रमेश कुमार रिपु
चार साल पहले झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं को नक्सलियों ने क्यों मारा था? उन्हें किसने मरवाया था? आज तक इस बात का पता नहीं चल पाया। इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने की लेकिन वह भी इतने बड़े कांड के पीछे की सच्चाई का पता नहीं लगा पाई। चार साल बाद अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने रमन सरकार पर आरोप लगाया है कि झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं को मरवाने के लिए नक्सलियों को एक एजेंट के जरिये करोड़ों रुपये दिए गए थे। उनका आरोप है कि नक्सलियों को कैसे रुपये दिए गए, किसके जरिये पहुंचाया गया, क्यों दिया गया, रमन सरकार का उसमें कितना हाथ था, इसका पता न चले इसलिए राज्य सरकार ने आज तक सीबीआई से मामले की जांच के लिए पत्र तक नहीं लिखा।
बघेल का कहना है कि अब तक झीरम आयोग में हुई सुनवाई से यही पता चला कि कांग्रेस नेताओं को जानबूझ कर पर्याप्त सुरक्षा नहीं दी गई। किस षड़यंत्र के तहत ऐसा किया गया इसका खुलासा होना जरूरी है। कांग्रेस पिछले चार साल से मांग कर रही है कि झीरम कांड के षड़यंत्र की जांच होनी चाहिए। इस षड़यंत्र की जांच एनआईए ने नहीं की। यह आयोग के जांच के दायरे में भी नहीं है और न ही राज्य सरकार ने इसे सीबीआई को सौंपने के लिए जोर लगाया। कांग्रेस के आरोप पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना है, ‘एनआईए के सामने एक पर्ची तक देने की हिम्मत भूपेश बघेल की रही नहीं, अब कुछ भी आरोप लगा रहे हैं। गुमराह करने की राजनीति बंद की जाए। सिर्फ मीडिया में हिम्मत दिखाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।’
रिपोर्ट पर कांग्रेस को एतराज
एनआईए ने अपनी रिपोर्ट में इस हमले के लिए कांग्रेस नेताओं को ही जिम्मेदार ठहराया है। कांग्रेस ने एनआईए की रिपोर्ट को झूठ का पुलिंदा करार देते हुए कहा है कि जब तक मामले की जांच सीबीआई से नहीं होगी मामले का पदार्फाश नहीं होगा। सरकार के दबाव में एनआईए जांच डायरी की रिपोर्ट बदलती रही है। एनआईए की रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवर्तन यात्रा के दौरान कांग्र्रेस के नेताओं पर हमला सरकार को दहशत में डालने और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश का हिस्सा था। एनआईए ने विशेष अदालत में जो आरोप पत्र दायर किया है उसमें विवादास्पद मुद्दों को शामिल नहीं किया गया है। खासकर मरने वाले नेताओं के परिजन जिस षड़यंत्र की बात कर रहे हैं, जांच रिपोर्ट में वो बात नहीं है लेकिन घटना का सिलसिलेवार जिक्र विस्तार से है। इस घटना में मारे गए नेताओं नंद कुमार पटेल के बेटे विधायक उमेश पटेल, महेंद्र कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा, योगेंद्र शर्मा के बेटे हर्षित शर्मा और उदय मुदलियार के बेटे जितेंद्र मुदलियार आदि के परिजनों का कहना है कि पूरे मामले को वे सुप्रीम कोर्ट ले जाएंगे। वैसे, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से इस घटना की सीबीआई जांच की मांग कर चुका है। लेकिन उनका कहना था कि जब मामले की जांच एनआईए कर रही है तो एक ही मामले की जांच दो एजेंसी कैसे कर सकती है। इस पर प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें याद दिलाया कि जग्गी हत्याकांड की जांच दो एजेंसियों ने की थी। इस मामले की भी जांच सीबीआई से कराई जा सकती है। न्यायिक जांच आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रशांत मिश्रा हमले में घायल और मारे गए नेताओं के परिजनों से बात कर चुके हैं। ऐसे में इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि एनआईए की विशेष अदालत के फैसले के बाद भी विरोधाभास कायम रहेगा।
