राजीव थपलियाल।
बाघों के संरक्षण के लिए बने जिम कार्बेट पार्क के जानवरों पर शिकारी कहर बनकर टूट रहे हैं। मानव प्रवेश रोकने के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद शिकारियों की निर्बाध आवाजाही यहां जारी है और वे बाघों और अन्य वन्य प्राणियों का शिकार कर रहे हैं। बाघों के संरक्षण पर कार्य करने वाली संस्था ‘आई आॅफ द टाइगर’ का दावा है कि विगत दो-तीन सालों में जिम कार्बेट पार्क में बाघों की संख्या में भारी गिरावट आई है। संस्था ने इस शिकार के पीछे वन विभाग के अधिकारियों की लापरवाही को भी जिम्मेदार बताया है। संस्था के मुख्य पदाधिकारी एवं उत्तराखंड राज्य वन्य जीव सलाहकार बोर्ड के पूर्व सदस्य राजीव मेहता ने कहा कि 2014 से फरवरी 2017 तक पुलिस व अन्य एजेंसियों ने बाघ व गुलदार की 55 खालें, करीब एक दर्जन भालुओं के पित्तियां समेत बड़ी मात्रा में चीतल व सांभर के सींग पकड़े हैं। राज्य के मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री, वन मंत्री सहित सभी सक्षम प्राधिकारियों से वन्य जीवों की जान बचाने की गुहार लगाई है। वन्य जीवों पर रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार पृथ्वी सिंह चौहान की मानें तो वन संपदा को अवैध शिकार और वनाग्नि आदि से होने वाला नुकसान सरकारी दावों से कहीं ज्यादा होता है। उन्होंने कहा कि आए दिन शिकारियों से वन्य प्राणियों के अवशेष बरामद होना साफ ताकीद करता है कि जंगल में कुछ तो अमंगल हो रहा है।
चौंकाते हैं आंकड़े
राजीव मेहता के बताए आंकड़े आश्चर्य में डालने के साथ वन्य जीवों की निर्मम हत्या को लेकर चिंता भी पैदा करते हैं। मेहता ने बताया कि उत्तराखंड की एसटीएफ ने अलग-अलग शिकारियों को गिरफ्तार कर 2014 में बाघ की आठ खालें, 2015 में 10 खालें, 2016 में 30 खालें तथा 2017 की फरवरी में आठ खालें बरामद कीं। इसके अलावा मार्च 2016 में एसटीफ ने 130 किलो बाघ की हड्डियां और बड़ी मात्रा में दूसरे जानवरों के अंग पकड़े हैं। मेहता ने कहा, ‘यह तो वह सामग्री है जो शिकारियों के पकड़ में आने से जानकारी में आई। यदि कार्बेट पार्क में चल रहे शिकारी-अधिकारी के गोरखधंधे की जांच सीबीआई से कराई जाए तो असलियत बेहद डरावनी मिलेगी। उत्तराखंड राज्य वन्य जीव सलाहकार बोर्ड के सदस्य राजीव मेहता ने आश्चर्य जताया कि ‘भारत सरकार द्वारा वाइल्ड लाइफ विंग को करोड़ों रुपये सीक्रेट फंड के तहत दिए जाते हैं। इसके बावजूद वन विभाग वन्य प्राणियों के शिकार को रोक पाने में नाकाम है। वन विभाग का खुफिया तंत्र सक्रिय नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘जाहिर सी बात है कि वन अधिकारी जानवरों की हत्या का कारोबार रोकने के बजाय मामलों का खुुलासा दबाने के प्रयास में अधिक रहते हैं। कई बार वन अधिकारियों को पार्क में शिकारियों की मौजूदगी की जानकारी भी अलग-अलग स्रोतों से मिली, लेकिन ज्यादातर इसे अनसुना कर दिया गया।’
वन्य जीव प्रतिपालक कटघरे में
