तसलीम का नीतीश विरोध

प्रियदर्शी रंजन ।
कुछ दिनों पहले पूर्णियां में आयोजित प्रमंडल स्तरीय जीविका सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंच से कुछ घोषणाएं कर रहे थे तो एक आवाज आई- ‘झूठा है, घोषणाबाज है।’ मंच से आई यह आवाज इतनी तेज थी कि माइक से होते हुए सम्मेलन में मौजूद सभी लोगों तक पहुंच गई। वहां मौजूद लोगों को यह समझते देर नहीं लगी कि यह आवाज राष्ट्रीय जनता दल के अररिया से सांसद मो. तसलीमुद्दीन की है जो पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। बीते आठ महीनों में करीब दर्जन भर मौकों पर तसलीमुद्दीन ने बिहार के मुख्यमंत्री को आड़े हाथ लिया है। उल्लेखनीय है कि विपक्ष से पहले महागठबंधन की अपनी ही सरकार को पहली बार तसलीम ने ही महाजंगलराज से नवाजा था। इसमें उन्हें विपक्ष का भरपूर सहयोग मिला। शराबबंदी के सवाल पर भी विपक्ष से कहीं ज्यादा उन्होंने ही सरकार की किरकिरी की है।

चार महीने पहले तसलीमुद्दीन ने नीतीश कुमार को अत्याचारी कहा तो इसकी शिकायत लालू प्रसाद यादव से हुई। इसे राजद ने गंभीरता से लेते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था। मगर उन्होंने इस नोटिस को गंभीरता से लेने की बजाय नीतीश के मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए उन्हें अच्छा आदमी करार दिया। इससे जदयू और तसलीम के बीच सुलग रही चिंगारी धधक उठी। यह कारण बताओ नोटिस के बाद लगी आग का ही नतीजा था कि पिछले दिनों उन्होंने नीतीश के नवरत्नों में गिने जाने वाले राजस्व मंत्री विजेंद्र यादव व सिंचाई मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह पर महानंदा बेसिन में 800 करोड़ रुपये की अनियमितता का आरोप लगाया। उन्होंने विभिन्न मंचों से प्रदेश सरकार पर यह सवाल दागा कि 2007-2008 में उनके केंद्र में मंत्री रहते 800 करोड़ रुपये की मिली राशि का हिसाब सरकार क्यों नहीं दे रही है?

ओपिनियन पोस्ट  संवाददाता ने इस अनियमितता के आरोप पर विजेंद्र यादव से पूछा तो उनका जवाब था, ‘800 करोड़ रुपये को पचाना आसान नहीं है। मैं तो नहीं पचा सकता। जो पचा सकते हैं वही इसके बारे में बोल भी सकते हैं।’ बकौल यादव, ‘तसलीम साहब जब जदयू में थे तब उन्हें इस अनियमितता की याद नहीं आई। बिना जांचे समझे बयानों पर कुछ कहना उचित नहीं है। लेकिन इतना जरूर है कि वो अब बुजर्ग हो चुके हैं और वे कुछ भी अनर्गल अलाप कर रहे हैं।’

व्यक्तिगत है अदावत
जानकारों की मानें तो नीतीश से तसलीम की लड़ाई राजनीतिक न हो कर व्यक्तिगत है। अररिया-किशनगंज क्षेत्र के राजनीतिक जानकार सुब्रतो बताते हैं कि दोनों के बीच का यह पूरा खेल ही शह और मात का है। इसकी शुरुआत उस समय हुई थी जब तसलीम जदयू में थे। यह दौर 2010 से 2013 का था। राजद से जदयू में प्रवासित तसलीम को पार्टी में वह रुतबा नसीब नहीं हुआ जो उन्हें पुराने घर में हासिल था जबकि उन्हें नीतीश ही जदयू में लेकर आए थे। इससे न तो जदयू को फायदा हुआ और न हीतसलीम को। इसके बाद नीतीश को भला-बुरा कहते हुए तसलीम राजद में लौट गए। 2015 में तसलीम के बेटे सरफराज आलम को जोकीहाट से उम्मीदवार बनाना जदयू की मजबूरी थी क्योंकि सरफराजजदयू के निवर्तमान विधायक थे।

