वीरेंद्र नाथ भट्ट
सरकारी तौर पर नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ पब्लिक फाइनेंस पॉलिसी की यह रिपोर्ट अभी गोपनीय है लेकिन इसके कुछ अंश जानकारी में आए हैं जो किसी भी सरकार की चूलें हिलाने के लिए काफी हैं। दिसंबर 2013 में यह रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई थी। एक हजार पेज की रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल घरेलू सकल उत्पाद यानी जीडीपी के 71 प्रतिशत के बराबर देश में काला धन है। 2013 में 2000 अरब डॉलर की भारतीय अर्थव्यस्था थी जो अब 2500 अरब डॉलर से अधिक है। इसके समानांतर 1400 अरब डॉलर का काले धन का कारोबार है। इन आंकड़ों को अगर रुपये में देखें तो 120 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यस्था के समानांतर 83 लाख करोड़ रुपये का कारोबार काले धन के रूप में है। कई जाने माने अर्थशास्त्रियों का कहना है कि विदेश में जमा काले धन पर सख्ती तो ठीक है मगर काले धन पर अंकुश लगाकर सूरत बदलने की कोशिश तभी कामयाब होगी जब देश की अर्थव्यवस्था के समानांतर चल रहे देशी काले धन पर लगाम कसी जाए। काले धन में पिछले 20 साल में तीन गुना इजाफा हुआ। 90 के दशक के शुरू में काला धन जीडीपी का 20 प्रतिशत तक था लेकिन आर्थिक उदारीकरण के बाद काला धन 71 प्रतिशत तक हो गया।
राजनीतिक दलों की पोल खोलती रिपोर्ट विस्तार से खुलासा करती है कि कैसे सभी दल काले धन के सकुर्लेशन और उपयोग का जरिया हैं। सभी दल यह दावा करते हैं कि उनको मिलने वाले नकद दान की राशि 20,000 रुपये से कम है और उनकी कुल आय का 80 फीसदी इसी तरह के दान से आता है। बाकी 20 फीसदी कॉर्पाेरेट सेक्टर से आता है। बहुजन समाज पार्टी को सौ प्रतिशत दान 20,000 रुपये से कम की नकद राशि में आता है तो समाजवादी पार्टी को 98 प्रतिशत। केवल वामपंथी दलों को 98 प्रतिशत राशि ज्ञात स्रोतों या चेक के जरिये मिलती है और केवल दो प्रतिशत ही 20,000 रुपये से कम के नकद दान के माध्यम से मिलता है। दो वॉल्यूम में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार भूमंडलीकरण के बाद रियल एस्टेट सेक्टर काले धन का सबसे बड़ा स्रोत है। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 78 प्रतिशत लेनदेन काले धन के रूप में होता है जबकि कोलकोता और बेंगलुरु में यह दर 50 प्रतिशत के आसपास है। रिपोर्ट के मुताबिक रियल एस्टेट के बाद सोना, हीरे और आभूषण काले धन के बड़े स्रोत हैं। सोने में काले धन का आकलन थोड़ा मुश्किल है क्योंकि यह अंदाजा लगाना कठिन है कि लोगों के घरों में जेवरात या ठोस रूप में कितना सोना है। हीरे के कारोबार और बाजार में भी करीब करीब यही स्थिति है। हवाला के जरिये सोने और हीरे का काला कारोबार होता है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि कई बार मुख्यधारा के बैंक भी हवाला के जरिये सोने के काले कारोबार का हिस्सा बन जाते हैं, जिसे रोकने का कोई तरीका नहीं है।
शेयर बाजार में डब्बा कारोबार भी काली कमाई का बहुत बड़ा जरिया है। सेबी और रिजर्व बैंक जैसी नियामक संस्थाओं के अनेक प्रयास के बाद भी इस पर रोक मुमकिन नहीं हो पाई है। खनन क्षेत्र में भी सालाना दस प्रतिशत काला कारोबार होता है। कर्नाटक और गोवा के खनन क्षेत्र में सामने आये घोटालों से पता चला है कि लौह अयस्क बिना हिसाब किताब के सीधे निर्यात कर दिए गए। रिपोर्ट में कहा गया कि विदेशी व्यापार में आयात और निर्यात दोनों क्षेत्रों में कम और ज्यादा आंकड़े दिखाकर बड़े पैमाने पर कालेधन का घपला किया जाता है। रिपोर्ट में इसे मिस इन्वायसिंग या बिल में घपलेबाजी कहा गया है। वर्ष 2000 से लेकर 2009 तक बिल में घपलेबाजी के तहत 100 बिलियन डॉलर अवैध रूप से विदेश भेजा गया। भारत से करीब 42 बिलियन डॉलर काले धन के रूप में स्विट्जरलैंड भेजे गए। जबकि चीन में 11 अरब डॉलर और अमेरीका में 9 अरब डॉलर भारत से भेजे गए।
रिपोर्ट कहती है कि उदारवादी अर्थव्यस्था के वैश्विक स्वरूप के कारण मिस इन्वायसिंग की गुंजाइश काफी बढ़ गई है। करीब 20 साल पहले जीडीपी का 15 फीसदी ही आयात और निर्यात का कारोबार था जो अब बढ़कर जीडीपी का 50 फीसदी हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार निजी शिक्षण संस्थाओं जैसे मेडिकल, डेंटल और इंजीनियरिंग कॉलेज भी काले धन को खपाने का बड़ा क्षेत्र हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा लगभग 6000 करोड़ केपिटेशन फीस वसूली गई।