भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और उसकी कार्यप्रणाली का विवादों से पुराना नाता रहा है। बीसीसीआई की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने और उसे राजनीति से मुक्त करने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा कमेटी का गठन किया था और इस कमेटी की सिफारिशों को लागू करवाने के लिए प्रशासनिक कमेटी बनाई थी। मगर लगता है कि सुप्रीम कोर्ट की कोशिशों का कुछ असर नहीं हो रहा है। बीसीसीआई अाज भी अपने पुराने ढर्रे पर काम कर रहा है और प्रशासनिक कमेटी भी इसके रंग में रंग गया लगता है। बीसीसीआई की प्रशासनिक कमेटी में रहे मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा के खत से तो कम से कम ऐसा ही नजर आ रहा है।
रामचंद्र गुहा ने प्रशासनिक कमेटी से इस्तीफा देने के साथ कमेटी के अध्यक्ष विनोद राय को लिखे अपने सात पन्ने के पत्र में बीसीसीआई की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अपने पत्र में गुहा ने भारतीय क्रिकेट की ‘सुपरस्टार संस्कृति’, हितों के टकराव के मसले पर गौर नहीं करना और कोच अनिल कुंबले के प्रति ‘असंवेदनशील’ रवैया जैसे मसलों को उठाया है। कोच के चयन में कप्तान की दखलंदाजी पर सवाल उठाने के साथ ही सुनील गावस्कर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ के कथित हितों के टकराव पर भी सवाल खड़े किए हैं। अपने पत्र में उन्होंने पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को तीनों फॉर्मेट में नहीं खेलने के बावजूद ‘ग्रेड ए’ का अनुबंध देने पर भी सवाल उठाया है।
चुप्पी साधे बैठा है सीओए
गुहा ने बीसीसीआई में पारदर्शिता नहीं होने की शिकायत करते हुए स्टार क्रिकेटरों को बीसीसीआई और प्रशासनिक कमेटी द्वारा दी जा रही सुविधाओं पर भी सवाल खड़ा किया है। उन्होंने सीओए पर ‘चुप्पी साधे रखने और निष्क्रिय बने रहने’ का भी आरोप लगाया है और दावा किया है कि पैनल ‘दुर्भाग्य से इस मामले में सहभागी की भूमिका’ निभा रहा है। गुहा ने इसके साथ ही अपने स्थान पर पूर्व क्रिकेटर जवागल श्रीनाथ को प्रशासकों की समिति में रखने की सिफारिश भी की है।
कप्तान की दखलंदाजी पर सवाल
गुहा ने इस्तीफा देते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वे निजी कारणों से सीओए से हट रहे हैं लेकिन अपने पत्र में उन्होंने भारतीय क्रिकेट के कर्ताधर्ताओं से कई असहज सवाल किए हैं। उन्होंने कोच और कमेंटेटर पैनल की नियुक्ति जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर कप्तान विराट कोहली की ‘वीटो शक्ति’ पर सीधे सवाल उठाया है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कुंबले और कोहली का विवाद वास्तविक है।
उन्होंने कहा है कि यह निश्चित तौर पर सीनियर खिलाड़ियों में धारणा पैदा कर रहा है कि वे कोच को लेकर वीटो शक्ति रख सकते हैं जो कि सुपरस्टार संस्कृति का एक और उदाहरण है। इस तरह की वीटो शक्ति किसी भी अन्य देश में किसी भी अन्य खेल की किसी भी शीष स्तरीय पेशेवर टीम को नहीं दी जाती है। गुहा ने लिखा है कि आज खिलाड़ी कोचों और कमेंटेटरों (हर्ष भोगले को कमेंट्री के दौरान खिलाड़ियों की आलोचना करने पर बर्खास्त किया गया था) की नियुक्ति से संबंधित मसलों पर हस्तक्षेप कर रहे हैं। कल हो सकता है कि वे चयनकर्ता और पदाधिकारियों को लेकर अपना पक्ष रख सकते हैं।
धोनी ग्रेड ए में क्यों
गुहा ने भारतीय क्रिकेट में सुपरस्टार संस्कृति की कड़ी आलोचना करते हुए पत्र में लिखा है, ‘दुर्भाग्य से इस सुपरस्टार सिंड्रोम ने भारतीय टीम की अनुबंध प्रणाली को भी विकृत कर दिया है। आपको याद होगा कि मैंने महेंद्र सिंह धोनी को ‘ए’ ग्रेड का अनुबंध देने का मसला उठाया था क्योंकि वे टेस्ट मैचों से स्वयं ही हट गए हैं तो यह क्रिकेट की दृष्टि से सही नहीं था और इससे पूरी तरह से गलत संदेश गया।’ मालूम हो कि धोनी ने 2014 में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। इसके बावजूद उन्हें ग्रेड ए का अनुबंध दिया गया। गुहा ने लिखा है, ‘धोनी भारतीय टीम के जब कप्तान थे तो उनके उस कंपनी में शेयर थे जो कुछ वर्तमान खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व कर रही थी। (ऋति स्पोर्ट्स के संदर्भ में जो सुरेश रैना, कर्ण शर्मा, आरपी सिंह का काम देखती थी) इसे हर हाल में रोकना होगा और केवल हम ही इसे रोक सकते हैं।’
द्रविड़ पर उंगली
