अरुण पांडेय
सरकार ने अर्थव्यवस्था के कायाकल्प के लिए एक साथ तीन मोर्चों पर युद्ध का ऐलान कर दिया है। ये मोर्चे हैं बैंक, इंफ्रास्ट्रक्चर और रोजगार। फंसे हुए कर्ज (एनपीए) की वजह से पाई-पाई का जुगाड़ कर रहे बैंक नए कर्ज नहीं दे पा रहे थे इसलिए उनका काम करीब- करीब थम गया था। अब बैंकों को एक मुश्त दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का पैकेज दिया गया है ताकि वो अपनी बैलेंसशीट ठीक करके कर्ज देने का अपना मुख्य धंधा शुरू करें और अर्थव्यवस्था में निवेश का चक्का घूमे।
दूसरा मोर्चा है अच्छी सड़कें। बड़ी मशहूर कहावत है कि अगर आपको अमीर बनना है तो सबसे पहले सड़क बनाइए। मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए सड़कों की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने एक बार कहा था अमेरिका अमीर देश है क्योंकि यहां की सड़कें अच्छी हैं। इसलिए इकोनॉमी में जान फूंकने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरे देश में शानदार सड़कों का जाल बिछाने की सात लाख करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। अर्थव्यस्था को मजबूती देने के लिए तीसरा मोर्चा है रोजगार। सरकार को उम्मीद है कि सड़क निर्माण से इस क्षेत्र में पांच साल में 14 करोड़ 20 लाख मानव दिनों के रोजगार के मौके पैदा होंगे। इसके अलावा बैंकों के पास पूंजी आएगी तो वे बड़े पैमाने पर कर्ज देंगे, खास तौर पर छोटी इंडस्ट्री को कर्ज देने से भी रोजगार में भारी बढ़ोतरी मुमकिन है।
सड़कों की वरमाला : भारतमाला
भारतमाला परियोजना देश के इतिहास का सबसे बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर कार्यक्रम होगा। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक ये पूरे देश की वरमाला होगी। अगले पांच साल में इस योजना के जरिये पूरे देश का कायाकल्प हो सकता है। सरकार का दावा है कि इससे देश की विकास दर में 2-3 फीसदी तक की बढ़ोतरी मुमकिन है। साथ ही लाखों नौकरियां पैदा होंगी। 550 जिलों को इस हाईस्पीड कॉरीडोर से जोड़ दिया जाएगा और सभी बंदरगाहों को फर्राटा सड़कों से ताकि निर्यात भी बढ़े और पर्यटन भी। अगले पांच साल में सड़कोंके लिहाज से एक नया भारत बनाने की योजना है। इसमें करीब 84 हजार किलोमीटर की सड़कें बनाई जाएंगी जिस पर करीब सात लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसमें सरकार करीब सवा दो लाख करोड़ रुपये देगी। बाकी निजी क्षेत्र और बाजार से कर्ज के जरिये जुटाया जाएगा।
कैसे बिछेगा सड़कों का जाल
इसमें 26,200 किलोमीटर के आर्थिक कॉरीडोर की पहचान की गई है। इसके अलावा 15,800 किलोमीटर की सहायक सड़कें, 13,100 किलोमीटर के नेशनल हाईवे, 5,200 किलोमीटर की बॉर्डर और अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगी सड़कें और 3,300 किलोमीटर की तटीय सड़कें शामिल हैं। साथ ही 1,800 किलोमीटर के एक्सप्रेस हाईवे बनाने की भी तैयारी है। सड़क परिवहन मंत्रालय का तो दावा है कि एक बार पूरा जाल बन जाने के बाद सड़कों से सफर में लगने वाले वक्त 25 फीसदी तक कम हो जाएगा। साथ ही सड़कों के जरिये ढुलाई 80 फीसदी तक पहुंच जाएगी। एक बार सड़कें तैयार हो गई तो हाईवे के किनारे नए शहर बनाने का काम भी शुरू हो जाएगा। साथ ही हाईवे के आसपास नए लॉजिस्टिक पार्क और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर भी विकसित होने लगेंगे।
