निशा शर्मा
शुक्रवार 20 अप्रैल। जम्मू में मूसलाधार बारिश। शाम छह बजे बारिश कुछ थमी तो जम्मू में कठुआ मामले को लेकर हो रही सुगबुगाहट का अंदाजा लगाने होटल से बाहर निकली। एक आॅटो वाले ने कहा-कल रात से ही यहां बारिश शुरू हुई है। इसकी वजह कश्मीर में बर्फबारी है। इससे पहले यहां गर्मी थी। फिर मैंने ‘कठुआ की बेटी’ केस के बारे में पूछा तो बोला, ‘जम्मू को बदनाम किया जा रहा है, लड़की के साथ जो हुआ वो गलत है लेकिन उसके साथ ऐसा करने वाले को सजा देने की जगह सब जम्मू को बदनाम कर रहे हैं। देखना, इसका असर सब लोगों पर होगा।’ मैंने पूछा, ‘सब पर असर क्यों होगा?’ उसने बताया, ‘हमारी रोजी-रोटी तो बाहर से आने वाले लोगों पर ही निर्भर है। अब ऐसी जगह आने से तो लोग डरेंगे ही ना जहां लड़की के साथ ऐसा किया गया हो। देवभूमि जहां वैष्णो माता का स्थान हो वहां से खबर आए कि हिंदुओं ने ऐसा किया है तो ऐसे में कौन यहां आएगा। अप्रैल से यहां बाहर से लोग आना शुरू कर देते हैं। पर अभी आप देखोगे तो होटल भी खाली पड़े हैं।’ मैंने कहा, ‘यहां के लिए लोग साजिश क्यों करेंगे?’ तो उसका कहना था, ‘ये सब मुसलमान और उनके नेता करवा रहे हैं।’ उसने मुझे बाजार में उतार दिया और बताया कि यह रघुनाथ मंदिर बाजार है। थोड़ा-सा पैदल चलने पर पता चला वहां रघुनाथ मंदिर है। जम्मू के किसी भी मंदिर में फोन ले जाने की मनाही है, ऐसा ही रघुनाथ मंदिर में भी था। सिक्योरिटी इंचार्ज को बताया कि ‘मैं पत्रकार हूं और लड़की की देवस्थान में हुई मौत के मसले पर बात करना चाहती हूं तो उसने कहा कि आप मुझसे बात कर सकती हैं, मैं भी इस मंदिर का ही हिस्सा हूं।’ उसने दावा किया कि, ‘ अब तो साफ हो गया है कि हिंदू इस मसले में शामिल नहीं है, यह साजिश है हमारे धर्म और लोगों को बदनाम करने की। आज ही पेपर में आया है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट कह रही है कि लड़की के साथ दुष्कर्म ही नहीं हुआ है।’ यह खबर जम्मू में जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी। ऐसा मुझे बाद में पता चला।
उसने मीडिया पर तंज कसा, ‘मीडिया चिल्ला चिल्ला के एक देव स्थान को मंदिर बता रहा था। उसे यह भी नहीं पता कि मंदिर और देवस्थान में क्या अंतर होता है? मैं मंदिर में बैठा हूं, यहां भगवान की स्थापित मूर्तियां हैं, यहां हर कोई आ जा सकता है, लेकिन देवस्थान कुलदेवता का स्थान होता है, जहां हर कोई नहीं आता जाता। तो मंदिर कह कह कर आप कुछ लोगों नहीं सभी हिंदुओं को बदनाम करना चाहते हो… हम शुरू से कह रहे हैं कि जिसने भी यह कुकर्म किया उसे सजा दी जाए, लेकिन ये कहां तक सही है कि मीडिया मामले को एक समुदाय पर थोपे।’ यह बानगी थी कि कठुआ की घटना की आग को हवा देकर राजनीति और मीडिया ने लोगों की भावनाओं पर किस तरह चोट की है। और इस हवा में असल मुद्दा पीछे रह गया है।
रघुनाथ मंदिर से निकलकर चौधरी नजाकत खटाना को फोन किया तो उन्होंने मिलने का समय दे दिया। खटाना वही शख्स हैं जो पीड़िता के लिए इंसाफ की शुरुआत से ही मांग कर रहे थे और मामले में पैसे के लेन-देन का खुलासा किया था। शाम के सात बज चुके थे। आटोवाले को बल्लीचराना चलने को कहा। वो बोला, ‘यह तो मुस्लमानों का इलाका है। देर रात आपके लिए सुरक्षित नहीं है। कठुआ में एक मुसलमान लड़की की हत्या हुई है। मुसलमानों का कहना है कि लड़की के साथ ऐसा हिंदुओं ने किया है। हालांकि मुझे लगता है कि हिंदू एक आठ साल की बच्ची के साथ ऐसा नहीं कर सकते हैं।’ मैंने पूछा, ‘क्यों नहीं कर सकते?’ तो उसने कहा ‘यहां हिंदुओं को पहले ही दबाया जाता है, उनकी वैसे ही कोई नहीं सुनता है। वो तो वैसे ही डर में जी रहा है।’ फिर बोला, ‘अब जम्मू पहले वाला जम्मू नहीं रहा… कश्मीर बनता जा रहा है। हमसे पूछो, गरीबों से पूछो, कोई भी नेता न हमारी सुनता है न हमारे बारे में बात करता है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सिर्फ मुसलमानों की बात करती हैं, उनके लिए जनता सिर्फ मुसलमान हैं।’ फिर सड़क किनारे एक झुग्गी दिखाते हुए कहा, ‘ये झुग्गी एक मुसलमान की है, कोई हिंदू इस तरह से झुग्गी डाल ले तो सरकार कल ही उठा देगी। पर मुसलमान कहीं भी जाकर डेरा डाल सकते हैं।’
वापसी के लिए आॅटो वाले को कुछ देर इंतजार करने को कहा तो वह मान गया। खटाना ने बड़ी सहजता से बात की और खाना-खाने के लिए कहा लेकिन रात हो चुकी थी मुझे लौटना था। उनकी बेगम ने भी कहा कि हम भी बाल बच्चों वाले हैं, आप यहां महफूज हैं, मैंने कहा मुझे लौटना है, इस मसले पर कुछ और लोगों से भी मिलना है। अंधेरा गहरा गया था। लड़की के साथ हुई घटना नहीं बल्कि हिंदू-मुसलमान का ऐसा माहौल बना था कि बिना डरे वहां से नहीं निकल पाई।
