संध्या द्विवेदी
मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी! मगर अब मियां बीवी राजी न भी हों तब भी काजी कुछ नहीं कर पाएगा। करेगा! मद्रास हाई कोर्ट ने 11 जनवरी को मुस्लिम औरतों को राहत देने वाला एक बड़ा अंतरिम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा ‘सेक्शन-4 काजी एक्ट,1980 के अनुसार काजी तलाक का सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकते हैं। इतना ही नहीं इस फैसले ने अब तक काजियों द्वारा जारी सारे सर्टिफिकेट भी रद्द कर दिए। हालांकि अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि यह फैसला तमिलनाडु में लागू होगा या फिर पूरे देश में इसका कुछ प्रभाव होगा।
वकील और सामाजिक कर्याकर्ता बदीर सैय्यीद की याचिका की सुनवाई के दौरान यह फैसला आया है। बदीर सैय्यीद ने बताया 1992 में उन्होंने तीन तलाक के मामले में याचिका डाली थी। जिसे तुरंत ही रद्द कर दिया गया था। 2013 में सैय्यीद ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका डाली। उनका कहना था कि तलाक के लिए सर्टिफिकेट पास करने का हक काजियों के पास नहीं होना चाहिए। अन्य धर्मों की औरतों की तरह ही मुस्लिम समुदाय की औरतों को तलाक का सर्टिफिकेट कोर्ट के द्वारा ही जारी होना चाहिए। सैय्यीद खुश हैं कि भले ही इस लड़ाई में भले ही ढाई दशक उन्हें लगे, लेकिन जीत उनकी हुई।
सुप्रीम कोर्ट की लॉयर चंद्रा राजन इस फैसले को एक प्रगतिवादी कदम मानती हैं। उन्होंने कहा काजियों का कोई कानूनी आधार नहीं जिससे कि वह तलाक के लिए सर्टिफिकेट जारी कर सकें। उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की संवैधानिकता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, इस संस्था के पास ऐसा कोई कानूनी आधार नहीं है जिससे वहा तलाक जैसे मसले पर अपना फैसला सुनाए और सर्टिफिकेट जारी करे। लॉयर चंद्रा राजन ने मुस्लिम कानूनों में हुए सुधारों पर भी कई सवाल उठाए। उन्होंने कहा जहां हिंदू महिलाओं की शादी, तालाक, मेंटिनेंस जैसे मसलों में कई संशोधन हो चुके हैं वहां इस मुस्लिमों के महिला संबंधी कानून अभी तक जस के तस हैं। मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानों मसले में द मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन एंड राइट) एक्ट, 1986 में पास हुआ था। हालांकि यह एक्ट सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अपराध दंड संहिता की धारा 125 द्वारा दिए गए फैसले से बिल्कुल उलट था।