निशा शर्मा।
हिमाचल में ऊना जिला पंजाब से सटा हुआ है। जहां मिश्रित संस्कृति के लोग रहते हैं यानी यहां पंजाब और हिमाचल के लोग रहते हैं, तभी यहां आपको पगड़ी रखे सरदार और सिर पर घास उठाए चलती महिलाएं सूट सलावार में मिल जाएंगी। यहां के लोग पहाड़ी भाषा भी पंजाबी अंदाज में बोलते हैं। इसका कारण पंजाब का साथ में सटा होना है। कहते हैं ऊना पहले पंजाब का हिस्सा था। ऊना का नाम सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जन देव ने रखा था। हम सड़क पर थे, लोगों के बीच जाने से पहले माहौल सिर्फ यही कह रहा था कि चुनाव होने हैं इसका पता सिर्फ हमें है, क्योंकि हम दिल्ली से आए हैं। दिल्ली में चुनावों को लेकर टीवी, समाचरा ही नहीं बोलते बाजार भी बोलते हैं। लेकिन यहां का महौल बिल्कुल दिल्ली के उलट है। शांत माहौल जैसा कि हिमाचल के बारे में कहा जाता है शांत प्रदेश। दुकानों पर आम चहल-पहल से ज्यादा कुछ नहीं, यहां के राजनेता भी शायद राजनीति में उतनी दिलचस्पी नहीं लेते क्योंकि उन्हें पता है नब्बे के दशक से हिमाचल की राजनीति एक बार एक के पाले में होती है तो दूसरी बार दूसरे के पाले में। हां इतना जरुर था कि लोग दिवाली की तैयारियों में लगे हुए थे। एक दुकानदार से जब मैंने पूछा यहां चुनाव कब होने हैं तो उसने कहां अभी बड़े दिन हैं, मैंने कहा ज्यादा दिन तो नहीं हैं, फिर भी कोई चुनाव की गूंज भी नहीं है। तो उसने कहा जी उससे पहले दिवाली है। लोग दिवाली की बातें करेंगे या चुनाव की।
हम आगे चल दिए एक बुजुर्ग आदमी जो सड़क की पटरी पर सहारे के लिए लाठी लेकर बैठा था मैंने पूछा ये अड्डा जाने के लिए टैम्पो कहां मिलेंगे तो उन्होंने चौराहे की तरफ इशारा किया। मैंने बताया कि दिल्ली से आए हैं, चुनाव के बारे में जानकारी लेने यहां तो चुनाव के नाम पर कुछ नहीं है। उन्होंने कहाा यहां ऐसा ही होता है, थोड़े दिनों बाद नेता निकलेंगे। मैंने एकाएक पूछा ऊना का क्या मतलब होता हैं अंकल जी। उन्होंने बताया कि ऊन्ना मतलब उन्नति होता है, यहां गेहूं बहुत होती थी, खेती बाड़ी अच्छी हुआ करती थी तभी इसका नाम ऊना पड़ा। मैंने पूछा क्या यहां अब उन्नति हुई है तो वह दुकानों की ओर इशारा करते हुए कहने लगे। ये बड़ी-बड़ी दुकानें हैं यहां, सड़के हैं, बसें हैं, बाजार है, सब उन्नति ही तो है। पहले तो यहां धूल उड़ती थी। खेत-खलिहानों में उन्नति हुई… ना जो था वो भी नहीं रहा। इतने मैं उनकी बस आ गई और वह बस में चढ़ गए।
ऊना का बाजार शहर की शक्ल-सा लगता है, यहां आपको हर वो जरुरी चीज़ मिल जाएगी जो आपको चाहिए। ऊना जिला गांव नहीं है, शहर हो चुका है क्योंकि यहां सभी सुविधाए आ चुकी हैं। पास में एक दुकान है जिस पर थोड़ा- सामान रखा है, ज्यादा वैरायटी नहीं है। पूछने पर कि मैगी है क्या? तो वह दुकानदार बोलते हैं नहीं, मैगी तो नहीं मिलेगी? बाजार में मिल सकती है। फिर मैंने पूछा यहां के बच्चे मैगी नहीं खाते क्या? तो वह कहते हैं नहीं टॉफी, बिस्कुट, कुरकुरे ले लेते हैं पांच रूपए वाले। बच्चों को इतने पैसे थोड़ी मिलते हैं कि वह मैगी खरीदें। जब पूछा कि दुकान से गुजर बसर हो जाती है तो कहने लगे खेती में तो कुछ बचा ही नहीं है। सब तो जंगली जानवर उजाड़ देते हैं। नील गाय, जंगली सूउर कहा कुछ छोड़ते हैं तभी पास से गुजरती महिला से हमने पूछा क्या बात कर सकते हैं, तो उसने कहा नहीं चारा डालना है भैंसों को, धूप से छायां में बांधना है। फिर बात करती हूं, मैंने कहा काम करते-करते बात कर लेंगे। तो वह मान गई और कहने लगीं- हमारी जिंदगी आप से बिल्कुल अलग है सुबह जानवरों की सेवा से शुरु होती है और रात जानवरों की सेवा पर खत्म। जो समय बचता है खेतों में चला जाता है जंगली जानवरों को भगाने में। घर का एक सदस्य बारी-बारी खेतों में पहरेदारी देता है। आप ही बताओ कि इतनी मेहनत करने के बाद अगर आपके हाथ कुछ ना लगे तो क्या करेंगे? हम साल भर यूं ही भागते रहते हैं, ना सरीक पूछणे (ना रिश्तेदार पूछने) ना बाल बच्चे पूछणे (ना परिवार का ख्याल रखना) फिर बी अपणे हथ खालिये दे खाली (फिर भी अपने हाथ खाली के खाली)। इन्हां जानवरां दा कुछ होई जा तां, सौं रब दी असां लोगां जो ऐथी सबर्ग मिली जा (इन जानवरों का कुछ हो जाए तो भगवान की कसम हमें यहीं स्वर्ग मिल जाए )।