निशा शर्मा।
हिमाचल में कुछ महीने पहले शिमला से करीब 60 किलोमीटर दूर कोटखाई में एक गैंग रेप की घटना सामने आई थी, इस घटना में एक दसंवी कक्षा की छात्रा को स्कूल से लौटते समय दरिंदो ने अपनी दरिंदगी का शिकार बनाया था। यह पहली ऐसी घटना थी जिसको लेकर पहाड़ में लोगों का विरोध देखने को मिला था। मामला इतना गंभीर था कि राज्य से देश के कोने-कोने से बच्ची के लिए इंसाफ की गुहार लगाई गई थी। अब यह मामला सीबीआई के पास है।
राज्य में चुनावों का दौर है लेकिन इस मुद्दे को क्या पार्टियां या जनता भूल गई है इसकी पड़ताल करने के लिए सबसे पहले ओपिनियन पोस्ट की टीम कोटखाई पहुंची। कोटखाई सेबों के बांगों के लिए मशहूर है, यहां की अधिकतर आबादी सेबों की खेती पर निर्भर है। रास्ते बिल्कुल कच्चे हैं, जहां किसी गाड़ी का जाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लगता है।
दूर दूर तक किसी के घर नहीं है, पशु-पक्षी तो क्या मनुष्य भी यहां आसानी से दिखता नहीं है। घंटों के सफर के बाद एक स्कूल नजर आता हैं जहां गुड़िया पढ़ती थी। वहां जाने पर पता लगा कि स्कूल में प्रींसिपल, अध्यापकों और बच्चों में मामले को लेकर अभी भी दहश्त है। स्कूल के प्रींसिपल जिनका नाम अनिल कुमार पराशर है, कहते हैं घटना ने हम पर ही नहीं स्कूल के बच्चों पर भी बहुत प्रभाव डाला है। हम मानसिक तौर पर बुरी तरह आहत हुए हैं। घटना के बाद स्कूल में बच्चों ने तो आना ही बंद कर दिय था। फिर हमने काउंसलिगं कर करके बच्चों को दोबारा स्कूल में आने लिए प्रेरित किया। बार बार पुलिस का स्कूल में आना, सीबीआई का आना अपने साथ दहशत लाता है। इन सबका भी कहीं ना कहीं बच्चों के दिमाग पर असर पड़ता है। लेकिन हम कोशिश करते हैं कि अब बच्चे डरें नहीं।
पूछने पर की क्या हुआ था घटना के दिन तो अनिल बताते हैं कि उन दिनों स्कूल में खेलों का आयोजन हो रहा था, लेकिन गुड़िया ने किसी खेल में हिस्सा नहीं लिया था हमने उसे प्रोत्साहित करने के लिए एक कार्यक्रम से जोड़ दिया। इस स्कूल की एक बात बहुत अच्छी है कि अगर किसी बच्चे ने स्कूल से बाहर जाना होता है तो वह मुझे ऐपलिकेशन जरुर देकर जाते हैं, बिना बताए वह स्कूल से बाहर नहीं जाते हैं। लेकिन गुड़िया ने ऐसा नहीं किया था। उस बच्ची को हमारे स्कूल में आए हुए करीब महीना ही हुआ था शायद वह स्कूल के बारे में पूरी तरह जानकारी ना रखती हो। इसलिए वह हमें बिना बताए ही चली गई। क्योंकि दूर दराज का इलाका था तो मैं उसे अकेले नहीं जाने देता था। चार बच्चे थे जो उसके इलाके से आते थे। चारों एक साथ घर जाते थे।
पढ़ने में गुड़िया कैसी थी के जवाब में अनिल कहते हैं कि पढ़ने में तो वह अच्छी नहीं थी, पिछली कक्षा में फेल होने के कारण ही वह दसवीं में यहां आई थी। हमने उसके क्लास टीचर से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे प्रींसिपल साहब ने जब उसे स्कूल में दाखिला दिया था, तो उसके पिता को कहा भी था कि बच्ची इतनी दूर से कैसे आएगी। दरअसल,, हम तो यहीं के हैं लेकिन प्रींसिपल साहब इतने पहाड़ी इलाके से नहीं हैं तो वह लड़कियों के दूर से आने को लेकर चिंतित रहते हैं। फिर वह कहते हैं कि गुड़िया गणित में पढ़ने में कमजोर थी लेकिन जितना उसे कहा जाए वह काम कर लिया करती थी। उसका भाई पढ़ने में तो अच्छा था ही वह बोलचाल में भी अच्छा था।
गुड़िया की सहेली समीक्षा कहती है कि वह कम बोलने वाली लड़की थी, वह किसी से क्लॉस में भी बात नहीं करती थी। मुझसे थोड़ी बात करती थी लेकिन ज्यादा नहीं। पूछने पर की उसने कभी परिवार के बारे में बात की तुमसे तो वह कहती है कि उसने सिर्फ इतना ही बताया था कि उसके जीजा जी की डेथ हो चुकी है। एक बार मैंने उससे पूछा था कि क्या उसका कोई ब्वायफ्रेंड है तो उसने कहा था कि कोई नहीं है। वह ज्यादा समय चुप ही रहती थी। क्लॉस में भी कोई अध्यापक कुछ पूछता था तो कम ही जवाब देती थी। घटना के दिन कोई बात हुई थी के जवाब में वह कहती है कि नहीं उस दिन कोई बात नहीं हुई थी हम दोनों एक बाजा बजाने के लिए चुने गए थे। तुम्हे घटना के बारे में कैसे पता चला पर समीक्षा कहती है कि उसके घर से मुझे फोन आया था कि क्या गुड़िया तुम्हारे घर में रूकी है तो मैंने कहा था नहीं अगले दिन पता चला कि उसके साथ ऐसा हो गया। जब से यह घटना हुई है हम कहीं भी अकेले नहीं जाते हैं। घास लेने, लकड़ियां लेने भी सब मिलकर घर से निकलते हैं।
