निशा शर्मा।
दिल्ली में हुए MCD चुनावों को लेकर जो रुझान आ रहे हैं उनके मुताबिक बीजेपी लगातार तीसरी बार एमसीडी की कमान संभालेगी। अगर यह रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं तो दिल्ली ने एक बार फिर नरेन्द्र मोदी पर दाव लगाना चुना है। एक बड़ी जीत के लिए जहां नरेन्द्र मोदी की छवि काम आएगी वहीं योगी आदित्यनाथ के कामों की गूंज का भी दिल्ली पर असर साफ रहेगा। वहीं दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का प्रचार प्रसार भी जीत में हिस्सेदारी देता दिखेगा।
इन रुझानों के मुताबिक आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल का जलवा पंजाब के बाद दिल्ली में खत्म होता नजर आ रहा है। अगर आम आदमी पार्टी कांग्रेस से भी कम सीटें लेकर आई तो पार्टी को मान लेना चाहिए की उसकी खामियों और अपने राज्य को नजरअंदाज करने की भूल को जनता माफ नहीं कर पाई। हालांकि दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के समय जो छवि केजरीवाल की थी उससे कयास लगाए जाते रहे हैं कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का पत्ता काट दिया है लेकिन एमसीडी के चुनावों ने इस तरह के दावों की हवा निकाल दी है। अब आम आदमी पार्टी को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए दूसरे राज्यों की तरफ रुख करने की बजाये दिल्ली के विकास और लोगों की समस्याओं की ओर ध्यान देना जरुरी हो जाएगा।
वहीं आम आदमी पार्टी की खिसकती श्रेणी से कांग्रेस को जरुर लाभ हुआ है। 2015 विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी। ऐसे में MCD चुनाव कांंग्रेस पार्टी में कहीं ना कहीं सकारात्मकता जरुर लाते दिखेंगे। जहां 2015 में पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी ऐसे में अब कांग्रेस दूसरे स्थान पर काबिज होती नजर आ रही है। हालांकि कांग्रेस को यह सोचना पड़ेगा कि अगर उसकी पार्टी के दो बड़े नेता अरविंदर सिंह लवली और बरखा सिंह उनकी पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो रहे हैं तो पार्टी को अपनी साख बचाने के लिए नई रणनीति तय करने की जरुरत है। जिसके जरिये वह बीजेपी तो नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी से तो मुकाबला कर ही पाएगी।
वहीं इस बार एमसीडी चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अलावा योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की पार्टी स्वराज इंडिया भी खड़ी थी। लेकिन रुझान बता रहे हैं कि स्वराज इंडिया को मायूसी ही हाथ लगने वाली है। माना जा रहा था कि योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण यह उम्मीद कर रहे थे कि केजरीवाल की तरह ही लोग उनकी पार्टी और उनके वादों पर विश्वास करेंगे। लेकिन रुझान उस कहावत को सटीक करते साबित हो रहे हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है।