गुलाम चिश्ती।
पूर्वोत्तर भारत के राज्यों असम, मेघालय,अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम और सिक्किम पर नोटबंदी का व्यापक असर पड़ा है। इस मामले में यहां के लोगों की अलग-अलग राय है। उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर भारत की सीमाएं बांग्लादेश, भूटान, चीन और म्यामार से लगती हैं, वहीं यहां के लोगों के आसियान देशों के लोगों के साथ भी खून के रिश्ते रहे हैं। भारत-बांग्लादेश सीमा से चोरी छिपे भारी मात्रा में जाली नोट भारत पहुंचते हैं। इस क्षेत्र में कार्यरत केंद्रीय खुफिया सूत्रों का कहना है कि भले ही भारतीय मुद्रा के नकली नोट पाकिस्तान में छपते हों, परंतु उनका भारत में बड़े पैमाने पर प्रवेश भारत-बांग्लादेश सीमा यानी पश्चिम बंगाल और असम के रास्ते होता है। यहां सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) अपने अभियानों में अकसर बड़े पैमाने पर तस्करों से नकली भारतीय मुद्रा जब्त करते हैं। दूसरी ओर भारत-बांग्लादेश सीमा के जलमार्ग से पशुओं को बांग्लादेश भेजने वाले तस्कर इन नकली नोटों के सबसे बड़े वाहक हैं। भारत-भूटान सीमा पर स्थित कामरूप (ग्रामीण) के रंगिया और इसके आसपास के इलाकों में भूटानी रुपये खूब चलते हैं, परंतु नोटबंदी के कारण विदेशी मुद्राओं को बदलने की प्रक्रिया भी कुछ हद तक प्रभावित हुई है। देश के अन्य भागों की तरह यहां भी नोटबंदी से आम लोग परेशानी के बावजूद खुश हैं, वहीं व्यापारियों, ठेकेदारों, अधिकारियों, रियल इस्टेट से जुड़े लोगों, आतंकी संगठनों और तस्करों की परेशानी बढ़ गई है।
बैंकों और एटीएम से छोटे नोट नहीं मिलने से खुदरा व्यवसायी काफी चिंतित हैं। छुट्टे नोट के अभाव में उनका व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। गुवाहाटी के व्यवसायी किशन जायसवाल का कहना है, ‘दो सौ रुपये का सामान खरीदने वाला भी दो हजार का नोट लेकर आ रहा है। ऐेसे में हम चाहकर भी ग्राहक को सामान देने में असमर्थ हैं।’ गुवाहाटी के फैंसी बाजार के छोटे व्यापारी भी छुट्टे नोट का रोना रो रहे हैं। यहां के किराना व्यवसायी संजय अग्रवाल ने ओपिनियम पोस्ट को बताया, ‘मोदी जी भले ही काले धन को देश के खजाने में जमा कराने में सफल हो जाएं, परंतु व्यापार पर पूरी तरह मंदी छा गई है।’ कुछ छोटे व्यवसायी पुराने नोट लेकर अपना व्यवसाय चला रहे हैं। गद्दा व्यवसायी रहमतुल्लाह ने कहा, ‘यदि हम पुराने नोट नहीं लें तो इस सीजन में हमारा बंटाधार हो जाएगा। इसलिए हम पुराने नोट लेने में कोई परहेज नहीं कर रहे हैं। हमें दिसंबर महीने के अंतिम सप्ताह से पहले तक पुराने नोट लेने में कोई परेशानी नहीं है।’
जानकार बताते हैं कि राज्य की पूर्व गोगोई सरकार के दौरान सरकारी अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर काले धन को अर्जित किया। इसके उदाहरण पूर्व में आयकर की छापेमारी के दौरान मिल चुके हैं। हाल ही में गिरफ्तार असम लोक सेवा आयोग (एपीएससी) के अध्यक्ष राकेश पाल की गिरफ्तारी से स्पष्ट हो गया कि सत्ता के द्वार पर बैठे अधिकारियों ने किस स्तर पर काले धन की कमाई की और बेनामी संपत्ति बनाई। इसके पूर्व गिरफ्तार एक वन अधिकारी के आलमारी से लेकर बिछौने तक में रुपयों की बरामदगी हुई थी। परंतु नोटबंदी के बाद ऐसे काले धन रखने वालों के होश उड़ गए। कालाबाजारी करने वालों ने अपने पैसों को बैंक में जमा कराने की जगह तालाबों और सड़कों पर फेंकना शुरू कर दिया। नगर के हातीगांव में किसी ने करोड़ों रुपये सड़क पर काटकर फेंक दिए ताकि कोई व्यक्ति इसका उपयोग न कर सके। मेघालय के कई व्यापारियों पर आरोप है कि उन्होंने अपने नौकरों के आई कार्ड से कई- कई बार पैसे बदलवाए, उसके बदले वे उन्हें प्रत्येक खेप 100-100 रुपये देते थे। नगालैंड की व्यापारिक राजधानी डीमापुर से भी एक व्यापारी के पास से 5.5 करोड़ जब्त किए जाने की खबर है। रियल इस्टेट से जुड़े एस.शर्मा ने ओपिनियन पोस्ट को बताया, ‘नोटबंदी का सबसे खराब असर पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ने वाला है। इससे रियल इस्टेट तबाह हो गया है। जमीन की कीमत आधी हो जाने की संभावना है।’
दूसरी ओर इस नोटबंदी से बाजार में सात लाख करोड़ से दस लाख करोड़ तक रुपयों का बहाव रुक जाएगा। ऐसे में इसका सीधा असर होटल, मीडिया, रियल इस्टेट और मनोरंजन से जुड़े अन्य उद्योग धंधों पर पड़ेगा। ऐसे में पूर्वोत्तर भारत के राज्यों को चाहिए कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए वे केंद्र सरकार से विशेष पैकेज की मांग करें। क्योंकि नोटबंदी के कारण राज्य सरकारों की आमदनी में कमी आना स्वाभाविक है। उधर, नोटबंदी को लेकर पक्ष-विपक्ष में राजनीति भी गर्म है। उपचुनाव के परिणाम भाजपा के पक्ष में जाने पर मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का कहना है कि उपचुनाव में भाजपा की जीत में नोटबंदी का काफी असर रहा है। राज्य के लोगों ने भाजपा को वोट देकर पीएम की इस मुहिम पर अपनी मुहर लगा दी है। दूसरी ओर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का कहना है कि इस मुहिम से कालाबाजारी घर में सो रहे हैं, जबकि आम लोग लाइन में खड़े होने को बाध्य हैं। गोगोई ने इसे मोदी की आर्थिक तानाशाही की संज्ञा देते हुए कहा कि मोदी ने अपनी विफलता छिपाने और यूपी चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित कराने के लिए ऐसा फैसला लिया है। कुल मिलाकर अभी तो लोगों के बीच खट्टे- मीठे दोनों अनुभव सुनने को मिल रहे हैं। परिणाम फिलवक्त भविष्य के गर्भ में है।