जम्मू बनाम कश्मीर सेंटिमेंट
शनिवार, 21 अप्रैल। धूप जरूर थी लेकिन हवा में ठंडक के बावजूद ‘कठुआ की बेटी’ मामले को लेकर माहौल में गर्माहट थी। लोग मुख्यमंत्री के रवैये से नाराज दिखे। वह एक तरफा कार्रवाई करवाती हैं… मुस्लिम एजेंडे पर काम कर रही हैं… ये बातें चर्चा में आम थीं। जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार अहमद अली फयाज से बात की। उन्होंने बताया, ‘काफी पहले से जम्मू और कश्मीर की राजनीति में दो शब्द होते हैं ‘जम्मू सेंटिमेंट’ और कश्मीर ‘सेंटिमेंट’ जिनको भुनाकर वोट इकट्ठे किए जाते हैं। महबूबा मुफ्ती भी इसका फायदा उठाना चाहती हैं क्योंकि अगले साल चुनाव हैं। जिन सीटों से वह जीती हैं वह कश्मीर से और मुसलिम बहुल इलाकों से हैं। वह अपने मतदाताओं की संख्या को बढ़ाना चाहती हैं। कश्मीर की भावनाओं को इस मसले से जोड़कर उनसे और जुड़ना चाहती हैं।’
उन्होंने बताया, ‘2014 के चुनाव में जम्मू से महबूबा मुफ्ती को कोई सीट नहीं मिली। यहां का हिंदू ही नहीं मुसलमान भी महबूबा के पक्ष में नहीं है। लेकिन ‘जम्मू की बेटी’ मामले में महबूबा की बयानबाजी, कार्रवाई मुसलमानों का वोट उनकी ओर खींच सकती है। यही कारण है कि संवेदनाओं की बाढ़ को अपनी ओर खींचने की कोशिश में हर पार्टी लगी है।’
दस जनवरी को यह शर्मनाक घटना हुई लेकिन आम लोगों ने बताया कि उन्हें यह काफी दिनों बाद पता चला। मामला तब उछला था जब चार्जशीट दर्ज कराने जा रही जांच टीम को अदालत के बाहर वकीलों ने रोका और प्रदर्शन करने लगे। अखबारों में ज्यादा कुछ नहीं छपा था। जम्मू के स्थानीय मीडिया के लिए यह छोटी सी खबर थी। लेकिन जैसे-जैसे गिरफ्तारियां होती गर्इं, वकीलों, नेताओं की भागीदारी बढ़ती गई। मसला जम्मू से बाहर कश्मीर तक पहुंच गया। कश्मीर में मीडिया ने इसे हिंदू और मुसलमान का मामला, मुसलमान लड़की से दुष्कर्म… बताकर खूब उछाला। उधर जम्मू में मामला लड़की से गैंग रेप की बजाय हिंदू एकता मंच हो चुका था। जम्मू में ही कश्मीर के पत्रकार उमर मकबूल से मैंने पूछा कि कश्मीर में यह मुद्दा कैसे बन गया। कोर्ट में मामला होने के बावजूद वहां पत्थरबाजी हो रही है। मीडिया इतनी तरजीह दे रहा है? उमर मकबूल का पहला वाक्य था, ‘ऐसा एक मुसलमान लड़की के साथ हुआ है, इसलिए हम इंसाफ चाहते हैं। हिंदुओं ने उसके साथ जो किया वो गलत है।’ ‘लेकिन हिंदुओं के साथ ऐसा होता तो…?’ इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं था।
जम्मू के पत्रकारों का कहना था कि गैंग रेप केस उठा और दूसरी ओर हिंदू एकता मंच बना जिसमें सभी पार्टियों के लोग शामिल हुए। बीजेपी से मंत्री लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा वो मंत्री थे जिन्होंने कोटा गांव में जमा प्रदर्शनकारियों का साथ दिया और मुख्यमंत्री पर सवाल उठाए। बाद में दोनों मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि दोनों मंत्रियों का कहना है कि वे पार्टी के बड़े नेताओं के कहने पर कठुआ पहुंचे थे जहां पर हिंदू एकता मंच की रैली थी। एक तरफ मंत्री आरोपियों के पक्ष में बातें कर रहे थे, क्योंकि वहां की भीड़ और प्रदर्शनकारी मामले में हो रही जांच से खुश नहीं थे। दूसरी ओर मामला मुसलमानों के पक्ष का था, जिनके लिए मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती खुद खड़ी नजर आर्इं। लाल सिंह ने मीडिया की नजरें अपनी तरफ घुमा कर मसले को एक दूसरी तरफ मोड़ा तो पीडीपी मामले को अपने हाथ से नहीं देना चाह रही थी। इसी कारण महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट किया- आरोपियों के पक्ष में रैली अनैतिकता की निशानी है। मामले में आरोपी बनाए गए दीपक खजुरिया की बहन का कहना है कि ‘अगर कानून सबसे ऊपर है और कार्रवाई जारी है तो मुख्यमंत्री कौन होती हैं ये बताने वाली कि जिन्हें पकड़ा गया है उन्होंने ही जुर्म किया है। वो मुसलमानों का बचाव कर रही हैं। पीड़िता के परिवार से मिली हैं, लेकिन हमने समय मांगा तो नहीं दिया। हमें क्यों भरोसा नहीं दिया गया कि जो मुजरिम है उसे ही सजा मिलेगी। हमें जताया जा रहा है कि हम इस लड़ाई में अकेले हैं।’
कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन कहती हैं, ‘भीड़ कानून को चुनौती दे रही है। लोग पीड़िता की जगह आरोपी के साथ खड़े हो रहे हैं। मामला हाईकोर्ट की निगरानी में है। कोई भी जांच पर सवाल कैसे उठा सकता है?’
