आज धान का यह कटोरा लगातार खाली होता जा रहा है।
हरियाणा राइस मिल एसोसिएशन के प्रधान ज्वाला सिंह ने बताया, ‘यही हाल रहा तो इस बार धान के सीजन में आधे से ज्यादा राइस मिलर्स धान खरीद नहीं करेंगे। कुछ तो सरकार की नीतियों में दिक्कत है वहीं चावल की उत्पादन लागत तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में उनके सामने मिल बंद करने के सिवाय कोई चारा ही नहीं रह गया है। सरकार उनकी समस्या पर ध्यान नहीं दे रही है। इस वजह से इस वक्त प्रदेश के 250 मिलें बैंकों की डिफॉल्टर हो गई हैं। उनके खिलाफ बैंकों ने रिकवरी के लिए कुर्की शुरू कर रखी है। देनदारियों से तंग आकर जून में राइस मिलर रोशन लाल सिंगला ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में आत्महत्या की वजह देनदारियां ही बताई हैं।’ हरियाणा और पंजाब में दो तरह के राइस मिलर्स हैं। एक वे जो सरकार से धान लेकर चावल कूट कर सरकार को देते हैं। बदले में उन्हें पैसा मिलता है। दूसरे राइस मिलर्स वे हैं जो चावल का निर्यात करते हैं। इस तरह के मिलर्स बासमती धान खरीद कर उसका चावल बना निर्यात करते हैं।
क्यों बने यह हालात
राइस मिलर अजय जैन ने बताया कि इसकी कई वजह है। एक बड़ी वजह यह है कि सरकारी धान की कुटाई करने वाली मिल को सरकार जबरदस्ती नमीयुक्त धान देती है। इससे जो चावल बनते हैं उसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं होती। ऐसे में सरकार उसे लेने से मना कर देती है। इस तरह से उस मिलर के पास कोई चारा ही नहीं बचता। वह कहां से साफ चावल लेकर आए। राइस मिलर अशोक कुमार ने बताया कि असली समस्या यह है कि धान खरीद के वक्त सरकार किसानों के दबाव में रहती है। इस वजह से मिलर्स पर दबाव बनाया जाता है कि जैसे भी हो वे धान उठा लें लेकिन बाद में सरकार की ओर से मिलर्स को कोई सहयोग नहीं मिलता जिससे हालत खराब हो जाते हैं। दूसरी दिक्कत यह है कि धान की खरीद तो प्रदेश की एजेंसियां करती हैं लेकिन चावल लेता है फूड कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया। कॉरपोरेशन के अपने मानक हैं। वे गुणवत्ता में समझौता नहीं करते। ऐसे में मिलर्स के सामने समस्या यह रहती है कि जब उन्हें धान ही अच्छी गुणवत्ता का नहीं मिला तो वे तय मानकों के अनुरूप चावल कहां से लेकर आएंगे। ऐसे में जैसे ही उनका चावल रिजेक्ट होना शुरू होता है तो उनके सामने दूसरा चारा ही नहीं बचता। उधर, सरकार का चावल यदि समय पर नहीं जाता है तो उसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया जता है। इस तरह उनके सामने बड़ी समस्या आ जाती है। इससे बचने के लिए ज्यादातर मिल संचालक बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से मोटा चावल खरीद कर एफसीआई को देते हैं। इस क्रम में उन्हें कई बार खासा नुकसान हो जाता है। ज्वाला सिंह ने बताया कि तीन साल से चावल मिल संचालकों को लगातार घाटा उठाना पड़ रहा। इस वजह से यह हालात बने हैं।
निर्यातक भी परेशान
चावल में मंदी की मार न सिर्फ मोटे धान कुटाई करने वाले राइस मिलर्स को परेशान कर रही है बल्कि निर्यातक और बासमती धान की कुटाई करने वाले मिलर्स भी खासे परेशान हैं। निर्यातक एसोसिएशन के प्रधान कंवर सिंह के मुताबिक रुपये में गिरावट का असर भारत से चावल के निर्यात पर भी पड़ा है। इसके अलावा मांग भी कमजोर बनी हुई है। भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है जबकि थाईलैंड दूसरे नंबर पर है। चावल निर्यातक अशोक सुखीजा ने बताया कि भारतीय चावल को लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में हालात अनुकूल नहीं हैं। कभी तय मात्रा से ज्यादा कीटनाशक बता तो कभी गुणवत्ता का बहाना बना भारतीय चावल का निर्यात रोकने की कोशिश हो रही है। दिक्कत यह है कि इस समस्या की ओर सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है जिससे हालात खराब हो रहे हैं। निर्यात में दूसरी बड़ी दिक्कत यह आ रही है कि खाड़ी के देशों में निर्यातकों का पैसा फंस जाता है। बैंक गारंटी के बिना ही चावल की सप्लाई दे देते हैं। इससे भी मिलर्स को खासी परेशानी आ रही है। अशोक सुखीजा ने बताया कि चावल की गुणवत्ता को लेकर भी कोई काम नहीं हो रहा है। किसानों को पता ही नहीं है कि किस तरह से धान की खेती करें ताकि चावल की गुणवत्ता बेहतर बनी रहे।
तो क्या इसका असर किसानों पर पड़ सकता है? इस सवाल के जवाब में अशोक सुखीजा का कहना है कि बासमती धान में तो सबसे ज्यादा असर पड़ेगा क्योंकि इसका भाव तो सीधे निर्यात पर ही निर्भर करता है। यदि निर्यात ही नहीं होगा तो कीमत कौन देगा? इस दिशा में काम होना चाहिए। हरियाणा के प्रगतिशील किसान जंगशेर सिंह राणा भी स्वीकार करते हैं कि धान की खेती को लेकर किसान अभी भी पारंपरिक तरीका अपनाए हुए हैं। इसमें अब बदलाव की जरूरत है। धान की रोपाई, बिजाई और देखभाल के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाना होगा। तभी बेहतर गुणवत्ता का धान पैदा कर सकते हैं। इसके लिए सरकार को काम करना होगा। दूसरा, मोटा धान भले ही समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है लेकिन इसकी मिलिंग तो मिलर्स ही करेंगे। यदि मिलर्स ही घाटे में रहेंगे तो कब तक काम करेंगे। ऐसे में मिल की घटती संख्या भी कहीं न कहीं बड़ी चुनौती है।
क्या होना चाहिए
इस सवाल के जवाब में अशोक सुखीजा का कहना है कि सबसे पहले तो किसान, मिलर्स और सरकार को एक मंच पर आना होगा। किसान को समझना होगा कि इंडस्ट्री की जरूरत क्या है? उसके हिसाब से ही काम करना होगा। मिलर्स भी किसान को बताए कि उसे चाहिए क्या? सरकार को इसलिए साथ आना होगा क्योंकि बहुत सी नीतियां उसके स्तर पर ही बननी हैं। जब तक इस तरह का प्रयास नहीं होगा इस इंडस्ट्री की समस्या दूर नहीं हो सकती। हरियाणा के कृषि मंत्री ओपी धनखड़ का कहना है कि इस दिशा में उनकी सरकार काम कर रही है। किसान अच्छी गुणवत्ता का धान उगाएं, इसके लिए लगातार कोशिश हो रही है। किसान, मिलर्स और सरकार एक मंच पर आकर काम कर रहे हैं। आने वाले समय में इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे।