उत्तर प्रदेश के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में उनके सरकारी आवास पर ओपिनियन पोस्ट के प्रदीप सिंह और मृत्युंजय कुमार ने उनकी सरकार के सामने किस तरह की चुनौतियां हैं और उनसे निपटने के लिए उनकी क्या योजना है, सहित तमाम विषयों पर विस्तार से बात की। बातचीत में मुख्यमंत्री आत्मविश्वास से भरे नजर आए। उन्होंने प्रशासनिक अनुभव की कमी का जिक्र जरूर किया पर उनके जवाब और काम से ऐसा लगा नहीं कि प्रशासनिक अनुभव की कमी उनके लिए कोई मुश्किल पैदा कर रही है। अब तक के काम काज से तो लगता है कि प्रशासनिक अनुभव न होना उनके लिए फायदेमंद नजर आ रहा है क्योंकि किसी के बारे में उनकी पहले से कोई बनी बनाई धारणा नहीं है। पेश हैं उस बातचीत के प्रमुख अंश।
किसानों की कर्ज माफी से प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर काफी बोझ पड़ेगा। ऐसे में इसके लिए पैसा कहां से आएगा?
प्रदेश में किसान पीड़ित था। हमारे सामने दो तरह की चुनौतियां थीं। एक तरफ किसान कर्ज के बोझ से दब रहा था लेकिन दूसरी तरफ यहां राजकोषीय घाटा प्रदेश के विकास को चुनौती दे रहा था। दोनों में संतुलन हो इसलिए हमने इस बात का प्रयास किया कि किसानों का कर्जा माफ हो जिससे सीमांत किसानों को राहत तो मिले लेकिन प्रदेश की जनता पर अनावश्यक बोझ भी न पड़े। इस कदम से हमारा राजकोषीय घाटा इस स्तर पर न पहुंच जाए कि डेवलपमेंट के प्रोजेक्ट रुक जाएं। क्योंकि सेंट्रल गवर्नमेंट ने पैसा देने से मना कर दिया था और कहा था कि किसानों की कर्ज माफी के लिए वह किसी भी राज्य को कोई पैसा नहीं दे सकती। तब हम लोगों को निर्णय लेना पड़ा कि हमें अपने संसाधनों से ही ये सब चीजें करनी पड़ेंगी। और उसमें सबसे प्रभावी कदम था कि हम अपनी फिजूलखर्ची को रोकें। उसमें कटौती करें। अनुमान है कि इससे हम लोग साल में आठ से दस हजार करोड़ रुपये की बचत करेंगे। और फिर अन्य साधनों से पैसा लेकर जो हम पर कुल छत्तीस हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ा है किसानों की कर्जमाफी का। इसकी भरपाई हम लोग पांच सालाना किस्तों के जरिए करेंगे। क्योंकि अगर बैंक किसानों का कर्ज माफ करने में कुछ मदद नहीं भी करता है तो हम पर जो बोझ पड़ेगा वो चालीस हजार करोड़ रुपये का पड़ेगा। चार पांच किस्तों में हम फिजूल खर्ची रोककर ही बैंकों का पैसा चुका देंगे। हमारा प्रयास है कि इससे जनता पर बोझ न पड़े, हमारी विकास की योजनाएं न रुकें और साथ साथ किसानों को राहत भी मिले। कर्जमाफी से लगभग सत्तासी लाख किसानों को डायरेक्ट फायदा हुआ है। ऐसे सात लाख किसान हैं जिनका कर्ज एनपीए हो गया है उनको पूरी राहत हम दे रहे हैं।
इसके अलावा देश में छत्तीसगढ़ का प्रोक्योरमेंट और पीडीएस सिस्टम सबसे अच्छा है। छत्तीसगढ़ में धान का जितना भी क्रय होता है वह वहां की सरकार करती है। अपने दो मंत्रियों और तीन चार अधिकारियों की टीम वहां भेजी। आप जाएं और देखें कि अगर छत्तीसगढ़ इस प्रकार का सिस्टम लागू कर सकता है तो उत्तर प्रदेश क्यों नहीं। छत्तीसगढ़ छोटा सा राज्य है और 69 लाख टन धान की खरीद करता है। और उत्तर प्रदेश कितना बड़ा है फिर भी यहां मात्र पांच से आठ लाख टन तक गेहूं का क्रय होता है। वह भी आढ़तियों के माध्यम से। हमने उत्तर प्रदेश में एक प्रयास किया है। मेरे पास बहुत से लोग आए कि गेहूं आढ़तियों से खरीदा जाए। फिर मैंने पूछा कि किसान का क्या होगा? किसान को तो दाम मिलेगा नहीं! प्रधानमंत्री जी का निर्देश है कि किसानों के बारे में सोचना चाहिए और किसानों के बारे में कार्य करना चाहिए। हम लोग सीधे किसानों को पैसा देंगे, उनके खाते में पैसा देंगे। बीच में कोई दलाली नहीं होगी। इस समय हम लोग प्रदेश में गेहूं क्रय के पांच हजार केंद्र खोल चुके हैं। इनमें यह व्यवस्था की है कि सीधे किसानों से आप खरीदिए। हम किसान को बाध्य नहीं करेंगे। हम उसको प्रति क्विंटल दस रुपये अतिरिक्त देंगे ढुलाई व अन्य खर्चों के लिए। गेहूं का 1625 रुपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य है। दस रुपये अतिरिक्त देंगे। मुझे प्रसन्नता है कि हमारे क्रय केंद्रों की बदौलत किसानों को मार्केट में 1700 से ज्यादा मूल्य मिलना शुरू हो गया है। जो हम चाहते थे कि किसान को ज्यादा पैसा मिले, उसे लाभ हो, वह उसे मिलने लगा है।
धान खरीद में तो किसान को समर्थन मूल्य से बाजार में बहुत कम मिल रहा था?
धान में किसान को नौ सौ से एक हजार रुपये तक दाम मिला। जबकि 1460 रुपये समर्थन मूल्य था। हमने कहा कि कम से कम समर्थन मूल्य तो मिले उसको। अब गेहूं में तो समर्थन मूल्य से ज्यादा किसान को मार्केट में ही मिलना प्रारंभ हो गया है। हमने कहा कि किसान को जहां ज्यादा दाम मिले वह वहां बेचे। हमने सेंटर इसलिए खोले हैं जिससे किसान के साथ कोई अन्याय न करने पाए। इसके अलावा हम और भी प्रयास कर रहे हैं। जैसे आलू उत्पादक किसान हैं। उनके सामने भी समस्या आती है। हमने एक कमेटी तत्काल बिठा दी कि आलू खराब न हो और उसकी लागत किसान को मिल सके इसके बारे में सरकार क्या कदम उठा सकती है, तीन दिन में वह रिपोर्ट दे। ये सब काम हमने अपने स्तर पर प्रारंभ किए हैं। इसके अलावा हर मंत्रालय से हमने कहा है कि वह अपना प्रेजेंटेशन दे। हम लोग तो जानते नहीं हैं कि आपका शासन प्रशासन कैसे चलता है। हम लोग आप लोगों से कुछ सीख लेंगे इसी बहाने। तो यह शुरुआत हमने कर दी है। शिक्षा में प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, प्राविधिक शिक्षा का प्रेजेंटेशन आ चुका है। वहां क्या होता था, क्या हो रहा है और अभी क्या होना है- उन्हें एक रोडमैप बनाकर दे दिया उसी समय कि आप नब्बे दिन में क्या अचीव करेंगे, छह महीने में क्या अचीव करेंगे और एक साल के अंदर क्या होना है। ये सारी चीजें हमने उनको स्पष्ट कर दी हैं।
जो प्रेजेंटेशन अभी तक दिए गए हैं आप उनसे संतुष्ट हैं?