जिस तरह से मामले को हिंदू-मुसलमान का रूप दिया गया यह देश के बाहर भी राजनीतिक हो चुका था। लड़की के साथ हुए गैंग रेप की जगह ये मामला भारत के खिलाफ बोलने और उसकी छवि पर सवाल उठाने के लिए तैयार हो चुका था। अल जजीरा, गार्डियन, न्यूयॉर्क टाइम्स, बीबीसी, द इंडिपेंडेंट, द सन, वाशिंगटन पोस्ट जैसे मीडिया मामले को राजनीति के तौर पर तरजीह दे रहे थे। मामला कठुआ से निकलकर कश्मीर होता हुआ विदेशों में पहुंच गया। यूएन भारत को मसले पर नसीहत दे रहा था। नसीहत वाजिब थी लेकिन हो-हल्ला सिर्फ सियासत चमकाने का हथियार था।
वरिष्ठ पत्रकार अहमद अली फयाज कहते हैं, ‘माहौल पहले ही हिंदू-मुसलमान किया जा चुका था। उसके बाद हिंदुओं को यह एहसास करवाया जाने लगा कि जो भी जांच हो रही है वह हिंदुओं के हक में नहीं है। जांच में श्रीनगर के लोग शामिल किए जा रहे हैं। ऐसे लोग शामिल किए जा रहे हैं जिन पर दुष्कर्म का आरोप है। वहीं बचाव पक्ष कह रहा है कि ऐसा नहीं है कि जांचकर्ता सिर्फ मुसलिम या श्रीनगर से लाए गए हैं, इसमें हिंदू भी शामिल हैं जैसे श्वेतांबरी शर्मा।
पिसता आम इंसान
मामले की जांच को लेकर ऐसी ही सुगबुगाहट जम्मू के आम लोगों में भी थी। रघुनाथ मंदिर बाजार शॉल, स्वेटर, पौंचु जैसे सर्दियों के पहनावों से सजा हुआ था। बाजार में मुझे एक बड़ी दुकान ‘चिनार सुपर बाजार’ दिखी जहां तरह तरह के सामान थे। मैंने पूछा कि ये सर्दियों के कपड़े गर्मियों में भी मिलते हैं तो उसने कहा कि ‘हां, सैलानी इन दिनों यहां आते हैं उनके लिए। ये चीजे बाहर नहीं मिलती हैं।’ ‘कठुआ की बेटी’ को लेकर बात की तो दुकान का मालिक कहने लगा, ‘ये केस नहीं सियासत है, जो राजनीति के लोग कर रहे हैं और हम जैसे लोग पिस रहे हैं। जब देखो जम्मू बंद, हाईवे बंद का ऐलान हो जाता है। नेताओं को तो इसके भी पैसे मिलते हैं, ओहदे भी मिल जाते हैं लेकिन पिसता आम इंसान है। हमारा पूरा बिजनेस खत्म हो गया है। मैं मोदी भक्त हूं… जम्मू में जहां भी मोदी जी कि रैली होती है सब काम छोड़ कर चला जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं करूंगा। बीजेपी को वोट इसलिए दिया था कि हिंदुओं की सुनेगी। इसलिए नहीं कि वो मुफ्ती सरकार के साथ मिलकर हमें ही बेघर करे। बकरवाल समुदाय के लिए महबूबा सरकार ने ऐसा कानून पास कर रखा है कि वे कहीं भी जाकर डेरा डाल सकते हैं, आपकी जमीन इस्तेमाल कर सकते हैं और आप इन्हें कुछ नहीं कह सकते। कल को वो मेरी दुकान पर आकर बैठ जांएगे तो हम क्या कर लेंगे। बच्ची के साथ बुरा हुआ है, गलत हुआ लेकिन जो हमारे साथ गलत हो रहा है उसका क्या। वकील तक मिलकर हमारी दुकाने बंद करवा रहे हैं। कोई बिजनेस नहीं है, पूरा दिन खाली बैठे रहते हैं। मेरे यहां 18 लोग काम करते हैं, सैलरी कहां से दूंगा अगर कमा ही नहीं पाऊंगा। सब बच्ची के नाम पर राजनीति चमकाने में जुटे हैं। बीजेपी से अच्छी तो महबूबा मुफ़्ती है, मुसलमानों के लिए काम तो करती है, उन्हें बसा तो रही है। यहां हम बीजेपी के राज में बसे बसाए उजड़ रहे हैं। अगली बार इस बाजार में से कोई भी बीजेपी को वोट नहीं देने वाला। मैं बिजनेस मैन हूं, पढ़ा लिखा हूं… अगर मुझमें इतना डर है तो सोचिये आम लोगों में यह कितना होगा। बीजेपी ने हमसे वादा किया था कि बाहर से आए हिंदुओं को यहां का नागरिक बनाएंगे। अधिकार देंगे कि वह यहां जमीन खरीद सकें। लेकिन इसके उलट रोहिंग्या को लाकर जम्मू में और बसा दिया है।’
मैं एक रेस्तरां में गई। वहां ज्यादा लोग नहीं थे। जो थे वे कठुआ मामले पर ही बातचीत कर रहे थे। मैंने खाना मंगाया। लोग बात कर रहे थे कि सांझी राम के परिवार को फंसाया जा रहा है, हालांकि खबर ये है कि उनके आपसी लोगों में ही झगड़े थे। जिसकी वजह से लड़की को मारा गया है। तभी तो वे गांव छोड़कर चले गए हैं, वरना केस के लिए उन्हें क्यों नहीं रोका गया? सरकार, कानून को क्या पहले से ही पता है कि वे बेगुनाह हैं? बातें एक लड़की के साथ हुए दुष्कर्म की जगह समुदाय को लेकर हो रही थीं।
