अजय विद्युत
क्या नरेंद्र मोदी सरकार देश में इतिहास और पाठ्यपुस्तकों का भगवाकरण करने के मिशन पर आगे बढ़ चुकी है? बारह हजार साल की भारतीय संस्कृति के समग्र अध्ययन के लिए केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने एक समिति क्या बनाई, एक वर्ग ने उसे इतिहास के पुनर्लेखन और पाठ्यपुस्तकों में बदलाव लाकर देश का भगवाकरण करने का नाम दे दिया। मुख्य बात यह कि रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में वैज्ञानिक व तथ्यात्मक रूप से कितना वास्तविक इतिहास और ज्ञान-विज्ञान है, इसका पता लगाना और उसके आधार पर सुझाव देना इस समिति का काम था। हालांकि मीडिया के एक वर्ग में कहा जा रहा है कि यह रिपोर्ट सरकार द्वारा इतिहास के पुनर्लेखन कराने का आधार बन सकती है।
लेकिन भगवाकरण व इतिहास को बदलने का शोर जब ज्यादा उठा तो संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने इतिहास के पुनर्लेखन के दावों को साफ तौर पर खारिज करते हुए कहा कि ‘इस समिति का हिंदुत्व या इस्लाम से कुछ लेना देना नहीं है बल्कि वह भारतीय सभ्यता के बारे में समग्र अध्ययन को लेकर है। हम हजारों साल पुरानी अपनी सभ्यता और संस्कृति को जानना चाहते हैं और दुनिया की तमाम संस्कृति पर उसके प्रभाव व संबंधों का पता लगाना चाहते हैं।’
शर्मा यह भी कहते हैं, ‘मैं रामायण की पूजा करता हूं और उसे ऐतिहासिक दस्तावेज मानता हूं। जो लोग उसे काल्पनिक समझते हैं वे पूरी तरह गलत हैं। हम पुरातात्विक साक्ष्यों व अन्य वैज्ञानिक आधारों पर यह स्थापित करना चाहते हैं कि हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में वास्तविकता बताई गई है। महाभारत में आए तमाम प्रसंगों व स्थानों को भी समिति ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखा है।’
सरकार ने सत्रह सदस्यों की एक समिति बनाई थी जिसमें संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व व कुछ अन्य विधाओं से जुड़े लोग शामिल थे। यह समिति अपनी रिपोर्ट सरकार के समक्ष रख चुकी है। समिति का एक वर्ष का कार्यकाल पिछले साल ग्यारह नवंबर को समाप्त हो चुका है। लेकिन अभी उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। एक वर्ष के कार्यकाल के दौरान समिति की दो बैठकें हुर्इं। भारतीय संस्कृति और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों पर समिति ने कुछ सुझाव दिये हैं। समिति के अध्यक्ष केएन दीक्षित ने बताया, ‘हमसे एक रिपोर्ट देने को कहा गया था जो प्राचीन इतिहास के कुछ हिस्सों का वास्तविक तथ्यों के आधार पर पुनर्लेखन कराने में सरकार की सहायता कर सके।’ दीक्षित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व संयुक्त महानिदेशक रहे हैं।
कुछ मुस्लिम नेता इसे सरकार के हिंदूवादी एजेंडे पर आगे बढ़ने के बड़े कदम के रूप में देख रहे हैं। एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि ‘सरकार की मंशा देश में मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की है।’