हम उसी में ढूंढकर अपना लक्ष्य दे दे रहे हैं। क्योंकि उसमें संबंधित मंत्री भी बैठ रहे हैं।
आप तो रात बारह बारह बजे तक अधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे हैं।
यह क्रम अभी चलेगा महीनों तक।
नकल रोकने के साथ साथ शिक्षा में और क्या परिवर्तन लाने जा रहे हैं।
नकल रोकने और पठन पाठन का माहौल बनाने के अलावा हमने कुछ चीजें तय की हैं। जैसे प्राथमिक शिक्षा में गरीब का बच्चा, किसान का बच्चा विद्यालय जाएगा तो कक्षा छह के बाद ही अंग्रेजी क्यों पढ़ेगा। हमने कहा उसको नर्सरी से पढ़ाइए। तीसरी क्लास से उसको संस्कृत पढ़ाना शुरू कर दीजिए। फिर दसवीं के बाद कोई ऐसी व्यवस्था कर दीजिए कि कोई एक विदेशी भाषा वह सीख ले- जर्मन, फ्रेंच, जापानी कोई भी। क्योंकि यहां का कोई बच्चा अगर जर्मनी में शोध करने जाना चाहता है तो पहले तीन महीने उसको वहां की भाषा सीखनी पड़ती है। जापान जाना चाहता है तो तीन महीने वहां की भाषा सीखनी पड़ती है। हमने कहा कि उसको सिखाइए पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाइए। यूपी बोर्ड के पाठ्यक्रम का आमूलचूल परिवर्तन करिए। भारत की किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता के योग्य वह बन सके इसके लिए एनसीईआरटी की तर्ज पर, सीबीएसई के पैटर्न पर स्कूल पाठ्यक्रम बनाने पर कार्यवाही प्रारंभ कीजिए। बेसिक शिक्षा पर भी इसी प्रकार की बात हमने कही है। और इसके लिए जवाबदेह बनाया है। अभी उन्होंने जो हमें आंकड़े दिए हैं कि ग्यारह बारह फीसदी बच्चे स्कूल में नहीं आते। हमने कहा कि जुलाई में ही इस बात को सुनिश्चित कर लीजिए कि वे ग्यारह बारह फीसदी बच्चे भी स्कूल में होने चाहिए। सुनिश्चित कीजिए कि बच्चे को यूनीफॉर्म मिले। यूनीफॉर्म अब तक खाकी पैंट थी खाकी शर्ट थी। ऐसी ही बालिकाओं की थी। उसे ठीक करिए। ताकि पब्लिक स्कूल के बच्चों की तरह ही वे भी अपने को गौरवान्वित महसूस करते हुए कह सके कि मैं भी इस देश का नागरिक हूं। जुलाई के पहले हफ्ते में ही उसे यूनीफार्म दीजिए, जूता मोजा भी दीजिए। बैग, कापी-किताब जो भी उसको देना है वह सब जुलाई में ही दे दीजिए। इसका पूरा रोडमैप तैयार हो गया है। प्रेजेंटेशन के साथ ही सारी चीजें तय कर दी गई हैं। इसी प्रकार हम लोगों ने माध्यमिक शिक्षा में भी परिवर्तन किए हैं। नकलमुक्त परीक्षाएं हों इस प्रकार की व्यवस्था कर रहे हैं। उच्च शिक्षा में भी उत्तर प्रदेश के सभी सोलह विश्वविद्यालयों में हम क्या कर सकते हैं। क्या यह हो सकता है कि सोलहों विश्वविद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागू हो। दूसरा, विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं भी नकलमुक्त हों। यहां भी पठन पाठन का माहौल हो। