अरुण पांडेय
गुजरात के विकास मॉडल को लेकर देश-दुनिया में खूब चर्चा चल रही है। विपक्ष कहता है गुजरात मॉडल फेल है, बीजेपी कहती है गुजरात मॉडल ही विकास का मॉडल है। सच तो यही है कि 2014 में दिल्ली की गद्दी पर नरेंद्र मोदी की ताजपोशी की वजह भी गुजरात मॉडल ही रहा। तो फिर अचानक क्या हो गया कि इस मॉडल पर सवाल उठने लगे? इसे जानने के लिए आपको गुजरात में नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान के आर्थिक आंकड़ों को तार्किक तरीके से समझना होगा। इसे किसी भी चश्मे से मत देखिए, तटस्थ होकर देखिए।
कृषि में जबरदस्त वृद्धि
सबसे पहले कृषि क्षेत्र से ही शुरू करते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा सवाल खेती और किसानी की दिक्कतों पर ही उठ रहे हैं। नरेंद्र मोदी अक्टूबर 2001 से मई 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। उस वक्त गुजरात ने कृषि में शानदार वृद्धि हासिल की। कृषि विशेषज्ञ तो इसे अचरज मानते हैं। इन 13 सालों में गुजरात ने लगातार सालाना 8 फीसदी विकास दर हासिल की जबकि इस दौरान कृषि क्षेत्र का राष्ट्रीय औसत सालाना सिर्फ 3.3 फीसदी ही रहा। रोचक बात यह भी है कि इस दौरान गुजरात की कृषि विकास दर पंजाब की हरित क्रांति से ज्यादा रही। पंजाब में हरित क्रांति का काल 1971 से 1985 के दौरान माना जाता है। इस दौरान वहां कृषि विकास दर सालाना पौने छह फीदी के आसपास थी। जानकार कहते हैं कि गुजरात की कृषि विकास दर में तेजी की वजह से ही नरेंद्र मोदी को तीन बार विधानसभा चुनाव जीतने में दिक्कत नहीं हुई। ये सच है कि गुजरात मॉडल के दम पर ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में सफलता मिली। लेकिन ये भी सच है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरे देश को गुजरात जैसी कृषि विकास दर की उम्मीद में बैठे लोगों को मोदी से कुछ निराशा हुई। नरेंद्र मोदी के साढ़े तीन साल के कार्यकाल में अभी देश वैसी कृषि विकास दर हासिल नहीं कर पाया है जिसकी उम्मीद थी।
देश की कृषि वृद्धि के रास्ते की अड़चन
भारत में कृषि अभी भी काफी हद तक बारिश पर निर्भर है। मोदी के कार्यकाल के दौरान लगातार दो सालों में मानसून कमजोर रहा। हालांकि 2016-17 में बंपर पैदावार हुई लेकिन किसानों को इसका ज्यादा फायदा नहीं हुआ क्योंकि फसलों के दामों में भारी गिरावट आ गई। 2017-18 में भी मौसम से जुड़े फैक्टरों की वजह से किसानों को पर्याप्त दाम नहीं मिल पाए हैं। हालांकि कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र की मुश्किलें धीरे-धीरे ही खत्म होंगी। रातोंरात किसी बदलाव की उम्मीद करना गलत होगा क्योंकि व्यवस्था ठीक करने में वक्त लगता है। देश की असली दिक्कत ये है कि 47 फीसदी यानी करीब आधे श्रमिकों को कृषि क्षेत्र में ही रोजगार मिलता है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत की है। उनके मुताबिक इतने अधिक कामगारों की फौज को कृषि क्षेत्र में खपाया नहीं जा सकता। भारत की क्षमता आसानी से पांच फीसदी तक सालाना विकास दर हासिल करने की है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से उत्पादकता बहुत होने की वजह से लक्ष्य के मुताबिक वृद्धि दर हासिल नहीं हो पा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। जानकारों के मुताबिक यहां गुजरात का कृषि विकास मॉडल काम आ सकता है।
क्या है गुजरात का कृषि विकास मॉडल
