भागते भूत की लंगोटी सही

सौमित सिंह

विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सबसे ज्यादा कर्ज दिया। वह अब इस लापता उद्यमी से अपनी राशि की वसूली के लिए हरकत में आया है। बैंक ने कर्ज के बदले गिरवी रखी गई किंगफिशर एयरलाइंस की चल और अचल परिसंपत्तियों  को 17  मार्च को नीलाम करना तय किया है। लेकिन समस्या यह है कि इस नीलामी से मिलने वाली राशि कुल बकाया राशि की तीन फीसदी भी नहीं होगी। अब यह सवाल उठने लगा है कि एसबीआई ने आईडीबीआई की तरह पहले ही गिरवी परिसंपत्तियों की नीलामी से अपनी फंसी हुई राशि की वसूली के विकल्प को क्यों नहीं चुना।

केंद्रीय जांच ब्यूरो एसबीआई की तरह ही आईडीबीआई के किंगफिशर एयरलाइंस को दिए  कर्ज की जांच कर रही है। ऐसा लगता है कि दोनों बैंकों ने माल्या को उनकी निजी गारंटी पर ही कर्ज दिया। भागते भूत की लंगोटी ही सही वाले अंदाज में एसबीआई अपने कर्ज की वसूली के लिए तब जागा जब विजय माल्या दो मार्च को देश छोड़कर भाग गए। अब यह खबर आ रही है  कि वह देश वापसी की जल्दबाजी में नहीं हैं। किंगफिशर एयरलाइंस की उड़ानें वर्ष 2012 में ही बंद हो गर्इं। 2013 में उसका लाइसेंस भी खत्म हो गया। इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि अब इस एयरलाइंस के पुनर्जीवित होने  की संभावना कम ही है। 31  जनवरी, 2014 को एसबीआई  ने किंगफिशर एयरलाइंस पर अपनी बकाया राशि 6,963 करोड़ रुपये निर्धारित की।

ओपिनियन पोस्ट को नीलामी दस्तावेजों से मिली जानकारी के मुताबिक, बैंक का खुद का अनुमान है कि गिरवी रखी सारी परिसंपत्तियों की नीलामी से 160 करोड़ रुपये से भी कम राशि मिलेगी। मुंबई के अंधेरी स्थित किंगफिशर हाउस (जो एयरलाइंस का परिचालन मुख्यालय था) की रिजर्व कीमत 150 करोड़ रुपये रखी गई है। अन्य सभी चल परिसंपत्तियों  की कीमत लगभग 33 लाख रुपये रखी गई है। इनमें कंप्यूटर, एयरकंडीशनर्स, टेलीफोन उपकरण और  नौ कारें शामिल हैं। बैंक कंपनी के सभी ट्रेडमार्कों जैसे किंगफिशर लेबल, फ्लार्इंग मॉडल्स और फ्लाई द गुड टाइम्स को भी नीलाम  कर सकता है। इनसे मोटे तौर पर 50 लाख रुपये और मिल सकते हैं। पर मुश्किल यह है कि इनका कोई खरीदार नहीं है। पिछले साल दिसंबर में एसबीआई ने मुंबई एयरपोर्ट पर किंगफिशर की स्वामित्व वाली सभी चल संपत्तियों की एकमुश्त 65 लाख रुपये में नीलामी की थी। इनमें फोर्कलिफ्ट्स, कारें, ट्रैक्टर्स, ट्रॉलियां आदि शामिल थे। सवाल उठता है कि एसबीआई ने बिना किसी कोलेटरल  के लगभग 1,700 करोड़ रुपये का कर्ज कैसे दे दिया जो ब्याज और जुमार्ने के बाद बढ़कर 7,000 करोड़ रुपये तक हो गया?

विजय माल्या ने सुब्रत राय के साथ मिलकर फार्मूला वन कार रेसिंग के लिए फोर्स वन नाम की कंपनी भी खड़ी की थी
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विमानों का क्या हुआ

किंगफिशर एयरलाइंस जब अपने परिचालन के चरम पर थी तो उसके पास 66 विमान थे।  इनमें से लगभग सभी उन कंपनियों से लीज पर लिए गए थे जो कैमन आइलैंड्स और मॉरीशस जैसी जगहों पर मौजूद थे जहां इन कंपनियों को कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है। यही कारण है कि सेवा कर विभाग, इंडियन ऑयल और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण जैसी सरकारी संस्थाएं जिनका उस पर बकाया था, किंगफिशर एयरलाइंस के बंद हो जाने पर उसकी किसी महत्वपूर्ण परिसंपत्ति पर हाथ नहीं डाल सकीं। वर्ष 2009 में जो कुछ कंपनियां नींद से जागीं उनमें शामिल थीं विमान लीज पर देने वाली कंपनी जीई कमर्शियल एविएशन (जीईसीएएस)। वो अपने चार विमान वापस ले गई क्योंकि एयरलाइंस लीज का पैसा चुकाने में विफल रही।  ऐसे ही कई विमान उन कंपनियों ने वापस ले लिए जो उन्होंने लीज पर दे रखे थे। शेष 24 विमानों के अंदर लगी सभी महत्वपूर्ण मशीनरी और अन्य वस्तुएं बहुत ही सलीके से निकाल ली गर्इं।

