अरुण पांडेय
नोटबंदी का फैसला भले रातोंरात लिया गया पर इसके लिए महीनों रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के बीच सभी पहलुओं पर चर्चा चली। नोटबंदी और इकोनॉमी की कहानी में भी ऐसा एक्शन, ड्रामा और ट्रेजेडी हो सकती है जो बॉलीवुड फिल्मों को मात दे दे। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की किताब सनसनीखेज नहीं है पर उससे कम भी नहीं है। इसमें नोटबंदी सेपहले का एक्शन है, इकोनॉमी के विलेन हैं और उतार-चढ़ाव की ट्रेजेडी है। दो सरकारों के साथ काम और अर्थव्यवस्था की तमाम उठापटक को करीब से देखा है रघुराम राजन ने।
पूरा मामला समझाने के लिए आपको फ्लैशबैक में ले चलते हैं। बात जुलाई 2013 की है, डॉलर के मुकाबले रुपया सौ का होने को जैसे तैयार बैठा था। शेयर बाजार गोते पर गोता लगा रहा था और उस वक्त के वित्त मंत्री पी चिदंबरम और उनकी टीम लाचार नजर आ रही थी। हर महीने महंगाई दर बढ़ रही थी, राजकोषीय घाटा मुंह बाए खड़ा था। ऐसे में विकास की परवाह भला कौन करता। हालत ऐसी थी कि चादर से सिर ढंकते तो पैर निकल आते थे और पैर ढंकते तो सिर। रिजर्व बैंक गवर्नर डी सुब्बाराव का कार्यकाल खत्म होने वाला था। इन जटिल हालात में रघुराम राजन की रिजर्व बैंक गवर्नर के तौर पर एंट्री हुई। उनकी एंट्री ने जितनी सुर्खियां बटोरीं उससे ज्यादा चर्चा उनकी विदाई की हुई।
अजीब बीमारी थी, इलाज कठिन था
राजन के मुताबिक, 2012 में भारत की अर्थव्यवस्था अजीब बीमारी की शिकार हो गई थी। महंगाई दर ज्यादा थी, विकास दर कम थी। विदेशी निवेशकों का भरोसा कम हो गया था और रुपया गिरता ही चला जा रहा था। ऊपर से भारी भरकम राजकोषीय घाटे और अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व के ब्याज दर बढ़ाने के संकेत ने रही सही कसर पूरी कर दी। भारत की इकोनॉमी ऐसे पांच उभरते देशों में शामिल हो गई थी जो मुसीबत से जूझ रहे थे। ऐसे हालात से निकलने का कोई सीधा फॉर्मूला नहीं था। इसलिए उन्होंने सबसे पहले अपना ध्यान रुपये की गिरावट रोकने पर लगाया। रुपये की गिरावट थमी तो निवेशकों का भरोसा बढ़ा, शेयर बाजार की गिरावट पर ब्रेक लगा और घबराहट कम हुई।
नोटबंदी पर पर्दे के पीछे क्या हुआ
रघुराम राजन से सब यह जानना चाहते थे कि नोटबंदी पर क्या उनकी सरकार से चर्चा हुई थी? नोटबंदी पर राजन की क्या सलाह थी? अब तक सब कुछ राज था कि नोटबंदी पर पर्दे के पीछे आखिर हुआ क्या था? पहली बार रघुराम राजन ने माना कि फरवरी 2016 में सरकार ने उनसे नोटबंदी पर राय मांगी थी। मतलब सरकार ने अचानक फैसला नहीं लिया था। इस पर चर्चा फरवरी से चल रही थी। जबकि अभी तक यही अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार ने बिना विचारे अचानक ही नोटबंदी का ऐलान कर दिया। इससे एक बात और साफ है कि वित्त मंत्री और वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों से सलाह ली गई थी। राजन के मुताबिक, उन्होंने सरकार को बता दिया था कि नोटबंदी से लंबी अवधि में फायदे हो सकते हैं लेकिन इसमें लागत, खर्च और जितनी परेशानी होगी उसके मुकाबले फायदे बहुत कम होंगे। राजन की दलील थी कि इस तरीके से कालाधन खत्म करना मुश्किल है क्योंकि कालाधन रखने वाले बचने का नया तरीका खोज लेते हैं। राजन के मुताबिक, वे नोटबंदी को गलत नहीं मानते लेकिन …
- उनके कार्यकाल में सरकार ने रिजर्व बैंक से कभी नोटबंदी पर फैसला करने को नहीं कहा
- मेरी मौखिक राय के बाद नोटबंदी पर रिजर्व बैंक से नोट बनाने को कहा गया। बाद में सरकार ने इस मुद्दे पर विचार के लिए एक कमेटी भी बनाई थी
