नोटबंदी के बाद हालात तेजी से बदले हैं। कालाधन को लेकर तमाम अनुमान थे लेकिन वह पैसा काफी मात्रा में बैंकिंग सिस्टम में लौट रहा है और यह क्रम जारी है। दूसरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट और खाद्य पदार्थांे में महंगाई बढ़ने की संभावना रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने जताई है। कैश की किल्लत बनी हुई है। एक वर्ग कहता है कि सरकार के सारे किए धरे पर पानी फिर गया है। वाकई ऐसा है या सच कुछ और भी है, ऐसी ही कुछ बातों पर बिजनेस स्टैंडर्ड के एडीटोरियल डायरेक्टर ए.के. भट्टाचार्य से बातचीत की अजय विद्युत ने।
डिमॉनिटाइजेशन के बाद अपेक्षा थी कि इन्फ्लेशन कम होगा। आरबीआई ने कहा है कि उस पर कोई बहुत असर नहीं पड़ेगा। वह चिंतित है कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट और फूड आइटम महंगे हो सकते हैं?
नोटबंदी से इन्फ्लेशन कम होगा यह मानना मेरे ख्याल से एकदम गलत एक्सपेक्टेशन था। दूसरी बात कि आरबीआई मुद्रास्फीति को लेकर जो भी अनुमान करता है वह दो तीन चीजों के ऊपर निर्भर करता है। उसका अनुमान है कि कच्चे तेल का दाम कुछ बढ़ सकता है। उसने ऐसा इसीलिए कहा है क्योंकि तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने उत्पादन घटाने का फैसला किया है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी जिससे हमें महंगा तेल खरीदना पड़ेगा। दूसरा अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (यूएसफेड) की ओर से ब्याज दरें बढ़ाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है तो डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया और कमजोर हो सकता है जिसका असर मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। अब देखना यह कि कच्चे तेल के दाम किस तरह से बढ़ते हैं क्योंकि उसी रूप में उनका असर खाद्य पदार्थों की कीमतों पर भी पड़ सकता है।
नोटबंदी के बाद पहली मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान आरबीआई ने कहा है कि अब तक साढ़े ग्यारह लाख करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं। अगर 15.4 लाख करोड़ लगभग पूरे रुपये वापस आ जाते हैं तो क्या इसे डिमॉनिटाइजेशन पॉलिसी की असफलता माना जाएगा।
नहीं…! हां, पहले यह आशंका थी कि शायद चार पांच लाख करोड़ रुपया वापस ही न आए। लोग यह समझकर उस पैसे को वापस न करें क्योंकि यह पैसा उनके पास कालाधन था। लेकिन अब इनकम टैक्स कानून में संशोधन हो चुका है जिसने ऐसे लोगों को एक मौका या अवसर और दे दिया कि वे अपने कालेधन को सरकार के सामने घोषित करें और टैक्स चुकाकर उसे सफेद करवा लें। तो उसी को देखकर लगता है कि शायद 15.4 लाख करोड़ रुपये के पूरे ही नोट वापस आ जाएं क्योंकि बहुत से लोग ऐसे होंगे जो पहले अपना पैसा वापस नहीं लाने की सोच रहे थे, अब वे उसको डिक्लेयर कर देंगे।
ऐसे में एक और सवाल उठता है कि क्या पूरी अर्थव्यवस्था में नकद कालाधन था ही नहीं?
यह मानना बिल्कुल गलत होगा कि अगर पूरा पैसा वापस हो जाए तो इसका मतलब हमारी अर्थव्यवस्था में कैश के रूप में कालाधन था ही नहीं। काफी कालाधन वापस आ रहा है और कानून के तहत आ रहा है क्योंकि लोगों को टैक्स चुकाकर उसे घोषित करने का एक और मौका दिया गया है।
क्या आपको लगता है कि प्रधानमंत्री की कैशलेस इकोनॉमी की ओर बढ़ने की घोषणा से यह मुद्दा डिमॉनिटाइजेशन से बड़ा हो गया है?
सरकार की तरफ से जिस तरह की घोषणाएं अब की जा रही हैं उनको देखकर तो मुझको यही लगता है कि ब्लैकमनी पर प्रहार करने से ज्यादा कैशलेस इकॉनमी की बात हो रही है। तो यह सच है कि फोकस तो बदल गया है। सरकार ने पहले जो बातें कही थीं कि तमाम नियमों में परिवर्तन करेंगे… रियल इस्टेट, पॉलिटिकल फंडिंग के नियम बदलने की बात की जा रही थी, बेनामी संपत्ति के कानून पर नोटिफिकेशन लाने की बात थी, इन बातों पर अब लगता है कि फिलहाल उतना फोकस नहीं है। कैशलेस इकॉनमी के ऊपर ही ज्यादा फोकस है। तस्वीर साफ है कि सरकार ने अपने इश्यू का फोकस बदल दिया है। पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि ब्लैकमनी के ऊपर भरपूर प्रहार करने की सरकार की ख्वाहिश पूरी तरह से खत्म हो गई है। अब तीस दिसंबर के बाद ही मालूम होगा कि सरकार का अगला एक्शन क्या होगा।
डिमॉनिटाइजेशन से अर्थव्यवस्था में जो अवरोध आया है उससे उबरने में कितना समय लगेगा?
रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के गवर्नर का कहना है कि इस वित्तीय वर्ष में विकास दर के बारे में पहले 7.6 फीसदी का अनुमान लगाया गया था लेकिन अब वह 7.1 फीसदी रह जाएगी। इस तरह विकास दर में आधा प्रतिशत की कमी आना तो वह खुद ही स्वीकार कर चुके हैं। यह देखना पड़ेगा कि अर्थव्यवस्था अपनी पुराने स्तर पर कब तक वापस आ पाती है। कैश की जो कमी है वह कितनी जल्दी पूरी होती है, उसके ऊपर ही यह निर्भर करेगा कि 2017-18 में देश की विकास दर क्या होगी। और जहां तक डिमॉनिटाइजेशन से अर्थव्यवस्था में आई दिक्कतों से उबरने की बात है तो मैं समझता हूं कि इसमें तीन से छह महीने का समय तो कम से कम लगेगा ही, इससे ज्यादा भी लग सकता है।