माल्या ने किस तरह सरकारी कंपनियों को बेवकूफ बनाया उसका उदाहरण है खड़े विमानों से इंजन गायब करने की तरकीब। कंपनी के लोगों ने बताया की विभिन्न हवाई अड्डों पर मौजूद एयरलाइंस के कई विमानों के इंजन विमान से अलग कर दिए गए और उन्हें सर्विसिंग के लिए भेज दिया गया। पर वो कभी वापस नहीं आए। माल्या का निजी विमान वीटी-वीजेएम तकनीकी पहलुओं का फायदा उठाते हुए कर्ज देने वालों की पहुंच से दूर ही रहा। किंगफिशर एयरलाइंस के पूर्व प्रवक्ता के अनुसार, वीटी-वीजेएम को जब्त नहीं किया जा सकता था क्योंकि इसका स्वामित्व कंपनी के पास नहीं था। किंगफिशर एयरलाइंस गैर-अनुसूचित परिचालक परमिट के अधीन सिर्फ इस विमान का प्रयोग कर रहा  था। इस विमान के पंजीकरण प्रमाण-पत्र में इसके मालिक और विमान को  लीज पर देने वाले का नाम लिखा है। इसमें लिखा है कि यह विमान लंदन स्थित डायचे बैंक को गिरवी रखा गया है। रिकॉर्ड के अनुसार, इस विमान का मालिक कैमन आइलैंड स्थित एक कंपनी सीजे लीजिंग (कैमन) लिमिटेड है जिसने सीजे लीजिंग (आयरलैंड) लिमिटेड  के माध्यम से यह विमान किंगफिशर को 29 नवंबर, 2006 को लीज पर दिया है।

ओपिनियन पोस्ट की पड़ताल से पता चला है कि सीजे लीजिंग (आयरलैंड) एक कंपनी के रूप में 11 अक्टूबर, 2006 को अस्तित्व में आई यानी कंपनी द्वारा विमानों की लीजिंग शुरू करने के सिर्फ एक महीने पहले। इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि किंगफिशर एयरलाइंस इसकी पहली और अंतिम ग्राहक थी। सीबीआई को आशंका है कि हो न हो यह माल्या की ही कारस्तानी होगी। विमानों को बैंकों के पास सीधे बंधक रखने की बजाय टैक्स बचाने के लिए उन्होंने दूसरे नाम से कंपनियां खोल लीं और उस कंपनी को इस विमान का मालिक बता दिया। शायद माल्या इस व्यवस्था का उपयोग बैंकों से लिए गए कर्ज की राशि को अपने विदेशी खातों में भेजने के लिए भी करते रहे हों।

लगभग दो साल पहले देश के शीर्ष 50 कर्जदारों की समीक्षा के दौरान वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने सरकारी बैंकों को निर्देश दिया था की वे कर्ज न चुकाने वाले इन कर्जदारों के खिलाफ कार्रवाई करें। कर्जदारों के पास फंसी बैंकों की यह राशि नॉन परफॉर्मिंग असेट (एनपीए) कहलाती है। किंगफिशर एयरलाइंस को कर्ज देने वाले तीन बड़े बैंक- भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और आईडीबीआई ने इसके बाद नामी ऑडिट फर्म अर्न्स्ट एंड यंग की सेवा ली और उसे फोरेंसिक ऑडिट की जिम्मेदारी सौंपी। उनका संदेह सच निकला। इस रिपोर्ट  के अनुसार, किंगफिशर ने बैंकों से ली गई राशि निजी बैंकों के अपने खाते में डाल दिया था।

बैंक अधिकारियों से मिली गोपनीय सूचनाओं  के आधार पर माल्या ने बैंकों से विमान लीज पर लेने के लिए कर्ज लिया। इसके लिए उन्होंने नकली लीजिंग कंपनियों के ऐसे कोटेशन दिखाए जिनमें राशि को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया था। जानकारी के मुताबिक उसके हिसाब से कई जगह तो इन फर्मोंने खुद ही कम कीमतों पर दूसरी कंपनियों से विमान लिए। इस तरह वास्तविक लीजिंग दर और बढ़ा-चढ़ा कर दिखाए गए दर के बीच की राशि माल्या की जेब में चली गई। कंपनी की बैलेंस शीट के मुताबिक, विमानों को लीज पर लेने के लिए बैंकों से ली गई भारी राशि (1,093 करोड़ रुपये) किंगफिशर ने 2009-10 के दौरान बाहर भेजी। इसी तरह कंपनी ने 2010 -11 में 984 करोड़ रुपये और 2011-12 में 1,058 करोड़ रुपये बाहर भेजे। कंपनी के काम करने के तरीकों और बरती गई अनियमितताओं की विभिन्न सरकारी एजेंसियां जांच करती रहेंगीं पर इसके लिए जो व्यक्ति जिम्मेदार है वह लंदन स्थित हर्टफोरशायर के अपने मकान में डियाजियो से सेटलमेंट के रूप में मिली 515 करोड़ रुपये की राशि दबाकर यूनाइटेड स्पिरिट्स में अपनी शेष हिस्सेदारी से हाथ धोने की तैयारी में लगा है।

 

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