वीरेंद्र नाथ भट्ट
उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों के हाथ में नरेंद्र मोदी के खिलाफ सबसे बड़ा अस्त्र ‘पंद्रह लाख नहीं मिले’ था। अब पांच सौ और एक हजार रुपये का नोट कूड़े के ढेर का हिस्सा बन चुका है। उत्तर प्रदेश में पूरा विपक्ष बड़े नोट बैन करने के खिलाफ खड़ा हो गया है। कांग्रेस इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में लिया गया नादिरशाही फैसला बता रही है तो मायावती ने इसे आर्थिक आपातकाल बताया और मुलायम सिंह यादव ने कहा कि मोदी के इस फैसले ने तो विधानसभा चुनाव तैयारी की बधिया बैठा दी। संकेत साफ है चुनाव अब महंगा हो गया है और चुनाव लड़ने के लिए काफी पैसा चाहिए होता है और वो काला धन ही होता है। बहुजन समाज पार्टी कहती रही है कि उसे उद्योग घरानों से चंदा नहीं मिलता। उसे पार्टी कार्यकर्ताओं और चुनाव में उम्मीदवारों से ही धन मिलता है। इसको लेकर मायावती पर बड़े पैमाने पर धन उगाही के आरोप भी वर्षों से लग रहे हैं। जो भी सच हो, नोट बंद करने के फैसले से मायावती की चुनाव तैयारी को जबरदस्त झटका लगा है।
मायावती ने कहा, ‘बीजेपी ने अपना इंतजाम कर लिया और देश में इकोनॉमिक इमरजेंसी लगा दी। अगर सही में कालेधन-भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना चाहते तो ढाई साल तक इंतजार न करते।’
इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा, ‘बहन मायावती को नोटों की मालाओं को छिपाने में परेशानी हो रही है, इसलिए मोदीजी के फैसले की आलोचना कर रही हैं।’ मायावती ने कहा, ‘अपनी कमियों को छिपाने के लिए बीजेपी ने यह कदम उठाया है और मोदी ने अघोषित इकोनॉमिक इमरजेंसी लगाई है।’ मायावती ने आरोप लगाया कि सरकार के इस फैसले से केवल गुजरात और मुंबई के लोगों का फायदा होगा और यह देशहित में नहीं है। मायावती के मुताबिक, ‘मोदी के नोट बंद करने की बात पता चलते ही लोग घरों से ऐसे बाहर निकल भागे, जैसे भूकंप आने पर जान बचाने के लिए भागते हैं। जनता बीजेपी एंड कंपनी को सजा देगी। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक लोग परेशान हैं।’
मुलायम सिंह यादव ने नोट बैन किए जाने पर कहा, ‘संसद में विरोध करेंगे, यह तो इमरजेंसी जैसी स्थिति है, मोदी ने बिना जेल भेजे सबको नजरबंद कर दिया है। जिन लोगों ने कालाधन जमा कर रखा है उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मुलायम ने कहा, ‘हम भी चाहते हैं कि चुनाव में कालाधन न लगे। बीजेपी ने कहा था विदेश से कालाधन लाएंगे, थोड़ा ही ला पाए। दबाव पड़ा तो आठ बजे रात में अचानक घोषणा कर दी। लोग नोट जला रहे हैं, कालाधन लाने की बजाए देश में अराजकता फैल गई। बीजेपी केवल चुनाव देख रही है, हमारी मांग है कि जो घोषणा की गई है उसे थोड़े दिन के लिए वापस ले लीजिए।’
नरेंद्र मोदी द्वारा पांच सौ और एक हजार के नोटों को अमान्य करने से स्तब्ध कांग्रेस को समझ ही नहीं आ रहा है कि वह इस स्थिति का सामना किस प्रकार करे। राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस के सभी बड़े नेता इस फैसले का सीधा विरोध करने से कुछ कुछ बचते हुए किन्तु परन्तु के साथ अनेक सवाल और मीन मेख निकाल रहे हैं। कांग्रेस को चिंता हो रही है कि किसान अपनी बेटी के हाथ पीले कैसे करेगा, पांच सौ के नोट बंद होने से शादियां रुक जाएंगी। लेकिन किसान की राजनीति करने वाली देश के सबसे पुरानी यानी 130 वर्ष की पार्टी को यह भी पता नहीं कि ग्रामीण क्षेत्रों और विशेषकर उत्तर भारत में शादियां रबी की फसल काटने के बाद गर्मी के मौसम में ही होती हैं, जाड़े में नहीं। कांग्रेस का परेशान होना स्वाभाविक भी है। अगले हफ्ते संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। भोपाल में सिमी के आंतकवादियों की पुलिस मुठभेड़ में हत्या, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के लापता छात्र नजीब और एक निजी टीवी चैनल को एक दिन बंद रहने का आदेश, जो बाद में वापस ले लिया गया आदि अनेक मुद्दों पर सरकार को घेरने और संसद में हो हल्ला करने की योजना थी।
लेकिन इन सब संकटों से बड़ा संकट है दो माह बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव। उत्तर प्रदेश में सत्ता के दो प्रमुख दावेदारों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में तो नोट बंद करने के फैसले से सन्निपात की स्थिति है। काली कमाई का हजारों करोड़ रुपया एक रात में कागज का ढेर बन गया। काले धन पर मोदी की सर्जिकल स्ट्राइक ने तो सपा और बसपा को निहत्था बना दिया है।
