उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। तमाम सियासी पार्टियां मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में जुटी हैं। आपके मुताबिक इस बार राज्य के मुस्लिम मतदाता किस तरफ जाएंगे?
यही तो हमारे कौम (मुसलमानों) की बदनसीबी है कि कथित सेक्युलर पार्टियों ने हमें सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक समझा है। देश में कहीं भी चुनाव हो सियासी पार्टियां मुसलमानों की बेहतरी के लिए तमाम वादे करती हैं लेकिन मुसलमानों का वोट मिलने के बाद उन्हें हमारी कोई फिक्र नहीं होती। हालांकि अब लोग समझदार हो गए हैं और उनके झांसे में नहीं आएंगे। उत्तर प्रदेश के चुनाव में मुस्लिम मतदाता उन्हीं पार्टियों को वोट करेंगे जिनके एजेंडे में मुसलमानों की तरक्की से जुड़ी बातें होंगी। मेरे ख्याल से मुसलमानों को इस बार पार्टियों को नहीं बल्कि शख्सियत को वोट देना चाहिए। मुसलमानों को जाति, धर्म और राज्य से ऊपर उठकर राष्ट्र की फिक्र करनी चाहिए। उन्हें सियासी पार्टियों का वोट बैंक नहीं बनना चाहिए। वोट बैंक बनने की भारी कीमत इस देश के मुसलमानों ने चुकाई है।
समाजवादी पार्टी ने चुनाव घोषणा पत्र में मुसलमानों के लिए कई वादे किए हैं। आपका क्या कहना है?
मुसलमानों को पहले मुलायम सिंह यादव ने बेवकूफ बनाया और अब उनके बेटे अखिलेश यादव मुसलमानों को धोखा दे रहे हैं। कौन से मेनिफेस्टो की बात कर रहे हैं मुख्यमंत्री अखिलेश? उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि 2012 के मेनिफेस्टो में जो वादे मुसलमानों से किए गए थे उनमें कितने पूरे हुए। अगर अखिलेश यादव में हिम्मत है तो वह मुसलमानों की बेहतरी को लेकर अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी करें। लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करने से उनके चेहरे का नकाब उतर जाएगा। पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों से तीन प्रमुख वादे किए थे। पहला- उनकी आबादी के अनुसार आरक्षण। दूसरा- आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों की विधि सम्मत रिहाई। तीसरा- मुस्लिम बहुल इलाकों में नए स्कूल खोलना। इसके अलावा सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का पालन करते हुए तीस सरकारी महकमों में पचासी नई योजनाओं की शुरुआत करने की बात भी समाजवादी पार्टी ने कही थी। लेकिन बीते पांच वर्षों में कुछ नहीं हुआ। ऐसे में मुसलमान यह जानना चाहता है कि इस वादाखिलाफी के क्या मायने हैं? आज चुनाव होने हैं तो फिर नए वादे किए गए लेकिन उन पुराने वादों का क्या हुआ? मुसलमान अब जाहिल नहीं हैं और नई पीढ़ी के लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं। वे सब कुछ देख और समझ रहे हैं। मुजफ्फरनगर के दंगे में जिन मुसलमानों के घर और दुकानें तबाह हुई थीं उनके राहत और पुनर्वास के लिए समाजवादी सरकार ने कई घोषणाएं की थीं लेकिन इतने साल बाद भी नतीजा सिफर रहा। जब मुजफ्फरनगर दंगे की आग में जल रहा था तब मुलायम सिंह यादव जो खुद को मुसलमानों का रहबर बताते हैं, दस दिन बाद वहां पहुंचे थे।
माना जाता है कि मुसलमानों में मुलायम सिंह की लोकप्रियता अब भी बरकरार है। फिर आपके तेवर उनके प्रति इतने तल्ख क्यों है?