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का एक नया वातावरण बने। यह व्यवस्था तो हम दे ही रहे हैं। साथ ही छात्रसंघों के चुनावों में एक महीना नहीं एक सप्ताह में पूरे प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव संपन्न होने चाहिए। और ये एक साथ हों। ऐसा एक सप्ताह में क्यों नहीं किया जा सकता है। ऐसे ही व्यावसायिक शिक्षा में हम लोग एक बहुत बड़ा काम करने जा रहे हैं। स्किल डेवलपमेंट भी उसके साथ जुड़ा है और प्रतिवर्ष बारह से पंद्रह लाख नौजवानों को कौशल विकास के माध्यम से रोजगार उपलब्ध करवाने की तैयारी की है। पूरा रोडमैप तैयार हो चुका है, बाकी तैयारियां हो चुकी हैं। एक बहुत अच्छा कार्यक्रम चलेगा। टेक्निकल एजूकेशन के बारे में भी हमारी तैयारी है। उत्तर प्रदेश में 606 प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। इनमें सिर्फ पचास या साठ ऐसे हैं जो उत्तर प्रदेश की टेक्निकल एजूकेशन की ग्रेडिंग में फिट बैठते हैं। सवाल है कि बाकी के पास फैकल्टी कहां से आ गई। क्या इनके पास इंफ्रास्ट्रक्चर है। आप ऐसी स्थिति क्यों बना रहे हैं कि हम जो इंजीनियर पैदा करें वह चपरासी भी न बन सके। क्वालिटी नहीं दे सकते। और आवश्यकता है उस रेश्यो को मेन्टेन करने की कि पांच आईटीआई पर एक पॉलीटेक्निक हो। पांच पॉलीटेक्निक पर एक इंजीनियरिंग कॉलेज। जब ये रेश्यो रहेगा तो वह क्वालिटी को मेन्टेन करेगा और एक व्यवस्था दे देगा। और आज क्या हुआ कि इंजीनियरिंग कॉलेज हो गए ज्यादा, पॉलिटेक्निक हो गए कम और आईटीआई उससे भी कम। एकदम उल्टा हो गया। हमने कहा कि इसको ठीक करो। इंजीनियरिंग कॉलेज में कई तो ऐसे हैं जिनमें एडमिशन ही नहीं हैं, सीटें खाली पड़ी हैं। अब वे बंद करेंगे। हमने कहा कि बंद करना कोई उपचार नहीं है। उनसे कहिए कि पॉलिटेक्निक और स्किल डेवलपमेंट के बारे में वे क्या कर सकते हैं इसके बारे में पूरा ब्योरा दें। इसमें है क्या कि इन इंजीनियरिंग कॉलेज को जब जमीन दी गई थी तब वह सस्ती थी। आज उसके आसपास बस्ती बस चुकी होगी तो बहुत सारे लोग इसमें माल बनाने में लग जाते हैं। मैंने कहा कि यह नहीं चलेगा। उसका उपयोग करिए क्योंकि हमें पांच सालों में पचास लाख नौजवानों को नौकरी और रोजगार देना है। कहीं पॉलिटेक्निक खुलवाइए, कहीं स्किल डेवलपमेंट के लिए आईटीआई खुलवाइए और कहीं उसके सेंटर खुलवाइए।
बहुत लोगों को आश्चर्य होगा कि आप अंग्रेजी की शिक्षा पर बल दे रहे हैं।
देखिए पुरातन और आधुनिक दोनों को जोड़ कर फिर समाज के लिए जो उपयोगी हो उसको जाना जा सकता है। हमने तो शिक्षा के बारे में भी कहा कि शिक्षा को संस्कारों के साथ जोड़िए, राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति के साथ जोड़िए। हम लोग एक और काम करने जा रहे हैं। अब तक यह था कि दो सौ बीस दिन स्कूल चलेंगे। यानी दो सौ बीस दिन कम से कम उनके कार्यदिवस होंगे। लेकिन होता क्या था कि वह मुश्किल से एक सौ बीस या एक सौ तीस दिन होता था क्योंकि हर जातीय महापुरुष के नाम पर एक छुट्टी। हमने कहा कि ये छुट्टियां बंद हों। सब निरस्त। जिस महापुरुष की जयंती होगी उसके नाम पर विद्यालय में कार्यक्रम हो। जैसे आठ घंटे होते हैं तो हर घंटे से पांच पांच मिनट निकालिए। तो चालीस मिनट तो यूं हो गए। और बीस मिनट अतिरिक्त देने चाहिए। इसलिए