गुलाम चिश्ती।
मणिपुर में सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की निगाह अब अगले वर्ष मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनावों पर है। पिछले वर्ष 2016 में असम विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल करने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी में नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) की स्थापना की गई थी। इस एलायंस का जन्म कांग्रेस मुक्त भारत की तर्ज पर कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर के उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ था। साथ ही इसका संयोजक असम सरकार के वरिष्ठ मंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा को बनाया गया, जिन्होंने 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को और 2016 में भाजपा को दिसपुर की सूबेदारी सौंपने में अहम भूमिका निभाई थी। नेडा के गठन के बाद पूर्वोत्तर में पहला विधानसभा चुनाव मणिपुर में हुआ जहां भाजपा 60 सदस्यीय विधानसभा में 21 सीटें हासिल करने में कामयाब रही। परंतु सीटों की तालिका में कांग्रेस 28 सीटें हासिल कर सबसे ऊपर रही। जोड़-तोड़ के विशेषज्ञ माने जाने वाले नेडा संयोजक डॉ. हिमंत विश्वशर्मा राज्य में एन बीरेन सिंह की अगुवाई में सरकार बनवाने में कामयाब रहे।
नेडा के गठन के बाद उसके घटक दल अपने पहले मणिपुर चुनाव में अलग-अलग चुनाव में हिस्सा लिए और चुनाव बाद भाजपा गठबंधन सरकार का हिस्सा बन गए। ऐसे में कहा जा रहा था कि नेडा को अपना पहला चुनाव मणिपुर में चुनाव से पहले जरूर बिखरा दिखा, परंतु यह बिखराव राज्य के मैतेयी समाज के मतों को भाजपा के पक्ष में करने के लिए रणनीति के तहत दिखाया गया था। कारण कि मैतेयी समाज को पसंद नहीं था कि भाजपा नगा संगठनों के साथ किसी भी तरह चुनावी समझौता करे। इसीलिए भाजपा ने चुनाव से पूर्व एनपीएफ और एनपीपी के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया था। चुनाव परिणाम आने के बाद ऐसी स्थिति बनी कि मणिपुर में भाजपा एनपीएफ और एनपीपी के बिना सरकार नहीं बना सकती थी। ऐसे में कांग्रेस महज तीन सीटों के अभाव में सरकार बनाने में असफल रही। ऐसे में नेडा को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अगले वर्ष 2018 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा। नगालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) की सरकार है, जो नेडा का हिस्सा है। ऐसे में यहां भाजपा अहम भूमिका में नहीं होगी। मेघालय में पी ए संगमा की पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) नेडा की सहयोगी पार्टी है, परंतु जिस तरह से भाजपा के विभिन्न कार्यक्रमों में राज्य के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा भाग ले रहे हैं। शिलांग के एक मराक पदवी धारी कांग्रेसी ने बताया कि हम पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से ऊब चुके हैं। ऐसे में हमारे कई बड़े नेता भाजपा में जाने की तैयारी में हैं। वैसे भी, हमारे सामने ऐसा करने के सिवाय और कोई विकल्प शेष नहीं है। मिजोरम में आतंकी सरगना से नेता बने लालडेंगा की पार्टी नेडा गठबंधन में शामिल है। ऐसे में वहां भी भाजपा महज सहयोगी की भूमिका में दिखेगी।
नगालैंड, मेघालय और मिजोरम ईसाई बहुल राज्य हैं और इन तीनों राज्यों में कांग्रेस को छोड़ क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है। मजे की बात है कि इन राज्यों में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा ने स्पष्ट कर दिया कि वह पूर्वोत्तर राज्यों में बीफ पर पाबंदी लगाने के पक्ष में नहीं है। ऐसे में त्रिपुरा में पार्टी ने अभी से अपनी तैयारी शुरू कर दी है। अगरतला के भाजपा समर्थक विष्णु चक्रवर्ती का कहना है कि राज्य में 70 फीसद हिंदू आबादी बांग्लादेश से आकर यहां बसी है। संभावना है कि सीपीआई (एम) विरोधी वोट भाजपा और टीएमसी में बंट जाए। ऐसे में यहां माकपा को हराना आसान नहीं दिख रहा है।