मोहन सिंह
उत्तर प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन महज सत्ता का परिवर्तन भर नहीं है। यह उस सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत है जो पिछले लगभग डेढ़ दशक से सत्ता की भूमिका तय करने में हाशिये पर खड़ा था। एक तरह से यह सत्ता की प्रतीक जातियों जो सपा-बसपा के सत्ता में होने पर फूहड़ता की हद तक सत्ता प्रतिष्ठान पर अपने दबदबे और वजूद का प्रदर्शन करती हैं, उनके खिलाफ विद्रोह है। कवि-लेखक निलय उपाध्याय बताते हैं, ‘उत्तर प्रदेश के हालिया चुनाव के नतीजे दरअसल प्राकृतिक संसाधनों की लूट, नंगा जातिवाद, कुशासन, भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनता का फैसला है।’ जनता के इस फैसले में उत्प्रेरक की भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रही। तीन दिन तक बनारस में रुककर जनता के बीच जाकर अंतिम दो चरणों के चुनाव की तस्वीर ही बदल दी नरेंद्र मोदी ने। चुनाव नतीजे इसकी गवाही दे रहे हैं। सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली की आदिवासी बहुल सीटों पर भाजपा की जीत से इस बात की सच्चाई सामने आती है। मसलन सोनभद्र की दुद्दी सीट। सन् 1977 को छोड़ दें तो आज तक इस सीट पर भाजपा कभी जीत नहीं पाई। सन् 1980 से लगातार (एक चुनाव को छोड़कर) निर्दल और दूसरे दलों के समर्थन से रूबी प्रसाद चुनाव जीतते रहे हैं। पर इस बार इस सीट पर अपना दल के अनाम चेहरे से खुद तो चुनाव हारे ही बगल की ओबरा सीट से उनका पुत्र भी चुनाव हार गया। यह महज एक बानगी है कि सत्ता परिवर्तन के लिए सामाजिक समीकरणों की भूमिका इस चुनाव में कितनी कारगर रही।
प्रधानमंत्री की मिर्जापुर सभा में बड़ी संख्या में आदिवासी महिलाएं और पुरुष शामिल हुए। इस इलाके में बड़ी संख्या में आदिवासियों को गैस कनेक्शन मुफ्त मिले हैं। भारत सरकार के पेट्रोलियम सेक्रेटरी भी इसी इलाके से हैं। उसका लाभ भी आदिवासी बहुल इस इलाके को मिला। इन आदिवासी-दलितों के घर में खुशी आई। नतीजा हुआ आठ की आठ सीटें भाजपा के खाते में। और सत्ता की हनक का कमाल देखिए कि पूरे पूर्वांचल को गिट्टी-बालू-बोल्डर की आपूर्ति सोनभद्र जिले से होती है। वहां वीआईपी टैक्स नाम का एक गैर सरकारी टैक्स वसूलकर खनिज विभाग पैसा ऊपर तक पहुंचाता था। वह सरकारी आदेश के बिना अब डीएम के आदेश से ही बंद हो गया है। साढ़े सत्रह सौ रुपये प्रति ट्रक के हिसाब से होने वाली इस वसूली में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार व्याप्त था। बसपा और फिर सपा के राज में बदस्तूर जारी रहा। जानकार बताते हैं कि यह लूट करोड़ों की थी। इससे यह भी साबित होता है कि दलितों-पिछड़ों के नाम पर सत्तासीन होकर प्राकृतिक संसाधनों की लूट की छूट देने को जनता अब तैयार नहीं है। ऐसे सारे विधायक और नेता जो पैसे और बाहुबल की बदौलत सत्ता पाते रहे हैं और सत्ता पाते ही अपनी हनक से मिर्जापुर से नोएडा तक खनन में संलग्न रहे हैं, अब सहम गए हैं अथवा सत्ता के ठौर तलाश रहे हैं। उनमें एक चर्चित नाम है निषादराज पार्टी से ज्ञानपुर विधानसभा से चुनाव जीते विजय मिश्र। एक जमाने में प्रो. रामगोपाल यादव के करीबी रहे। पिछले चुनाव में अखिलेश ने टिकट नहीं दिया। उनकी पत्नी रामलली मिश्र सपा से एमएलसी हैं। अब अपना वजूद कायम करने के लिए भाजपा में ठौर तलाश रहे हैं। सत्ता के संरक्षण से ही ऐसे लोग पलते और बढ़ते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मऊ की सभा में और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ज्ञानपुर में विधानसभा चुनावी अभियान की समापन सभा में जनता के बीच यह वादा किया है कि अपने कारनामों की वजह से ऐसे लोगों की सही जगह जेल है।
योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद जेल प्रशासन में कितना सुधार आया है, नहीं कहा जा सकता। पर सामान्य प्रशासन कितना चौकस हुआ है, इसकी मिसाल बनारस और आसपास के जिलों में देखी जा सकती है। बूचड़खाने बंद करने का शासनादेश आने से पहले ही बूचड़खाने बंद होने लगे। इनमें बनारस स्थित कमलगढ़ा का बूचड़खाना भी शामिल है जो कल्याण सिंह के शासनकाल में और बाद में कोर्ट के आदेश के बावजूद चालू था, अब बंद हो चुका है। इसके पहले के शासन में बनारस के एसडीएम रहे आरपी सिंह को स्थानीय जनता ने पीट दिया था। तब से अब तक इस बूचड़खाने को बंद कराने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। इस बार कोर्ट का आदेश और शासनादेश एक साथ लागू हुआ और स्थानीय जनता ने चूं तक नहीं की। शासन के इस एक फैसले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र बनारस में हर तबके के लोग योगी सरकार का तहे दिल से शुक्रिया अदा कर रहे हैं।
यह पूछने पर कि मुसलमान तबका इस आदेश को किस रूप में ले रहा है, उर्दू पत्रकार इसहाक बताते हैं, ‘आमतौर पर कौम इस फैसले का स्वागत कर रही है। वजह बूचड़खाने से आसपास के इलाके में गंदगी फैलती है। पशुओं के हाड़ मांस के अलावा जो कचरा है वह नदी में बहाया जाता है। उससे नदी की सेहत भी खराब होती है।’ बता दें कि बनारस में मृत पशुओं को गंगा नदी में बहाने पर रोक नहीं है। पर मूर्ति विसर्जन पर प्रशासन ने रोक लगा रखी है।
बनारस में भाजपा के सत्ता ग्रहण करने से पहले एक और कारनामा हुआ है जिस पर भाजपा सरकार को ध्यान देना चाहिए। वरुणा कॉरिडोर अखिलेश सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट था। दो सौ करोड़ से ज्यादा लागत की यह परियोजना है। आधा अधूरा काम हुआ। होली के दूसरे दिन साइट पर आग लग गई। गाद सफाई के लिए लगाई गई दो मशीनें जल गर्इं। बाकी दूसरे सामान भी जले हैं। आशंका व्यक्त की जा रही है कि ‘इंश्योरेंस क्लेम’ करने के चक्कर में किसी ने शरारतन आग लगवाई है। इस ड्रीम प्रोजेक्ट का अब क्या भविष्य होगा कहना मुश्किल है। बनारस की एक बड़ी समस्या है सड़क जाम की। इसकी एक बड़ी वजह अतिक्रमण और लापरवाह ट्रैफिक व्यवस्था है। पुलिस की मिलीभगत से हर जगह ठेले रेहड़ी वाले काबिज रहते हैं। हालांकि वे गरीब लोग हैं और उनकी जीविका का एकमात्र साधन यह व्यवसाय है। अब तक सरकारें ऐसे रेहड़ी खोमचा वालों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं कर पार्इं। सरकारें आती जाती रहीं। पर बनारस में इस बार पुलिस अधीक्षक ने बीएचयू और आसपास के शहरी इलाके में रेहड़ी-पटरीवालों के कब्जे से पटरी को मुक्त करावाया। अब सदाबहार जाम रहने वाली बीएचयू के सामने लंका की सड़क जाम से मुक्त नजर आ रही है। जब एसएसपी ने सड़क पर रेहड़ी लगाने वालों से पूछा कि अवैध रूप से आए लोग सड़क के किनारे क्यों काबिज हैं? रेहड़ी खोमचावालों ने एसएसपी को बताया कि वे स्थानीय पुलिस को पैसे देकर यह अवैध काम करते हैं। पुलिस अधीक्षक ने लापरवाही बरतने के आरोप में दो चौकी प्रभारियों को निलंबित भी किया।
योगी सरकार के काम संभालने के बाद जनता एक हफ्ते से कम समय में ही जो अनुभव कर रही है ये उसकी कुछ मिसालें हैं। योगी सरकार के आने के बाद प्रशासनिक अमले में आए बदलाव को जनता महसूस कर रही है। याद आते हैं डॉ. राम मनोहर लोहिया जिन्हें अखिलेश सरकार सिर्फ नाम के लिए याद करती थी। उस सरकार के कामकाज में डॉ. लोहिया की नीतियां और कार्यक्रम कहीं दिखाई नहीं देते थे। डॉ. लोहिया कहा करते थे कि ‘गैर कांग्रेसी सरकारों को अपने छह माह के शासनकाल में ऐसा कुछ करना चाहिए कि लोग कांग्रेस हुकूमत को भूल जाएं।’ योगी सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती भी है और अवसर भी। उत्तर प्रदेश के हर तबके ने बड़ी उम्मीद के साथ सपा, बसपा के भ्रष्टाचार-भाई भतीजावाद-गुंडई के विरुद्ध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा कर भाजपा को सत्ता सौंपी है। भाजपा के ऋषि पुरुष दीनदयाल उपाध्याय के शताब्दी वर्ष में उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप सत्ता को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है और मोदी के सपने के अनुरूप उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाना है।