डंडे के जोर पर तो सपोर्ट मिलने से रहा

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर 10 साल रहने के बाद दिग्विजय सिंह से जब भाजपा ने सत्ता छीनी तो उन्होंने प्रतिज्ञा की कि अगले 10 साल तक वह सरकारी सत्ता पद नहीं लेंगे। 2004 में केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनी तो सोनिया गांधी ने उनसे केंद्र में मंत्री बनने को कहा। उन्होंने अपनी कसम का हवाला दिया और सोनिया मान गई। उस दौरान दिग्विजय ने असम का प्रभारी बनकर वहां कांग्रेस को सत्तासीन किया तो यूपी का प्रभारी रहते कांग्रेस की स्थिति सुधारी। यही नहीं, संघ व भाजपा के हर वार पर वह पलटवार भी करते रहे। संघ व भाजपा को वह इस कदर खटकने लगे कि उन्हें इस कुनबे ने सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तानी तक कहना शुरू कर दिया। पार्टी में बढ़ी हैसियत से कुछ पदाधिकारी भी उनसे अंदर ही अंदर जलने लगे। इन तमाम दबावों के बीच भी राघोगढ़ रियासत के इस वंशधर ने घुटने नहीं टेके। प्रतिज्ञा पूरी होने यानी दस साल का स्वैच्छिक वनवास काटने के बाद ही वह राज्यसभा सांसद बने। कांग्रेस के केन्द्रीय महासचिव वह पहले से ही हैं और अब मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले पर शिवराज सरकार को सड़क पर लाने की कांग्रेसी मुहिम के वह मुखिया हैं। ऐसे अक्खड़मिजाज दिग्विजय सिंह से कृष्णमोहन सिंह की बातचीत के प्रमुख अंश:

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने क्या संदेश दिया?

बिहार वह सूबा है जिसने हमेशा सांप्रदायिकता के खिलाफ आवाज उठाई है। वह सद्भाव का प्रतीक रहा है। वहां की जनता ने अपनी अस्मिता , सम्मान पर चोट पहुंचाने, चरित्र पर लांछन लगाने  सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वालों को सबक सिखाया है। नीतीश कुमार के महागठबंधन की महाजीत से यह बात साबित भी हुई।

क्या भाजपा की करारी हार के लिए नरेन्द्र मोदी व अमित शाह का अहंकार भी जिम्मेदार है?

प्रमुख कारणों में तो यह है ही। जिस भाषा का उपयोग नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं, वह देश के प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता।  विपक्ष के नेताओं की जिस हल्के शब्दों में आलोचना की जा रही है, वह प्रधानमंत्री के लिए शोभा नहीं देता। औरों से न सीखें तो कम से कम अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को सुनकर तो सीखना चाहिए । विपक्ष के लोगों के साथ किस तरह के संबंध बनाकर चलना चाहिए और किस तरह की  भाषा का उपयोग किया जाना चाहिए, विपक्ष से किस तरह संबंध बना कर रखना चाहिए- यह अटल जी से सीखें। अरुण शौरी ने उनको ठीक ही सलाह दी है कि देश इतना बड़ा है कि जब तक आप सबको साथ लेकर नहीं चलेंगे, आगे नहीं बढ़ सकते,विकास नहीं कर सकते।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्री आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस संसद नहीं चलने दे रही है, विकास के मुद्दों पर सहयोग नहीं कर रही है, जीएसटी आदि बिल पास नहीं करने दे रही है ?

संसद में समर्थन लेने की जिम्मेदारी, जवाबदारी तो एएनडीए सरकार की है। डंडा मारकर आप समर्थन नहीं ले सकते। किसी भी मुद्दे पर समर्थन के लिए सभी राजनीतिक दलों से राय-बात करें। जब 2006-7 में कांग्रेस की सरकार वही जीएसटी बिल लाई थी तो भाजपा ने विरोध क्यों किया था और अब उसी बिल को आप पास क्यों कराना चाहते हैं?  हमारा विरोध जीएसटी बिल से नहीं है। सरकार उसे जिस रूप में लागू कराना चाहती है, उससे है। हमने इस पर डिसेंट नोट दिया है। उसके ऊपर ध्यान दें। उसे शामिल करें ।

मोदी और भाजपा के अन्य नेता तो कह रहे हैं कि हर मुद्दे पर विरोध कर कांग्रेस टकराव बढ़ाना चाहती है?

टकराव एनडीए सरकार बढ़ाना चाहती है, कांग्रेस नहीं। सहयोग लेकर सरकार चलाना उनका काम है। लेकिन वह तो डराकर, धमकाकर समर्थन लेने की कोशिश कर रहे हैं।

क्या मोहन भागवत के इस बयान का भी बिहार में भाजपा की हार में हाथ रहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण पर विचार होना चाहिए?

आरक्षण पर मोहन भागवत के बयान की लाइन गुरु गोलवरकर की लाइन है। संघ प्रारंभिक तौर पर उच्च वर्गों का संगठन है जो हमेशा से आरक्षण के विरोधी रहे हैं। अब मोदी जी कहते हैं कि मैं जान देने  को तैयार हूं। अरे भाई, आपको जान देने की आवश्यकता नहीं है। जो आरक्षण आज मिल रहा है, वह भारतीय संविधान के तहत मिल रहा है।

 संघ प्रमुख के इस बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जो बयान दिया, उसमें विरोधाभास रहा। क्या मोदी व भागवत में टकराव बढ़ेगा?

कभी टकराव होगा ही नहीं। संघ, भाजपा व इनके अन्य संगठन अलग-अलग समय पर अलग-अलग बोल बोलते रहते हैं। लेकिन मूल में केन्द्रीय शक्ति संघ की ही रहेगी। कोई टकराव नहीं होगा। टकराव की स्थिति तक नहीं आएगी।

संघ से रिश्ते और विपक्ष से समीकरण के मद्देनजर वाजपेयी की सरकार और मोदी की सरकार के कामकाज में क्या अंतर है ?

अटल जी संघ को जितना लाभ पहुंचा सकते थे, पहुंचाया। लेकिन बाहरी तौर पर अपने व्यवहार व भाषण में उन्होंने कभी सभ्यता व मयार्दा नहीं खोई। सदैव सबके साथ बैठकर, चर्चा कर हल निकालने का प्रयास उन्होंने किया। मोदी जी को अटल जी के प्रधानमंत्रित्वकाल से सीख लेनी चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि देश को आगे बढाने के लिए मेक इन इंडिया से ज्यादा यूनिटी ऑफ इंडिया की आवश्यकता है।

माखन लाल फोतेदार ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि इंदिरा गांधी की इच्छा प्रियंका को राजनीति में लाने की थी?

पुस्तक पढ़ने के बाद ही कुछ कहूंगा।

मानसून सत्र से राहुल ने सरकार पर तीखे वार शुरू किए। क्या कांग्रेस ने इन हमलों के लिए कोई रणनीति बनाई थी?

उन्होंने जितने भी मुद्दे उठाए, सब सामयिक और मौजू हैं। रणनीति पहले जैसी ही है।

 

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