सुनील वर्मा।
ल ‘ये बंद कराने आये थे तवायफों के कोठे . . . . .
मगर सिक्कों की खनक देखकर खुद ही नाच बैठे’
मशहूर शायर गालिब का ये शेर यूं तो किसी और संदर्भ में कहा गया है लेकिन आज के राजनीतिक माहौल में ये पंक्तियां आम आदमी पार्टी और इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल पर एकदम सटीक बैठती हैं। जिस राजनीति व सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को साफ करने के लिए केजरीवाल राजनीति में आए थे आज वे खुद उसी भ्रष्टाचार के आरोपों से चौतरफा घिर चुके हैं। पंजाब, गोवा विधानसभा चुनाव और दिल्ली के तीनों नगर निगमों के चुनाव में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी (आप) में शुरू हुई आंतरिक कलह अब अपने चरम पर पहुंच गई है। आप में मचे घमासान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्लीसरकार के एक मंत्री कपिल मिश्रा को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अचानक कैबिनेट से हटा दिया। इसके बाद मिश्रा ने पार्टी से बगावत कर सीधे अरविंद केजरीवाल पर मंत्री सत्येंद्र जैन से दो करोड़ रुपये घूस लेने का आरोप लगा दिया। उन्होंने कहा कि यह रिश्वत केजरीवाल के एक रिश्तेदार की 50 करोड़ रुपये की जमीन की डील के लिए दी गई। मिश्रा का दावा है कि सत्येंद्र जैन ने उनके सामने मुख्यमंत्री आवास पर केजरीवाल को यह रकम दी थी।
कपिल मिश्रा के आरोपों का सिलसिला यहीं नहीं थमा। उन्होंने दिल्ली के एंटी करप्शन ब्यूरो और सीबीआई तक से दिल्ली सरकार में हो रहे घपले घोटालों की शिकायत की। मिश्रा के आरोपों का केजरीवाल ने तो जवाब नहीं दिया मगर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने सफाई देते हुए आरोप लगाया कि कपिल मिश्रा भाजपा के इशारे पर यह सब कर रहे हैं। इसके बाद जाहिर है मिश्रा को पार्टी से बर्खास्त किया जाना था ही। इसके बाद तो कपिल मिश्रा एक कदम और आगे बढ़ गए। पार्टी के पांच नेताओं सत्येंद्र जैन, दुर्गेश पाठक, संजय सिंह, आशीष खेतान और राघव चड्ढा की पिछले दो सालों में हुई दर्जनों विदेश यात्राओं की फंडिंग और मकसद की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग को लेकर मिश्रा अपने घर के सामने ही अनिश्चित कालीन हड़ताल पर बैठ गए। इस दौरान एक व्यक्ति ने उन पर हमला कर दिया। मिश्रा ने पार्टी के इन नेताओं की विदेश यात्रा को हवाला के लेनदेन, विदेशी चंदे की घपलेबाजी समेत देश की सुरक्षा के लिए घातक होने की आशंका जताई है।
कपिल मिश्रा जिस हद तक आगे बढ़ चुके हैं उसे देखकर साफ लग रहा है कि उनके आरोपों की फेहरिस्त और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बगावत काफी आगे तक जाएगी। पार्टी से जुड़े लोगों का ये भी कहना है कि इस बार केजरीवाल के खिलाफ पार्टी के ही एक मंत्री और बेदाग छवि के नेता ने मोर्चा खोला है तो केजरीवाल के लिए बचकर निकलना इतना आसान नहीं होगा जितना समझा जा रहा है। ऐसे समय जब आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली समेत पूरे देश में जनता को धोखा देने का माहौल है तो मिश्रा की बगावत पार्टी में भी महाभारत का सबब बन सकती है। लेकिन इस पूरे घटनक्रम में एक बात काबिले गौर है कि छोटे-छोटे मुद्दे पर मीडिया से मुखातिब होने वाले केजरीवाल उन आरोपों पर पूरी तरह चुप क्यों हैं जिसने पार्टी की साख को दांव पर लगा दिया है। इससे संदेह और गहरा गया है कि कुछ तो परदेदारी है।
सवाल मिश्रा को लेकर भी उठ रहे हैं कि मंत्री पद से हटाए जाने के बाद आखिर उन्होंने बगावत क्यों की? क्या यह सिर्फ मंत्री पद छिनने की नाराजगी है या इसके पीछे कोई और कहानी है या फिर किसी के इशारे पर उन्होंने बगावत का झंडा बुलंद किया है। क्योंकि अपनी ही सरकार, पार्टी और मुखिया से बगावत का उनका ये अंदाज सामान्य नहीं है। मामला चाहे जो भी हो मगर इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे रहा है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली पार्टी और उसके राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की छवि आज खुद भ्रष्टाचारियों के रहनुमाओं की क्यों बन गई है? जिस पार्टी ने सिर्फ दो साल पहले मोदी लहर की हवा निकालते हुए दिल्ली की 70 सीटों में से 67 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई थी उसके ही मंत्री और विधायक एक-एक कर विभिन्न आरोपों में फंसते गए। आप के पांच मंत्रियों और 31 विधायकों के दामन पर दाग लग चुके हैं। ज्यादातर दागी विधायक जेल की हवा भी खा चुके हैं।