अंत में उस महापुरुष के नाम पर एक घंटे का कार्यक्रम कीजिए। बच्चे को जानकारी तो हो कि कौन है वह महापुरुष। अभी छुट्टी हो जाती है। बच्चे से पूछो छुट्टी किस बात की है तो वे बताते हैं कि आज इतवार है। उनके लिए सारी छुट्टियां इतवार हैं। उनसे कहो कि आज तो इतवार नहीं बृहस्पतिवार है तो वे कहेंगे कि मुझे जानकारी नहीं है। मैंने कहा कि आप अपना एक वार्षिक शैक्षणिक कैलेंडर तैयार कीजिए और ऐसी छुट्टियां बंद कीजिए। बच्चों को दो सौ बीस दिन पढ़ा दीजिए। परीक्षाओं का कार्यक्रम कितना लंबा होता है। बोर्ड परीक्षाएं दो महीने चलती हैं। मैंने कहा इनको पंद्रह दिन में समाप्त कीजिए। बाकी पंद्रह दिन में रिजल्ट दे दीजिए। एक महीने के भीतर सब कुछ समाप्त कीजिए। आप दो महीने एडमिशन में लगाएंगे, दो महीने परीक्षा में लगाएंगे, दो महीने परिणाम आने में लगाएंगे- तो बच्चा पढ़ेगा कैसे। इसको सीमित कीजिए। इस देश में दो ही तो काम हो रहे हैं या तो चुनाव हो रहे हैं या परीक्षाएं हो रही हैं। अगर हमें परिवर्तन करना है तो आमूलचूल परिवर्तन दिखना चाहिए। पेपर हैं छह और परीक्षा होगी दो महीने तक- क्या तरीका है?
विरोधियों को इसमें भी साजिश नजर आएगी कि एक नए तरह के मूल्यों को आप समाज में डाल रहे हैं।
हर अच्छे कार्य का थोड़ा बहुत विरोध तो होता ही है। लेकिन प्रदेश के हित में जहां भी होगा हम लोग बहुत अच्छे ढंग से कदम उठाएंगे।
दो मुद्दों अवैध बूचड़खाने और एंटी रोमियो को लेकर प्रचार किया जा रहा है कि ये राजनीतिक एजेंडे के तहत सांप्रदायिक राजनीति से प्रेरित कदम हैं।
मेरा बयान देखिए। मैंने कहा कि किसी का चेहरा देखकर कार्य नहीं करूंगा। मुझे एक बात बताइए कि अपराधी कोई भी हो उसे हम किसी जाति और महजब की दृष्टि से क्यों देखते हैं। हमने किसी जाति या मजहब के नाम पर कार्रवाई नहीं की। जो गलत थे वे गलत थे। हमारी सरकार की कार्रवाई को तो शिया वक्फ बोर्ड ने भी स्वीकार किया है। उन्होंने भी कहा है कि अवैध बूचड़खाने बंद होने चाहिए। चुनाव के दौरान भी मैं तीन महीने तक उत्तर प्रदेश में घूमा हूं। और उसके पहले भी मेरा कार्यक्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश ही था। मेरे पास सबसे ज्यादा शिकायतें बालिकाओं की सुरक्षा को लेकर ही आती थीं। जब भी मैं किसी संभ्रांत व्यक्ति के घर बैठता था चाय पानी पर और अकेला होता था तो उनका पूरा परिवार वहां आ जाता था। और वे एक ही बात कहते थे कि बाबा देखिए, बच्चों को विद्यालय नहीं भेज पा रहे हैं। क्यों क्या बात हो गई पूछने पर वे बताते थे कि अपराधी छेड़खानी करते हैं, जबरन उठाकर ले जाते हैं। अपहरण कर लेते हैं। विरोध होता है तो तेजाब डाल देते हैं। किस समाज में जी रहे हैं हम। बालिकाएं कैसे रहें। यह किसी भी बालिका के साथ हो सकता है। इस प्रकार की अशिष्टता, उद्दंडता और अनैतिक व्यवहार को हम कब तक बर्दाश्त करें। तो आते ही हमने कहा कि इसे रोकिए। और तत्काल ही गाइडलाइन भी दी कि इस पर कार्रवाई हो। अगर सहमति से बैठे हुए हैं तो भाई बहन भी हो