निशा शर्मा।
जैसे जैसे ठंड की बयार हिमाचल को अपने आगोश में लेने को तैयार है, वैसे वैसे राज्य में सियासी पारा भी अपने चरम पर पहुंच रहा है। 68 सदस्यों वाली हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए 9 नवंबर को एक चरण में चुनाव होने जा रहे हैं। नब्बे के दशक से आज तक कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने बारी-बारी राज्य में सत्ता हासिल की। इस हिसाब से देखा जाए तो इस बार की पारी बीजेपी की होनी चाहिए, लेकिन प्रदेश का इतिहास बताता है कि यहां चुनावी राजनीतिक समीकरण बनने-बिगड़ने में देर नहीं लगती। राज्य पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इस बार का मुकाबला टक्कर का होने की बजाय साख और अंतरद्वंद का ज्यादा है। ऐसे में किसी भी पार्टी की थोड़ी सी ढील भी गेंद दूसरे के पाले में डाल सकती है। देश के अधिकतर राज्यों में कांग्रेस का जनाधार लगातार खत्म हो रहा है। हालांकि हिमाचल में पार्टी मेहनत करती नजर आ रही है। ऐसे में पंजाब में जीवित होती कांग्रेस के लिए हिमाचल में दूसरी पारी अपने नाम करना अपनी साख बचाने के साथ-साथ उसके अस्तित्व के लिए भी जरूरी हो गया है। राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी में इस बार एक राय नहीं थी, लेकिन कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा न होने के कारण और मुख्यमंत्री के बगावती तेवरों ने कांग्रेस को मजबूर कर दिया कि वह 84 साल के वीरभद्र को अपना उम्मीदवार बनाए। कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री के दावेदार की घोषणा राहुल गांधी ने चुनाव होने से कई हफ्ते पहले ही कर दी थी। वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी राज्य के मुख्य जिलों में कहीं कहीं अपनी पकड़ बनाती नजर आती है। नरेन्द्र मोदी के हिमाचल दौरे से पहले मोदी लहर या बीजेपी का खासा असर राज्य में देखने को नहीं मिल रहा था। हालांकि अब मोदी के भाषणों ने लोगों को अब अपनी ओर खींचा है। लोग बीजेपी को सत्ता में लाने की बात तो करते हैं लेकिन टिकट बंटवारे के बाद कहा जाने लगा था कि पार्टी दो हिस्सों में बंट गई है। जिसका चुनावी परिणामों पर ज्यादा प्रभाव तो माना नहीं जा रहा है फिर भी पार्टी पर दबाव रहा है। कहा जाता रहा कि टिकट बंटवारा भी लोगों के बीजेपी के प्रति अपने रुख को बदलने में कामयाब हो सकता है। यह सब बातें तब हो रही थी जब राज्य में पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था। अब राज्य में पार्टी का चेहरा प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल हैं, जो राज्य में पहले भी पार्टी की ओर से राज्य की कमान संभाल चुके हैं। लोग उन्हें जानते हैं और वह भी लोगों को जानते हैं। यहां आकर हिमाचल में चुनावी मुकाबला टक्कर का हो जाता है। दोनों पार्टियां अपने धुनंधरों के साथ मैदान में शक्तिप्रदर्शन में जुटी हैं बीजेपी की ओर से बड़े चेहरों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह, यूपी के मुख्यमंत्री आदित्य योगीनाथ, राजनाथ सिंह हो या फिर स्मृति ईरानी कांग्रेस पर जमकर प्रहार कर रहे हैं तो वहीं राहुल गांधी, आनंद शर्मा, राज बब्बर ने कांग्रेस की ओर से कमान संभाली।
चुनावी हलचल से पहले गेंद कांग्रेस के पाले में नजर आ रही थी लेकिन जैसे-जैसे बीजेपी ने प्रचार-प्रसार में अपनी ताकत झोंकी है तो इससे कहीं ना कहीं बीजेपी को ज्यादा नहीं पर फायदा होता दिख रहा है। पार्टी मोदीमय माहौल बनाने में कहीं ना कहीं सफल हुई है। कांग्रेस का कहना है विपक्ष पैसे के बल पर वोट हासिल करना चाहता है तो प्रधानमंत्री कहते हैं कि कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में अपनी हार मान ली है, इसलिए उसके वरिष्ठ नेता राज्य में चुनाव प्रचार से दूर हट गए हैं और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को उनकी तकदीर के हवाले छोड़ दिया गया है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने चुनाव तकदीर के हवाले छोड़ दिए हों , 40 विधानसभा क्षेत्रों में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने खुद जाकर प्रचार प्रसार किया है। जिसका दम-खम नजर आने पर ही बीजेपी ने अपने धुंनधरों को मैदान में उतारा है। राज्य में चुनाव को लेकर पहले मामला साख और अंतर्द्वंद का लग रहा था लेकिन अब मामला टक्कर का नजर आ रहा है। ऐसे में किस पार्टी के हाथ बाजी लगती है कहना मुश्किल हो गया है।