1. गुजरात में सबसे ज्यादा फायदा कपास किसानों को हुआ है। गुजरात सरकार के साहसिक फैसले की वजह से वे देश के सबसे अमीर कपास किसानों में शामिल हो गए हैं। मोदी सरकार ने बीटी कॉटन के इस्तेमाल को मंजूरी दी और गुजरात को इसका सबसे ज्यादा फायदा हुआ। 2002 में कपास के उत्पादन में गुजरात राष्ट्रीय परिदृश्य में कहीं नहीं था पर 2014 तक गुजरात के कपास उगाने वाले 90 फीसदी इलाके में बीटी कॉटन पहुंच चुकी थी। राष्ट्रीय स्तर पर बीटी कॉटन का उत्पादन 2002-03 में 1.4 करोड़ गांठ (एक गांठ में करीब 160 किलो) था जो 2013-14 में तीन गुना बढ़कर 3.98 करोड़ गांठ हो गया। कपास के निर्यात मोर्चे पर भी सफलता मिली और गुजरात के प्रदर्शन के दम पर देश दुनिया में कपास का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। ताजा अनुमान के मुताबिक निर्यात और घरेलू बाजार में किसानों को फसल के अच्छे दाम मिले जिसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति में आश्चर्यजनक तरीके से सुधार हुआ।
2. गुजरात मॉडल का दूसरा बड़ा सबक यही है कि किसानों को बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधाएं पहुंचाई जाए तो वे खेती में शानदार प्रदर्शन करने की क्षमता रखते हैं। गुजरात में मोदी सरकार के वक्त सिंचाई, बिजली और सड़क क्षेत्र में काफी काम हुआ। इससे किसानों की लागत घटी और उत्पादकता बढ़ी। जैसे चेक डैम, बोरी बांध और खेत तलवाड़ी योजना से किसानों के लिए फसल को वक्त पर पानी देना मुमकिन हो पाया। इसी तरह ज्योतिग्राम योजना से ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंची और किसानों को सिंचाई करने में काफी मदद मिली।
3. कृषि के लिए तीसरा सबसे बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर था गांव-गांव तक पक्की सड़केंपहुंचाना। इस वक्त सड़कों के मामले में गुजरात देश का सबसे अच्छा राज्य है जहां हर 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 930 किलोमीटर से ज्यादा सड़कें हैं। इनमें 90 फीसदी से ज्यादा पक्की सड़कें हैं।
4. अच्छी मार्केटिंग संस्थाएं एक और ऐसा कदम साबित हुआ जिससे गुजरात में कृषि के साथ-साथ डेयरी उद्योग को भी पैर फैलाने में बहुत मदद मिली। अमूल की तरह कई डेयरी खुलीं जो किसान सहकारी संस्थाओं से सीधे दूध खरीदते हैं। इससे किसानों को उनके दूध की सही कीमत मिलती है। इससे उनकी अतिरिक्त आय होने से कृषि पर पूरी तरह निर्भरता भी कम हो पाई। दूध वाला मॉडल दूसरे उत्पादों जैसे फल और सब्जियों पर सफलतापूर्वक लागू किए गए। इससे किसानों को मंडी में जाकर परेशान होने से छुटकारा मिला और दलालों से घिरने से किसान बच गए।
इसलिए स्पष्ट है कि कृषि क्षेत्र में गुजरात मॉडल पैसा वसूल मॉडल है। प्रधानमंत्री ने कई बार साफ कहा है कि किसानों को दुनिया की बेहतरीन तकनीक और सबसे प्रतिस्पर्धी बाजार मिलने चाहिए। गुजरात की तरह अब नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने सिंचाई, बिजली और सड़कों पर बड़े पैमाने पर निवेश का फैसला किया है। प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम मिलना चाहिए। इसके लिए कृषि उत्पादों के अनावश्यक निर्यात प्रतिबंध से भी बचना चाहिए। साथ ही खेती किसानी के लिए नई-नई तकनीक का इस्तेमाल भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जैसे ड्रोन के जरिये खेतों की निगरानी और पैदावार का सही-सही अनुमान लगाना, कहां पर स्टाप डैम बनाना है जैसी सुविधाएं आसानी से लागू की जा सकेंगी।
दूसरे उद्योग और कारोबार
