केंद्र सरकार ने पूर्व सैनिकों की बहुप्रतीक्षित मांग ‘वन रैंक वन पेंशन’ लागू तो कर दिया है, लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का आरोप है कि सरकार इसे सही तरीके से लागू करने में विफल रही है। इस मुद्दे पर कई पूर्व सैनिक जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे हैं। हालांकि, सेना के ज्यादातर पूर्व सैनिक मौजूदा ओआरओपी से संतुष्ट हैं। ओआरओपी के नाम पर हो रही राजनीति और आंदोलन के मुद्दे पर संध्या द्विवेदी के सवालों का जवाब दे रहे हैं ‘इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट’ के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल राज कादयान…
केंद्र सरकार कह रही है कि उसने ओआरओपी यानी वन रैंक वन पेंशन को सही तरीके से लागू किया है। आप इससे कितना इत्तेफाक रखते हैं?
देखिए, यह मसला काफी पुराना है। हम लोग पिछले बयालीस वर्षों से पूर्व सैनिकों की यह लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार ने वाकई ओआरओपी लागू किया है, लेकिन यह उम्मीद रखना कि यह स्कीम एक बार में सौ फीसद लागू हो जाएगी बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं है। केंद्र सरकार ने इसे लागू किया है, लेकिन इसमें कुछ कमियां जरूर हैं। मैं समझता हूं कि आने वाले समय में इसे भी दुरुस्त कर लिया जाएगा। हम लोगों को प्रधानमंत्री से काफी अपेक्षाएं हैं। उन्होंने जो वादा पूर्व सैनिकों से किया है, बेशक उसे पूरा करेंगे। दुख केवल इतना है कि वन रैंक वन पेंशन को लेकर राजनीति की जा रही है। मैं पूर्व सैनिकों से मिलता रहता हूं, वे लोग इससे संतुष्ट हैं। ओआरओपी में कुछ विसंगतियां हैं, लेकिन उसे सरकार दूर करेगी।
आपने कहा ओआरओपी में कुछ खामियां हैं अगर हैं तो वह क्या हैं?
कोश्यारी कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, समान अवधि की सेवा करके समान रैंक से रिटायर होने वाले सैन्य कर्मियों को एक समान पेंशन दी जाएगी। चाहे उनकी रिटायरमेंट की तारीख कुछ भी हो। पुराने पेंशनरों को पेंशन की दरों में भविष्य में होने वाली किसी भी वृद्धि का लाभ स्वत: होगा। हम लोग कोश्यारी कमेटी की सिफारिशों पर अमल करते हैं। इन सिफारिशों के तहत जब भी वेतन वृद्धि होगी, उसका लाभ पेंशनरों को मिलेगा। छठे वेतन आयोग के बाद हर साल तीन फीसद वेतन बढ़ जाता है। कोश्यारी कमेटी के अनुसार, इस पेंशन की बढ़ोतरी का फायदा हर साल मिलना चाहिए। लेकिन पेंशनरों को सालाना इसका लाभ नहीं मिलता है। पेंशनर चाहते हैं कि वेतन की तरह ही उनकी पेंशन में हर साल वृद्धि हो। सरकार कह रही है कि वह हर पांच साल में पेंशन की समीक्षा कर सकती है। हमने सरकार से कहा था कि 2013 जिसे आधार वर्ष चुना गया है, उसमें जितने भी लोग एक पद से रिटायर हुए हों, उनमें जिसे अधिकतम पेंशन मिली हो आप उसे आधार मानकर पुराने हवलदार को उसके बराबर पेंशन दीजिए। लेकिन सरकार ने हमारी इस मांग को अस्वीकार कर दिया। सरकार ने पेंशन तय करने का अपना फॉर्मूला निकाला है। इस नए फार्मूले के तहत 2013 में रिटायर होने वालों को अधिकतम पेंशन देने के बजाय सरकार ने औसत निकाला है। नतीजतन इससे एक रैंक मेनी पेंशन वाले हालात पैदा हो गए हैं। इसके अलावा, 2014 की बजाय 2013 को आधार वर्ष मानना और पेंशन 1 अप्रैल 2014 की बजाय 1 जुलाई 2014 से लागू करना समझ से परे है। फिर भी यह इतना बड़ा मसला नहीं है, जिससे ओआरओपी को निष्प्रभावी मान लिया जाए।अगर कांग्रेस सरकार की नीयत सही रहती तो मौजूदा एनडीए सरकार को इस मामले में दखल क्यों देना पड़ता? ओआरओपी की मांग साल 1982 से हो रही है। पूर्व की सरकारों ने इसे लागू नहीं किया। वर्ष 2008 में हमने इंडियन एक्स सर्विस मैन मूवमेंट नाम की एक संस्था बनाई थी। साल 2010 में हम लोग राहुल गांधी से भी मिले और उनसे वन रैंक वन पेंशन के मुद्दे पर यूपीए सरकार से मदद करने की मांग रखी। उन्होंने साफ कह दिया था कि वह कुछ नहीं कर सकते। अब राहुल गांधी सैनिकों से हमदर्दी जता रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस और दूसरी पार्टियां ओआरओपी के मुद्दे पर राजनीति कर रही है। कांग्रेस ने चुनावी फायदे के लिए 17 फरवरी, 2014 को ओआरओपी के नाम पर 500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया। गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस ने इसका ऐलान लोकसभा चुनाव से दो महीने पहले किया। केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद ओआरओपी के लिए 1000 करोड़ रुपये का बजट घोषित किया गया।
आप कह रहे हैं कि नब्बे फीसद पूर्व सैनिकों को ओआरओपी मिल चुकी है तो फिर जंतर-मंतर पर धरना क्यों जारी है?