सकते हैं। क्यों आप उनको छेड़ेंगे। लेकिन हमने उसका कॉन्सेप्ट भी ढूंढ लिया। सादी वर्दी में महिला कांस्टेबल जाएं। विद्यालय के इर्द गिर्द घूमें। रहें वहां। अगर इस प्रकार के मनचले उसको छेड़ते हैं तो दबोचें उसको। एक बार उसके अभिभावक के सामने पेश करें कि क्या कर रहा है तुम्हारा पुत्र। उसे चिह्नित कर लीजिए। और अगर उसके बाद भी वह इस प्रकार की कोई हरकत करता है तो कड़ी कार्रवाई कीजिए। हमने तो इसको किसी जाति मजहब से नहीं जोड़ा। बालिका किसी की भी हो सकती है। सुरक्षा तो उसको मिलनी ही चाहिए।
एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में मुस्लिम बालिकाएं थीं, दुपट्टा चुन्नी बांधे हुए थीं और सब बोल रही थीं कि ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई बहुत जरूरी थी।
सर्वाधिक शिकार तो वही होती हैं। तो ये चीजें तो होनी चाहिए। ऐसा माहौल हम दें। पहले गांव का वातावरण कितना अच्छा होता था। किसी भी परिवार की बालिका हो वह गांव की बेटी होती थी। धर्म-जाति का बंधन नहीं था उसमें। यह ठीक है कि शादी लोग अपनी अपनी जाति में करते थे, अपने अपने धर्म में करते थे। लेकिन अगर वह गांव की है तो गांव का प्रत्येक व्यक्ति यह मानता था कि यह हमारी ही बेटी है। उसे सम्मान मिलता था। सब नष्ट हो गया है। हम उसको सुरक्षित करेंगे और उसके अंदर सुरक्षा का भाव पैदा करेंगे। अगर कोई बालिका कहीं कंपटीशन देकर आ रही है और ट्रेन या बस लेट हो गई तो रात्रि के अंधेरे में भी अगर उसको अपने घर जाना पड़े तो वह सुरक्षित पहुंच सके।
मद्यनिषेध को लेकर भी कोई नीतिगत फैसला लेने पर विचार हो रहा है क्या?
देखिए अभी हम लोग एक एक करके निर्णय ले रहे हैं। जो भी आवश्यक होगा प्रदेश के लिए हम वह निर्णय लेंगे। अभी हमारे सामने जो चुनौती आई है प्रदेश में कि सुप्रीम कोर्ट ने आठ हजार से अधिक शराब की दुकानें हाईवे के किनारे बंद करवाने के लिए कहा तो पिछली सरकार ने क्या किया कि उन सभी दुकानों को पांच सौ मीटर पीछे कर दिया। वह भी बस्तियों में। 31 मार्च तक उनकी समयसीमा थी और पहली अप्रैल से वे खुलनी शुरू हुर्इं। उसका व्यापक विरोध हुआ है। मैंने बैठक कर एक बात कही है कि इसकी एक पॉलिसी तय करें। पॉलिसी में हाईवे के साथ साथ स्टेट हाईवे भी होने चाहिए। धर्मस्थलों को छोड़िए, विद्यालयों को छोड़िए, चिकित्सालयों को छोड़िए, सार्वजनिक स्थलों को छोड़िए, आबादी को छोड़िए यानी जहां बस्ती है उसे भी छोड़ दीजिए। इनके पांच सौ मीटर के दायरे में शराब और मांस की दुकानें नहीं होंगी। दूसरा हम लोगों ने प्रशासन से कहा कि एक व्यवस्था तय कर दीजिए कि कहीं कोई धरना प्रदर्शन होता है तो डीएम, एसपी को बताइए और आपके स्तर पर समस्या का समाधान हो सकता है तो आप मौके पर ही करिए। ऐसा नहीं कि लोग दस दस, पंद्रह पंद्रह दिन तक धरना प्रदर्शन कर रहे हैं और उसके बाद भी कोई सुन नहीं रहा है तो स्वाभाविक रूप में लोगों में आक्रोश पैदा होगा। जिस समस्या का आपके स्तर पर समाधान हो सकता है उसे कीजिए और नहीं तो जिसके