ग्रामीण सड़कें : प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनने वाली इन सड़कों का पहला और दूसरा चरण 2019-20 में पूरा होने की उम्मीद है। इसके तहत पूरे देश के 36,434 गांवों में एक लाख दस हजार किलोमीटर सड़कें बनाने का लक्ष्य है। दोनों चरणों में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर 88,185 करोड़ रुपये खर्च करेंगी। इसके अलावा 5,411 किलोमीटर की मौजूदा सड़कों को अपग्रेड किया जाएगा जिस पर करीब 12 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे।
इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी खर्च
सरकार ने रोजगार बढ़ाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने पर खर्च करने की योजना बनाई है। सरकार इस साल करीब 21.46 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी जिसमें सितंबर तक 11.47 लाख करोड़ रुपये खर्च हो भी चुके हैं। सबसे ज्यादा खर्च गांवों में सड़कें बनाने, हाउसिंग, रेलवे, बिजली, हाईवे और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर हो रहा है।
रेलवे : रेलवे इंफ्रा को सुधारने के लिए 1.31 लाख करोड़ रुपये खर्च किया जाना है। इसमें ज्यादातर खर्च नई लाईन बिछाने, सुरक्षा और नई सुविधाओं पर खर्च होगा।
सौभाग्य (प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना) : इसके तहत मार्च 2019 तक देश के हर घर में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है। इस पर करीब 16 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
प्रधानमंत्री आवास योजना (शहर और ग्रामीण) : सबके लिए घर देने की इस योजना से कंस्ट्रक्शन सेक्टर को बड़ी रफ्तार मिलने की उम्मीद है। शहरों में अगले तीन साल में 1.85 लाख करोड़ रुपये के खर्च से 1.2 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य है। जबकि गांवों में 1.27 लाख करोड़ रुपये की लागत से 1.02 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य है।
बैंकों का होगा कायाकल्प
सरकार ने बैंकों के फंसे कर्ज की दिक्कत से स्थायी तौर पर छुटकारा पाने की दिशा में सबसे बड़ी कोशिश शुरू कर दी है। इसके लिए बैंकों में एकमुश्त 2.11 करोड़ रुपये निवेश करने की योजना बनाई गई है। बैंकों में यह निवेश इस तरीके से किया जाएगा कि सरकार के राजस्व घाटे पर कोई असर नहीं होगा। बैंकों में सरकार की पहल को शेयर बाजार ने जोरदार सलामी भी दी है। सरकार के ऐलान के अगले ही दिन ज्यादातर सरकारी बैंकों के शेयरों में दस से बीस फीसदी तक का उछाल देखा गया। अभी बैंकों के पास पूंजी नहीं होने की वजह से वे नया कर्ज नहीं दे पा रहे थे। एनपीए होने की वजह से उनकी वसूली भी नहीं हो रही थी। लेकिन अब अप्रत्यक्ष तौर पर इस पूंजी निवेश से बैंक नया कर्ज दे पाएंगे। सरकार की मंशा है कि बैंक छोटे और मझोले उद्योग को कर्ज दें ताकि रोजगार बढ़ाने में भी मदद मिले।
कैसे होगा निवेश : बैंक 1.35 लाख करोड़ रुपये के स्पेशल बॉन्ड जारी करेंगे जिसके बदले में सरकार उन्हें पूंजी देगी। इसके अलावा बजट के जरिये 18,000 करोड़ रुपये बैंकों को दिए जाएंगे। बाकी रकम बैंकों का हिस्सा बेचकर जुटाई जाएगी। इससे बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कुछ कम हो जाएगी। हिस्सेदारी बेचकर करीब 58,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।
भारी भरकम एनपीए : सरकारी बैंकों का एनपीए इस वक्त 7.33 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का हो चुका है। जाहिर है बैंकों को इस एनपीए की एवज में भारी भरकम प्रोविजिनिंग करनी होगी जो 4 लाख करोड़ रुपये के आसपास होगी। यानी बैंकों के पास कर्ज देने के लिए करीब-करीब कोई पूंजी नहीं होगी। 2015 में इंद्रधनुष योजना के तहत बैंकों को दुरुस्त करने की कोशिश शुरू की गई थी। अब सरकार ने ज्यादा जोर लगाने का फैसला किया है।
कितनी मजबूत है अर्थव्यवस्था?
