टीपू के सहारे सुल्‍तान बनने की जद्दोजहद  

मैसूर।

कर्नाटक चुनाव में मैसूर के 18वीं सदी के शासक टीपू सुल्तान के सहारे चुनावी नैया पार लगाने की जद्दोजहद शुरू हो चुकी है। शायद यही वजह है कि इस चुनाव में टीपू सुल्तान एक अहम चुनावी मुद्दा बन गया है। कांग्रेस टीपू को महिमामंडित कर रही है तो भाजपा और अन्य हिंदू संगठन टीपू सुल्तान के शासन को हिंदू विरोधी साबित करने में जुटे हैं।

इस समय टीपू सुल्तान की चर्चा इतिहास के आइने में कम, चुनावी फायदा उठाने के लिए ज्यादा हो रही है। पार्टियां अपने अपने तरीके से टीपू सुल्तान को परिभाषित कर रही हैं।

टीपू सुल्तान पर विवाद की शुरुआत

विवाद की शुरुआत सिद्धारमैय्या सरकार द्वारा 2015 में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने से शुरू हुई। तमाम हिंदू संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया। हिंसा में विश्व हिंदू परिषद के एक नेता की जान भी चली गई। इसी बीच विवाद में भाजपा सांसद अनंत हेगड़े भी कूद पड़े। उन्होंने टीपू सुलतान को बलात्कारी और हत्यारा बताते हुए राज्य सरकार से कहा कि उन्हें टीपू सुल्तान की जयंती के समारोह में न बुलाएं।

कौन था टीपू सुल्‍तान

सीएम सिद्धारमैय्या ने कहा है कि इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ टीपू सुल्तान ने चार युद्ध लड़े थे। टीपू सुल्तान (1750-1799) का जन्म 20 नवंबर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली अब यूसुफ़ाबाद में हुआ था। पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था।

पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फ़क़रुन्निशा था। पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सेनापति थे, जो बाद में मैसूर साम्राज्य के शासक बने। हैदर अली के देहावसान के बाद टीपू सुल्तान मैसूर का शासक बना।

अपने पिता की तरह ही वह कुशल सेनापति और चतुर कूटनीतिज्ञ था। पिता के समय में ही उसने प्रशासनिक सैनिक और युद्ध की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। भाजपा की मानें तो कर्नाटक के कोडावा समुदाय के लोग और कुछ हिन्दू संगठन मानते हैं कि टीपू धार्मिक आधार पर कट्टर था। उसने जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर इस्लाम कबूल करवाया था।

इतिहासकारों में मतभेद

टीपू सुल्तान को लेकर इतिहासकारों में काफी मतभेद है। कुछ ने उसे अत्याचारी और धर्मान्ध बताया है। कुछ इतिहास टीपू को निकम्मा शासक मानते हुए कहते हैं कि हैदर अली शायद ही कोई गलती करता था और टीपू सुल्तान शायद ही कोई काम करता था।

मैसूर में एक कहावत है कि हैदर साम्राज्य स्थापित करने के लिए पैदा हुआ था और टीपू उसे गंवाने के लिए। वहीं कुछ ऐसे भी विद्वान हैं जिन्होंने टीपू के चरित्र की काफी प्रशंसा की है। उनकी नजर में वस्तुत: टीपू एक परिश्रमी शासक मौलिक सुधारक और महान योद्धा था।

इन सारी बातों के बावजूद वह अपने पिता के समान कूटनीतिज्ञ एवं दूरदर्शी नहीं था। यह उसका सबसे बड़ा अवगुण था। इससे भी बड़ी बात उसकी पराजय रही। अगर उसकी विजय हुई होती तो उसके चरित्र की प्रशंसा ही की जाती।

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