एनआईए की रिपोर्ट में विसंगतियां
भूपेश बघेल एनआईए की अंतिम रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘रिपोर्ट में काफी विसंगतियां हैं। कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा से ठीक पहले मुख्यमंत्री रमन सिंह की विकास यात्रा बस्तर से गुजरी थी। माओवादी यदि सरकार को अस्थिर करना चाहते थे तो हमला विकास यात्रा पर करते।’ नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव का कहना है कि एनआईए ने सरकार के दबाव में सच्चाई छिपाई है। वहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता एवं आरडीए अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि झीरम घाटी में नक्सली हमले की जांच तत्कालीन यूपीए सरकार ने एनआईए को सौंपी थी। अब उसकी रिपोर्ट पर कांग्रेस ही सवाल उठा रही है जो उसके दोहरे चरित्र को उजागर करता है।
श्रीवास्तव जो भी कहें मगर कुछ सवाल हैं जिनसे एनआईए की रिपोर्ट पर सवाल उठना लाजिमी है। जैसे एनआईए ने किन-किन चश्मदीदों से बात की, रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं है। घटना के चश्मदीद गवाह प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य दौलत रोहरा भी इस रिपोर्ट को अधूरा बता चुके हैं। रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि नक्सलियों को यह सूचना किसने दी कि परिवर्तन यात्रा में महेंद्र कर्मा शामिल हैं। परिवर्तन यात्रा से पहले रमन सिंह की विकास यात्रा निकली थी तो उस पर नक्सली हमला क्यों नहीं हुआ। कांग्रेस नेताओं के काफिले को तीरथगढ़ से तोंगपाल थाने तक सुरक्षा नहीं दी गई थी लेकिन रिपोर्ट में इस पर कोई टिप्पणी नहीं है। अब तक एनआईए इस मामले में केवल 9 लोगों को ही गिरफ्तार क्यों कर पाई। शेष 25 फरार क्यों हैं। गिरफ्तार व्यक्तियों के हमले का उल्लेख रिपोर्ट में क्यों नहीं है। साथ ही इस मामले में इतनी बड़ी सुरक्षा चूक कैसे हो गई, एनआईए की रिपोर्ट में इसका कोई उल्लेख क्यों नहीं है।
षड़यंत्र था हमला!
झीरम मामले में कांग्रेस के नए आरोपों से प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। भूपेश बघेल का कहना है, ‘झीरम कांड हमारे लिए राजनीति का कोई मुद्दा नहीं है। यह कांड केवल एक नक्सली हमला नहीं बल्कि एक गंभीर षड़यंत्र था। भाजपा सरकार इसकी जांच नहीं कराना चाहती है। शायद मुख्यमंत्री को पता नहीं है कि एनआईए झीरम मामले की जांच अब नहीं कर रही है। इसलिए एनआईए के समक्ष अब शपथ पत्र देने का कोई औचित्य नहीं है। अगर भाजपा सरकार की नीयत साफ है और कांग्रेस नेताओं को मरवाने में उसका कोई हाथ नहीं है तो मामले की जांच सीबीआई से करवाएं। मैं सीबीआई के सामने शपथ पत्र लेकर हाजिर हो जाऊंगा। झीरम कांड रमन सिंह के लिए राजनीति होगी हमारे लिए यह भावुक कर देने वाला दिल से जुड़ा मसला है। यह कांग्रेस पार्टी ही नहीं पूरे छत्तीसगढ़ के लिए अपूरणीय क्षति थी।’
एनआईए ने अपनी बेवसाइट में भी लिखा है कि झीरम कांड की जांच पूरी हो गई है। अब इस मामले की जांच नहीं हो रही है। ऐसी स्थिति में एनआईए को शपथ पत्र देकर अपनी बात कहने का कोई औचित्य नहीं जान पड़ता। जबकि मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं कि यदि किसी को आपत्ति है तो एनआईए को शपथ पत्र देकर अपनी बात कह सकते हैं। यही बात गृह मंत्री राम सेवक पैकरा भी कहते हैं। तो क्या यह माना जाए कि मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के किसी भी मंत्री को पता नहीं है कि झीरम मामले की जांच अब एनआईए ने बंद कर दी है।