प्रधानमंत्री के खाते में सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि उन्होंने विकास को मुख्यधारा में शामिल करा दिया। वाइब्रेंट गुजरात जैसे आयोजनों की वजह से निवेशकों की गुजरात को लेकर बहुत रुचि बढ़ी। 2003 में छोटे स्तर से शुरू हुआ वाइब्रेंट गुजरात अब इतना बड़ा ब्रांड बन गया है कि इसमें 125 से ज्यादा देशों के कारोबार जगत के लोग शामिल होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि गुजरात पहले से भारत के तेजी से विकसित होने वाले राज्यों में शामिल था। लेकिन मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद इसने रफ्तार पकड़ ली। विकास में तेजी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन की वजह से भी गुजरात में मोदी की प्रतिष्ठता तेजी से फैली।
औद्योगिक विकास में गुजरात की अहमियत
गुजरात में भारत की आबादी का सिर्फ पांच फीसदी रहता है। लेकिन जीडीपी में उसकी हिस्सेदारी 7.6 फीसदी है। निर्यात में गुजरात की हिस्सेदारी 22 फीसदी है। मोदी के शासनकाल में गुजरात की विकास दर सालाना औसतन 10 फीसदी थी जो देश की औसत वृद्धि दर से ज्यादा थी।
2002 में गुजरात बिजली उत्पादन के मामले में कमजोर था। राज्य की कुल मांग से कम उत्पादन था। लेकिन 2014 में राज्य बिजली उत्पादन और आपूर्ति के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका था। राज्य के सभी 18,000 गांवों में बिजली है और करीब-करीब पूरे वक्त रहती है।
इसी तरह पानी के मामले में भी गुजरात के ज्यादातर इलाकों में दिक्कत नहीं है। जानकारों के मुताबिक गुजरात मॉडल की सबसे बड़ी सफलता है बुनियादी ढांचागत सुधार। जैसे इंडस्ट्री और खेती दोनों क्षेत्र में सफलताएं।
तेजी से फैसलों के दम पर कैसे उद्योग धंधों को आकर्षित किया जा सकता है, यह गुजरात से सीखा जा सकता है। देखते ही देखते साणंद सिर्फ गुजरात में ही नहीं देश के सबसे तेजी से उभरने वाले आॅटो हब के तौर पर जाना जाने लगा है। टाटा की नैनो प्लांट लगने के बाद से मारुति सुजुकी, हुंडई, फोर्ड जैसी तमाम आॅटो कंपनियों और सहयोगी आॅटो पार्ट्स कंपनियों ने साणंद को अपना ठिकाना बनाया है।
बिजनेस को आसान बनाने के मामले में मोदी सरकार को गुजरात मॉडल लागू करने का फायदा हुआ। भारत इस वक्त इस मामले में दुनिया में 100वें स्थान पर है। केंद्र सरकार को उम्मीद है कि भारत जल्द ही 50वां पायदान हासिल कर लेगा। गुजरात मॉडल में इंडस्ट्री को जरूरी मंजूरी, लाइसेंस और पर्यावरण मंजूरी देने में देर नहीं की जाती।
नरेंद्र मोदी को गुजरात में छोटी छोटी मंजूरियों के लिए भ्रष्टाचार खत्म करने में काफी कामयाबी मिली। इसकी वजह थी उन्होंने टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया। ई-गवर्नेंस के जरिये गुजरात में ज्यादातर फैसलों के लिए भटकना नहीं पड़ता है। इस वजह से नौकरशाही में जवाबदेही बढ़ी है और फैसले लेने में काफी तेजी आई है। जानकारों के मुताबिक गुजरात के विभिन्न विभागों के फैसलों पर नजर रखने और जवाबदेह बनाने के लिए सॉफ्टवेयर कंपनी टीसीएस ने विशेष सॉफ्टवेयर तैयार किया जिससे पूरे सरकारी सिस्टम को पारदर्शी बनाने में मदद मिली। अब दूसरे राज्य भी यही मॉडल अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि कोई भी मॉडल पूरी तरह से आदर्श नहीं हो सकता। संभव है कि गुजरात मॉडल में कुछ खामियां हों पर ये भी सच है कि विकास में गुजरात ने दूसरे राज्यों के मुकाबले तेजी से रफ्तार भरी है। इसका श्रेय गुजरात मॉडल और नरेंद्र मोदी को नहीं देना अनुचित होगा।