राष्ट्रपति ने आधिकारिक भाषाओं पर संसद की समिति की कुछ सिफारिशों पर अपनी मुहर लाग दी है। दरअसल,, संसदीय समिति ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार के चलते कई कदम उठाते हुए कुछ सिफारिशें भेजी थी जिसमें से कुछ पर राष्ट्रपति ने सहमति जताई है तो कुछ पर असहमति। जानिये कौन सी सिफारिशों को मिली हरी झंडी और कौन सी सिफारिशें राष्ट्रपति ने नकार दिया-
किन सिफारिशों पर सहमति-
- संसदीय समिति की सिफारिशों में राष्ट्रपति समेत मंत्रियों के हिन्दी में भाषण देने की बात कही गई थी जिसे राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया है। इस सिफारिश में कहा गया है कि राष्ट्रपति, मंत्री और अधिकारियों को हिंदी में ही भाषण देना चाहिए। हालांकि, इसमें ये जोड़ा गया है कि जो हिन्दी बोल या पढ़ सकते हैं, उन्हें ऐसा करना होगा। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल इस जुलाई में समाप्ति हो रहा है। संभव है कि जो भी अगला राष्ट्रुपति बनेगा वह हिंदी में भाषण देगा। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट साथी हिंदी में ही भाषण देते हैं।
- यही नहीं संसदीय समिति ने सीबीएसई से जुड़े सभी स्कूलों और केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा 10 तक हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने का प्रस्ताव भी दिया था। अभी इन स्कूलों में कक्षा 8 तक ही हिंदी पढ़ना अनिवार्य है। वहीं गैर-हिन्दी भाषी राज्यों के विश्वविद्यालयों को कहा गया है कि परीक्षाओं और इंटरव्यू में हिन्दी में उतर देने का विकल्प दें।
- राष्ट्रपति मुखर्जी ने एयर इंडिया की टिकटों पर भी हिंदी का उपयोग करने की सिफारिश को भी मान लिया है।
- सभी सरकारी और अर्ध सरकारी संगठनों को अपने उत्पादों की जानकारी हिंदी में भी देनी होगी।
- आधिकारिक भाषाओं पर संसद की समिति ने हिन्दी को लोकप्रिय बनाने के लिए पिछले छह साल में 117 सिफारिशें की है। राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन को सभी मंत्रालयों, राज्यों और प्रधानमंत्री कार्यालय के पास लागू करने के लिए भेजा गया । सिफारिश में कहा गया है कि केंद्र सरकार के कार्यालयों में अंग्रेजी की तुलना में हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं और किताबों की ज्यादा खरीदारी करने की बात भी शामिल है।
किन सिफारिशों पर असहमति
- साथ ही एयरलाइंस में यात्रियों के लिए हिंदी अखबार और मैगजीन उपलब्ध कराना भी शामिल है। हालांकि सरकारी हिस्सेदारी वाली और प्राइवेट कंपनियों में बातचीत के लिए हिंदी को अनिवार्य करने की सिफारिश को ठुकरा दिया गया है।
- सरकारी नौकरी के लिए हिंदी के न्यूनतम ज्ञान की अनिवार्यता की सिफारिश को भी ना कह दिया गया है।
बता दें कि भाषा को लेकर बनी संसदीय समिति ने राष्ट्रपति को साल 1959 से अब तक नौ रिपोर्ट दी हैं। आखिरी बार इस तरह की रिपोर्ट 2011 में दी गई थी।