पिछले ढाई साल में नरेंद्र मोदी की सर्वाधिक आलोचना और व्यंग्य बाण काले धन के मुद्दे पर ही छोड़े गए हैं। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने इस वर्ष अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर माह में आजमगढ़, आगरा, सहारनपुर , इलाहाबाद और लखनऊ में आयोजित महारैलियों में नरेंद्र मोदी और काले धन के पंद्रह लाख हर आदमी को देने को ही प्रमुख मुद्दा बनाया था। दोनों दलों के पास भाजपा और नरेंद्र मोदी पर हमला करने का एक ही अस्त्र था ‘मोदी ने झूठे वादे करके चुनाव जीत लिया और वादे के मुताबिक एक भी व्यक्ति के खाते में पंद्रह लाख रुपये नहीं आए। यूपी से 73 सांसद जीतने के बाद भी मोदी सरकार ने प्रदेश के विकास के लिए कुछ नहीं किया।’ अब ये सारे अस्त्र पांच सौ और एक हजार रुपये के नोट के ढेर का हिस्सा बन गए हैं।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में तो मातम का माहौल है। चुनाव सिर पर है। उस पर मोदी का यह फैसला। अब चुनाव की नैया कैसे पार होगी। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने झांसी की परिवर्तन यात्रा के दौरान समाजवादी पार्टी की सरकार पर भ्रष्टचार के गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि सपा सरकार ने बुंदेलखंड में अवैध खनन में इतना लूटा है कि उस पैसे से इस क्षेत्र के हर व्यक्ति को एक कार दी जा सकती है। समाजवादी पार्टी के नेताओं को डर है कि काले धन पर रोक के लिए इतने साहसिक फैसले के बाद बीजेपी काले धन पर हमले की धार और पैनी करेगी।
वैसे तो भारत की राजनीति में काले धन का मुद्दा 1996 से ही गर्म है। तब एक प्रमुख पत्रकार विनीत नारायण ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर हवाला कारोबार की जांच की मांग की थी और भाजपा के वरिष्ठ नेता
लालकृष्ण आडवाणी ने अपना नाम हवाला कांड में आने पर 1996 का लोकसभा का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। अगले एक दशक से अधिक समय तक यह मामला ठंडा रहा। 2009 में मशहूर वकील राम जेठमलानी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (सिविल नंबर 176/2009) दाखिल कर मांग की कि विदेशी बैंकों और ‘टैक्स हैवन’ में जमा काला धन देश में वापस लाया जाए और काले धन की उत्पत्ति पर रोक लगाने के लिए सरकार कदम उठाए।
जनवरी 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि विदेशी बैंकों में जिनका धन जमा है उनके नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किये जा रहे। कोर्ट ने जुलाई 2011 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल गठित करने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि जांच दल सीधे कोर्ट को रिपोर्ट करेगा और कोई अन्य एजेंसी इस काम में शामिल नहीं होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि काले धन पर काबू करने में सरकार विफल रही है और इससे स्पष्ट है कि सरकार न केवल कमजोर है बल्कि इस मुद्दे पर उसका रुख ‘नर्म’ है। केंद्र सरकार ने विशेष जांच दल के गठन को चुनौती देने की याचिका दाखिल की। कोर्ट का इस याचिका पर स्प्लिट वर्डिक्ट था और मामला तीसरे जज को रेफर कर दिया गया। कोर्ट में यह केस चलता रहा और मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अंतिम बार चेताया कि यदि सरकार ने विशेष जांच दल गठित नहीं किया तो माह के अंत तक कोर्ट स्वयं इस काम को कर देगी। 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की और मंत्रिमंडल का पहला निर्णय विशेष जांच दल गठित करने का था। इस बीच तत्कालीन कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने सरकार के अधीन तीन संस्थाओं नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ पब्लिक फाइनेंस पॉलिसी, नेशनल कौंसिल आॅफ एप्लाइड इकोनोमिक रिसर्च और नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ फाइनेंसियल मैनेजमेंट को यह अध्ययन करने का काम सौंपा कि देश और विदेश में भारत का कितना बिना हिसाब का धन है। यह कार्य डेढ़ वर्ष में पूरा किया जाना था। दिसंबर 2013 और अगस्त 2014 के बीच सरकार को सभी रिपोर्ट प्राप्त हो गई थीं लेकिन सरकार ने इस सभी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदनों को सरकार ने यह कहकर खारिज कर दिया कि यह सूचना अधिनियम की धारा 8(1) (सी ) के तहत मुक्त है और इसे सार्वजनिक करने से संसद के विशेषाधिकार का हनन होगा।