ओपिनियन पोस्ट।
असम में जारी एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन का डाटा बड़ा राजनीतिक मुद्दा तो बन ही गया है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान पर तो बवाल ही मच गया है, जिससे विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने वाकयुद्ध छेड़ रखा है। विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार को घेर रही हैं तो इस मुद्दे की गूंज संसद के दोनों सदनों में सुनाई पड़ी।
उधर, मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि एनआरसी में जिनके नाम कट गए हैं, वे घबराएं नहीं। अगर वोटर लिस्ट में नाम है तो वे भी वोट सकेंगे। एनआरसी ड्राफ़्ट के आधार पर नाम नहीं हटेगा। 4 जनवरी को वोटर लिस्ट जारी कर दी जाएगी और ‘जिनके नाम कटे हैं, वे अब भी वोटर’ हैं।
बता दें कि असम में बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का अंतिम मसौदा सोमवार को जारी कर दिया गया था। असम एकमात्र ऐसा राज्य है जहां एनआरसी जारी किया गया है, जिसमें पूर्वोत्तर राज्य के कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम हैं, लेकिन करीब 40 लाख लोग अवैध पाए गए हैं।
क्या था ममता बनर्जी का बयान?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) में करीब 40 लाख लोगों के नाम न होने को लेकर बीजेपी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि इससे देश में गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो जाएगी। इसके अलावा ममता ने इस मुद्दे को एक वैश्विक मुद्दा बताया है।
उन्होंने इसे राजनीति से प्रेरित कदम बताया और कहा, ‘हम ऐसा नहीं होने देंगे। ममता ने कहा, ‘मैं यह देखकर हैरान हूं कि एनआरसी के असम ड्रॉफ्ट में पूर्व राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के परिवार तक का नाम नहीं है। ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिनका नाम सूची में नहीं है।
क्या है एनआरसी
देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है। असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है। यहां असम समझौता 1985 से लागू है और इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा।
जिस व्यक्ति का नाम सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है। एनआरसी की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है।
वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा। इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी का डाटा का अपटेड किया गया।