निशा शर्मा।
शब्दों का जादूगर गुलज़ार…जो खुद महकता है, दूसरों को अपनी खूशबू से महकाता है। ये जादूगर शब्द-शब्द लिखता है और शब्दों की तह सा रूह में उतरता है फिर ऐसा लगता है कि उसके लिखे के मोहपाश में हम बंध गए हैं और इस मोहपाश से निकलना आसान नहीं है। ये वो शख्स है जो नवाज़िशों से ऊपर लगता है।
ये शख्स करीब आठ दशकों से कभी अपनी नज्मों, नग्मों, फिल्मों के जरिये, कभी अपनी आवाज़ में ठहराव लेकर हमारे दिलों के तार छेड़ता है, कभी दिलों में दर्द भरता है तो वहीं उस दर्द से उभरने का जरिया बताता है। कभी खुशियों की सौगात लाता है तो कभी उन्हीं खुशियों को पल छिन बताकर ओझल हो जाता है।
फिल्मी दुनिया में ये नाम एक विरासत- सा हो गया है। जिसे पिछले आठ दशकों से बच्चों से जवान और जवान से बूढ़ी होती पीढ़ी ने पढ़ा ही नहीं खुद में संजोया, संवारा है। अंग्रेजी में एक ऐसा एन्साइक्लोपिडिया जो आज की पीढ़ी का है, पिछली पीढ़ियों का हैं और ना जानें आने वाली कितनी पीढ़ियों का होगा।
वो कभी-कभी जिन्न लगता है, जो ‘चड्डी पहन के फूल खिला है …फूल खिला है’ बोलकर बचपन-सा मुस्कुराता है। तो कभी उदास मन में जिन्दगी का फलसफा गुनगुनाता है और कहता ‘तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी, हैरान हूं मैं’। कभी प्रेमी बन ‘तेरे बिना जिन्दगी से कोई शिकवा नहीं’ कहता है, तो कभी अपनी प्रेमिका के इठलाने-इतराने पर एतराज जाहिर करने के लिए ‘हूजूर इस कदर भी ना इतरा के चलिये, खुले आम ना आंचल लहरा के चलिये, कोई मनचला अगर पकड लेगा आंचल जरा सोचिये आप क्या कीजियेगा’ गुनगुनाता है।
वो तीस के दशक में भी हमारा था, जब वो प्रेम में पी का संग मांगता रात में छिपने की बात करता था। उसने उन दशकों में तब ना जाने कितने दिलों में जगह बनाई होगी जब उसने लिखा होगा, ‘मोरा गोरा अंग लईले…मोहे श्याम रंग देईदे…’।
प्रेम को जिन शब्दों में गुलज़ार साहब ने गढ़ा उन शब्दों ने प्रेम के भाव ही नहीं कहे बल्कि उसे प्यार करने वालों के बीच में सार्थक कर दिया। जब वो कहते हैं कि ‘प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं, एक खामोशी है सुनती है कहा करती है’ तो लगता है मोहब्बत मुक्कमल हो गई है। उसका लिखा, किया प्यार यहीं खत्म नहीं होता वो कवि होता है तो यूं कहता है ‘एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी, ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी…’। जब वो शायर होता है तो गजलों में प्रेम को पिरोता हुआ लिखता है ‘हाथ हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते…’। तब एहसास होता है कि वो शिद्दत से प्रेम करता भी है और उसे प्रेम करवाने की कला भी बखूबी आती है।
आखों के जरिये प्रेम की अभिव्यक्ति को गुलज़ार साहब ने बहुत खूबी से जाहिर किया। कभी लिखा, ‘आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल हमें..’। कभी लिखा, ‘आपकी आंखों में कुछ बहके हुए से ख्बाब हैं..’। कभी लिखा, ‘हमने देखी है इन आंखों की महकती खूशबू…’।उनके लिखे में हर बार प्यार का इजहार अलग था, लेकिन हर बार अलग होकर भी वो शख्स एक ही था। वो उम्र के 70 वें पड़ाव पर आकर कजरारे नैना की बात करता हमें अजीब नहीं लगता। वो कजरारे नैना जो आज की युवा पीढ़ी का बोल है, युवा पीढ़ी का अंदाज है। लेकिन ये शख्स नहीं कहता कि ये अंदाज तुम्हारा है, हर अंदाज में ये खुद को ढालता है और अपने हर अंदाज में अपने चाहने वालों को। यही वजह है कि ‘बीड़ी जलाईले जिगर से पिया..जिगर में बड़ी आग है’ या ‘ब्लडी हेल’ हमें अखरता नहीं है।
यह वही शख्स है जिसे हम बूढ़ा होते नहीं देखना चाहते और वो होगा भी नहीं वो हमेशा जवान रहेगा…हमारी रगों में दौड़ता हुआ कभी रचनाओं जरिये तो कभी संवेदनाओं के जरिये…