आरोपियों के परिवार की पीड़ा
रविवार 22 अप्रैल। अब जम्मू से सुबह आठ बजे कठुआ के लिए प्रस्थान। जिले में घुसते ही आपको डीपीएस कठुआ, करतार पब्लिक जैसे स्कूलों के बड़े-बड़े होर्डिंग दिखेंगे। प्राइवेट स्कूलों के अलावा लड़कियों और लड़कों के लिए सरकारी स्कूल मिलेंगे, बॉस्केट बॉल कोर्ट में खेलते बच्चे भी नजर आ जाएंगे। इसी जिले में नेशनल हाइवे 44 से करीब डेढ़ किलोमीटर अंदर एक गांव है रसाना जहां 17 जनवरी को एक लड़की का शत-विक्षत हालत में शव मिला था। उसके बाद ये गांव सुर्खियों में बना हुआ है। पहले गांव धमियाल पहुंचे। यहां से दीपक खजूरिया को पकड़ा गया था, जिस पर लड़की को मारने की साजिश रचने, अपहरण और दुष्कर्म का आरोप है। चार्ज शीट के मुताबिक बच्ची की हत्या में 60 साल से ज्यादा के सांझी राम के साथ पुलिस अफसर दीपक खजुरिया शामिल है, जिसने बच्ची को ड्रग्स दिया, उसका अपहरण करवाया और दुष्कर्म किया।
एक दुकानदार से पूछा कि यह रास्ता धमियाल गांव को जाता है। उसने बताया कि हां, आप मीडिया से हैं क्या? मैंने कहा हां और पूछा, ‘आपको कैसे पता चला था केस के बारे में।’ उसने कहा, ‘लड़की लापता थी। पुलिस वाला कोई उनकी बात सुन नहीं रहा था। जब बच्ची की लाश मिली तो उसे चारपाई पर रखकर यहां हाईवे रोक दिया। उसके बाद वहां भीड़ लग गई।’ उसने बताया कि धमियाल और रसाना दोनों गांव पास-पास हैं।
धमियाल गांव में दीपक खजुरिया के घर का पता पूछा तो एक शख्स हमें उसके घर की ओर ले चला। वहां काफी लोगों का जमावड़ा हो गया था। लोग राष्ट्रीय मीडिया से नाराज थे। मैंने बताया कि मैं जम्मू से ही हूं। राष्ट्रीय मीडिया पर गुस्से की वजह पर दीपक की बहन मीनाक्षी कहती है, ‘दिल्ली से यहां बड़े सारे लोग आए हैं। हम जो बातें बोलते हैं उसका उलट वो चलाते हैं। हमारी बात क्यों लोगों तक नहीं पहुंचाई जा रही है। सबसे तेज सबसे आगे का नारा देने वाले चैनल से एक मैडम आई थी। जो हमने कहा वो बात तो चैनल पर दिखाई नहीं बल्कि मेरे भाई को हत्यारा करार दे दिया। हम सीबीआई की मांग कर रहे हैं- ये थोड़े ही कह रहे हैं कि मुजरिम को छोड़ दो। अगर मेरे भाई ने ऐसा किया है तो उसे सरे आम फांसी दे दी जाए। सरकार या मीडिया एक तरफा बात ना करे।’
मैंने भीड़ से अलग घर के बाहर एक शख्स से बात की। उसने अपना नाम सुरेश शर्मा बताया जो दीपक खजूरिया का बचपन का दोस्त था। आपको कैसे पता चला था घटना का, पूछने पर उसने बताया कि बकरवाल लोग यहां अपनी बेटी को ढूंढते हुए आए थे। घर के पीछे जंगल है। हमने सोचा जंगल में कहीं गुम हो गई होगी क्योंकि इनकी बकरियां, जानवर यहां घूमते रहते हैं। हमारे यहां से भी कुछ लड़के उनके साथ जंगल में लड़की को ढूंढने निकल गए। वैसे इस तरफ वो लोग कम आते हैं। रसाना गांव उनके नजदीक पड़ता है तो वो अपने उधर ज्यादा जाते थे। हम नौकरी करते हैं तो इतना ज्यादा मामले में ध्यान नहीं दिया। 18 जनवरी को गांव में भंडारा था तब लोगों ने कहा कि रसाना में लड़की की लाश मिली है। हम देखने निकले तो रास्ते में दौड़ते हुए लोगों का झुंड नजर आया जो नारे लगा रहे थे। हम डरकर वहां नहीं गए कि कहीं भीड़ में हमें ही कुछ ना कर दें।
जब लड़की का चौथा था तब बकरवालों के 40-50 लोग थे और लोग बाहर से आए हुए थे। हमने गाड़ियां देखी थी जिसमें से कुछ गाड़ियां राजौरी, बदरवा, श्रीनगर की थीं। हमने गाड़ियों के नंबर देखे। उसके बाद फिर रोड जाम किया गया। उसके बाद पुलिस को रोड खुलवाने के लिए लाठी चार्ज करना पड़ा।