राजीव मेहता ने प्रमुख वन संरक्षक को लिखे शिकायती पत्र में वन्य प्राणियों के इस शिकार के लिए कार्बेट अधिकारियों पर आरोप लगाया। मेहता ने बताया, ‘राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण(एनटीए) ने देश के सभी टाइगर रिजर्व में बाघों की आवाजाही की मॉनीटरिंग करना प्रत्येक वर्ष के लिए अनिवार्य किया है। 2007 से 2015 तक कार्बेट नेशनल पार्क में वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान की साझेदारी में यह मॉनीटरिंग लगातार हुई। इसके बाद यह मानीटरिंग जानबूझकर नहीं की गई।’ मेहता के अनुसार, ‘2016 में बरामद बाघ की खालों के कार्बेट पार्क का होने की पुष्टि के बावजूद तत्कालीन पार्क निदेशक व वन्य जीव प्रतिपालक ने बाघों की किसी भी प्रकार की कैमरा ट्रैपिंग/मानीटरिंग करवाना उचित नहीं समझा। यहां तक कि उक्त खालों की बरामदगी से कुछ दिन पूर्व एक एनजीओ ने बाबरियों के इस क्षेत्र में सक्रिय होकर बाघों के शिकार की आशंका प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव/मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक एवं पार्क निदेशक को एसएमएस भेजकर जताई थी। इसके बाद भी इन अधिकारियों ने अधीनस्थों को न तो अलर्ट जारी किया और न ही गश्त बढ़ाने का आदेश दिया।’
उत्तराखंड राज्य वन्य जीव सलाहकार बोर्ड के पूर्व सदस्य मेहता के मुताबिक, ‘कार्बेट पार्क के अंदर 2016 में जानबूझकर इसलिए यह कैमरा ट्रैपिंग/मानीटरिंग इसलिए नहीं की गई कि इस क्षेत्र में हुए अत्यधिक बाघों के शिकार का खुलासा न हो पाए। साथ ही शिकार प्रकरण पर लीपापोती की जा सके।’ मेहता ने बताया, ‘जब भी वनों में पेड़ों का अत्यधिक कटान होता है या वन्य प्राणियों का शिकार होता है तो संबंधित अधिकारियों को निलंबित किया जाता है। लेकिन उत्तराखंड के रिजर्व पार्क में इतनी तादाद में बाघों का शिकार होने के बावजूद किसी भी प्रकार की कैमरा ट्रैपिंग/मानीटरिंग करवाने के साथ ही शिकार की गहन जांच पड़ताल न करवाना पूर्व प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव/मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक एवं तत्कालीन पार्क निदेशक को शक के घेरे में लाता है।’
नेपाल में भी पकड़ी कार्बेट के बाघ की खाल
कार्बेट के शिकारियों के तार अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुडेÞ हैं। 25 सितंबर 2015 को नेपाल के सुनसरीमा जिले की पुलिस ने दो भारतीयों को बाघ की खाल के साथ गिरफ्तार किया। ये दोनों बाबरिया गिरोह से ताल्लुक रखने वाले बागड़ी समुदाय के थे। इस बरामदगी की सूचना पर आॅई आॅफ टाइगर के पदाधिकारियों ने नेपाल से जानकारी जुटाकर कार्बेट प्रशासन के साथ ही भारतीय वन्य जीव संस्थान को खाल की तस्वीरें जांच के लिए भेजीं। बाघों का गहनता से अध्ययन करने वाली इस संस्था को यकीन था कि बाघ की यह खाल कार्बेट पार्क की है। इस संवेदनशील मामले में कई बार पत्र लिखने और व्यक्तिगत अनुरोध के बाद भी दोनों संस्थाओं ने खाल के मिलान में गंभीरता नहीं दिखाई। आखिरकार 6 जून 2017 को वन मंत्री हरक सिंह रावत की फटकार के बाद भारतीय वन्य जीव संस्थान चेता और पुष्टि की कि नेपाल में पकड़ी गई खाल कार्बेट के बाघ की ही थी।
बाबरिया गिरोह सक्रिय
