उमेश सिंह।
ओपिनियन पोस्ट की टीम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के गांव पहुंची तो पाया कि रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बने तक के जिन्दगी के सफर में उनकी भाभी विद्यावती का बहुत योगदान है। चार वर्ष की आयु में ही मां की छाया छिन गया। कुछ साल बाद पिता मैकू का भी स्वर्गवास हो गया। दोनों के जाने के बाद रामनाथ कोविंद की रिश्ते में भाभी विद्यावती ने मां का धर्म निभाया। साथ ही सात लोगों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी भाभी विध्यावती और बड़े भाई के कंधों पर आ गई। रामनाथ कोविंद का अपने बड़े भाई से गहरा रिश्ता था और वो ही इनके पढ़ाई लिखाई की जरूरतें पूरा किया करते थे।
रामनाथ के बचपन को याद करते हुए उनकी भाभी विद्यावती कहती हैं कि, ‘गेहूं से कंकड़ बीन कर निकालती थी तो वह कंकड़ को गेहूं में फिर मिला देते थे। अजवाइन की कचौड़ी और बेसन की गाढ़ी कढ़ी मेरे लल्ला (रामनाथ) को बहुत पसंद है। लल्ला मुझे इलाज के लिए कानपुर ले जाते थे तो डॉक्टर के यहां जितनी देर में नंबर आता था, उसी बीच में सिनेमा भी कई बार देखा है।’ विद्यावती अपनी पुत्रियों के साथ उस कमरे में गर्इं जो मंदिर जैसा था। यहां पर रामनाथ के भाई की तस्वीर को छूते हुए कहा कि ‘रामनाथ को राजनीति में रुझान इन्हीं की प्रेरणा से हुआ था।’ पूर्व में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान बड़े भाई स्व. शिवबालक ने बेटी के विवाह तक को टाल दिया था। कंचन जब पांच वर्ष की थी तो चाचा रामनाथ कोविंद उनके जन्मदिन पर झींझक स्थित ओमनगर के घर पर आए थे। वह तस्वीर देखकर कंचन भावुक हो गई।