अब ये कहने की बातें रह गई हैं। मुलायम सिंह यादव जब अपनी पार्टी में सर्वमान्य नेता नहीं रह सके तो मुसलमानों के नेता वह भला कैसे हैं। उनकी क्या हैसियत रह गई है यह उनके बेटे और भाई ने साबित कर दिखाया। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव ने मुझसे मिलने के लिए तीन बार वक्त मांगा लेकिन मैंने मना कर दिया। चौथी बार वह जबरदस्ती मेरे पास आए और कहने लगे कि इमाम साहब आपकी नाराजगी से मैं परेशान हूं। मैंने उनसे कहा, आप ठहरे सियासी आदमी और मैं ठहरा मजहबी रहनुमा। खैर, मैंने उनसे दो टूक लफ्जों में कहा कि आप अगर वाकई मुसलमानों के लिए कुछ करना चाहते हैं तो सबसे पहले यह ऐलान करें कि उत्तर प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री मुसलमान होगा। आप ऐसा करेंगे तभी हमारा समर्थन आपको मिलेगा। लेकिन इस मसले पर मुलायम सिंह यादव खामोश रहे। उसके बाद भी मैंने इस बाबत उन्हें एक-दो खत लिखे लेकिन उसका कोई जवाब नहीं मिला। चाहे समाजवादी पार्टी हो, कांग्रेस हो या फिर बसपा सबने मुसलमानों को गुमराह किया है। रमजान के समय दावत-ए-इफ्तार आयोजित करने, टोपी पहनने और कैफिया ओढ़ लेने से कोई मुसलमानों का हमदर्द नहीं हो जाता। अगर इस्लाम और मुसलमानों से इतना ही लगाव है तो कथित सेक्युलर नेता कलमा क्यों नहीं पढ़ लेते। गुजिस्तां तमाम चुनावों में मुसलमानों को छला गया है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बसपा समेत दीगर पार्टियां बीते कई सालों से भाजपा और आरएसएस का डर दिखाकर मुसलमानों का वोट हथिया रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि जितना जुल्म और जबर मुसलमानों के साथ कांग्रेस की हुकूमत में हुआ उतना दूसरी पार्टियों की सरकारों में नहीं हुआ।
आॅल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी उत्तर प्रदेश में अपने कई उम्मीदवार उतारे हैं। क्या उनकी वजह से मुस्लिम मतदाताओं में विभाजन होगा?
भारत एक जम्हूरी मुल्क है और यहां सभी दलों को चुनाव लड़ने का इख्तियार हासिल है। यह कहना सही नहीं है कि ओवैसी साहब की पार्टी यूपी में चुनाव लड़ रही है, इससे मुस्लिम मतदाताओं में विभाजन होगा। चुनाव लड़ने का फैसला उनका जाती मामला है। हालांकि, इस बार यूपी चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं में भारी विभाजन होगा। बसपा, सपा-कांग्रेस गठबंधन और एआईएमआईएम सभी दलों को मुसलमानों के वोट मिलेंगे। लेकिन मैं बार-बार दोहराना चाहता हूं कि यूपी के तरक्कीपसंद और पढ़े-लिखे मुसलमान सही उम्मीदवार के मद्देनजर वोट करेंगे। अब उन्हें किसी पार्टी विशेष का वोट बैंक कहलाना पसंद नहीं है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाबत आपके संगठन की ओर से मुसलमानों से कब अपील की जाएगी। इस बार किस राजनीतिक दल को आपका समर्थन मिलेगा?
यूपी से जुड़े तमाम सियासी पार्टियों के लीडरान मुझसे संपर्क कर रहे हैं। हम उनसे यही कहते हैं कि आपने मुसलमानों के लिए क्या किया है, उसका लेखा-जोखा पेश करें। भविष्य में मुसलमानों के लिए क्या करने की योजनाएं हैं उसका भी मसौदा प्रस्तुत करें। हर चुनाव में हमारी तरफ से अपील जारी होती है। हमारा संगठन भारत में इमामों का सबसे बड़ा संगठन है। उत्तर प्रदेश में 85 हजार मस्जिद और उतने ही इमाम हैं। हमारी अपील का काफी असर होता है। इस बार भी हम यूपी चुनाव से एक हफ्ते पहले मुसलमानों से अपील करेंगे।
कुछ दिनों पहले आप मुसलमानों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने गए थे। क्या इस मुलाकात का संबंध उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से था?