बाबरिया समुदाय के लोग कार्बेट के वन्य प्राणियों के लिए काल बने हुए हैं। अब तक पकड़े गए वन्य प्राणियों के सभी शिकारी बाबरिया समुदाय के हंै। इस घुमंतू जाति के लोग सदियों से जंगली जानवरों का शिकार करते आए हैं। इस गिरोह के लोग बड़ी बर्बरता से जानवरों को मारकर उनकी खाल व अन्य अंगों को अंतरराष्ट्रीय तस्करों तक पहुंचाते हैं। जो इन्हें चीन या दूसरे देशों में पहुंचाते हैं, जहां महंगे दामों पर इनसे यौन उत्तेजना की दवाएं तैयार की जाती हैं। इन शिकारियों और तस्करों का नेटवर्क इतना मजबूत है कि वे तमाम प्रतिबंधों के बावजूद वन्य जीव संपदा को नुकसान पहुंचाते रहते हैं। 2014 से अब तक पकड़ी गई बाघों, भालू, हिरन, चीतल, सांभर, हाथी की 55 खालें इन्हीं बाबरिया गिरोह के लोगों से मिलीं। पूर्व मुख्य प्रमुख वन संरक्षक श्रीकांत चंदोला ने बताया कि ये लोग पार्क के अंदर घुसकर खटके (लोहे का कांटेदार फंदा) में जानवरों को फंसाते हैं और फिर बरछे-भालों को जानवर के मुंह में डालकर लाठियों से पीटपीटकर उसकी हत्या कर देते हैं। इसके बाद यह पार्क से कुछ दिन दूर रहकर फिर वारदात करने आ जाते हैं।
पार्क में मिले जानवरों से बर्बरता के निशान
13 मार्च 2016 को एसटीएफ ने हरिद्वार जिले से रामचंदर उर्फ चंदर नामक एक व्यक्ति को बाघों की पांच खाल और 130 किलो हड्डियों के साथ पकड़ा। उसने बताया कि बाघ को कार्बेट पार्क में मारकर वे गड्ढों में छिपा देते हैं। ये गड्ढे उसके रिश्तेदारों और बिरादरी के हैं। खरीदार मिलने पर खाल, नाखून व हड्डियां गड्ढों से निकालकर ग्राहकों को बेच देते हैं। 15 मार्च को रामचंदर की निशानदेही पर उत्तराखंड राज्य वन्य जीव सलाहकार बोर्ड के सदस्य राजीव मेहता ने एक टीम के साथ पार्क में बताए गए क्षेत्र का दौरा किया। सात घंटों की छानबीन के बाद टीम को करीब 32 गड्ढे मिले। इन गड्ढों में टीम को जानवरों से की गई बर्बरता के सबूत मिले। गड्ढों में और आसपास हड्डियां, मांस, खून से लथपथ कपड़े, खून से सने बहुत से पॉलीथीन व कई धारदार नुकीले भाले बरामद हुए। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इन्हीं भालों को चुभोकर बाघों और अन्य जानवरों की जान ली गई।
शिकारियों के प्रवेश की सीबीआई जांच की मांग
रिजर्व पार्क में हो रहे बाघों के शिकार पर मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक डीबीएस खाती का कहना था कि जो भी मामले आते हैं उनकी जांच की जाती है। फिलहाल वे छुट्टियों पर बाहर हैं, इसलिए ज्यादा जानकारी देना संभव नहीं है। राजीव मेहता को पूरा भरोसा है कि उत्तराखंड के जंगलों में जो भी अवैध शिकार हो रहा है, उसके लिए मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक, पार्क निदेशक समेत कुछेक अन्य अधिकारियों के कामकाज की निष्पक्ष जांच हो तो बहुत बड़े रैकेट का खुलासा हो सकता हैं। वे कहते हैं, ‘बगैर वन अधिकारियों की जानकारी के शिकारी समुदाय पूरे परिवार के साथ जंगल में दिनों-दिनों तक नहीं रह सकता।’ वह मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग करते हैं। फिलहाल मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत और वन मंत्री हरक सिंह रावत दोनों ने ही मामले में दिलचस्पी दिखाई है। वनमंत्री ने जहां अधिकारियों को फटकारा है, वहीं मुख्यमंत्री ने मामले की गंभीरता से पड़ताल का आश्वासन दिया है।