संदेह के घेरे में रमन सरकार
इस मामले में सरकार का रवैया भी संदेह को जन्म देता है। विधानसभा के पिछले बजट सत्र में जब झीरम पर चर्चा हुई थी तो कांग्रेस ने विस्तार से इस बारे में तर्क रखे थे। पूरा सदन इस बात से सहमत था कि झीरम हत्याकांड में जितनी भी जांच हुई है वह घटना की जांच है। इसके षड़यंत्र की जांच नहीं हो रही है। गौरतलब है कि एनआईए ने आरोप पत्र और पूरक आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर दिए हैं। दोनों से साफ है कि षड़यंत्र की जांच नहीं हुई। एक जांच आयोग भी बना है लेकिन उसकी जांच के दायरे में षड़यंत्र का पता लगाना नहीं है। विधानसभा में जब सदन एकमत हुआ तो रमन सिंह ने दबाव में बेमन से घोषणा की थी कि इस मामले को सीबीआई को सौंपा जाएगा। लेकिन हुआ यह कि यह मामला सीबीआई की भिलाई शाखा को भेज दिया गया जो आर्थिक अपराध शाखा है।
रमन सरकार संदेह के घेरे में इसलिए भी है कि जब इस घटना से ठीक पहले बस्तर में भाजपा की विकास यात्रा निकली थी तो सुरक्षा में 1700 सुरक्षा कर्मी तैनात थे। जबकि उसी बस्तर में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा सिर्फ 138 सुरक्षा कर्मियों के भरोसे थी। वह भी तब जब सरकार को पता था कि वह इलाका नक्सलियों का है तो सुरक्षा के अतिरिक्त इंतजाम क्यों नहीं किए गए। यही नहीं, बस्तर के तत्कालीन आईजी को यह पता ही नहीं था कि महेंद्र कर्मा कौन हैं जबकि वे उस समय नेता प्रतिपक्ष थे। महेंद्र कर्मा नक्सलियों से लड़ाई में खुलकर सरकार का साथ दे रहे थे। साथ ही इसघटना के दो घंटे बाद तक एक भी सुरक्षा कर्मी के घटनास्थल पर न पहुंचने को लेकर भी प्रदेश सरकार पर सवाल उठते रहे हैं। कश्मीर के बाद बस्तर ही ऐसा इलाका है जहां भारी भरकम सुरक्षा व्यवस्था है। इसके बावजूद सुरक्षा में खामी संदेह को मजबूती देती रही है।
दाल में काला
खुद को पुलिस का मुखबिर कहने वाले अभय सिंह बंटी के हवाले से भूपेश बघेल ने सरकार और माओवादियों के बीच मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहा कि अभय सिंह से सरकार पीछा छुड़ाना चाहती है। इसलिए उसे जेल में बंद कर दिया गया है। पुलिस पर गंभीर आरोपों के बाद भी गृह सचिव अरुणदेव गौतम कहते हैं कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है। यदि ऐसा कोई मामला है और आता है तो उसे संज्ञान में लिया जाएगा। बघेल कहते हैं कि अगर भाजपा सरकार की नीयत साफ है तो अभय सिंह से जेल में मिलने में सरकार को पसीना क्यों आ रहा है। अंबिकापुर जेल में बंद अभय सिंह ने ही भूपेश बघेल को इस षड़यंत्र की जानकारी दी है। बघेल कहते हैं, ‘सरकार को बताना चाहिए कि आखिर अभय सिंह ने 2013 में झीरम नक्सली हमले से पहले ही इस तरह की वारदात का अंदेशा जताया था तो फिर उसे जेल में डालने के पीछे का सच क्या है। जेल में उसे प्रताड़ित भी किया जा रहा है।’ इस हमले से पहले प्लान बनाए जा रहे मामले की सीडी के बारे में अंबिकापुर पुलिस अभय से पूछताछ भी कर रही है। अभय सिंह पर कई मामले चल रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने कहते हैं कि भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ षड़यंत्र रच रहे हैं। नियमों का उल्लंघन कर वे अपराधी से मिलते हैं। सीएम ने अभय से बघेल के मिलने की जांच के आदेश दिए हैं। झीरम की तपिश अगले चुनाव में नया रंग दिखा सकती है।