गुड़िया के घर से स्कूल का रास्ता करीब ढाई किलोमीटर से ज्यादा का है। हम स्कूल से घर की ओर चले तो घने जंगलों का रास्ता था जहां ना कोई रास्ता बताने वाला और ना ही कोई घर था। हम स्कूल के बताए रास्ते के अनुसार चलते रहे। उस जगह को भी देखा जहां गुड़िया का शव मिला था। यह स्थान स्कूल से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर था। देवदार और चील के पेड़ों से घिरी यह घना जंगल है। यहां के लोगों का कहना है कि यह रास्ते इसी तरह सुनसान रहते हैं। यहां जंगली जानवरों में जंगली भालू का डर रहता है क्योंकि यहां एक गौरखे को भालू खा चुका है। जिसके बाद इलाके में भालू की दहशत रहती थी। रास्ते इतने तंग हैं कि एक जगह जाकर गाड़ी वाले ने आगे जाने से मना कर दिया। हम गाड़ी से उतरे और खड़े पहाड़ों के रास्तों से चलने लगे। करीब एक घंटे के बाद गुड़िया के घर चलकर पहुंचे।
गुड़िया के परिवार के बाहर बीपीएल की निशानी थी। सरकार की ओर से लिखा गया था कि वह परिवार बीपीएल की श्रेणी में आता है। सेबों की खेती करने वाला परिवार अपना गुजर-बसर बड़ी मुश्किल से कर रहा था। साल में छह महीने सेबों के सहारे परिवार इतना कमाता है कि घर का खर्च भी नहीं चल पाता। सेबों के अलावा परिवार का गुजर-बसर करने के लिए कोई साधन नहीं है। घर पहुंचने पर गुड़िया की माता जी ने बताया कि उनका घर यहां कि चोटी का आखिरी घर है। इसकी दूरी जमीन से करीब नौ हजार किलोमीटर की है। जहां खाने का सामान छह महीने के लिए लाकर रख लिया जाता है। रोज मर्रा जी जिन्दगी में बाजार तक पहुंचना आसान नहीं है।
लकड़ी के घर में रहते इस परिवार के जख्म अभी भी हरे हैं, जैसे ही आप घटना की बात करते हैं परिवार में माता-पिता, बहन-भाई की आखों में दर्द झलकने लगता है। हम उनसे कुछ पूछते इससे पहले गुड़िया के पिता एक आस के साथ पूछते हैं- मैडम कुछ हुआ मामले में। अपराधी तो पकड़े जाएंगे ना। मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा ना। आप दिल्ली से आई हैं सीबीआई क्या कह रही है कुछ बताईये। लोग कह रहे हैं कुछ नहीं होगा लेकिन हमे पूरा विश्वास है कि अपराधी पकड़े जाएंगे। मोदी इन लोगों को छोड़ेंगे नहीं। आपको क्यों लगता है कि मोदी छोडेंगे नहीं के जवाब में गुड़िया के पिता कहते हैं कि कांग्रेस सरकार ने तो कुछ नहीं किया घटना के आठ दिन बाद तो कांग्रेस का एमएलए यहां आया था। मुख्यमंत्री तो यहां आए भी नहीं। लोग तो यह भी कह रहे हैं कि जिन्हे सीबीआई ने पकड़ा था उन्हे छोड़ दिया है? फिर एकाएक कहते हैं कि मैडम जी आप आसपास के लोगों को भी मत छोड़ना उनके बारे में भी जांच होनी चाहिए। जब हमने पूछा कि आपको किसी पर शक है तो वह कहते हैं हम क्या शक करेंगे दूसरे पर लेकिन घटना में कोई जानकार ही है वरना मेरी बच्ची को इतनी बेरहमी से नहीं मारता। उसके साथ सब करने के बाद छोड़ देता और खुद भाग जाता। मेरी बेटी ने उसको जरुर पहचान लिया होगा तभी उसने गुड़िया को मौत के घाट उतार दिया। लोग गुड़िया के बारे में तरह-तरह की बातें करते हैं, भला बताईये एक बाप कैसे अपनी बेटी के बारे में ऐसी बातें सुन सकता है कि वह ड्रग्स लेती थी उसका किसी से चक्कर था। दुनिया के सामने सच्चाई आनी चाहिए। ताकि फिर कभी किसी की बेटी के साथ ऐसा ना हो। गुड़िया की मां कहती है कि मेरी बेटी को इंसाफ नहीं मिला तो अपराधियों के मन में यह बात बैठ जाएगी कि कुछ भी कर लो हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।