वित्त मंत्री अरुण जेटली पहली फरवरी को मोदी सरकार का अंतिम पूर्ण बजट पेश करेंगे। मोदी सरकार के पास यह आखिरी मौका है कि वह युवाओं, किसानों, उद्योगों और आम लोगों को राहत दे सके। इस साल चूंकि 8 राज्यों में चुनाव होने हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव, ऐसे में जितनी उम्मीदें लोगों को इस बजट से हैं, उससे ज्यादा चिंता मोदी सरकार को है। दरअसल, लोगों की उम्मीदें मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती हैं और अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत में इन उम्मीदों को पूरा करने सरकार के लिए संभव नहीं दिख रहा है। फिर भी आगामी चुनावों को देखते हुए यही उम्मीद जताई जा रही है कि अरुण जेटली उम्मीदों और अर्थव्यवस्था में संतुलन साधने का प्रयास कर सकते हैं। यानी कुछ क्षेत्रों में राहत तो मिल सकती है मगर सबको खुश करना उनके लिए संभव नहीं होगा।
क्या मिलेगा किसानों को
सबसे पहले बात करते हैं किसानों की। इस वक्त कृषि क्षेत्र बहुत ही खराब दौर से गुजर रहा है और किसानों की हालत खस्ता है। किसानों को न तो उनकी फसलों की सही कीमत मिल पा रही है और न ही उनके लिए ऐसे साधन सरकार मुहैया करा रही है जिससे उनकी जिंदगी बेहतर हो सके। इन तकलीफों के चलते किसानों की आत्महत्या की घटनाएं लगातार सामने आती रहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी माना है कि किसानों की स्थिति खराब है। पीएम के इस बयान के बाद किसानों को उम्मीद है कि इस बार के बजट में सरकार किसानों को राहत देने के लिए किसी बड़े कदम का ऐलान कर सकती है। यह कदम खेती की लागत को कम करने या किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए किसी बड़ी योजना के रूप में सामने आ सकता है।
क्या रोजगार पैदा करने पर होगा फोकस
जहां तक युवाओं की बात है तो 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली थी तो उनकी कामयाबी के पीछे युवाओं का समर्थन था और उन्हें अच्छे दिनों की उम्मीद थी। सरकार के साढ़े तीन साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी युवाओं को आज भी अच्छे दिनों का इंतजार है। खासकर नौकरी के मोर्चे पर युवाओं को निराश होना पड़ा है। इस समय देश की 65 फीसदी आबादी की उम्र 35 साल से कम है। विशेषज्ञ मानते हैं कि युवाओं को उनकी योग्यता के हिसाब से नौकरियां नहीं मिल रहीं हैं। इसके अलावा अगर कोई अपना कारोबार शुरू करना चाहता है तो उसे बैंकों से आसानी से कर्ज भी नहीं मिल पाता है। इन सबके चलते युवाओं में मोदी सरकार और उसकी नीतियों को लेकर नाराजगी लगातार बढ़ रही है जो धीरे-धीरे गुस्से में बदल रही है।
आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार में 60 फीसदी तक नई नौकरियां कम हुईं हैं। सरकार युवाओं के लिए रोजगार के उतने अवसर पैदा नहीं कर पा रही है जितनी नौकरियों की जरूरत है। नोटबंदी और जीएसटी से छोटे कारोबार तो बिलकुल ही ठप पड़ गए हैं जिसका व्यापक असर नौकरियों पर पड़ा है। अगर सरकार को युवाओं के लिए नौकरियां पैदा करनी हैं और उनके लिए रोजगार के मौके पैदा करने हैं तो उसे आधारभूत ढांचे यानी इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाना होगा। इसके अलावा ऐस कदम उठाने होंगे जिससे निर्माण क्षेत्र में तेजी आए, सड़कें और हाईवे बनें। लेकिन बैंकों के पुनर्पूंजीकरण और जीएसटी व नोटबंदी के कारण सरकार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से बाहर निकल चुकी है, ऐसे में उसके पास नए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट लाने के लिए पूंजी का संकट होगा। अगर कर्ज लेकर सरकार ऐसे प्रोजेक्ट शुरु करती है तो बैलेंसशीट गड़बड़ाएगी।
टैक्स के मोर्चे पर कितनी राहत
अब बात करते हैं उन करदाताओं की जो ईमानदारी से अपना इनकम टैक्स जमा करते हैं। स्थिति यह है कि देश की सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी में से महज 5 या सवा पांच करोड़ लोग ही इनकम टैक्स रिटर्न भरते हैं। इनमें भी टैक्स देने वाले लोगों की संख्या कम है। टैक्स देने वाले लोगों को उम्मीद है कि महंगाई से निजात दिलाने के लिए सरकार उन्हें टैक्स के मोर्चे पर थोड़ी राहत देगी। खासकर मध्य वर्गीय नौकरी पेशा लोगों को। तो क्या अरुण जेटली टैक्स छूट की मौजूदा सीमा को सालाना 2.5 लाख रुपये से बढ़ा कर 3 लाख रुपये कर सकते हैं या टैक्स के मौजूदा नियमों में बदलाव करके इनकम टैक्स का बोझ कम कर सकते हैं? या फिर 80सी के तहत निवेश की सीमा को 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर सकते हैं?
नोटबंदी के बाद इनकम टैक्स से आने वाला राजस्व बढ़ा है क्योंकि ज्यादा लोग टैक्स के दायरे में आए हैं। मगर राजस्व के मोर्चे पर तंग हाथ होने के कारण सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकती जिससे टैक्स बेस कम हो, यानी टैक्स देने वाले लोगों की संख्या में कमी आए। हां, हो सकता है कि कुछ नए निवेश के तरीकों में पैसा लगाकर थोड़ा बहुत टैक्स बचाने की कोई योजना जेटली ले आएं।