उसने कहा, ‘बकरवाल बरसों से यहां आते हैं, जैसे आप लोग यहां आए हो हम आपको चाय पानी पूछेंगे वैसे ही ये लोग आते थे तो खुद ही दीपू की मम्मी को कह देते थे कि चाची चा पीला दे, पाणी दे दे- इनके घरों में पानी की सप्लाई नहीं है तो कई बार इस गांव से भर कर ले जाते थे। हमारे घरों में शादियों में ये लोग आम लोगों की तरह ही आते थे, सगन देते थे। लेकिन जब से ये केस हुआ है हमारे लोगों में थोड़ा डर तो बैठ ही गया है। अब लोग जंगल में भी नहीं जाते, पहले जानवरों के लिए घास लेने चले जाते थे। गांव में दो से तीन पुलिस की पोस्ट बन गई हैं। लोगों को लगता है कि जंगल में जाएंगे तो पुलिस कहीं उन्हें ही ना पकड़ ले। लोगों में अब बहुत ज्यादा दहशत है। जिस दिन प्रदर्शन हुआ तो पहले दिन हमारे यहां से ही ज्यादा लोग थे। हिंदू यही कह रहे थे कि बच्ची के साथ गलत हुआ है। जिसने भी ये किया है उसे सजा मिलनी चाहिए।’
गांव में कभी पुलिस तक नहीं आई। पहली बार पुलिस, मीडिया यहां आ रहे हैं। उसने बताया, ‘ उनके जानवर हमारे खेतों में घुस जाते थे जिसको लेकर थोड़ी बात जरुर होती थी, लेकिन वो बात वहीं खत्म हो जाती थी। वो ऐसी बातों के बाद उसी तरह से मिलते थे बातें करते थे। ये लोग जंगल में रहते हैं इनके गांव में ना पानी था ना ही बिजली तो वह कभी अपने मोबाईल चार्ज के लिए हमारे घरों में लगा जाते थे। दो-दो दिन तक मोबाईल पड़े रहते थे चार्ज के बाद।’ माहौल 20 जनवरी के बाद खराब हुआ। इन लोगों में जब बाहरी लोग घुसे तभी मामला ऐसा बना।’ मैंने पूछा कौन बाहरी तो उसने बताया, ‘तालिब हुसैन जैसे लोग। एक दिन हमारे गांव के लोग लड़की के पिता के पास गए कि तुम्हारा क्या कहना है इस पूरे मसले पर, तो उसने कहा कि मुझे कुछ नहीं कहना है, तालिब हमारा भाई है जो वो कहेगा हम वही करेंगे। दरअसल, इन लोगों में कुछ लोग बाहर गए हैं पढ़ाई करने या जिन्हें बाहर का एक्सपोजर है वो लोग इन्हें बहकाते, राजनीति करते हैं वरना ये लोग अशिक्षित और मासूम लोग हैं।’ एक शख्स ने बीच में ही कहा कि हमारा बकरवालों के साथ कभी झगड़ा नहीं हुआ, उलटा हमारे खेतों में बसे हुए हैं। फ्री में रहते हैं और अब हमें ही आंखे दिखा रहे हैं।
लोग कहते हैं कि उस लड़की का एक चाचा और उसका बेटा 17 तारीख से फरार है। उसके बारे में पुलिस ने कोई छानबीन नहीं की। बकरवालों से किसी ने पूछताछ नहीं की।
दीपक का नाम क्यों आया
सुरेश शर्मा कहते हैं, ‘एक दिन उसे एक फोन कॉल आई। जिस दिन रोड जाम किया हुआ था। वो वहां बाइक लेकर चला गया। प्रदर्शन कर रहे लोगों को लगा कि वह रोड क्रॉस कर रहा है, उन्होंने इसकी बाइक की चाबी निकाल ली। दोनों में बहस हो गई। दो दिन बाद दीपक ने बताया कि तालिब ने उसे धमकी दी थी कि वह उसको देख लेगा तो उसने भी कह दिया था कि देख लियो तेरे जैसे बहुत देखे हैं। उसके बाद उसने दीपक का नाम उछाल दिया। जब दीपक को क्राइम ब्रांच की तरफ से बुलाया गया तब वह बालीवॉल खेल रहा था। 26 अप्रैल को उसकी शादी थी, वह मॉर्निंग वॉक पर जाता था तो अपनी मंगेतर से फोन पर बात करता रहता था। शादी की तैयारियों में लगा रहता था। मुझसे भी उसने कई बार डीजे के लिए बात की कि कौन-सा डीजे वाला करना है। उसके पिता जी की 30 अप्रैल को रिटायर्मेंट भी थी।’
दीपक की माता जी से बात करनी चाही। लोगों ने कहा कि उन्हें हार्ट की बीमारी है ज्यादा सवाल ना पूछें। उन्होंने बताया, ‘आॅफिस से फोन आया और वो चला गया। उसने फोन किया कि जम्मू की टीम पूछताछ के लिए आई है। फ्री होऊंगा तो आपको फोन कर लूंगा। देर हो गई मैं परेशान थी। शादी रखी हुई थी तो मैं उसे देर रात तक बाहर नहीं रहने देती थी। फिर देर रात उसका फोन आया कि मुझे टीम जम्मू ले जा रही है। वहां से फ्री होऊंगा तो फोन कर लूंगा। पूरी रात इंतजार करती रही। सुबह फोन मिलाया तो भी उसका फोन बंद था। फिर हमें पता चला कि क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर लिया है।’ दीपक की मां रोने लगी और कहने लगी, ‘आज बेटे को हल्दी लगनी थी।’
