वीरेंद्र नाथ भट्ट।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में गैर भाजपा दल अब मुस्लिम वोटों के लिए एक दूसरे को टक्कर देने की तैयारी में हैं। पारिवारिक झगडेÞ से बदरंग अपना आभामंडल खो चुकी समाजवादी पार्टी को भरोसा है कि बिहार की तर्ज पर महागठबंधन मॉडल अपनाकर वह न केवल उससे निराश मुसलमानों को अपने पाले में वापस खींच सकती है बल्कि सत्ता में दोबारा लौट सकती है। समाजवादी पार्टी में मचे घमासान से उत्साहित बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को पक्का भरोसा है कि उनका दल ही मुसलमानों के लिए सबसे सशक्त विकल्प है। मायावती ने प्रदेश विधानसभा की 403 सीटों में अब तक 128 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार तय किए हैं।
उधर समाजवादी पार्टी के प्रथम परिवार यानी यादव परिवार में लगभग दो महीने चाचा भतीजे की उठापटक के बाद पार्टी के नेता का प्रश्न तय होने के बाद अब परिवार के अन्दर सत्ता संघर्ष का अगला चरण गठबंधन के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। भतीजे अखिलेश से मात खा चुके चाचा शिवपाल और मुख्यमंत्री एक बार फिर आमने सामने हैं।
उधर मुलायम सिंह की मुसलमानों को समर्थन की चिंता सता रही है। मुलायम सिंह कह चुके हैं कि मुसलमानों के समर्थन के बिना सत्ता में वापसी मुश्किल है। पांच नवम्बर को पार्टी के रजत जयंती समारोह में बोलते बोलते मुलायम यह भी कह गए कि ‘मुसलमानों पर पूरे देश में बहुत अत्याचार हो रहा है और उन पर इतना जुल्म हो रहा है जो हमारी कल्पना से बाहर है। उत्तर प्रदेश में हमारे दल की सरकार है यहां ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन उत्तर प्रदेश में भी कुछ घटनाएं हुई हैं और मैं मुख्यमंत्री से कहूंगा कि इस पर तुरंत ध्यान दें। सभा में मौजूद लोग चौंके कि मुलायम सिंह तो पिछले 25 वर्ष की पार्टी की उपलब्धियों और समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया के बारे में बोल रहे थे, बीच में मुसलमान कहां से आ गया। लेकिन वो सब तो पेशबंदी था। मुलायम सिंह असली बात तो अंत में बोले।
पार्टी के सबसे प्रमुख मुस्लिम नेता मुहम्मद आजम खान पहले ही कह चुके हैं, ‘इस समय प्रदेश और देश की राजनीति में सबसे ज्यादा मुसलमान परेशान हैं। उनका टूटता बिखरता सपना सबके सामने है।’ समाजवादी पार्टी से दूर हो रहे मुसलमानों के रुझान से परेशान आजम खान ने कहा, ‘बिना कुछ किए सभी लोगों ने मुस्लिम वोटों को अपनी जागीर समझ रखा है। ना तो मुसलमान पानी का बुलबुला है और ना ही थाली का बैंगन जिसे कहीं भी लुढ़का दिया जाय, फैसला अवश्य ही ऐसा होगा जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार न बन सके।’ आजम खान ने यह भी दावा किया कि ‘मुसलमानों का दानिश्वर वर्ग और आम मुसलमान अपना भला और बुरा भली प्रकार से जानते हैं। मुसलमान मुद्दों पर तथा मजबूत राजनीतिक पकड़ वाले दल या व्यक्तित्व की ओर भी अपनी नजर जमाये हुए हैं।’
मुसलमानों पर अत्याचार के मुलायम सिंह के बयान से मुसलमानों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। दारुल उलूम देवबंद, सहारनपुर के पूर्व मोहतमिम मौलाना गुलाम वास्तानवी ने कहा, ‘मुलायम सिंह का यह बयान उनके खिलाफ जाएगा। मुझे तो हैरत होती है कि सरकार का पांच साल का टर्म लगभग पूरा हो रहा है और मुलायम सिंह को अब पता चला है कि मुसलमानों पर जुल्म हो रहा है। आखिर मुजफ्फरनगर में दंगे के समय यूपी में किस पार्टी की सरकार थी और जो लाखों लोग दंगे से बेघरबार हो गए उनके लिए सरकार ने क्या किया?’ मौलाना ने कहा, ‘दादरी में अखलाक के कत्ल के वक़्त भी तो समाजवादी पार्टी की ही सरकार थी। अब वक़्त बदल गया है। वोटर बहुत समझदार हो गया है और वो हर सवाल का जवाब चाहता है। इस बार किसी के कहने या अपील पर किसी खास दल को वोट नहीं देने वाला।’