उन्नीस जनवरी को मैं वजीर-ए-आजम जनाब नरेंद्र मोदी साहब से मिलने उनके आवास पर गया था। हमारे साथ कुल 38 लोग गए थे, जिनमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वाइस चांसलर, कश्मीर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर, इस्लामिक सेंटर के चेयरमैन सिराजुद्दीन कुरैशी, सुप्रीम कोर्ट के जज इब्राहिम साहब, दरगाह अजमेर शरीफ के दीवान, जमीअत-अहले-इस्लाम समेत कई मुस्लिम तंजीमों से जुड़े उलेमा, इमाम और मुफ्ती शामिल थे। इसके अलावा उर्दू अखबारों से जुड़े कई एडिटर भी शामिल थे। वजीर-ए-आजम ने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया। इस बार भारत सरकार की पहल होने से सऊदी सरकार ने 35 हजार हाजियों का कोटा बढ़ाया है। इससे मुसलमानों को काफी राहत मिली है। इसके लिए हमने पीएम मोदी साहब और अल्पसंख्यक मंत्रालय को बधाई दी। पीएम साहब ने हम लोगों को बताया कि उनकी सरकार ने देश में पांच नई मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने का फैसला किया है। स्कूलों की तरह अब मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को भी मिड-डे मील मिलेगा ऐसा भरोसा उन्होंने हमें दिया। वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी से पहले भी हम दो बार मिल चुके हैं। हमारी इस मुलाकात का उत्तर प्रदेश के चुनाव से कोई रिश्ता नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आम मुसलमानों की क्या राय है? क्या भविष्य में उनकी स्वीकार्यता मुसलमानों के बीच बन पाएगी?
मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी साहब पूरे मुल्क के वजीर-ए-आजम हैं। वह सबका साथ सबका विकास चाहते हैं। इससे पहले भी वह गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके शासन में गुजरात ने जो तरक्की की है वह बाकी राज्यों के लिए एक मिसाल है। पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने जो सख्त नीति अपनाई है खासकर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’, उसका मैं समर्थन करता हूं। जहां तक मुसलमानों में उनकी स्वीकार्यता का सवाल है तो मेरी देश के मुसलमानों से अपील है कि वे किसी पार्टी या शख्स को ‘अछूत’ मानने की जेहनियत से बाहर निकलें। यह गंगा-जमुनी तहजीब वाला जम्हूरी मुल्क है जिसमें सभी दलों और उनके नुमांइदों के प्रति एक एहतराम होना चाहिए। पीएम मोदी की पहचान एक वैश्विक नेता के रूप में कायम हुई है। यही वजह है कि सऊदी अरब सरकार ने उन्हें अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा है। मोदी साहब मुसलमान विरोधी नहीं हैं, जो ऐसा कहते हैं वह मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। आप उनकी तकरीरों को सुनें, वह कभी भी हिंदू और मुसलमान की बात नहीं करते। वह हमेशा सवा सौ करोड़ देशवासी जैसे लफ्जों का इस्तेमाल करते हैं। मुल्क के लोगों का चाहिए कि वह पीएम मोदी की सही नीतियों का सपोर्ट करें। मुसलमानों को चाहिए कि वह मुल्क की तरक्की के बारे में सोचें। लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने कम ही सही लेकिन भाजपा को वोट दिया था।
आप भाजपा और मोदी की तारीफ कर रहे हैं, इसकी क्या वजह है?
अच्छे कामों और अच्छे लोगों की तारीफ होनी चाहिए। अब तक देश में जितने वजीर-ए-आजम हुए उन सबसे अलग छवि जनाब मोदी साहब की है। मुल्क को एक ईमानदार और मजबूत पीएम मिला है। मैं एक मजहबी रहनुमा हूं, इसलिए मेरा मानना है कि अल्लाह को भी यह मंजूर था कि मोदी साहब मुल्क की बागडोर अपने हाथ में संभालें। पाकिस्तानी दहशगतगर्दों से निपटने के लिए उन्होंने जो पॉलिसी बनाई है, उसका मैं समर्थन करता हूं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता की बाबत केंद्र्र सरकार खासकर मोदी साहब की पहल सराहनीय है। कालेधन को नियंत्रित करने के लिए पीएम ने नोटबंदी का फैसला देशहित में किया। इसके अच्छे परिणामों की आशा करनी चाहिए क्योंकि पीएम साहब ने अच्छी नीयत के साथ यह बड़ा और ऐतिहासिक फैसला किया।