- मैं नोटबंदी के खिलाफ था क्योंकि इसमें खर्च ज्यादा थे फायदे कम
- नोटबंदी में तकलीफें कम करने के लिए बहुत तैयारियां करनी पड़ती
- बड़े पैमाने पर नए नोट छप जाने चाहिए थे
- लेकिन इसमें मुश्किल थी कि अगर स्पीड बढ़ती तो गोपनीय रखना मुश्किल था। इसलिए उनकी राय में नोटबंदी फायदेमंद नहीं होती।
- हालांकि राजन ने कहा कि नोटबंदी का अधिकार सरकार का है, इसके लिए रिजर्व बैंक गवर्नर की मंजूरी की जरूरत उन्हें नहीं है।
आधार को बैंक खातों से जोड़ना सही
पूर्व गवर्नर रघुराम राजन सभी बैंक ट्रांजेक्शन को आधार के साथ जोड़े जाने के पक्ष में हैं। उनके मुताबिक, गोपनीयता बनाए रखने के तरीके निकाल कर सभी ट्रांजेक्शन आधार से जोड़ दिए जाएं तो भ्रष्टाचार को खत्म करने में काफी मदद मिलेगी। लोगों के पास पैसा है पर वे टैक्स नहीं दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वीडन में सभी लोगों को एक दूसरे की आय मालूम होती है इसलिए पता लगाना आसान होता है कि कौन अपनी आय से ज्यादा रकम खर्च कर रहा है। यही वजह है कि वहां ट्रांसपेरेंसी है। भारत में भी इसी तरह का मॉडल अपनाया जा सकता है। लेकिन राजन की सलाह है कि भ्रष्टाचार रोकने के नाम पर सरकारी अधिकारियों को असीमित अधिकार नहीं मिलने चाहिए वरना वे भ्रष्टाचार शुरू कर देंगे।
एक साल तक क्यों नहीं बोले
पूर्व गवर्नर राजन के मुताबिक, वे नए गवर्नर ऊर्जित पटेल के लिए कोई विवाद या परेशानी नहीं खड़ी करना चाहते थे इसलिए अपने कार्यकाल के बारे में उन्होंने चुप्पी साधे रखी। उनके मुताबिक उर्जित पटेल अब अच्छे से जम चुके हैं इसलिए किताब सामने लाने का यह सही वक्त है। अपनी किताब में उन्होंने लिखा है कि भारतीय मीडिया अकसर सिर्फ हेडलाइन की तलाश में रहता है। इसलिए मुख्य बातों की बजाय उनका ध्यान दूसरी चीजों पर रहता है। इस बारे में उन्होंने एक रोचक वाकये का जिक्र किया है कि एक बार प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म होने वाली थी और एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि वे अमेरिकी सेंट्रल बैंक के चेयरमैन बेन बर्नांके की तरह आक्रामक हैं या जेनेट येलन की तरह रक्षात्मक। इस पर उन्होंने चुटीले अंदाज में जेम्स बॉन्ड स्टाइल में जवाब शुरू किया कि माई नेम इज रघुराम राजन…. तब उन्हें समझ नहीं आया कि इसे खत्म कैसे करें, दर्जनों टीवी कैमरे घूर रहे थे। कुछ समझ नहीं आया तो कह दिया ‘आई डू, व्हाट आई डू’ यानी मुझे जो करना है मैं वही करता हूं। बस उस दिन टीवी चैनलों और अगले दिन अखबारों में यही हेडलाइन छाई थी और मौद्रिक नीति की खबर दब गई थी।
मोदी सरकार ने दी पूरी आजादी
रघुराम राजन ने अपनी किताब ‘आई डू, व्हाट आई डू’ में कई बड़े राज खोलें हैं तो कई विवादों और अटकलों की हवा भी निकाली है। राजन ने लिखा है कि उनकी नियुक्ति यूपीए सरकार ने की थी लेकिन मोदी सरकार से भी उन्हें काम करने की पूरी आजादी मिली। हालांकि एनडीए सरकार से मतभेद की धारणा पहले ही बना ली गई थी जबकि हकीकत यही है कि मनमोहन सरकार या मोदी सरकार ने उनके कामकाज में कभी दखल नहीं दिया। पूर्व गवर्नर कहते हैं कि कई बार जो दिखता है वो सही नहीं होता और जो सही होता है वो दिख नहीं पाता। मोदी सरकार के वक्त राजन के कई भाषणों पर विवाद हुए।
1. पूर्व गवर्नर ने कहा था कि दूसरे देशों से ज्यादा ग्रोथ पर भारत को इतराना नहीं चाहिए क्योंकि अभी भारत की स्थिति अंधों में काना राजा की है। इस पर राजन का कहना है कि भारत में 9 से 10 फीसदी ग्रोथ की क्षमता है लेकिन हम तमाम जटिलताओं की वजह से इससे बहुत कम कर रहे हैं। इसलिए उनका मानना है कि अपने मुंह खुद की तारीफ करने की बजाय दूसरों को यह कहने दें। उनका मानना है कि जैसे ही हम अपनी तारीफ करने लगते हैं तो ढीले पड़ जाते हैं।