केजरीवाल सरकार बनने के तीन महीने बाद ही कानून मंत्री जितेंद्र तोमर के फर्जी डिग्री कांड में जेल जाने के बाद शुरू हुई पार्टी की किरकिरी बाद के दिनों में मंत्री संदीप कुमार के राशन कार्ड बनाने के बहाने एक महिला का शारीरिक शोषण करने में घिरने तक जारी रही। एक अन्य मंत्री असीम अहमद खान को तो बिल्डर से रिश्वत लेते हुए स्टिंग आॅपरेशन को तो पूरे देश ने देखा। अब चौथे मंत्री कपिल मिश्रा पार्टी के लिए संकट बने हैं जो कल तक मुख्यमंत्री के बगलगीर हुआ करते थे उन्होंने पांचवें मंत्री सत्येंद्र जैन पर केजरीवाल को रिश्वत देने का आरोप लगा दिया। मतलब जो पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक उम्मीद बनकर सत्ता में आई थी उसी की सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी नजर आ रही है।
हार से शुरू हुई रार
हालिया घटनाक्रम एमसीडी चुनाव की हार के बाद शुरू हुआ। पार्टी में अरविंद केजरीवाल के फैसलों को लेकर अब सवाल उठने शुरू हो गए हैं। आरोपों का सिलसिला पंजाब में पार्टी का प्रमुख चेहरा रहे सांसद भगवंत मान ने शुरू किया। मान ने चुनावी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने के पार्टी हाई कमान के फैसले पर सीधे सवाल उठा दिए। मान ने कहा, ‘जिस सूबे में हमारी सरकार है वहां तीन में से एक भी निगम में सरकार बनाने लायक सीट नहीं मिली, मतलब कहीं न कहीं जनता के बीच हमारी शोहरत कम हो रही है। ऐसा क्यों हो रहा है इसे लेकर सार्वजिनक रूप से चिंतन करना होगा। चंद लोग मिलकर अगर फैसले लेते रहे तो परिणाम आगे भी अच्छे नहीं मिलेंगे।’ दरअसल, भगवंत मान ने केजरीवाल के फैसलों की जो आलोचना की उसके पीछे उनकी टीस छिपी थी। पंजाब में उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में पेश न करने का दर्द उनके बयानों के जरिये बाहर आता रहा। बाद में उन्हें पंजाब का पार्टी संयोजक बना दिया गया जिसके विरोध में पूर्व संयोजक गुरप्रीत सिंह घुग्गी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। मान की खिलाफत से मामला उतना नहीं बिगड़ा लेकिन जब पार्टी के संस्थापक सदस्य कुमार विश्वास ने कुछ विवादास्पद ट्वीट कर पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने और चिंतन करने की वकालत की तो विरोध व गुटबाजी को हवा मिल गई।
उसी वक्त सोशल मीडिया पर विश्वास का एक वीडियो वायरल हुआ जो कश्मीर में सेना के जवानों की हत्याओं को लेकर उनकी भावनाओं से जुड़ा था। लेकिन इसमें जिस तरह के उद्गार थे उसने केजरीवाल की राजनीति पर भी सवाल खडेÞ किए थे। इसके जवाब में पार्टी के ओखला से विधायक अमानतुल्ला खान ने कुमार विश्वास पर आरोप लगा दिया कि वे भाजपा के एजेंट के तौर पर पार्टी को तोड़ने में लगे हैं। इसके बाद तो आप में न खत्म होने वाली महाभारत शुरू हो गई। खुद पर लगे आरोपों से नाराज विश्वास ने सार्वजनिक रूप से अमानतुल्ला को पार्टी से निकालने की मांग कर डाली। उनके सर्मथन में कपिल मिश्रा, इमरान हुसैन, राजेश रिषी, आदर्श, अलका लांबा और संजीव झा समेत करीब 37 विधायकों और नेताओं ने केजरीवाल को पत्र लिखकर अमानतुल्ला को पार्टी और राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से निकालने की मांग कर डाली। मनीष सिसोदिया के जरिये कुमार विश्वास को मनाने की असफल कवायदों के बाद जब मामले ने तूल पकड़ लिया तो अमानतुल्ला ने खुद ही पीएसी से इस्तीफा दे दिया। बाद में उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया गया जो अपनी जांच रिपोर्ट पीएसी को सौंपेगी। उसी के बाद अमानतुल्ला के पार्टी से निष्कासन का निर्णय होगा। अमानतुल्ला को निलंबित कर कुमार विश्वास की नाराजगी दूर करने की कोशिशों के तहत उन्हें राजस्थान का प्रभारी बना दिया गया।
अमानतुल्ला के पीछे कौन?
