प्रदीप सिंह
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने चार एक के बहुमत से एक ऐतिहासिक फैसले में आधार कानून को संवैधानिक करार दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने बहुमत के फैसले में इस कानून के पीछे सरकार की मंशा को संवैधानिक और कानून सम्मत माना है। न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। यह फैसला इस मुद्दे पर अदालत में गए सभी पक्षों की भावनाओं और चिंताओं का खयाल रखने वाला है। इसमें किसी पक्ष की न तो पूरी हार है और न ही पूरी जीत। सबसे बड़ी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इसे लोगों की निजी स्वतंत्रता का हनन नहीं माना है। अदालत ने कहा कि निजी स्वतंत्रता में सम्मान से जीने का हक भी शामिल है। अदालत ने कहा कि आधार समाज के कमजोर तबके को एक पहचान दिलाता है। आधार कानून के पक्ष में फैसला देने वाले चार न्यायाधीशों, दीपक मिश्रा, एके सीकरी, एएम खानविलकर और अशोक भूषण ने आधार कानून को अनूठा बताते हुए कहा कि सर्वश्रेष्ठ होने से अनूठा होना बेहतर है। क्योंकि सर्वश्रेष्ठ होने से अव्वल होते हैं लेकिन अनूठा होने से आप एकमात्र होते हैं। चारों न्यायाधीशों ने कहा कि आधार कानून का सुशासन के लिए बहुत महत्व है। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह दूसरा सबसे ज्यादा समय तक सुना जाने वाला मामला था।
आधार कानून के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का यों तो सभी पक्षों को इंतजार था। लेकिन केंद्र सरकार के लिए इसकी अहमियत सबसे ज्यादा थी। केंद्र की सामाजिक क्षेत्र की तमाम योजनाओं के लाभार्थी इससे जुड़े थे। समाज के गरीब तबके को उसके हक का पूरा पैसा और लाभ मिले इसमें आधार की बहुत बड़ी भूमिका बन गई है। 2016 में इस कानून को संसद से पास कराने के बाद से सरकार ने सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं में फर्जी लाभार्थियों को हटाकर नब्बे हजार करोड़ रुपये की बचत की है। आधार का विचार कांग्रेस पार्टी यूपीए-दो के समय लेकर आई थी। पर उसने इसे न तो संसद से पास कराया और न ही वैधानिक दर्जा दिलाया। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने इसे संसद से पास कराकर संवैधानिक मान्यता दिलाई। इसकी संवैधानिकता को चुनौती देने के साथ ही कई याचिकाकर्ताओं, विशेषकर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे इस आधार पर भी चुनौती दी थी कि सरकार आधार विधेयक को वित्त विधेयक (मनी बिल) की तरह लाई। कांग्रेस का आरोप था कि यह राज्यसभा में इस पर चर्चा न होने देने के मकसद से किया गया। किसी भी वित्त विधेयक को राज्यसभा से पास कराने की जरूरत नहीं होती। कांग्रेस का दावा था कि आधार विधेयक को वित्त विधेयक के रूप में लाना ही गलत था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर सरकार के पक्ष को सही ठहराया। पर इसके साथ ही अदालत ने एक नई बात कही कि किसी भी बिल को मनी बिल के रूप में पेश करने की इजाजत देने के लोकसभा अध्यक्ष के अधिकार को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि इस कानून को बनाने के पीछे सरकार की मंशा विधिसम्मत है। अदालत ने आधार विरोधियों की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि इससे सरकार को लोगों की निजी जिंदगी में झांकने और निगरानी करने का अधिकार मिल जाएगा। चारों विद्वान न्यायाधीशों ने कहा कि वे इस बात से मुतमइन हैं कि आधार के डेटा के आधार पर जासूसी नहीं हो सकती। फैसले में कहा गया है कि आधार अपने आप में अनूठा पहचान पत्र है। इसकी डुप्लीकेट कॉपी नहीं बन सकती। इसलिए इसकी तुलना दूसरे पहचान पत्रों से नहीं हो सकती। आधार समाज के गरीब तबके का सशक्तीकरण करेगा और उन्हें पहचान देगा। बहुमत के फैसले को न्यायाधीश एके सीकरी ने पढ़कर सुनाया। उन्होंने कहा कि आधार कानून समानता के सिद्धांत पर खरा उतरता है। अदालत ने कहा कि सामाजिक सुरक्षा संबंधी योजनाओं का लाभ आधार के बिना पर दिया जाना जारी रहेगा लेकिन इसके अभाव में किसी को इस लाभ से वंचित नहीं किया जाएगा। इसके अलावा पैन कार्ड से इसको जोड़ना और आयकर रिटर्न में आधार का उल्लेख अनिवार्य रहेगा।