2. राजन बताते हैं कि सहिष्णुता पर उनके भाषण को लेकर बेकार का विवाद हुआ जबकि उनसे मुलाकात में एक मंत्री ने इस भाषण की खूब तारीफ की। पूर्व गवर्नर ने कहा था कि सहिष्णुता भारत का मुख्य आकर्षण है और इसे हर कीमत पर बनाए रखा जाना चाहिए। राजन के मुताबिक रिजर्व बैंक गवर्नर होने के नाते अहम मुद्दों पर बोलना उनकी जिम्मेदारी थी। इसलिए उन्होंने सहिष्णुता और देश में चल रहे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा की। सरकार की तरफ से उनके इन भाषणों पर कभी कोई नाराजगी नहीं जताई गई।
रिजर्व बैंक गवर्नर के ज्यादा अधिकार
राजन के मुताबिक वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक गवर्नर के बीच कई मुद्दों पर मतभेद नई बात नहीं है। लेकिन कई ब्यूरोक्रेट को लगता है कि रिजर्व बैंक पर उनका भी हक है। राजन की सलाह है कि रिजर्व बैंक गवर्नर को दूसरे सेक्रेटरी या ब्यूरोक्रेट की तरह नहीं मानना चाहिए बल्कि जज जैसा रुतबा और अधिकार मिलना चाहिए। राजन बताते हैं कि उन्होंने कई बार वित्त मंत्रालय और ब्यूरोक्रेट का विरोध भी किया। जहां जरूरत थी वहां मैंने जोर लगाया, जहां जरूरत नहीं थी मैंने चुपचाप सुन लिया। जैसे मौजूदा सरकार से एफएसएलआरसी कानून को लेकर मतभेद हुआ था। रिजर्व बैंक ने एफएसएलआरसी एक्ट के कई प्रस्तावों का विरोध किया।
नोटबंदी भी ग्रोथ गिरने की वजह
राजन के मुताबिक ग्रोथ में कमी के लिए नोटबंदी के अलावा ज्यादा एनपीए और जीएसटी भी जिम्मेदार है। उनके मुताबिक, भारत की ग्रोथ में गिरावट फिक्र की वजह है। राजन का मानना है कि नोटबंदी से शॉर्ट टर्म में ग्रोथ को झटका लगा है और जीडीपी ग्रोथ में दो फीसदी तक की कमी आई है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि गांवों और किसानों के लिए कैश ही किंग है।
मतभेद होते तो इस्तीफा दे देता
राजन के मुताबिक अगर उनके मोदी सरकार से मतभेद होते तो वो इस्तीफा दे देते। उन्होंने लिखा है कि एनपीए और लोन घोटाले करने वालों के खिलाफ रिजर्व बैंक और सरकार में अच्छा तालमेल था। रिजर्व बैंक ने खराब लोन और लोन घोटाला करने वाले बड़े लोगों की लिस्ट बनाई गई और पीएमओ को सौंपी। पूर्व गवर्नर का मानना है कि घोटालेबाजों को जल्द पकड़ा जाना चाहिए ताकि कानून का डर बने। इन्हें पकड़ना बहुत आसान है। इसके लिए एजेंसियों को रॉकेट टेक्नोलॉजी की जरूरत नहीं है। साथ ही यह सामने आना चाहिए कि इतने दिनों की जांच में क्या निकला, कौन-कौन पकड़ा गया। इस तरह के मामलों की सालों साल सीबीआई और दूसरी जांचें चलती रहती हैं और निकलता कुछ नहीं। इससे भरोसा कम होता है। उनका मानना है कि जो लोग नियमित तौर पर डिफॉल्ट करते हैं उन पर पाबंदी लगनी चाहिए। बैंक के सीईओ और एमडी की जवाबदेही तय होनी चाहिए। ऐसे कई मामले हैं जहां एक ही सीईओ के कार्यकाल में दिए गए बहुत से लोन डिफॉल्ट हो गए। इसका मतलब है सीईओ में दिक्कत है।
गवर्नर रहना चाहते थे
राजन ने खुलासा किया है कि वो रिजर्व बैंक में और रहना चाहते थे लेकिन सरकार की तरफ से कोई आॅफर नहीं मिला। शिकागो यूनिवर्सिटी को इस बारे में कोई ऐतराज नहीं था। रघुराम राजन की यह किताब कई बड़े खुलासे करती है। इसमें रिजर्व बैंक के कामकाज के तरीकों को उन्होंने सिलसिलेवार तरीके से बताया है। साथ ही इकोनॉमी के फंडे समझाए हैं। लेकिन उन्होंने यह बात साफ कर दी है कि उन्हें आजादी देने में मोदी सरकार ने कोई कंजूसी नहीं की।