वहां मौजूद ओमप्रकाश ने बताया, ‘ लोग कह रहे हैं कि हम बकरवालों को भगाना चाहते थे। आज से तीस-चालीस साल पहले हमारे गांव में गुर्जर या बकरवाल कोई नहीं होता था। फिर धीरे-धीरे ये बढ़ने लगे। हमारा सहयोग नहीं होता तो क्या ये लोग इस तरह से यहां इतने सालों से रह पाते या इनकी संख्या में बढ़ोतरी हो पाती।’
मीडिया दिखा रहा है कि बकरवाल आपकी दहशत की वजह से यहां से चले गए हैं? ओमप्रकाश ने कहा, ‘यह बिल्कुल गलत है। गर्मियां शुरू होते ही ये लोग यहां से ऊपर पहाड़ों की तरफ चले जाते हैं और सर्दियां शुरू होते ही वापिस लौट आते हैं। घटना को तीन महीने हो गए वो लोग अब गए हैं। दहशत की बात होती तो वो पहले नहीं जा चुके होते।’ वहीं खड़े एक शख्स ने कहा कि सिक्योरिटी दे दी है तो अच्छा है वरना ये लोग कल को हमारे ऊपर ये भी इल्जाम लगा देते कि हमने इनके घर में से कुछ चुरा लिया या उसे नुकसान पहुंचाया।
हम धमियाल गांव से रसाना को निकले। संकरा रास्ता जिसके चारों तरफ झाड़ियां हैं। गांव में अंदर कुछ दूरी पर एक मंदिर है, मंदिर के सामने पुलिस की चौकी। पुलिस ने हमें रोका और नाम पता पूछने के बाद जाने दिया। रविवार होने के बावजूद माहौल शांत था। हम उस जगह जा रहे थे जहां देवस्थान था। बताया जा रहा था कि सांझी राम ने लड़की को अगवा करने की साजिश रची, अगवा करवाया और देवस्थान में रखकर उसके साथ रेप किया। देव स्थान समतल जगह के बीच में एक कमरे की तरह बना हुआ स्थान है। चारों तरफ जंगल। दिन करीब बारह बजे का समय। यहां एकांत है, पक्षियों के चहचहाने की आवाजें सुनाई दे रही हैं। इसमें तीन दरवाजे हैं जो बंद थे। देवस्थान से कुछ फासले पर एक शेड बना हुआ है जहां भंडारा किया जाता है। मैं देवस्थान का मुआयना कर रही थी तो मैंने खिड़कियों में से मंदिर के अंदर झांक कर देखा तो जिस तरह से एक कमरे में दो खिड़कियां और तीन दरवाजे हैं वहां से यह मुश्किल लगता है कि कोई इस जगह पर लड़की को रख सकता है।
तभी देवस्थान का दरवाजा रसाना गांव के एक शख्स ने खोला। मैंने पूछा कि इसकी चाबी किसके पास रहती है तो उसने कहा, ‘लड़की के केस से पहले सांझी राम के पास देवस्थान की चाबी रहती थी। देवस्थान के तीन दरवाजे हैं जो तीन दिशाओं में हैं। यह देवस्थान तीन गांवों का है। तीनों दरवाजों की चाबी अलग अलग गांव के लोगों के पास होती है। कोई कभी भी आकर यहां पूजा अर्चना कर सकता है। रसाना गांव के लोग यहां सुबह शाम धूप बत्ती जलाते हैं।’
जिस टेबल पर लड़की को रखने की बात आ रही थी वह उसने दिखाया। कहा, ‘इस टेबल के नीचे, दरी से लपेटकर रखने की बात कह रहे हैं। पर मैं आपको बता दूं कि सांझी राम इस देवता का चेला है और जिस दिन की बात कही जा रही है उन दिनों में यहां लोहड़ी, सक्रांति का त्योहार था। जो लोग रोज नहीं आते इन बड़े त्योहारों पर जरूर आते हैं। यही नहीं सक्रांति से अगले दिन यहां जग (भंडारा) था। जो बाहर शेड आपको दिख रही है वहीं भंडारा हुआ। मेरा परिवार यहां आया हुआ था। दरियां बिछी थीं जिनके बारे में कहा जा रहा कि उनसे लड़की को लपेटा गया था। भंडार खाने कई लोग आए थे। चार्ज शीट में यह भी कहा गया है कि दरी में बच्ची के बाल मिले हैं। अब आप बताइये की दरी यहां बिछी थी तो बच्ची के बाल कैसे मिल गए।’
रास्ता बताने वाले शख्स से पूछा कि वो जगह कहां है जहां बच्ची की लाश मिली थी। पैदल का एक रास्ता जाता था। कुछ दूरी पर उसने बताया कि यहां लड़की की लाश मिली थी। जगह की निशानदेही के लिए उस जगह पर एक पत्थर रखा गया है। घटनास्थल से करीब पांच मिनट की दूरी पर सांझी राम का घर था। बरामदे में एक बुजुर्ग औरत बैठी थी। उस शख्स ने घरवालों को आवाज लगाई तो अंदर से आवाज आई कि अंदर आ जाओ। घर के अंदर गई तो एक महिला चारपाई पर लेटी हुई थी जो सांझी राम की पत्नी थीं। उन्होंने बताया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है। फिर बोलीं- पूछो क्या पूछना है। मैंने कहा मुझे आपके पति के बारे में जानना है कि वो क्या करते थे रिटायर होने के बाद। वह बोलीं, ‘दिसंबर में तो वह रिटायर हुए। उसके बाद पूजा पाठ करना.. घर में कई काम होते हैं वो करते थे। लेकिन उन्होंने वो सब नहीं किया जो उनके बारे में कहा जा रहा है। 