एक समय मुलायम सिंह के करीबी रह चुके मुस्लिम पोलिटिकल कांफ्रेंस के अध्यक्ष तस्लीम रहमानी ने कहा, ‘मुलायम सिंह के इस बयान से साफ है कि मुलायम सिंह को इस बात का अहसास है कि उनका मुस्लिम वोट बैंक बहुजन समाज पार्टी की ओर खिसक सकता है। महागठबंधन की बात केवल मुस्लिम वोट को बचाने और सत्ता विरोधी रुझान से मुकाबला करने के लिए है। महागठबंधन यदि बन भी जाता है तो उत्तर प्रदेश में उसका बहुत मतलब नहीं होगा क्योंकि लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल और नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) का प्रदेश में कोई वजूद नहीं है। केवल अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल का पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में प्रभाव है।’ रहमानी ने कहा, ‘ यदि कांग्रेस भी गठबंधन में शामिल हो जाती है तो समाजवादी पार्टी की किस्मत में बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में वजूद लगभग खत्म हो चुका है।’
जमाते इस्लामी के राष्ट्रीय सेके्रटरी जनरल सलीम इंजीनियर के अनुसार, ‘मुसलमान सबको परख चुका है। बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद मुसलमानों ने कांग्रेस को खारिज कर दिया था और उसके बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को वोट दे रहे थे। 2007 में समाजवादी पार्टी से तंग आकर मायावती को वोट दिया था तो उनके जमाने में तमाम बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को आतंकवाद के फर्जी इल्जाम में जेल में ठूंस दिया गया। 2012 में समाजवादी पार्टी ने जेलों में बंद मुस्लिम नौजवानों को रिहा करने का वादा किया था। वादा तो पूरा नहीं हुआ उल्टे मुजफ्फरनगर में इतिहास का सबसे बड़ा दंगा हो गया। अब लगता है कि मुसलमान एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी की ओर बड़ी संख्या में जा सकते हैं और यदि मुलायम सिंह का महागठबंधन मुसलमानों का भरोसा जीत सका तो कुछ वोट उधर भी जा सकता है।’
मुस्लिम वोट बंटने के सवाल पर सलीम ने कहा, ‘बंटने का खतरा तो है पर किसी को वोट देने के बाद भी उसका वोट दूसरे (भाजपा और बहुजन समाज पार्टी का संभावित गठजोड़) दल में मिल भी तो सकता है।’
महागठबंधन पर ‘गृह-युद्ध’
समाजवादी पार्टी का गृह युद्ध अब गठबंधन के मोर्चे पर लड़ा जा रहा है। मुलायम सिंह और उनके भाई शिवपाल यादव गठबंधन के पक्ष में हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश गठबंधन नाम के नए सर्कस में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं। चाचा शिवपाल यादव के साथ लंबे संघर्ष में लगभग निर्णायक जीत हासिल कर चुके अखिलेश यादव पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। लेकिन अभी यह तय होना शेष है कि यदि महागठबंधन को 2017 के चुनाव में सफलता मिलती है तो क्या अखिलेश उस गठजोड़ के भी नेता होंगे। अखिलेश को अंदेशा है कि महागठबंधन की जीत की स्थिति में उनके चाचा शिवपाल यादव के अतिरिक्त अजित सिंह के पुत्र और भूतपूर्व सांसद जयंत चौधरी भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ भी अखिलेश सहज महसूस नहीं करते क्योंकि उनका बैठना उठना अमर सिंह के साथ है जो अखिलेश के मुताबिक ‘आउटसाइडर’ यानी बाहरी आदमी हैं। हालांकि अपनी राजनीति में संतुलन बनाए रखते हुए अखिलेश यह कहना नहीं भूलते कि गठबंधन के लिए उनके दरवाजे खुले हुए हैं। इसीलिए लालू यादव के अनुरोध पर वे प्रशांत किशोर से मिलने को तैयार हो गए। दोनों में क्या बात हुई यह तो पता नहीं पर कांग्रेस ने जरूर कहा कि प्रशांत किशोर गठबंधन की बातचीत के लिए अधिकृत नहीं हैं।