मेरी जानकारी के अनुसार ज्यादातर पूर्व सैनिकों को ओआरओपी का लाभ मिल रहा है। अगर पच्चीस लाख पूर्व सैनिकों में महज तीस-पैंतीस लोग आंदोलन कर रहे हैं तो इसके पीछे की राजनीति समझी जा सकती है। इन लोगों ने जून 2015 में आंदोलन शुरू किया जबकि नवंबर 2015 में ओआरओपी का नोटिफिकेशन जारी हो गया। जो कमियां थीं वह अधिसूचना के बाद ही सामने आर्इं। बगैर किसी इंतजार के यह आंदोलन क्यों शुरू किया गया? इस आंदोलन के पीछे एक राजनीतिक मंशा है। हमने 2008 से 2014 तक आंदोलन चलाया, उस वक्त किसी नेता को जंतर-मंतर नहीं आने दिया। लेकिन अब आंदोलनकारियों ने फौजी जनता पार्टी नामक एक दल बना लिया है। हमने अपने आंदोलन के समय करीब 22,000 मैडल लौटाए थे लेकिन अब वही पूर्व सैनिक अपने मैडल वापस मांग रहे हैं। इस बाबत सरकार को कई पत्र भी लिखे गए हैं कि पूर्व सैनिकों के मैडल लौटाए जाएं। अगर पूर्व सैनिक ओआरओपी से संतुष्ट नहीं होते तो वे अपना मैडल क्यों वापस मांगते? जंतर-मंतर के धरने पर जो लीडर बने हुए हैं उनमें एक हैं मेजर जनरल सतबीर सिंह। सतबीर सिंह खुद अंतरिम जमानत पर हैं। हमारी संस्था ने वाइस चेयरमैन जनरल सतबीर सिंह, जनरल सेक्रेटरी वीके गांधी और विंग कमांडर सीके शर्मा के खिलाफ फंड के गबन की रिपोर्ट की थी। सीके शर्मा को कुछ दिन जेल में भी रखा गया लेकिन वीके गांधी और सतबीर सिंह अभी अंतरिम जमानत पर हैं। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने आदेश में जनरल सतबीर को संस्था का अध्यक्ष नहीं माना लेकिन फिर वह स्वयं को अध्यक्ष करार दे रहे हैं। इस संबंध में उनके खिलाफ मानहानि का मामला भी दर्ज कराया गया है।
इस आंदोलन के लिए काफी चंदा मिला है लेकिन उसमें काफी गड़बड़ियां हुई हैं। क्या आप इससे वाकिफ हैं?
जी बिल्कुल, आंदोलन के नाम पर मिले चंदे का गलत इस्तेमाल हुआ है। शिकायत के बाद उनके बैंक अकाउंट को ब्लॉक कर दिया गया है। लोगों से नगद चंदा मांगने का आरोप मेरे उपर लगाया दिया गया। करोड़ों रुपये का चंदा हमारी संस्था आईइएसएम के नाम पर लिया गया। उसके बाद संस्था की गवर्निंग बॉडी ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें सोसायटी वेलफेयर के नाम पर मिले चंदे का ब्योरा देने को कहा गया। अभी तक चंदे का कोई हिसाब नहीं दिया गया है। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि आंदोलन किन लोगों के हाथों में है।
कई पूर्व सैनिकों का आरोप है कि उनके पेंशन की राशि में कुछ हजार रुपयों की कमी है, रामकिशन भी उनमें शामिल थे। आप इसे किसकी लापरवाही मानते हैं?
हर गलतियों के लिए अकेले सरकार दोषी नहीं है। देश की व्यवस्था भी इसके लिए जिम्मेदार है। पेंशन से संबंधित कई गड़बड़ियों के लिए बैंक भी उत्तरदायी हैं। बैंकों में दस्तावेजों से जुड़ी प्रक्रिया बेहद जटिल है। बैंकों के कामकाज को सरल बनाने की आवश्यकता है। 24 अक्टूबर को रक्षा मंत्री के साथ हुई बैठक में हमने इस बाबत उनका ध्यान आकृष्ट कराया था। साल 2004 में एक्स सर्विस वेलफेयर सेल का गठन किया गया था। अफसोस इसमें एक भी पूर्व सैनिक नहीं हैं। मैंने रक्षा मंत्री को सुझाव दिया कि इस सेल में डायरेक्टर लेवल पर किसी पूर्व सैनिक को शामिल करना चाहिए जो सैनिकों की समस्याओं को समझ सके।