65 साल का इंसान जो राम नाम सुबह शाम जपता हो, जिसने अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया हो वह ये काम करेगा। अब हमें किसी पर विश्वास नहीं रहा हमें सिर्फ भगवान पर भरोसा है।’ थोड़ी देर में वहां उनका बड़ा बेटा आ गया। जो नेवी में है। एक महीने से छुट्टी पर है, जल्द उसे वापिस ड्यूटी पर लौटना है, ऐसा उसने मुझे बताया। उसने कहा, ‘जिसका एक बाप, दो भाई जेल में हों उस पर क्या बीतती है ये आप नहीं समझ सकतीं।’ मैंने पूछा- तुम्हें कब पता चला तो उसने कहा- मुझे काफी समय बाद पता चला क्योंकि जब ये घटना हुई तो मैं समुद्र में था ड्यूटी पर।
उसकी बड़ी बहन, सांझी राम की बेटी मोनिका भी वहां थी। उसने कहा, ‘जब ये सब हुआ तो मैं जयपुर में थी, मैंने फार्मेसी की है। वहीं नौकरी करती हूं। मेरे पिताजी ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि ये सब काम जाहिल लोगों के होते हैं पढ़े-लिखे लोगों के नहीं और हमारा पूरा परिवार पढ़ा-लिखा है।’ मैंने कहा लेकिन क्राइम ब्रांच तो उन्हें आरोपी मानती है, इस पर वो कहती हैं, ‘मेरे पिता कस्टडी से भी सीबीआई की, नार्को टेस्ट की मांग कर रहे हैं। आपने कभी सुना है कि कोई आरोपी अपना नार्को टेस्ट करवाने की बात करता हो। उन्हें पता है कि वो सही हैं, तभी वह इस जांच के लिए कह रहे हैं। दोषी वो हैं जो नहीं चाहते कि सच्चाई सामने आए।’
‘जिस दिन ये घटना हुई उस दिन रात करीब 9 बजे हमारी बिजली काट दी गई। हमारे गांव में एक परिवार है जिनके बेटे को कैंसर हो गया है। उसके लिए वह रात को कई बार उठते हैं, तो उन्होंने हमें, मीडिया को भी बताया था कि उस दिन रात करीब ढाई-तीन बजे के बीच बुलेट पर दो लोग देवस्थान की ओर गए थे। जिन्होंने खुद को पूरी तरह ढका हुआ था। थोड़ी देर बाद वो वापिस चले गए थे। लेकिन इस बात की कोई जांच नहीं हुई कि वो लोग कौन थे और देर रात क्या करने यहां आए थे। गांव के दो-तीन लोगों ने वो आवाज सुनी थी। पर किसे पता था कि अगले दिन सुबह ऐसा कांड हो जाएगा’- मोनिका साहस के साथ बात कर रही थी।
मैंने जब उसके भाई विशाल के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह एग्रीकल्चर का स्टूडेंट है। मेरठ में पेपर दे रहा था। उसने पेपर दिए हैं इसकी जानकारी भी अखबार में छप चुकी है।’ मैंने कहा पर उसके हस्ताक्षर को लेकर कुछ सवाल उठे हैं तो मोनिका ने कहा- ‘पहले पेपर में उसने सिर्फ विशाल लिखा है लेकिन और पेपर में पूरे हस्ताक्षर किए हैं। पहली बार जब आप पेपर देने जाते हैं तो डरे हुए होते हैं एक बॉक्स होता है जिसमें आपने हस्ताक्षर करने होते हैं उसने बॉक्स की सीमा के अंदर हस्ताक्षर करने की कोशिश की होगी। बाद में उसे पता लगा होगा कि हस्ताक्षर पूरे करने हैं उसने फिर अपने सर नेम के साथ हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर में फर्क है लेकिन लिखावट में तो कोई अंतर नहीं मिला है तो फिर कोई कैसे कह सकता है कि एक ही इंसान एक समय में दो जगह हो सकता है। वो भी इतनी दूर।’
मैंने बात उसके ममेरे भाई की शुरू की और पूछा कि वह कब से यहां रह रहा है, तो उसने कहा काफी दिनों से। मैंने पूछा जब घटना घटी थी तब भी वह आपके यहां ही रहता था तो उसने कहा हां। मैंने पूछा वह अपने घर में क्यों नहीं रहता था तो उसने कहा कि मेरी मम्मी अकेली रहती है, बीमार थीं तो वह ध्यान रखता था। मेरे पूछने पर कि कहा जाता है कि वह बिगड़ैल था इसलिए उसको यहां भेजा गया था। उसने कहा कि वह सिगरेट वगैरा पीता था, अब गांव में बच्चों का सिगरेट पीना ही बिगड़ैल माना जाता है। मैंने जानना चाहा कि वह स्कूल में पढ़ता नहीं था तो उसने कहा कि वह दसवीं के पेपर ओपन से दे रहा था। आप उससे आखिरी बार कब मिलीं थी तो उसने कहा कि अपने पिताजी की रिटायरमेंट पर दिसंबर में आखिरी बार मिली थी। पर वह ऐसा लड़का है जिसे थोड़ी सी ऊंची आवाज में बात कर लो तो रोने लग पड़ता था। वो क्या किसी लड़की के साथ ऐसा करेगा।