जदयू के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि तसलीम कई संगीन आरोपों में आरोपित हैं। हत्या के एक मामले को नीतीश कुमार ने 2015 में मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद खोलने का आदेश दिया था। इस मामले में तसलीम भी आरोपी हैं। इसी मामले में राबड़ी सरकार ने उन्हें आरोप मुक्त किया था। गड़ा मुर्दा उखाडेÞ जाने पर तसलीमुद्दीन नीतीश कुमार के खिलाफ बुरी तरह से उखड़ गए हैं। इन दोनों में दूरी उस वक्त और बढ़ गई जब उनके विधायक बेटे सरफराज आलम को डिबू्रगढ़-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में एक महिला के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप में 23 जनवरी को जदयू से निष्कासित कर दिया गया। तसलीम चाहते थे कि जांच पूरी होने की बात कह कर मुख्यमंत्री मामले पर मिट्टी डाल दें।

जदयू के प्रदेश प्रवक्ता निहोरा यादव इस पूरे विवाद पर कहते हैं, ‘वर्तमान सरकार से उन्हीं लोगों को परेशानी है जो किसी जमाने में अपना साम्राज्य चलाते थे। तथाकथित यह साम्राज्य अपराध के बूते खड़ा होता था। सभी लोग जानते हैं कि सीमांचल में तसलीम की पहचान क्या रही है। अररिया के सांसद कुछ इलाकों में अपना साम्राज्य फिर से चाहते हैं जो इस सरकार में संभव नहीं है।’ स्थानीय राजनीतिक जानकार सुब्रतो भी मानते हैं कि मुख्यमंत्री बनाम सांसद फसाद की जड़ में कुछ स्थानीय कारण हैं। दरअसल, शासन-प्रशासन में वर्चस्व की लड़ाई में हाल के दिनों में तसलीम की पकड़ ढीली हुई है। वे अपने संसदीय क्षेत्र में मनमाफिक प्रशासनिक अधिकारियों को बिठाने में नाकाम रहे हैं। वहीं जदयू के कोचाधामन से विधायक मास्टर मुजाहिद आलम के नेतृत्व में जदयू के स्थानीय नेता बुलंद अख्तर हाशमी और किशनगंज के जिला अध्यक्ष फिरोज अंजुम ने हाल के दिनों में अपनी पकड़ मजबूत की है। तसलीम के खासमखास अररिया-किशनगंज की राजनीति में हाशिए पर धकेल दिए गए हैं। जाहिर है, पांच बार सांसद रहे व अपने बेटे को विधायक बनाने वाले तसलीम के ढाई दशक पुराने साम्राज्य की चूलें हिलती दिखाई दे रही हैं। इससे वे बौखलाहट में हैं और इसका जिम्मेवार नीतीश कुमार को मान रहे हैं।

हालांकि बेचैनी जदयू में भी है। जदयू नेतृत्व की नाराजगी और राजद की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद भी सरकार पर तसलीम का हमला जारी है।वहीं राजद के कुछ और बड़े नेता सरकार के खिलाफ बोलने लगे हैं। इसी बेचैनी को कम करने के लिए जदयू नेता श्याम रजक, प्रवक्ता संजय सिंह ने राजद को अपने तीन नेताओं को मर्यादा में रखने की नसहीत दी है। संजय सिंह के मुताबिक, रघुवंश प्रसाद सिंह, प्रभुनाथ सिंह और तसलीमुद्दीन को राजद को कंट्रोल में रखना चाहिए या फिर उन्हें सस्पेंड करना चाहिए। गौरतलब है कि पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह ने बिहार की कानून व्यवस्था के बहाने नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि पर सवाल खड़ा किया है तो पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने शराबंबदी कानून के विरोध में मुहिम छेड़ रखी है।

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