हाल के महीनों में अर्थव्यवस्था को लेकर अकसर सवाल उठते रहे हैं। इस पर सरकार कहती है कि फिक्र की बात नहीं है जबकि अलग-अलग अर्थशास्त्री अलग-अलग आंकड़ों का हवाला देकर एकदम अलग तस्वीर सामने रखते हैं। इतना तो तय है कि इकोनॉमी मजबूत धरातल पर खड़ी है जिसका अंदाजा इन बातों से लगता है…
– पिछले तीन साल में देश की सालाना विकास दर औसतन 7.5 फीसदी रही है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 की पिछली दो तिमाही में विकास दर धीमी पड़ी थी पर अब दोबारा रौनक दिखने लगी है।
– उद्योगों की रफ्तार, बुनियादी क्षेत्र, शेयर बाजार, आॅटो सेक्टर, लोगों की शॉपिंग तमाम संकेत बता रहे हैं कि दुख भरे दिन बीते रे भैया। अगली तिमाही से ही खुशखबरी मिलनी शुरू हो सकती है।
– अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था काफी मजबूत है। दुनिया की विकास दर रफ्तार पकड़ रही है। इसका फायदा भारतीय निर्यात को मिलेगा और विकास दर को इसका फायदा मिलेगा। चालू वर्ष के अप्रैल-सितंबर के बीच भारत के निर्यात में करीब 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
महंगाई दर काबू में : सरकार के लिए सबसे बड़ी राहत की बात है कि महंगाई दर तीन साल से पूरी तरह काबू में है। 2013-2014 में करीब पांच फीसदी के आसपास की थोक महंगाई दर पिछले दो साल से दो फीसदी के आसपास ही ठहरी हुई है। खुदरा महंगाई दर भी चार फीसदी लक्ष्य से कम ही है। महंगाई दर के नियंत्रण में होने का मतलब है कि आपका निवेश कम नहीं हो रहा है। आर्थिक मजबूती की सबसे बड़ी निशानी यही है कि महंगाई दर, कमाई दर से हमेशा कम होनी चाहिए।
संकेत जो आपको समझने चाहिए
भारत का व्यापार घाटा एक फीसदी से कम है। इसे ऐसे समझिए कि हम जो सामान निर्यात करते हैं और जो आयात करते हैं उनके बीच का फर्क व्यापार घाटा या फायदा कहलाता है। अगर हम निर्यात ज्यादा करते हैं और आयात कम करते हैं तो यह व्यापार सरप्लस यानी फायदा और आयात ज्यादा और निर्यात कम होने पर व्यापार घाटा कहलाता है। 2012-13 में यह चार फीसदी के खतरनाक स्तर पर था जिसकी वजह से रुपया कमजोर हो गया था। लेकिन अब यह एक फीसदी से भी नीचे है जिसकी वजह से डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में स्थिरता आ गई है। इसी तरह भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर को पार कर गया है। 2016-17 में भारत में 60.2 अरब डॉलर का निवेश हुआ। जबकि 2015-16 में यह 55.6 अरब डॉलर था। मतलब साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर दुनियाभर के निवेशकों में भरोसा बढ़ रहा है।