मुलायम सिंह पार्टी के नेताओं और परिवार की बैठक में स्पष्ट कह चुके हैं, ‘यदि 2017 में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में आने से नहीं रोका गया तो अगले दस वर्ष तक उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी का भविष्य धूमिल है और अखिलेश की राजनीतिक डगर बहुत कठिन होने वाली है। इसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा और पार्टी को होने वाले नुकसान को रोकना बहुत मुश्किल होगा जिसके कारण राष्ट्रीय राजनीति में समाजवादी पार्टी की भूमिका पर संकट आएगा। इस संकट से उबरने का एकमात्र उपाय है कांग्रेस समेत अन्य दलों से गठबंधन।’ लेकिन उनके पुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता से भिन्न राय रखते हैं। अखिलेश को भरोसा है कि उनके द्वारा किए गए विकास कार्यांे के बलबूते पार्टी को अकेले ही चुनाव के मैदान में जाना चाहिए और जनता का भरपूर समर्थन मिलेगा। मुलायम सिंह सहित पार्टी के तमाम नेता अखिलेश की राय से सहमत नहीं हैं।
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश की राजनीति में चार प्रतिशत वोट से तीन सौ से अधिक सीटों का फैसला होता है। 2012 में लैपटॉप, बेरोजगारी भत्ता, किसानों की कर्ज माफी और बहुजन समाज पार्टी की तत्कालीन मायावती सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी के चलते समाजवादी पार्टी सत्ता में तो आ गई लेकिन एक नए कीर्तिमान के साथ। भारत में अब तक सबसे कम 29.1 प्रतिशत वोट पाकर भी हमें न केवल विधानसभा में बहुमत मिला बल्कि 203 के बहुमत संख्या से अधिक हमें 226 सीटें मिलीं। सपा नेता ने कहा, ‘इस बार स्मार्ट फोन वो भी चुनाव के बाद देने के अलावा हमारे पास कोई नई बात नहीं है और सबसे ऊपर पिछले दो महीने से परिवार का झगड़ा देश और प्रदेश के मीडिया में सुर्खियों में छाया रहा है। हम भले आकलन करने से कतरा रहे हों लेकिन इससे कौन इनकार कर सकता है कि इसका नुकसान नहीं होगा।’
इस सबके बीच उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन को लेकर सियासत तेज हो गई है। महागठबंधन की कवायद के बीच कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर मुलायम सिंह से कई दौर की बैठक के बाद अखिलेश यादव से भी मुलाकात कर चुके हैं। इससे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ आरएलडी, आरजेडी और तमाम दलों के महागठबंधन की अटकलें तेज हो गई हैं।
हालांकि एसपी अभी इस मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोल रही है। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव भी महागठबंधन के बारे में सवाल के जवाब में केवल इतना कहते हैं, ‘जब गठजोड़ हो जाएगा, तभी इस बारे में कोई बात की जाएगी।’ 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बने महागठबंधन में एसपी अहम घटक था। उसका नेतृत्व एसपी मुखिया मुलायम सिंह यादव को सौंपा गया था, लेकिन चुनाव से ऐन पहले अपेक्षित संख्या में सीटें न मिलने का हवाला देते हुए एसपी पीछे हट गई थी। लेकिन हाल ही में राम गोपाल यादव के पार्टी से निष्कासन के बाद शिवपाल यादव ने आरोप लगाया था कि बिहार में गठबंधन राम गोपाल यादव ने भाजपा के इशारे पर तोड़ा था क्योंकि वे और उनका सांसद पुत्र अक्षय यादव नोएडा के यादव सिंह मामले में सीबीआई की जांच में फंसे हैं। उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के महागठबंधन ने बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को शिकस्त देकर सरकार बनाई थी।
माया का हमला