स्तर पर हो सकता है उसको बताइए। और नहीं तो शासन में भेज दीजिए। संवाद नहीं रोक सकते। लोग आंदोलन कर रहे हैं तो उसका कारण पूछिए। डेवलपमेंट की कोई योजना रुकनी नहीं चाहिए। और लोगों को बता दीजिए कि कानून को कोई हाथ में न ले। किसी की समस्या है तो बताएं। ज्ञापन देकर बताएं। हम उनकी बात सुनने को तैयार हैं, बात करने को तैयार हैं, समस्या का समाधान करने को तैयार हैं। लेकिन अगर उसके बाद भी कोई कानून को हाथ में लेगा तो फिर कानून अपने तरीके से काम करने को बाध्य होगा। ये मैसेज हम लोग दे चुके हैं।
पिछली सरकार के कारनामों के कारण कुछ चीजें हम लोगों को देखनी पड़ रही हैं। जैसे शराब की दूकानों को ही लें। आठ हजार ऐसी दूकानें हैं जिनमें से साढ़े पांच हजार को उसने बस्तियों में शिफ्ट कर दिया है। वे इकतीस मार्च के बाद खुली हैं। निर्णय वे लोग पहले कर चुके थे। जिस सरकार का कार्यकाल समाप्त हो गया लेकिन वह शराब के मार्च 2018 तक के सारे ठेके दे चुकी है, बेच चुकी है। और जिस सिंडीकेट को तोड़ा जाना चाहिए था उस सिंडीकेट को उसने सारे ठेके आवंटित कर दिए हैं। यह एक चैलेंज है हम लोगों के सामने। पर हम इसका समाधान कर लेंगे।
इन ठेकों को रद्द करने पर आपकी सरकार विचार कर रही है। क्या कानूनन इन्हें रद्द किया जा सकता है?
हां हां। समग्रता से विचार करेंगे इन सभी चीजों पर कि क्या होना है इस मामले में। क्योंकि यह अनैतिक है। आपका कार्यकाल समाप्त हो रहा है और आप आगे के ठेके देने में लगे हैं। और दूसरे, ऐसी स्थिति बना रहे हैं जिससे समाज में आक्रोश और अराजकता के हालात पैदा हों। ये चीजें कभी स्वीकार नहीं हैं।
आपकी छवि जिस तरीके से निर्मित की गई है कि उसके आधार पर कहा जा रहा है कि आपके मुख्यमंत्री बनने से अल्पसंख्यकों की जो भावना है, उन्हें कैसे आश्वस्त करेंगे।
हमारी सरकार जिस प्रकार से कार्य कर रही है उसमें हमें किसी को आश्वस्त करने की आवश्यकता नहीं है। मैंने पहले ही कहा कि किसी का चेहरा देखकर कार्य नहीं करेंगे। सबका विकास करेंगे लेकिन तुष्टिकरण किसी का नहीं करेंगे। जो व्यक्ति कानून के राज को मानता हो वह अपने को सुरक्षित महसूस कर सकता है, चाहे वह किसी भी जाति का हो, धर्म, संप्रदाय का हो। लेकिन जिसका कानून के राज में विश्वास नहीं है उसके मन में तो असुरक्षा का भाव पैदा होगा। वह उत्तर प्रदेश में तो सुरक्षित नहीं रह सकता है। कानून अपना कार्य करेगा।
जो प्रचंड बहुमत मिला है भाजपा को उत्तर प्रदेश में यह शक्ति का स्रोत भी बन सकता है और परेशानी का सबब भी बन सकता है, क्योंकि आकांक्षाएं इतनी हैं लोगों की।
लोगों की आकांक्षाओं को हम पूरा करेंगे। हमारे लोक कल्याण संकल्प पत्र में जो बातें कही गई हैं उसके एक एक बिंदु को टच करेंगे और पूरा करेंगे।
साक्षात्कार का Part-1 यहां पढ़ें-
Exclusive Interview: किसी व्यक्ति का नहीं जनता का राज होगा- योगी (पार्ट-1)
(यह साक्षात्कार ओपिनियन पोस्ट मैगजीन के 16-30 अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुआ है)