सरकार के खजाने की सेहत का सबसे अच्छा पैमाना है राजस्व घाटे की स्थिति। यानी सरकार की कमाई और खर्च का हिसाब-किताब। पिछले कई सालों में राजस्व घाटे के मोर्चे पर लगातार हालात सुधरे हैं। 2011-12 में यह जीडीपी के 6 फीसदी के आसपास था लेकिन 2017-18 में इसके 3.2 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद है। कम राजस्व घाटे का मतलब है कि सरकार बाजार से कम पैसा उधार लेगी यानी उद्योगों को लोन के लिए बैंकों के पास ज्यादा रकम उपलब्ध होगी। आंतरिक और विदेशी कर्ज के मोर्चे पर भी भारत सुरक्षित स्थिति में है। टैक्स से होने वाली आय भी 2016-17 में 16.8 फीसदी बढ़ी है। 2017-18 में इसके 11.3 फीसदी की रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है।
सुधार जिनका आगे दिखेगा असर
1. जीएसटी : शुरुआती दिक्कतों की वजह से जीएसटी को लेकर भले सवाल उठाए जा रहे हैं लेकिन आगे चलकर ये बहुत बड़ा गेमचेंजर साबित होगा। इससे टैक्स की चोरी रुकेगी, टैक्स का दायरा बढ़ेगा और पूरे देश को एक बड़ा मार्केट बनाने की क्षमता में खासी बढ़ोतरी होगी। लगातार तीन माह से जीएसटी का कलेक्शन 90 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा रहने का मतलब है कि केंद्र और राज्य दोनों की टैक्स से कमाई बढ़ने वाली है।
2. इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड : यह भी एक बड़ा आर्थिक सुधार है जिसका असर दिखना शुरू हो गया है। इससे बैंकों का लोन सुरक्षित होगा जबकि कंपनियों की जवाबदेही बढ़ेगी।
3. कालेधन के खिलाफ मुहिम : बेनामी संपत्ति एक्ट, नोटबंदी, जीएसटी ये सभी कालेधन को पनपने से रोकने में कारगर उपाय साबित होंगे।
विकास की रफ्तार बढ़नी तय
पिछली तिमाही (जुलाई-सितंबर) में विकास दर 5.7 फीसदी तक गिरने के बाद अब अनुमान यही है कि अब यहां से विकास रफ्तार पकड़नी शुरू होगी। अकेले अनाज पैदावार का ताजा अनुमान अच्छे दिनों के संकेत देता है। इसके मुताबिक देश में चालू वित्त वर्ष में 27.57 करोड़ टन अनाज की पैदावार होने का अनुमान है जोपिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा है। इसके अलावा औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार 2016-17 में 4.6 फीसदी रही है। इस साल अगस्त में उद्योग की रफ्तार 4.3 फीसदी रहने का मतलब आगे इसके बढ़ने के आसार साफ हैं। कारों की बिक्री में 11.3 फीसदी की बढ़ोतरी नजर आ रही है। इसी तरह कमर्शियल वाहनों की बिक्री पिछले साल सितंबर के मुकाबले इस साल सितंबर में 25 फीसदी बढ़ी है। इसी तरह एक्सपोर्ट के मोर्चे से अच्छी खबरें आ रही हैं।
आईएमएफ के मुताबिक 2017 में भारत की विकास दर 6.7 फीसदी रहने के आसार हैं और 2018 में यह 7.4 फीसदी तक पहुंच सकती है। यही नहीं आईएमएफ का अनुमान है कि 2022 तक भारत की विकास दर 8.2 फीसदी तक जा सकती है। जबकि चीन विकास के मामले में भारत से पिछड़ रहा है। चीन की विकास दर 2018 में 6.5 फीसदी ही रहने के आसार हैं। मतलब साफ है कि हर तरह के आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती की कहानी कह रहे हैं। सबसे अच्छी बात तो ये है कि घरेलू जानकारों के मुकाबले विदेशी एक्सपर्ट और ग्लोबल एजेंसियों को भारत की मजबूत अर्थव्यस्था पर ज्यादा भरोसा है।