सर्वोच्च अदालत ने निजी इकाइयों को आधार का डेटा देने पर रोक लगा दी है। इसके कारण टेलीफोन कंपनियां, बैंक और दूसरे व्यावसायिक प्रतिष्ठान अब लोगों से आधार कार्ड की जानकारी नहीं मांग सकेंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार लोगों से उनका आधार डेटा नहीं ले सकती। न्यायाधीशों ने कहा कि वे आधार के डेटा की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हैं। इसके बावजूद अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह इस संबंध में जल्दी ही कानून बनाए। बहुमत के फैसले में आधार कानून को लेकर उठी आशंकाओं का शमन करने की कोशिश की गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि अदालत ने माना है कि सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को आधार से जोड़ने के कारण देश सुशासन की ओर बढ़ेगा। दो क्षेत्रों को छोड़कर आधार को बाकी सभी मामलों में स्वैच्छिक बनाने के पीछे एक और कारण है। अदालत को लगता है कि कुछ और क्षेत्रों में इसे अनिवार्य बनाने से पहले सरकार को इस संबंध में कानून बनाना चाहिए।
देश में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार दूर करने और शासन में प्रौद्योगिकी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए आधार बहुत बड़ा कदम है। पर अपने देश में काम अच्छा हो या बुरा उसमें राजनीति आती ही है। यह अजीब बात है कि आधार के शुरुआती समर्थक आज विरोधी खेमे में खड़े हैं और उस समय के विरोधी उसके सबसे बड़े पैरोकार बन गए हैं। आधार का विचार लेकर जब कांग्रेस आई थी तो भाजपा इसे पैसे की बर्बादी बता रही थी। चुनाव के दौरान उसके नेता कह भी रहे थे कि वे सत्ता में आए तो इस परियोजना को बंद कर देंगे। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद इसे बंद करने का फैसला लेने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आधार के लाभ के बारे में प्रेजेंटेशन देने के लिए नंदन निलेकणि को बुलाया। उस प्रेजेंटेशन के बाद मोदी आधार के समर्थक बन गए। जो कांग्रेस नंदन निलेकणि को लेकर आई और आधार की योजना शुरू की, वही इसकी सबसे बड़ी विरोधी बन गई है। वित्त मंत्री अरुण जेतली के मुताबिक कांग्रेस आधार लेकर तो आई लेकिन फिर उसे समझ में नहीं आया कि इसका करें क्या।
राजनीति की बात अपनी जगह लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इतना तो अब तय हो गया है कि आधार कानून की संवैधानिकता पर कोई सवाल नहीं है। इसका असर बहुत दूरगामी होगा। यह समाज के वंचित वर्गों के सशक्तीकरण की दिशा में अहम भूमिका निभाएगा। करीब एक सौ तीस करोड़ की आबादी वाले देश में एक सौ बाइस करोड़ लोगों के पास आधार कार्ड है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि आधार कार्ड ने समाज के निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति को प्रतिष्ठा दिलाई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी योजनाओं का लाभ सीधे और सही व्यक्ति तक पहुंचाने में मदद मिलेगी। मोदी सरकार की जैम (जनधन, आधार और मोबाइल) के जरिये गरीबों तक उनका जायज हक पहुंचाने का प्रयास भ्रष्टाचार की गली से होकर नहीं गुजरेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किसी राजनीतिक दल के हक में हो न हो पर देश के करोड़ों गरीबों के हक में जरूर है।