जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने बीसीसीआई की चार सदस्यीय प्रशासक समिति (सीओए) से इस्तीफा दे दिया है। गुहा को सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से बीसीसीआई में आरएम लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए नियुक्त किया गया था। गुहा ने निजी कारणों से इस्तीफा देने की बात कही है।
गुहा ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि उन्होंने निजी कारणों से इस्तीफा दिया है। बताया जा रहा है कि इससे सीओए हैरान है। गुहा ने अपने इस्तीफे को लेकर सीओए के अपने किसी साथी से चर्चा नहीं की। हालांकि उच्चतम न्यायालय को उन्होंने बताया कि वह समिति के अध्यक्ष विनोद राय को इस बारे में सूचित कर चुके थे।
सीओए के एक सदस्य ने कहा, ‘‘मुझे उनके त्यागपत्र के बारे में मीडिया से ही जानकारी मिली।’ वैसे भी उनके पास सीओए के लिए काफी कम समय था। वह अपनी अकादमिक प्रतिबद्धताओं के कारण सीओए की आधी बैठकों में भी हिस्सा नहीं ले पाए थे। वे टीम इंडिया के कोच अनिल कुंबले को लेकर चल रही अटकलबाजी से भी खुश नहीं थे। कुंबले और भारतीय कप्तान विराट कोहली के बीच मतभेद की रिपोर्टों के बाद उनके कोच के रूप में भविष्य को लेकर अटकलें लगायी जा रही है।
गुहा, विनोद राय या विक्रम लिमये में से किसी ने भी बीसीसीआई से एक भी पैसा नहीं लिया है। हालांकि वे प्रत्येक कामकाजी दिन के लिए एक लाख रुपये लेने के लिए अधिकृत हैं। बीसीसीआई के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, ‘‘उन्हें खेल इतिहास के बारे में काफी ज्ञान है और वह काफी पढ़े लिखे हैं लेकिन क्रिकेट प्रशासन का संचालन करना पूरी तरह से हटकर है। बीसीसीआई हो या आईसीसी का मसला, विनोद राय और विक्रम लिमये ही मुख्य तौर पर फैसले करते रहे हैं।’
बीसीसीआई में कई का मानना है कि गुहा की कुंबले से करीबी भी उनके त्यागपत्र का एक कारण हो सकता है क्योंकि भुगतान ढांचे में परिवर्तन के पीछे इस इतिहासकार का दिमाग भी था। अब जबकि कुंबले मुश्किल स्थिति में है और बीसीसीआई में चल रहा गतिरोध किसी भी समय समाप्त हो सकता है तब गुहा ने शायद सोचा कि इससे बाहर निकलना ही उचित रहेगा। बीसीसीआई अधिकारी ने कहा, ‘‘यह सही है कि अनिल कुंबले ने स्वेच्छा से वेतन वृद्धि के लिए नहीं कहा था। उन्हें निश्चित तौर पर सीओए ने प्रस्तुति देने के लिए कहा था लेकिन इसकी शुरुआत बेंगलुरु में बीसीसीआई के वार्षिक पुरस्कार समारोह के दौरान हो गयी थी। गुहा वेतन वृद्धि की वकालत करने वालों में शामिल थे।’ गुहा ने क्रिकेट पर ‘विकेट इन द ईस्ट’ और ‘कार्नर अॉफ ए फोरेन फील्ड’ जैसी किताबें लिखी हैं। वे आईपीएल के धुर आलोचक थे लेकिन सीओए का हिस्सा होने के कारण उन्हें आईपीएल बैठकों के दौरान उपस्थित रहना होता था।