निशा शर्मा।
विनोद खन्ना को अमिताभ बच्चन का प्रतिद्वदीं कहा जाता रहा है हालांकि ऐसा भी कहा जाता था कि अगर विनोद खन्ना अध्यात्मिक शांति की खोज में फिल्म जगत से दूर नहीं होते तो वह अमिताभ बच्चन के सुपरस्टार बनने की राह का सबसे बड़ा रोड़ा थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ विनोद ने ओशो के आश्रम का रुख उस समय किया जब वह बुलंदियों पर थे। जानकार कहते हैं कि किसी को नहीं पता कि उनके अंदर क्या चलता था या वह क्या चाहते थे। लेकिन वह असीम सफलता के पयासे नहीं थे। यही कारण था कि बुलंदियों को उन्होंने कभी तवज्जो नहीं दी।
विनोद अक्सर पुणे में ओशो के आश्रम जाते थे। यहां तक कि उन्होंने अपने कई शूटिंग शेड्यूल भी पुणे में ही रखवाए। दिसंबर, 1975 में विनोद ने जब फिल्मों से संन्यास का फैसला लिया तो सभी चौंक गए थे। यही नहीं वह आचार्य रजनीश ओशो के इतने नजदीक थे कि जहां भी आचार्य रजनीश जाते वह उनके पीछे पीछे चल देते। बाद में आचार्य रजनीश अमेरिका गए तो विनोद खन्ना भी अमेरिका चले गए और ओशो के साथ करीब 5 साल गुजारे। वो वहां उनके माली थे।
जाने माने फिल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे कहते हैं कि फिल्म दंगल के दौरान मेरी विनोद खन्ना से बात हुई थी उस समय उन्होंने बताया था कि जब वह अमेरिका में आध्यात्मिक शांति की तलाश में धूम रहे थे तो उनकी मुलाकात उनके हमशक्ल इंसान से हुई थी। जिससे उन्होंने खूब बातें की थी। कहते हैं ना कि हर इंसान की शक्ल के सात इंसान दुनिया में होते हैं। उनमें से मुझे एक मिला जिसके बाद में वापिस भारत आ गया। उसके दिल में क्या था यह मैं क्या कोई नहीं जानता था।
बताते चलें कि ओशो से जुड़ने के बाद विनोद खन्ना ने सैकड़ों जोड़ी सूट, कपड़े, जूते और अन्य लग्जरी सामान को लोगों में बांट दिया।