लोकप्रिय आरजे खुराफाती नितिन अपने शो में युवाओं का शुद्ध मनोरंजन करते हैं। पर उसमें नैतिक, सामाजिक और पारिवारिक मूल्य भी होते हैं। उन्होंने अजय विद्युत को बताया कि वह गर्मी की छुट्टियां मनाने अब कहां जाते हैं …और बचपन में कहां जाते थे।
गर्मियों की छुट्टियों में प्राय: लोग ठंडी जगहों पर जाते हैं। पर मैं ऐसी जगह पर जाता हूं जहां लोग आम तौर पर जाना पसंद नहीं करते। जून के महीने में जब दिल्ली में तगड़ी गर्मियां पड़ती है और पूरा देश गर्मी से तप रहा होता है, तब मैं जाता हूं राजस्थान के रेगिस्तान में। मुझे राजस्थान बहुत खूबसूरत लगता है। मुझे लगता है कि जिसने राजस्थान को इस भयंकर गर्मी में नहीं देखा, उसने राजस्थान की सुंदरता देखी ही नहीं। सुनने में लोगों को यह बहुत अटपटा लगेगा क्योंकि वहां गर्मी भीषण पड़ती है, टेम्परेचर काफी हाई होता है। इसलिए अगर आपको ज्यादा गर्मी सहन नहीं होती है तो आपको वहां नहीं जाना चाहिए। हालांकि मुझे गर्मियां बहुत पसंद हैं और सर्दियों से कहीं ज्यादा पसंद हैं। मैं ‘क्रेजी क्रेजी समर किड’ हूं इसलिए वहां जरूर जाता हूं। गर्मी में राजस्थान के प्रसिद्ध व्यंजन दाल-बाटी-चूरमे का अपना ही स्वाद होता है। वह मेरा फेवरेट है। जब गर्मी बहुत पड़ रही होती है दिल्ली में और लोग कहते हैं कि चलो किसी हिल स्टेशन पर चलते हैं- तब मैं उनको बोलता हूं कि चलो चलो राजस्थान चलते हैं। फिर वे पूछते हैं कि- राजस्थान में कहां? वे सोच रहे होते हैं कि मैं माउंट आबू बोलूंगा या ऐसी जगह के बारे में बोलूंगा जो अपेक्षाकृत रमणीक और ठंडी जगह हो। लेकिन जब मैं कहता हूं कि जैसलमेर चलो या कुरी चलो, वहां रेगिस्तान में घूमेंगे- तो वे मुझे अचंभे से देखते हैं- ऐ भाई, तू ठीक तो है। ये क्या हो गया तेरे को…! लेकिन वहां का तपता रेगिस्तान और उसके आसपास के वातावरण की सुंदरता मुझे बहुत पसंद है।
लेकिन बचपन में एक ऐसी जगह थी जहां मैं हर साल जाता था गर्मियों की छुट्टियां मनाने के लिए। वास्तव में ऐसा हाल था कि जब भी गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल में निबंध लिखने को मिलता था तो मैं बार बार यही निबंध लिखता था कि मैं गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर जाता हूं। थोड़ा फ्लशबैक में चलते हैं…
बचपन की वो गर्मियों की छुट्टियां मुझे अभी तक याद हैं। मैं हर साल गर्मियों में नानी के घर जाता था छुट्टियां मनाने।
जब भी गर्मियों की छुट्टियों के बाद हम स्कूल जाया करते थे तो टीचर हमें निबंध लिखने को देती थीं कि- हम गर्मियों की छुट्टियों में कहां गए थे? और मैं हर बार यही लिखता था कि मैं नानी के घर गया। एक बार मेरी क्लास के पार्टनर ने कहा भी- यार तू हर साल कहीं और नहीं जाता, हर साल गर्मियों की छुट्टियों में सिर्फ नानी के घर चला जाता है। पर अगर मुझे मौका मिला दोबारा से अपने बचपन को जीने का, तो मैं फिर से एक बार नहीं हर बार गर्मियों की छुट्टियों में नानी के घर ही जाऊंगा। वो हर दोपहर खिड़की से बाहर झांककर चिल्लाना, ‘कुल्फी वाले भइया, रुक जाओ… आ रहा हूं।’ या फिर खिड़की से कान लगाए इस फिराक में रहना कि अभी झूले वाला आएगा और मैं ‘दिल्ली टू बॉम्बे’ वाले छोटे हवाई जहाज में बैठूंगा।
वो हर दोपहर की नाकामयाब कोशिश कुल्फी बनाने की… और रोज शाम मामा का इंतजार करना… कि आॅफिस से आएंगे तो अपने बजाज चेतक पे झूला दिलाकर आएंगे। मैं स्कूटर के पीछे उल्टा होकर स्टेपनी के साथ बैठता था और उसे स्टेयरिंग समझ खेल खेल में घुमाने की कोशिश किया करता था। रात होते ही बरामदे में मंझियां बिछ जाती थीं और फिर मामा के ट्रांजिस्टर की धीमी आवाज ही हमारी लोरी बन जाती थी।
फिर वक्त बदला… आदतें बदलीं
अब नानी के घर जाता हूं तो उन खिड़कियों से झांक नहीं पाता हूं। सोचता हूं कि फिर उस बचपन में लौट जाने की इच्छा कहीं कचोट न दे। (नानी अब रही नहीं) नानी को एक बार फिर देखने की इच्छा दिल तोड़ न दे! अच्छा था बचपन। अच्छी थीं वो गर्मियों की छुट्टियां।