एक मुलाकात में जो टीम जांच कर रही है, उस टीम के एक शख्स ने मेरे भाई को मेरे सामने खड़ा करके कहा कि बताओ अपनी बहन को तुमने क्या किया है, तो मेरा भाई सिर झुकाए खड़ा रहा। उसके बाद श्वेतांबरी शर्मा जो इस जांच का हिस्सा है वह कहने लगीं कि यह अपने बाप के आगे नहीं बोलता तो बहन के आगे क्या बोलेगा। अब आप ही बताइये कि एक तरफ आप कहते हैं कि पिता के साथ मिलकर साजिश रची दूसरी तरफ आप ही कहते हैं कि पिता के आगे कुछ नहीं बोलता। ऐसी कई बातें हैं तो हमें डराती हैं कि हमारे साथ गलत किया जा रहा है।
समय बीत रहा था अन्य स्थानीय मीडिया वहां पहुंच चुका था। हम वहां से निकले।
मैंने एक शख्स से पूछा। बकरवाल यहां से कितनी दूरी पर रहते हैं। आप हमें वहां छोड़ आएंगे। तो उसने कहा, ‘मैं रास्ता बता सकता हूं पर वहां जाऊंगा नहीं। पूरे इलाके में पुलिस बैठी है, जिस तरह से बेगुनाह लोगों को पकड़ा है। उसी तरह से फिर हमें भी पकड़ लेगी।’ वह कुछ दूरी तक वह हमारे साथ चला फिर उतर गया।
झाड़ियों में से एक घर दिखा। लगा यही वह घर होगा क्योंकि उस घर के आस-पास कोई घर नहीं था। एक मैदान सा था। शायद ये लोग यहां अपने जानवर रखते होंगे। घर के सामने पुलिस का तंबू गढ़ा था। जिसमें से तीन पुलिस वाले निकले एक वर्दी पहने हुए था और अन्य वर्दी में नहीं थे। उसने फिर मुझसे पूछा कि आप कहां से हैं, क्यों आए हैं। एक पुलिस वाले ने मेरा नाम, पता सब लिख लिया। मैंने पूछा आप तीनों पुलिस से हैं तो उसने कहा जी हां, हमारी यहां ड्यूटी है। मैंने पूछा कि क्या बकरवाल यहां से जा चुके हैं तो उसने कहा कि हां अधिकतर तो जा चुके हैं अगर कोई बचा हो तो पता नहीं। मैंने कहा पर घर तो यहां एक ही नजर आ रहा है तो एक पुलिस कर्मी ने कहा कि हम इस इलाके के बारे में जानते नहीं हैं मेरी पोस्टिंग कठुआ में थी और अब मुझे यहां भेज दिया गया है। मैं तो श्रीनगर के पुंज से हूं। हां कहा जाता है कि नीचे की तरफ करीब एक किलोमीटर पर और गांव हैं आप वहां पता कर सकती हैं।
अगला पड़ाव कूटा मोड़ था जहां पता चला कि पिछले तीन महीने से आरोपियों का परिवार सीबीआई जांच की मांग पर बैठा था। स्थानीय लोग इसे अड्डा कहते हैं क्योंकि यहां गांव से बाहर दुकानें हैं, जहां से लोग अपने घर का सामान खरीदते हैं। पता लगा कि सड़क के किनारे पीपल के पेड़ के नीचे महिलाएं हाथ में सीबीआई जांच की मांग के पोस्टर लेकर बैठी थीं। मैंने किसी से पूछा कि इन महिलाओं में कौन-कौन बैठा है तो एक ने कहा कि सांझी राम की बड़ी बेटी थी, और भी लोग थे जिनके परिवार के लोगों को इसमें फंसाया जा रहा है। अभी बात ही शुरू हुई थी कि धीरे धीरे वहां मीडिया का जमावड़ा होने लगा। कुछ ही देर में वहां स्थानीय मीडिया से लेकर राष्ट्रीय मीडिया, सोशल वर्कर, भारतीय जनता पार्टी और अन्य दलों के नेता, वकील आ गए। चेन्नई से एक पत्रकार कवरेज के लिए आए थे, ना हिन्दी जानते थे ना ही डोगरी। वह अपने प्रश्नों को पास खड़े एक व्यक्ति से पहले अंग्रेजी में बोलते थे फिर उन प्रश्नों को वह व्यक्ति डोगरी भाषा में रूपांतरित करता था। उनका एक प्रश्न कि क्या जब आप मीट-मांस खाते हैं तो मंदिर में जाते हैं… जिसका जवाब था- हम मांसाहारी नहीं है। वह उस प्रदेश के गांव की महिलाएं थीं, जिन्हें हिन्दी नहीं आती थी, जो जवाब भी सिखाने पर ही बोल पा रही थीं। आपको ऐसे देखना है, अपने शॉट्स के लिए लोग उन्हें सीबीआई जांच की मांग को दोहराने और उसे कैसे जोर से बोलना है सीखा रहे थे। आपको जवाब में ये बोलना है का माहौल वहां था मेरे पहुंचने तक नहीं था लेकिन कुछ देर में गढ़ा जरूर जा रहा था।