दरअसल, इस फैसले के पीछे केजरीवाल और सिसोदिया की मजबूरी भी छिपी थी क्योंकि विश्वास अन्ना आंदोलन से ही उनसे जुड़े रहे हैं और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। आंतरिक कलह से जूझ रही पार्टी ऐसे वक्त में उनकी नाराजगी झेलने के लिए तैयार नहीं थी। केजरीवाल की कार्यशैली से नाराज आप के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अमानतुल्ला ने केजरीवाल और सिसोदिया के इशारे पर ही कुमार विश्वास के खिलाफ विवादित बयान दिया। लेकिन पासा उलटा पड़ते देख बाद में रस्म अदायगी के लिए उन्हें प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। अगर केजरीवाल वाकई इस मुद्दे पर गंभीर थे तो उन्हें अमानतुल्ला को निष्कासित करना चाहिए था।’ उनकी इस बात में दम लगता है क्योंकि इस घटनाक्रम के दूसरे ही दिन केजरीवाल के आदेश से विधानसभा के सचिव प्रसन्न कुमार सूर्यदेवरा ने साल 2017-2018 के लिए विधानसभा की समितियों के पुनर्गठन के लिए जो आदेश जारी किए उसमें विधायक अमानतुल्ला खान को छह समितियों एससी- एसटी समिति, विशेषाधिकार समिति, विधायकों के वेतन भत्ते संबंधी समिति, आचार समिति, गैर सरकारी एवं प्रस्ताव समिति का सदस्य और अल्पसंख्यक कल्याण समिति का अध्यक्ष बना दिया गया। रूठे कुमार विश्वास की मान मनौव्वल के बाद लगा कि पार्टी की रार अब शांत हो गई है। लेकिन इसके अगले ही दिन एक ऐसा घटनाक्रम सामने आया जिससे पार्टी में भूचाल आ गया और केजरीवाल सीधे भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरते नजर आए।
कपिल के आरोपों में कितना दम?
ताजा घटनाक्रम 6 मई को तब शुरू हुआ जब अरविंद केजरीवाल ने अचानक जल संसाधन और पर्यटन मंत्री कपिल मिश्रा को मंत्री पद से हटा दिया और उनकी जगह नजफगढ़ के विधायक कैलाश गहलोत को मंत्री बना दिया। इस फैसले से गुस्साए मिश्रा ने इसे एकतरफा करार दिया। डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने मीडिया को मिश्रा की मंत्री पद से छुट्टी करने का कारण उनका खराब प्रदर्शन बताया और कहा कि दिल्ली नगर निगम चुनाव के दौरान दिल्ली में पानी की सप्लाई की जबरदस्त समस्या पैदा हुई जिसे संभालने में कपिल मिश्रा नाकाम रहे। नतीजतन चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन साथ ही ये भी अटकलें गर्म हुईं कि कुमार विश्वास का करीबी होने के चलते उन पर कार्रवाई हुई है। दरअसल, विश्वास-अमानतुल्ला विवाद के दौरान कपिल मिश्रा प्रमुखता से कुमार विश्वास के साथ खड़े दिखाई दिए थे। पार्टी के भीतरी लोग दबी जुबान से ये भी कह रहे हैं कि कपिल मिश्रा भी उन नेताओं में से एक हैं जो भाजपा के संपर्क में हैं और कभी भी पार्टी को धोखा दे सकते थे। इसीलिए उन्हें हटाने का अचानक फैसला लिया गया।
मिश्रा को मंत्री पद से हटाए जाने के तुरंत बाद कुमार विश्वास ने जो ट्वीट किया उससे भी साफ हो गया कि आप की रार अभी थमी नहीं है। विश्वास ने ट्वीट कर कहा,‘देश और कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाता हूं कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ अंदर और बाहर आवाज उठाना जारी रखेंगे, परिणाम चाहे कुछ भी हो! भारत माता की जय।’ मिश्रा ने भी कहा, ‘केजरीवाल और उनके करीबी लोग शीला दीक्षित के वाटर टैंकर घोटाले को दबाने की कोशिश में लगे हैं। मैंने एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री से कह दिया था कि वे उन सभी नामों को एसीबी को सौंपने जा रहे हैं। इसी के बाद उन्हें मंत्री पद से हटाया गया।’ मिश्रा सिर्फ मीडिया के सामने ही आरोप नहीं लगा रहे बल्कि एसीबी से लेकर सीबीआई तक को उन्होंने केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार के कथित साक्ष्य बंद लिफाफे में सौंप दिए हैं। पार्टी के सभी भेद जानने वाले कपिल मिश्रा एक-एक कर केजरीवाल पर चौंकाने वाले खुलासे करने की तैयारी में हैं। इससे कांग्रेस और भाजपा को केजरीवाल के खिलाफ पहली बार बड़ा मुद्दा मिला है। इसलिए दोनों पार्टियां आप के खिलाफ हमलावर हैं और केजरीवाल से इस्तीफे की मांग कर रही हैं। देखना है मिश्रा की बगावत क्या गुल खिलाएगी।