मायावती समाजवादी पार्टी पर हमला करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देतीं। गठबंधन की अटकलों पर मायावती ने कहा, ‘इसका सीधा मतलब है कि समाजवादी पार्टी कमजोर हो चुकी है। गठबंधन तो समाजवादी पार्टी की मजबूरी है। समाजवादी पार्टी गठबंधन चाहती है क्योंकि वह पूरी तरह से कमजोर हो चुकी है।’ मायावती ने कहा, ‘समाजवादी पार्टी का सबसे बड़ा वोट आधार यादव हैं। अब इसका बंटना तय है। ओबीसी तबके में ये मैसेज जा चुका है कि वे बंट चुके हैं। मुसलमानों ने फैसला कर लिया है कि वो उसी पार्टी को वोट देंगे जो बीजेपी को हराएगी। इसका सीधा मतलब है कि बीएसपी को फायदा मिलेगा।’ समाजवादी पार्टी के साथ साथ कांग्रेस पर धावा बोलते हुए मायावती ने कहा कि कांग्रेस का राज्य में कोई आधार नहीं बचा है। मायावती का आरोप है कि समाजवादी पार्टी की सरकार राज्य में कोई भी नया काम करने में विफल रही है और ऊपर से उनके जरिए किए गए कामों को ही एक नया नाम देकर आगे बढ़ा रही है। उन्होंने कहा,‘हमने महामाया पेंशन योजना की शुरुआत की थी और अखिलेश सरकार इसे एक नए नाम समाजवादी पेंशन योजना के साथ चला रही है।
विधानसभा चुनाव को लेकर मायावती ने स्पष्ट कहा कि जनता बीएसपी को ही वोट देगी क्योंकि बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों ही सांप्रदायिक राजनीति करते हैं। बीजेपी और समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाते हुए मायावती ने कहा कि अखिलेश सरकार के दौरान साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे हुए। दंगे के लिए समाजवादी पार्टी और बीजेपी दोनों जिम्मेदार हैं। जब हमारी सरकार थी तब किसी भी तरह का सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। मायावती ने साफ किया वो सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय के सिद्धांत पर राजनीति करती हैं। कुछ लोग पार्टी को छोड़कर इधर-उधर चले गए हैं लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
करीबी मुस्लिम नेता के बेटे को बनाया चेहरा
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती मुस्लिमों को अपने साथ लाने के लिए पूरा जोर लगा रही हैं। मुसलमानों के वोट पाने को मायावती ने अपने करीबी मुस्लिम नेता के बेटे को चेहरा बनाया है। इसके लिए वह पार्टी के मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बेटे अफजल सिद्दीकी की मदद ले रही हैं। बहुजन समाज पार्टी केवल वर्तमान में ही जीती है और यहां यह नहीं पता होता की फलां नेता कल कहां होगा। लेकिन नसीमुद्दीन सिद्दीकी एक अपवाद हैं। दो दशक से भी अधिक समय से मायावती के विश्वस्त हैं और बहुजन समाज पार्टी के सबसे लम्बे समय से राष्ट्रीय महासचिव हैं। वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नेता विपक्ष हैं।
28 साल के अफजल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा के प्रचार में लगे हुए हैं। वे मुजफ्फरनगर दंगों और दादरी में अखलाक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या जैसे मुद्दों के जरिए सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी पर हमला बोलते हैं। अपनी रैलियों में वे कहते हैं, ‘समाजवादियों का वास्तविक चेहरा सामने आ गया है। उनके पास मत जाओ, ‘ना भूले हैं ना भूलने देंगे’। आप लोगों को लव जिहाद और गौहत्या के नाम पर पीटा गया, अब एक होने का समय है। यह आपकी मौजूदगी की लड़ाई है। अफजल चार साल पहले मायावती के साथ आये थे। 2012 विधानसभा चुनावों में मायावती की रैलियों की जिम्मेदारी उनके पास ही थी। हालांकि बसपा को उस समय हार झेलनी पड़ी थी लेकिन अफजल के सांगठनिक कौशल से मायावती काफी प्रभावित हुर्इं। अफजल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के लिए पश्चिम उत्तर प्रदेश में प्रचार किया था और आगरा जिले की फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था। चुनाव तो वो हार गए थे लेकिन पार्टी का वोट लगभग एक लाख बढ़ा था। 2012 में अफजल नोएडा के एक कॉलेज में लॉ (कानून) के छात्र थे। इस चुनाव में उनके पास आगरा, अलीगढ, बरेली , मुरादाबाद , मेरठ, सहारनपुर मंडलों की जिम्मेदारी है जहां लगभग 140 विधान सभा सीटें हैं जहां मुस्लिम मतों की संख्या 15 से 45 प्रतिशत तक है।