उन्होंने राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ियों के लिए बीसीसीआई और आईपीएल फ्रेंचाइजी में दोहरे अनुबंध की भी कड़ी आलोचना की है। गुहा ने लिखा है, ‘भारतीय टीम या एनसीए में अनुबंध रखने वाले किसी भी व्यक्ति को आईपीएल टीम के साथ भी अनुबंध करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’ द्रविड़ इस समय जूनियर क्रिकेट टीम के कोच होने के साथ आईपीएल की टीम दिल्ली डेयरडेविल्स के भी कोच हैं जबकि फील्डिंग कोच आर श्रीधर किंग्स इलेवन पंजाब से भी जुड़े हैं। उन्होंने लिखा है, ‘हितों के टकराव के सवाल पर तभी से गौर नहीं किया गया जबसे समिति ने अपना काम करना शुरू किया और जिस मसले को मैं शुरू से उठाता रहा हूं। मसलन बीसीसीआई ने कुछ राष्ट्रीय कोचों को राष्ट्रीय टीम के लिए दस महीने का अनुबंध देकर उन्हें काफी तरजीह दी है। इससे उन्हें बाकी दो महीनों में आईपीएल टीम का कोच या मेंटर बनने की छूट मिल जाती है।’ गुहा ने सीधे तौर पर द्रविड़ पर उंगली उठाते हुए कहा, ‘ऐसा मनमाने तरीके से किया गया। अधिक मशहूर पूर्व खिलाड़ी जो कोच बन गया हो उसे पूरी संभावना है कि बीसीसीआई खुद के अनुबंध का मसौदा तैयार करने की अनुमति दे ताकि कुछ कमियां रह जाएं और वह हितों के टकराव के मसले को चकमा दे सके।’
गावस्कर पर निशाना
गुहा ने सुनील गावस्कर के प्रोफेशनल मैनेजमेंट ग्रुप (पीएमजी) में व्यावसायिक हितों और उनकी फर्म के वर्तमान खिलाड़ी शिखर धवन का कामकाज देखने को लेकर भी सवाल उठाये हैं। उन्होंने असल में राय को याद दिलाया है कि उन्होंने पीएमजी द्वारा धवन को अनुबंधित करने का मसला कैसे उठाया था। गुहा ने पत्र में कहा है, ‘सुनील गावस्कर एक कंपनी के सर्वेसर्वा हैं जो भारतीय क्रिकेटर्स का प्रतिनिधित्व करती है जबकि बीसीसीआई द्वारा नियुक्त कमेंटेटर गावस्कर उन्हीं खिलाड़ियों पर बात भी करते हैं। ये तो हितों का टकराव है। गावस्कर को या तो पीएमजी से खुद को अलग कर लेना चाहिये या फिर कमेंट्री बंद कर देनी चाहिए। मुझे लगता है कि इस मामले में कार्रवाई करना न सिर्फ न्यायसंगत बल्कि जरूरी भी है। समिति की साख इस बात पर निर्भर करती है कि वो इस तरह के मामलों में कितने सख्त फैसले कर सकती है।’
गांगुली कैब अध्यक्ष और एक्सपर्ट भी
गुहा ने टीम इंडिया के एक अन्य पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को भी सवालों के घेरे में ला दिया है जो टीवी पर विशेषज्ञ होने के साथ ही बंगाल क्रिकेट संघ के वर्तमान अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा है, ‘राज्य संघों में भी हितों का टकराव बड़े पैमाने पर है। एक पूर्व मशहूर क्रिकेटर को मीडिया हाउस ने सक्रिय खिलाड़ियों पर टिप्पणी करने के लिए अनुबंधित किया है जबकि वह राज्य संघ का अध्यक्ष भी है।’ गुहा ने राय और उनके साथियों से कुछ कड़े फैसले करने का आग्रह किया है ताकि समिति की विश्वसनीयता बनी रहे। उन्होंने लिखा है, ‘सीओए की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता इस तरह के मसलों पर कड़े और सही फैसले लेने की क्षमता पर निर्भर है। सुपरस्टार संस्कृति का बीसीसीआई पर बुरा असर पड़ रहा है जिसका मतलब है कि कोई खिलाड़ी (पूर्व या वर्तमान) जितना मशहूर है उसे नियमों और व्यवस्था का उल्लंघन करने की उतनी अधिक छूट मिलेगी।’
कुंबले को लेकर रवैये पर नाखुश
गुहा के अनुसार पिछले सीजन में टीम इंडिया का रिकॉर्ड शानदार रहा है। इसका श्रेय अगर खिलाड़ियों को जाता है तो कोच और उसका स्टाफ भी इसका हकदार है। न्याय और काबिलियत पर आधारित सिस्टम में मुख्य कोच और उसकी टीम का कार्यकाल बढ़ाया जाना चाहिए था लेकिन उलटे कुंबले से कहा गया कि इस पोस्ट के लिए नए सिरे से आवेदन मंगवाए जाएंगे।उन्होंने कहा कि कुंबले की नियुक्ति एक साल के लिए हुई थी। फिर इस बारे में अप्रैल-मई में कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया जब आईपीएल चल रही थी? अगर कप्तान और कोच में नहीं बन रही थी तो मार्च में ऑस्ट्रेलिया का भारत-दौरा ख़त्म होते ही इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया?
बीसीसीआई सीईओ राहुल जौहरी और बीसीसीआई पदाधिकारी अमिताभ चौधरी के कोहली-कुंबले के बीच मतभेदों के मामले से ‘बेहद असंवेदनशील और गैर-पेशेवर तरीके’ से निपटने पर गुहा ने नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने इस मसले पर भी सवाल उठाया है कि घरेलू खिलाड़ियों और टीम इंडिया के खिलाडि़यों के पैसों में बड़ा अंतर है। उन्होंने भी कहा कि बीसीसीआई की मीटिंग में कई ऐसे अधिकारी शामिल हुए जिनको हटाया जा चुका है।